Monday, August 20, 2018

भाजपा के सामने छोटी पार्टियों की बड़ी चुनौती!



    युद्ध हो या चुनाव इनमें मुख्य मुकाबला दो सेनाओं या दो पार्टियों में होता है। युद्ध में छोटी सेनाएं और चुनाव में छोटी पार्टियाँ महज सहायक बनती दिखाई देती है, पर उनका अपना अस्तित्व होता है, जिसका खुलासा बाद में होता है। यही स्थिति इस बार विधानसभा चुनाव में बनती नजर आ रही है। कांग्रेस ने अपनी जीत में बाधक बनने वाली कई छोटी पार्टियों को अपनी सेना में शामिल करना शुरू कर दिया, ताकि चुनाव में उसका एक ही लक्ष्य बना रहे! जबकि, मुकाबले में सामने खड़ी भाजपा फिलहाल अकेली दिख रही है! उसके पास अपनी 15 साल की सरकार की उपलब्धियों का लेखा-जोखा जरूर है, पर साथ में जनता की नाराजी भी कम नहीं! ऐसे में ये चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं है! क्योंकि, कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है! छोटी पार्टियों के साथ मिलकर वो जितने भी मोर्चों पर भाजपा को परास्त कर सकेगी, वो उसकी उपलब्धि ही होगी।  


- हेमंत पाल

   ध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में जुटी भाजपा का मुकाबला इस बार सिर्फ कांग्रेस से नहीं है! उसे एक साथ कई मोर्चों पर छोटी-छोटी पार्टियों से भी जूझना पड़ेगा! मुख्य मुकाबला तो भाजपा का कांग्रेस से है, मगर प्रदेश के हर इलाके में स्थानीय मुद्दों को लेकर बनी पार्टियाँ भी भाजपा को चुनौती देने के लिए तैयार खड़ी हैं। अधिकांश पार्टियों का लक्ष्य सत्ता पाना नहीं, बल्कि सत्ता में बैठी भाजपा को उसकी गलतियों का अहसास कराना है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जयस (जय आदिवासी संगठन) राष्ट्रीय पंचायत पार्टी, हार्दिक पटेल की 'किसान क्रांति सेना' व कर्मचारियों के संगठन 'सपाक्स' समेत कई पार्टियाँ उसे खासा नुकसान पहुंचा सकती हैं। 'जयस' ने सार्वजनिक रूप से तो विधानसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी, पर इस पर अभी भरोसा नहीं किया जाना चाहिए! वो खुद चुनाव लड़े, पर उसका समर्थन और विरोध रंग लाएगा! इसके अलावा कांग्रेस से जुड़कर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी तो भाजपा को शह देने के लिए कमर कस ही रही है! मसला सीटों को लेकर उलझा है, जिसके जल्द सुलझने की उम्मीद की जा रही है।    
  अभी तक के चुनाव में भाजपा को बड़ा खतरा कांग्रेस से ही था। इसके अलावा बसपा व सपा जैसी पार्टियां ही उसे कुछ सीटों पर नुकसान पहुंचाते थे, इसलिए भाजपा की चुनावी रणनीति इन्हें ध्यान में रखकर बनती थी। लेकिन, अबकी बार प्रदेश में कई छोटी-छोटी पार्टियाँ अपनी दमदार उपस्थिति दिखाकर भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर सकती हैं। आदिवासियों की पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और आदिवासी संगठन 'जयस' दोनों ही प्रदेश की 47 आदिवासी सीटों पर सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं। इन्हें अच्छा समर्थन भी मिल रहा है। 'जयस' का प्रभाव मालवा-निमाड़ इलाके में ज्यादा है। इसके अलावा झाबुआ और मंडला जैसे आदिवासी जिलों में भी 'जयस' काम कर रहा है। इनकी अराजनीतिक रैलियों में ही 10 से 15 हज़ार तक लोग इकट्ठा हो रहे हैं, जो इनकी सफलता का संकेत है। इसके अलावा 230 में से 35 सीटें ऐसी भी हैं, जहां आदिवासियों की संख्या 50 हजार तक है, वे यहाँ चुनाव को प्रभावित करने माद्दा रखते हैं।  
  मध्यप्रदेश में 47 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। इनमें से फिलहाल भाजपा के पास 30 सीटें हैं। भाजपा के लिए चिंता वाली बात ये है कि कांग्रेस ने 'जयस' और 'गोंडवाना' दोनों से गठबंधन के संकेत दिए हैं। पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करने के लिए गठित सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग समाज संस्था 'सपाक्स' ने भी चुनाव मैदान में उतरने का मन बना लिया। यह संगठन भाजपा को खासा नुकसान पहुंचा सकता है। 'सपाक्स' ने अपने पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के चिन्ह पर सभी 230 विधानसभा सीटों से प्रत्याशी उतारने की रणनीति भी बना ली। इसके मुखिया हीरालाल त्रिवेदी खुद उज्जैन जिले की बड़नगर सीट से चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं। 
   दूसरी चुनौती बन रही है नोयडा के पंचायत संगठन से जुड़े राष्ट्रीय पदाधिकारी नरेश यादव की 'राष्ट्रीय पंचायत पार्टी' जिसने प्रदेश में किसानों और पंचायत संगठनों को समेटना शुरू कर दिया। चुनाव को लेकर इस पार्टी की गंभीरता इस बात से आंकी जा सकती है कि प्रदेशभर में 'राष्ट्रीय पंचायत पार्टी' ने छोटी-छोटी 21 पार्टियों और संगठनों से चुनावी गठजोड़ किया है। 'सपाक्स' की तरह इस पार्टी ने भी चुनाव आयोग में अपना पंजीयन करवाकर 'पोस्ट बॉक्स' चुनाव चिन्ह भी ले लिया। इस पार्टी का फोकस किसान, पंचायत से जुड़े लोग और ग्रामीण है। मध्यप्रदेश के अलावा ये छत्तीसगढ़ और राजस्थान से भी चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। इन सभी छोटे दलों की सक्रियता देखकर लग रहा है कि भाजपा को ये जहां नुकसान पहुचाएंगे, वहीं इसका फायदा कांग्रेस को होगा! क्योकि, ये पार्टियाँ जीत भले ही न पाएं मगर वोट भाजपा के ही काटेंगे! यदि कांग्रेस से इन पार्टियों का चुनावी गठबंधन हो जाता है, तो ये भाजपा के लिए परेशानी का कारण होगा। 
  गुजरात चुनाव में भाजपा के लिए परेशानी खड़ी करने वाले पाटीदार नेता और 'किसान क्रांति सेना' के अध्यक्ष हार्दिक पटेल भी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ी अड़चन हैं। घोषित तौर पर तो उनका कहना है कि वे न तो कांग्रेस के साथ है और न भाजपा के! लेकिन, सभी जानते है कि हार्दिक वे हमेशा भाजपा के खिलाफ ही खड़े दिखाई देते हैं। प्रदेश की 58 सीटों को पाटीदार वोट चुनाव को प्रभावित करते हैं। इनमें ज्यादातर सीटें मालवा-निमाड़ के अलावा रीवा और सागर संभाग में हैं। आंकड़ों के नजरिये से देखा जाए तो प्रदेश में 1 करोड़ 42 लाख लोग पाटीदार समाज से हैं। 
  मालवा और निमाड़ के जिस इलाके में किसान आंदोलन ने जोर पकड़ा, वो इलाका आरएसएस और भाजपा का गढ़ माना जाता है। आरएसएस के अलावा भाजपा कार्यकर्ताओं की पकड़ जमीनी स्तर पर काफी मजबूत मानी जाती है। लेकिन, मंदसौर किसान आंदोलन और गोलीकांड ने भाजपा को अपनी रणनीति पर सोचने पर मजबूर कर दिया है। क्योंकि, एक तरफ भाजपा के कार्यकर्ता घर-घर जाकर मोदी सरकार की चार साल की उपलब्धियों के साथ शिवराज सरकार की उपलब्धियों का गुणगान कर रहे हैं! लेकिन, किसानों के अंदर पनप रही नाराजगी का न तो आरएसएस को अंदाजा लगा और न भाजपा राज खूबियां गिना रहे कार्यकर्ताओं को। हालात इतने ज्यादा बिगड़ गए कि मालवा और निमाड़ इलाके से पनपा आंदोलन देशभर में फैल गया। शिवराज सरकार की बेपरवाही के चलते किसानों का आक्रोश भी बढ़ गया। आरएसएस जैसे बड़े संगठन की छाया और कैडर बेस पार्टी का दम भरने वाली भाजपा सकते में आ गई! इसे सरकार के इंटेलीजेंस की नाकामी के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन भाजपा को अब समझ आ रहा है कि जिस अंचल में किसानों के वोट बैंक के दम पर भाजपा दम भरती थी, आज वो वोट बैंक नाराज होने के साथ-साथ भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन गया है। 
  इधर, उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी ने भी मध्यप्रदेश की एक-एक विधानसभा सीट का सर्वे कराया है। इसी आधार पर जो रिपोर्ट तैयार हुई, उससे स्पष्ट हुआ कि भाजपा अपने आपको जितना ताकतवर दिखाने की कोशिश कर रही है, उतनी है नहीं! यही कारण है कि सपा ने विधानसभा सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। लेकिन, यदि उसका कांग्रेस से औपचारिक गठबंधन हो गया तो उसे सीमावर्ती 10-12 सीटें मिल सकती है। सपा की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरप्रदेश से लगने वाली बुंदेलखंड की सीटों पर पार्टी की पकड़ मजबूत है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मध्यप्रदेश के 51 जिलों में पर्यवेक्षक भेजे थे। इन पर्यवेक्षकों ने वहाँ रहकर एक-एक विधानसभा का बीस बिंदुओं पर सर्वे किया है। यही स्थिति बहुजन पार्टी की भी है, जिसने 2013 के चुनाव में सीमावर्ती सीटों पर अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज की थी। लेकिन, इनमें से कोई भी पार्टी भाजपा की तरफ झुकती नजर नहीं आती! क्योंकि, जो राजनीतिक फ़ायदा इन पार्टियों को कांग्रेस से मिल सकता है, वो भाजपा से संभव नहीं है।   
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