Tuesday, April 17, 2018

एक नर्मदा की दो ‍राजनीतिक परिक्रमाएं चुनाव में क्या गुल खिलाएंगी?


- हेमंत पाल


   मध्यप्रदेश में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में अन्य मुद्दों के साथ जिस मुद्दे पर सबसे ज्यादा बवाल होने की संभावना है,वह है नर्मदा। कारण इस चिरकुंवारी नदी की बीते एक साल में प्रदेश के दो शीर्ष राजनेताअों ने प‍रिक्रमा की। पहले मुख्‍यमंत्री शिवराजन ने नर्मदा को बचाने का नारा देकर उसके फेरे लगाए तो बाद में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजयसिंह ने पैदल पूरी यात्रा सम्पन्न की। दोनो का घोषित उद्देश्य अराजनीतिक यात्रा का था। लेकिन, नर्मदा की पतली होती धार के नीचे सियासी तानाबाना अपने आप बुनता चला गया। क्योंकि, नर्मदा केवल मप्र के पहाड़ों,जंगलों और मैदानों से ही नहीं गुजरती वह, लगभग सौ विधानसभा क्षेत्रों को भी सींचती जाती है। यही वह कोण है, जिसको सर करने के लिए आगामी चुनाव में मारामारी होना है। शिवराज की यात्रा आस्था के साथ-साथ प्रशासनिक ज्यादा थी, तो दिग्विजय की यात्रा का आवरण पूरी तरह धार्मिक और आत्म प्रक्षालन का था। कहने को दोनो ही नर्मदा को राजनीति से दूर रख रहे हैं, लेकिन चुनाव में चिरकुंवारी नर्मदा का पानी ही तय करेगा कि सत्ता के सूत्र किसके  हाथ में रहेंगे। ऐसे में दिग्विजय की तुलनात्मक रूप से खामोशी के साथ सम्पन्न हुई नर्मदा यात्रा क्या गुल खिलाएगी, कहना मुश्किल है।  
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   प्रदेश की राजनीति में पिछले कुछ सालों से अराजनीतिक मुद्दों को कुछ ज्यादा तरजीह मिल रही है। ऐसा ही एक मुद्दा 'नर्मदा नदी' भी है, जो अब पूरी तरह गरमा गया। इस नदी के प्रति लोगों की आस्था का अपना एक अलग ही इतिहास है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक यही एक नदी है जिसकी परिक्रमा करने की पुरातन परंपरा रही है। श्रद्धालुओं के लिए नर्मदा जीवनदायनी नदी है। इस नदी की परिक्रमा करके भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह दोनों ने अपना राजनीतिक भविष्य संवारने की कोशिश की। शिवराज सिंह की 'नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा' के बाद दिग्विजय सिंह भी 'नर्मदा परिक्रमा' पर निकले। लेकिन, दोनों की यात्राओं में कई अंतर रहे! मुख्यमंत्री को जहां सत्ता व संगठन का समर्थन मिला, वहीं दिग्विजय सिंह की यात्रा से कांग्रेस ने कोई वास्ता नहीं रखा। कई बड़े नेताओं ने तो दिग्विजय सिंह की इस परिक्रमा के बारे में पार्टी हाईकमान के सामने विरोध तक दर्ज कराया था। कहा गया कि यह यात्रा पार्टी को नुकसान पहुंचाएगी। क्योंकि, भाजपा को 1993 से 2003 के दिग्विजय सिंह के कार्यकाल की याद दिलाने का मौका मिलेगा। लेकिन, धीरे-धीरे सबकुछ सामान्य होता गया और उनके राजनीतिक विरोधी भी उनके साथ यात्रा में शामिल होते गए!
   मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की 'नर्मदा सेवा यात्रा' करीब छह महीने चली! इस यात्रा का मकसद नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त और प्रवाहमान बनाए रखने के लिए की गई। लेकिन, वे परंपरा के विपरीत इस यात्रा में सतत शामिल नहीं रहे! वे बीच-बीच में यात्रा में शामिल हो जाया करते थे। उनकी यात्रा में राजनीति भी थी और फ़िल्मी कलाकारों का ग्लैमर भी! यात्रा का आरंभ और समापन दोनों ही भव्य थे। केंद्र सरकार के कई मंत्री, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी से लगाकर कई धर्मगुरुओं ने इसमें हिस्सेदारी की! मुख्यमंत्री की यात्रा के बाद इस पर हुए खर्च पर भी उँगलियाँ उठी! उधर, दिग्विजय सिंह ने अपनी पत्नी अमृता सिंह, कांग्रेस नेता रामेश्वर नीखरा, पूर्व सांसद अमलाहा और कुछ समर्थकों के साथ दशहरे के दिन 'नर्मदा परिक्रमा' की शुरुआत की। वे अपने धार्मिक गुरु शंकराचार्य स्वरुपानंद सरस्वती से आशीर्वाद लेकर परिक्रमा पर निकले। उनकी यात्रा का सबसे सशक्त पक्ष ये रहा कि उन्होंने अपने वादे के मुताबिक कहीं कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं की और न ऐसे किसी सवाल का जवाब ही दिया! उनकी यात्रा में पार्टी का झंडा भी नहीं रहा! जबकि, शिवराज सिंह की पूरी नर्मदा परिक्रमा में भाजपा का झंडा लहराता रहा। यात्रा के दौरान कई लोग शामिल हुए। कई भाजपा नेताओं ने भी उनका स्वागत सत्कार किया।
   प्रदेश की सौ से ज्यादा विधानसभा सीटें नर्मदा नदी के किनारों को छूती हैं। इस इलाके के लोगों की समस्याओं को जिस तरह दिग्विजय सिंह ने समझा और लोगों ने उन्हें जिस तरह सम्मान दिया वो भाजपा को परेशान करने वाला मसला है। पिछले कुछ सालों से नर्मदा संरक्षण बुरी तरह प्रभावित हुआ जिससे किनारे बसे लोग नाराज हैं। अपनी यात्रा से दिग्विजय सिंह ने नर्मदा के किनारे बसे लोगों की इसी पीड़ा को समझा, नर्मदा की घटती धारा को देखा, नदी से अवैध तरीके से रेत निकालने वाले माफिया के किस्से सुने, नदी किनारे पौधरोपण में होने वाले भ्रष्टाचार को नजदीक से देखा है। यदि ये बातें सुनी-सुनाई होती तो शायद उनपर भरोसा नहीं किया जाता! पर, दिग्विजय सिंह ने ये सब छह महीने तक रात-दिन महसूस किया है। उनकी कई रातें इन्ही लोगों के बीच गुजरी है। उन्होंने खुद ने कोई राजनीतिक वार्तालाप भले न किया हो, पर उनके कान खुले थे! उनके साथी परिक्रमावासी शायद ये सब दर्ज भी कर रहे होंगे। उनकी पत्नी मीडिया में रही है, इसलिए उन्होंने भी सरकार की खामियों और चुनाव में बनने वाले मुद्दों को समझा ही होगा! अब ये सब चुनाव में भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल होना तय है! दिग्विजय सिंह की 'नर्मदा परिक्रमा' के असल निहितार्थ तो अब सामने आएंगे। दिग्विजय सिंह ने यात्रा की समाप्ति के बाद स्पष्ट भी कर दिया कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे, पर पूरे मध्यप्रदेश में घूम-घूमकर भाजपा की पोल खोलेंगे। निश्चित रूप से वे जो पोल खोलेंगे वो नर्मदा से जुड़े मुद्दे ही होंगे। वे नर्मदा नदी में बड़े पैमाने पर होने वाले अवैध रेत खनन के सबूत भी वे सामने लाएंगे। इस सबसे पार्टी में उनका कद तो बढ़ेगा, अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी को भी वे झुकाने में कामयाब होंगे।
   दिग्विजय सिंह दस साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद अपनी इच्छा से सक्रिय राजनीति से दूर रहे! जब वे फिर सक्रिय हुए, तो राजनीति के गलियारों में उनकी धमक को भी महसूस किया गया। अल्पसंख्यकों को लेकर उनके कई बयान विवाद भी बने, फिर भी कांग्रेस में उनके कद को कोई कम नहीं कर सका। कई बार उनके बयान पार्टी की फजीहत का कारण भी बने, बावजूद इसके कांग्रेस में उनका वजन बना रहा। मुस्लिमों के पक्ष में आवाज बुलंद करने वाले दिग्विजय सिंह के बारे में बहुत कम लोगों को पता होगा कि वे बेहद कर्मकांडी हैं और हिंदू परम्पराओं का कड़ाई से पालन करते हैं। स्वरूपानंद स्वामी के शिष्यों में एक दिग्विजय सिंह स्नान, ध्यान व पूजा पाठ करने  अपने दिन की शुरुआत करते है।
  इस यात्रा से उन्होंने कांग्रेस के उस सॉफ्ट हिंदुत्व की दिशा भी निर्धारित कर दी, जिसकी पार्टी को जरुरत है। गुजरात में कांग्रेस उस सॉफ्ट-हिंदुत्व का चमत्कार देख भी चुकी है। शिवराज सिंह ने भी गुजरात में कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व को महसूस किया है। इसलिए वे ऐसा कोई जोख़िम नहीं उठाना चाहते थे, कि दिग्विजय की सनातनी छवि चुनावों में उनकी छवि पर हावी हो जाए! इसलिए उन्होंने अपनी 'नर्मदा परिक्रमा' के बाद 'एकात्म यात्रा' की रूपरेखा तैयार की। लेकिन, आदिगुरु शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापना और उनके अद्वैत दर्शन को लोगों तक पहुंचाने की कवायद में चारों पीठ में से किसी भी पीठ के शंकराचार्य सम्मिलित नहीं हुए। जिससे इस यात्रा पर सवाल खड़े हुए। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने तो यहाँ तक कहा कि आदि शंकराचार्य के नाम पर हो रही यात्रा के बारे में सरकार को चारों शंकराचार्यों से मशविरा करना था। यही वजह थी कि यात्रा में कई ऐसे तथ्य आदि शंकराचार्य से जोड़कर पेश किए गए, जिनका सच से कोई वास्ता नहीं था। शंकराचार्य के सिद्धांतों या जनता से यात्रा का कोई सरोकार नहीं था।
    कांग्रेस की राजनीति के गलियारों में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले दिग्विजय सिंह के बारे में कहा जाता है कि वे कभी हाशिए पर नहीं होते! राजनीति के इस धुरंधर खिलाड़ी की इस यात्रा से मध्य प्रदेश की राजनीतिक की दशा व दिशा में बड़ा भूचाल आना तय माना जा रहा है। उन्हें राजनीति का चाणक्य भी कहा जाता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि उन्होंने कई बार हारी हुई बाजी को भी पलट दिया। प्रदेश में दिग्विजय सिंह को ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ, सुरेश पचौरी या अन्य क्षेत्रीय नेता भी नजरअंदाज करने का साहस कर सकते। उन्होंने नर्मदा परिक्रमा को आध्यात्मिक और धार्मिक अवश्य घोषित किया था परंतु उनका राजनीतिक चोला उनसे विलग नहीं हुआ! परिवार के वे सदस्य जो सक्रिय राजनीति में है, उनके साथ चले। जब उनकी यात्रा खत्म हुई, तब विधानसभा चुनाव के छह माह बचे हैं। दिग्विजय इस यात्रा के जरिए प्रदेश की राजनीति की नब्ज समझ चुके होंगे और अब वे अपना दांव खेलेंगे।
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