Sunday, April 15, 2018

अवसाद ने हमेशा सितारों को बरबाद किया!


- हेमंत पाल

    इन दिनों स्टैंडअप कामेडी के लिए मशहूूर कपिल शर्मा अवसाद के घेरे में हैं। उन्होंने अपने आपको कमरे में बंद करके दुनिया से नाता तोड़ लिया है। यहाँ तक कि अपना मोबाइल भी स्विचआॅफ कर दिया। सफलता के उन्माद के बाद उनका अवसादग्रस्त होना अपने आपमें विलक्षण घटना है। वर्ना अब तक यही सुना था कि अवसाद के बीज असफलता की खोल में बंद होते हैं। अवसाद का कारण चाहे जो भी हो, उसने जब जब फिल्मी सितारों को अपनी जद में लिया, अच्छे-अच्छे सितारे बरबादी के शिकार हुए हैं। कपिल शर्मा इसका सबसे ताजा उदाहरण है।
  फिल्मी सितारों और अवसाद का रिश्ता काफी पुराना है। सफल और असफल सभी तरह के सितारे अवसाद से ग्रस्त होकर बरबादी की और मुखातिब हुए हैं। सफलता के सातवें आसमान पर चढ़कर जाबए सितारे अपने इर्द-गिर्द एक आभासी आभामंडल निर्मित कर लेते हैं और उन्हें लगने लगता है कि वे ही सिनेमा के सूरज हैं, ऐसे में यदि उनके सूरज की चमक मंद पड़ने लगे तो वे अवसाद का शिकार हो जाते हैं। अवसाद ग्रस्त ये सितारे कभी खुद को शराब में डूबोकर बरबादी की राह पर चल पडते हैं या फिर किसी और व्यसन के प्रभाव में आ जाते हैं।  
  गुजरे जमाने के सबसे सफल गायक और अभिनेता के.एल. सहगल के साथ भी यही हुआ था। एक असफलता ने उन्हें इतना तोड़ दिया था कि उन्होंने अपने आपको नशे के सागर में डूबो लिया। धीरे-धीरे उनके कैरियर पर ही ग्रहण लग गया। लता मंगेशकर से संबंध बिगड़ने पर संगीत सम्राट सी. रामचन्द्र का भी यही हश्र हुआ था। उनके साथी कलाकार भगवान दादा को भी असफलता के अवसाद ने इस तरह जकड़ा था कि उन्हें अपने अंतिम दिन झोपड़पट्टी में रहकर एक्स्ट्रा की छोटी भूमिका करके गुजारने पड़े थे। उन्हीं की तरह सफलता के नशे में गाफिल मेहमूद खुद नशे के शिकार हो गए। एक समय तो ऐसा आया था कि उन पर नशे की सौ-सौ गोलियां असर नहीं करती थी। अवसाद ने जब उन्हें असफलता की राह दिखाई तो वह मुंबई की गलियां छोडकर बेंगलुरू चले गए । कई बरस बाद जब लौटे तो लोग उन्हें भूल चुके थे। 
   फिल्मी सितारों के अवसाद के अपने-अपने कारण हैं। दिलीप कुमार और मीना कुमारी को हिन्दी सिनेमा का ट्रेजेडी किंग और ट्रेजेडी क्वीन कहा जाता था। सेल्यूलाइड पर गंभीर भूमिकाओं में रंग भरते-भरते वे भी अवसाद के शिकार हो गए थे। दिलीप कुमार को इससे उबरने में डॉक्टरों ने हल्की-फुल्की भूमिकाएं करने की सलाह दी! इसके बाद उन्होंने आजाद, कोहिनूर और राम और श्याम में ट्रेजेडी किंग ने हास्य बिखेरा। मीना कुमारी को ऐसी सलाह नहीं मिली और वे 'साहब बीबी और गुलाम' की छोटी बहू की भूमिका को अपने जीवन में उतारकर नशे में डूब गई। महज 41 साल की उम्र में दुनिया से कूच कर गई। 
  अजीत हिन्दी सिनेमा में फेंटेसी फिल्मों के नायक रहे थे। जब फेंटेसी फिल्मों की मांग घटने लगी तो अजीत की मांग भी घट गई। अवसाद के शिकार होकर अजीत ने फिल्मी दुनिया को अलविदा कहा और हैदराबाद लौट गए। यह उनकी खुश किस्मती थी कि सूरज फिल्म के निर्माण के दौरान राजेन्द्र कुमार ने उन्हें विलेन का रोल करने के लिए राजी कर लिया और हिन्दी सिनेमा को अजीत के रूप में एक दमदार विलेन मिला। प्रेमनाथ की भी यही कहानी थी। वे फिल्मी दुनिया को छोडकर हिमालय में धुनी रमाने चले गए थे। विजय आनंद ने उन्हें तीसरी मंजिल से विलेन बनाया तो उसके बाद प्रेमनाथ सितारा विलेन बन गए।
  अवसाद ने मधुबाला को असमय दिल का रोगी बना दिया और संजीव कुमार को प्रेम में हताश होने के अवसाद ने असमय मार दिया। गुरूदत्त अवसाद में इतने बेचैन हो गए कि उन्होने नींद की गोलियों को शराब में घोलकर अवसाद के साथ-साथ इस जीवन से भी मुक्ति पा ली। यह अवसाद ही था जिसने राजेश खन्ना जैसे सुपर सितारा को एकाकी जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया। राज कपूर जैसे कुछ फिल्मकार भी हैं, जिन्होंने अवसाद को चुनौती के रूप में लिया और 'मेरा नाम जोकर' की घोर असफलता के बाद 'बाॅबी' जैसी सुपर हिट फिल्म बनाकर साबित कर दिया कि असफलता और अवसाद को सृजनशीलता के बल पर हराया जा सकता है। काश, अवसाद में डूबे कपिल शर्मा इस हकीकत को समझ पाते तो वे अपने आपको कमरे में बंद करने के बजाए स्टेज पर उतरकर दर्शको को ठहाके लगवा रहे होते! 
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