Friday, April 27, 2018

कुछ तो कहता है ये रुककर आया फैसला!



- हेमंत पाल 

   जब दौड़ में दो लोग प्रतिद्वंदी हों, तो किसी एक का जीतना तय होता है। लेकिन, जब दूसरा प्रतिद्वंदी भी नहीं हारे, तो मान लिया जाना चाहिए कि फैसला करने वाले दोनों को ही साधकर रखना चाहते हैं। काँग्रेस ने कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की घोषणा के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष और ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर यही संदेश दिया है। भाजपा ने जबलपुर के सांसद राकेश सिंह को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो कांग्रेस ने भी उसी महाकौशल से अध्यक्ष पद के लिए हीरा तलाश लिया। इसे संयोग माना जाना चाहिए कि पहले दोनों पार्टियों के प्रदेश अध्यक्ष निमाड़ के थे और अब दोनों महाकौशल के! कमलनाथ के पक्ष में सबसे अहम्को बात ये है कि उन्हें गाँधी परिवार के नजदीक माना जाता है। 70 के दशक में संजय गांधी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल किया था। तब से लेकर आज तक वे कांग्रेस और गाँधी परिवार के वफादार रहे हैं। आपातकाल के समय उन्हें लेकर 'इंदिरा के दो हाथ, संजय गांधी और कमलनाथ' का नारा दिया गया था। 
    कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंपे जाने कयास काफी पहले से लगाए जाने लगे थे। लेकिन, ये फैसला हमेशा रुकता और टलता रहा! ऐसा क्यों हुआ, इस बारे में अनुमान ही लगाए जा सकते हैं। ये भी कहा गया कि प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जो भी फैसला होगा, वो पार्टी हाईकमान पूर्व मुख्यमंत्री और राजनीति के चाणक्य दिग्विजय सिंह की 'नर्मदा परिक्रमा' पूरी होने के बाद ही लेगा। वास्तव में ऐसा हो या नहीं, पर फैसला दिग्विजय सिंह की आध्यात्मिक यात्रा से वापसी के बाद ही कमलनाथ को कुर्सी दी गई! इसके पीछे दिग्विजय सिंह की जो रणनीति है उसके अपने आशय हैं। लेकिन, अभी भी ये फैसला रुका हुआ है कि कांग्रेस किसे मुख्यमंत्री का चेहरा रखकर चुनाव लड़ेगी?   
   ये अनुमान भी लगाया जा सकता है कि दिग्विजय सिंह और सिंधिया की राजनीतिक अदावत ने भी राहुल को कमलनाथ के हक़ में आखिरकार फैसला करने को मजबूर किया होगा। नर्मदा यात्रा से पहले भी दिग्विजय सिंह ने स्पष्ट कर दिया था, कि कांग्रेस के लिए किसी को चेहरा बनाकर चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं है। सभी मिलकर चुनाव लड़ें और जीतने के बाद पार्टी जिसे चाहे मुख्यमंत्री बनाए! बताते हैं कि जब राहुल गाँधी ने पूछा कि पहले किसी को चुनना हो तो राय दीजिए! इस पर दिग्विजय सिंह का जवाब था कि सिंधिया के पास राजनीति के लिए बहुत वक़्त है! लेकिन, कमलनाथ के पास ये आख़िरी मौका होगा। इसलिए यदि कमलनाथ के पक्ष में पार्टी कोई फैसला करती है तो तो मेरा पूरा समर्थन रहेगा। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि इस फैसले में भी तुरुप का इक्का नहीं चला गया! हाल ही में कमलनाथ ने भी कहा था कि हम सब मिलकर चुनाव लड़ेंगे और संगठन की मजबूती को लेकर काम करेंगे। आगे चलकर यदि मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की जरूरत पड़ेगी तो चेहरा भी घोषित कर दिया जाएगा। उन्होंने ये संकेत भी दिया था कि प्रदेश में कांग्रेस को एक नहीं कई चेहरों की जरूरत है।
  देखा जाए तो अब कांग्रेस ने अपनी चुनावी सेना सजा ली है। नए सेनापति के साथ उनके जोड़ीदारों को भी खोज लिया गया। अध्यक्ष के साथ चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति का मतलब ये लगाया जा सकता है कि हाईकमान किसी को असंतुष्ट करने के मूड में नहीं लगता! हर इलाके से एक एक मुखिया खोज लिया गया। बाला बच्चन, रामनिवास रावत, जीतू पटवारी और सुरेंद्र चौधरी कार्यकारी अध्यक्ष होंगे। इसी साल के अंत में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं, इसलिए मध्यप्रदेश में असल राजनीति अब दिखाई देगी। कार्यकारी अध्यक्षों की भूमिका क्या होगी, इस बारे कोई खुलासा नहीं किया गया। शायद होगा भी नहीं, क्योंकि ये सभी विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार भी होंगे और खुद जीतने में ज्यादा ध्यान देंगे। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और दिग्विजय सिंह की रूचि अब चुनावी राजनीति में है नहीं!  
   अब कांग्रेस के सामने सारा दारोमदार जीतने वाले उम्मीदवारों के चयन का है। पार्टी यदि 'इसका आदमी, उसका आदमी' से ज्यादा जीतने वाले उम्मीदवार पर दांव लगाए तो नतीजा अपने पक्ष में किया जा सकता है। क्योंकि, इस बार के चुनाव में न तो कोई आँधी है न तूफ़ान! सारी हवा भी ठंडी पड़ चुकी है और सजे हुए शामियाने भी उखड़ गए। बरसों बाद ये ऐसा विधानसभा चुनाव होगा जिसमें वोटर को अपनी मनःस्थिति से वोट डालने का मौका मिलेगा! भाजपा सरकार के 15 साल के कार्यकाल की खूबियाँ और खामियां सामने हैं। शिवराजसिंह चौहान ने छवि से प्रदेश के लोगों से खास रिश्ता जोड़ा है। लेकिन, व्यापम, किसानों के मुद्दे और नर्मदा सहित कई मुद्दे पर सरकार को बैकफुट पर आना पड़ेगा! ऐसे में प्रदेश में ऐंटीइनकम्बेंसी से भी इंकार नहीं किया जा सकता। कमलनाथ के हाथ में कमान आने के बाद कांग्रेस भी जीत के लिए हर संभव कोशिश करेगी, पर अभी ये सारे कयास ही हैं कि कौन वोटर्स का दिल जीतेगा?
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