Saturday, September 29, 2018

कांग्रेसी क्षत्रपों में खींचतान का प्रचार, कहीं चाल तो नहीं?


   कांग्रेस और गुटबाजी मध्यप्रदेश में एक दूसरे पूरक हैं! जब भी कांग्रेस अपने चिर प्रतिद्वंदी भाजपा के खिलाफ कमर कसने की तैयारी करती थी, पार्टी तीन हिस्सों में बंटकर अपने-अपने सेनापतियों के पीछे खड़ी हो जाती थी। कांग्रेस के झंडे के तीन रंगों की तरह प्रदेश में इसकी तीन अलग धाराएं भी साफ़ नजर आती रही! लेकिन, इस बार कांग्रेस के इन टीमों क्षत्रपों में आपसी समझदारी दिखाई दे रही! चुनाव की नजदीकी के साथ ही ये एकजुट होकर भाजपा से मुकाबले के लिए साथ खड़े हैं! अभी तक जो कांग्रेस कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह खेमे में बंटी दिखती थी, अब उनमें एक सामंजस्य बनता लग रहा है। बैनरों, पोस्टरों और नारों में भी अब वो भेद नहीं लग रहा, जो कांग्रेस की पहचान बन गया था। इन तीन नेताओं की ताकत यदि साझा प्रयास करे, तो भाजपा को चुनौती देना मुश्किल नहीं है। लेकिन, फिर भी कार्यकर्ताओं तक ये संदेश नहीं पहुँच रहा! ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस में गुटबाजी का दिखावा करने में भाजपा सफल हो रही हो!  
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- हेमंत पाल

   ध्यप्रदेश में कांग्रेस की तीन धाराएं बरसों से प्रवाहित होती रही है! दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जटाओं से निकलकर ये पार्टी पूरे प्रदेश में बहती है। जब कभी पार्टी को जरुरत पड़ती है, ये धाराएं एक जगह इकठ्ठा हो जाती थी और पार्टी का जनसैलाब बना देती है, जो कांग्रेस की ताकत के रूप में सामने आता है। लेकिन, जरुरत पूरी होते ही ये धाराएं फिर बिखर जाती थी। लेकिन, इस बार माहौल थोड़ा बदला सा लग रहा है। तीनों धाराएं कांग्रेस के झंडे के नीचे समाहित होती लग रही है। कांग्रेस की यही कोशिश भाजपा की परेशानी का कारण भी है। भाजपा को भी पता है कि ये तीनों नेता एक हो गए, तो भाजपा सरकार की जड़ों को उखाड़ना मुश्किल नहीं होगा! तीनों क्षत्रप अब पार्टी के मंच पर भी साथ हैं और मंच के पीछे भी! अभी तक इनके दल मिले थे, पर अब मज़बूरी में दिल भी मिलते लगते हैं। कांग्रेस नेतृत्व इन तीनों को एक जाजम पर बैठा पाने में सफल हो पाया है। इन तीनों धाराओं का सम्मिलित जोश डेढ़ दशक से प्रदेश में जमी भाजपा की जड़ों को हिला दे तो कोई आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए।   
  विधानसभा चुनाव की तैयारी से पहले तक पार्टी में गुटीय राजनीति जबरदस्त हावी थी। पार्टी के कार्यकर्ताओं को कांग्रेसी न मानकर कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह गुटों में बांटकर देखा जा रहा है। यह वो संकेत है, जो पार्टी की रणनीति और भविष्य का अच्छा संकेत नहीं दे रहा था। सभाओं में नारे भी पार्टी को छोड़, नेताओं के नाम के लगने लगे थे! इस बारे में कई बार नेताओं ने कार्यकर्ताओं को हिदायत भी दी, पर समर्थकों की प्रतिबद्धता पार्टी से ज्यादा अपने नेता के प्रति दिखाई देती रही! लेकिन, तीनों के बीच आपसी सामंजस्य ने माहौल को बदला है। फिर भी इस सच्चाई को नाकारा नहीं जा सकता कि पिछले 15 सालों में मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने विपक्ष भूमिका ठीक से नहीं निभाई! अन्यथा आज जैसे हालात नहीं होते! इस दौरान कांग्रेस की स्थिति पूरी तरह निष्प्रभावी राजनीति की रही। कांग्रेस के निर्गुट कार्यकर्ता भी स्वीकारने लगे थे कि यदि भाजपा से मुकाबला करना है, तो पार्टी को एकजुट होना ही होगा! 
     जब तक कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान नहीं सौंपी गई थी, उनके समर्थक उनकी सांगठनिक क्षमता के बारे में काफी कुछ बखानते थे। बीते महीनों में ऐसा कोई चमत्कार तो नहीं हुआ, पर दिग्विजय सिंह, सिंधिया और कमलनाथ में साझा रणनीति बनने की स्थितियां जरूर बनने लगी! कांग्रेस में अब वो बिखराव नजर नहीं आ रहा है, जो पिछले सालों में देखा गया। पार्टी की स्थिति अरुण यादव के कार्यकाल से जरूर कमजोर हुई! इसलिए भी कि अरुण यादव के कार्यकाल को पार्टी के नेता शांतिकाल की व्यवस्था मानते थे। जब से कमलनाथ ने पार्टी की कमान संभाली, पार्टी में बदलाव तो लगा, पर भाजपा पर कोई बड़ा राजनीतिक हमला नहीं किया जा सका! कई मामलों में तो पार्टी ठीक से अपनी रणनीतिक सफलता को भी भुना नहीं पाई! सबसे ख़राब स्थिति पार्टी प्रवक्ताओं की है, जो अभी भी कांग्रेस के प्रवक्ता न होकर अपने नेताओं के गुणगान तक सीमित हैं। पार्टी को इस तरह सबसे ज्यादा ध्यान इसी पर देने की जरुरत है। जब तक सारे प्रवक्ता साझा तैयारी से भाजपा पर हमला नहीं बोलेंगे, जनता तक पार्टी की ताकत का संदेश नहीं पहुंचेगा!
   पहले ये माना जा रहा था कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रदेश में किसी चेहरे को सामने रखकर वोट मांगेगी! जैसा कांग्रेस ने पंजाब में किया था! लेकिन, अब ये बात स्पष्ट हो गई कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला! मध्यप्रदेश में पार्टी बिना चेहरे के ही चुनाव लड़ेगी। पार्टी का मानना है कि चुनाव में चेहरे की जरूरत नहीं होती, जनता का समर्थन चाहिए। फिलहाल पार्टी जिस स्थिति में है, उसे देखते हुए यदि कोई चेहरा सामने किया गया तो पार्टी की हालत ख़राब हो जाएगी! फिलहाल की राजनीति इस बात की इजाजत भी नहीं देती, कि पार्टी किसी एक चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़े! ऐसा हुआ तो सामंजस्य बिगड़ जाएगा और फिर निपटाने-सुलझाने का खेल शुरू होने में देर नहीं लगेगी। वैसे भी कांग्रेस को किसी चेहरे पर फोकस करने के बजाए तहसील, ब्लॉक और जिला स्तर पर संगठन को मजबूत करने की जरुरत ज्यादा है। भाजपा ने अपने डेढ़ दशक के शासन में कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान संगठन के स्तर पर ही पहुँचाया है। इसमें सुधार करके ही सार्थक नतीजे की उम्मीद की जा सकती है। कांग्रेस की इस एकजुटता को अब नीचे तक ले जाना जरुरी है, तभी बदलाव  की जाना संभव है! 
   प्रदेश का मुखिया बनने से पहले कमलनाथ ने शिवराजसिंह चौहान और उनकी सरकार की कथित कलाकारी को चलने नहीं देने का दावा किया था! उन्होंने 2018 में शिवराज की सरकार को उखाड़ फैंकनें का दावा भी किया था। कमलनाथ ने एक बात अच्छी ये भी कही थी कि मैं अपने ग्रामीण इलाके के दस कांग्रेसी नेताओं को रोज फोन लगाता हूँ, ताकि उनसे जीवंत संपर्क बना रहे। क्योंकि, जब तक लोग पार्टी में अपनापन महसूस नहीं करेंगें, तब तक संभव नहीं कि संगठन मजबूत बने! हम अभी तक जो चुनाव हारे उसकी वजह है कि हम स्थानीय स्तर पर संगठित नहीं हो पाए। आज नए और पुराने दोनों ही तरह के पार्टी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने की जरूरत है। कमलनाथ का ये फॉर्मूला कारगर नतीजे देने वाला हो सकता है, बशर्ते इस पर गंभीरता से अमल किया जाए! क्योंकि, दिनभर में दस ट्वीट करने से तो भाजपा घबराकर कांग्रेस को सत्ता सौंप देगी, ऐसा नहीं होगा! 
  प्रदेश में अब चुनाव प्रचार धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है! भाजपा की तरफ से शिवराज सिंह पूरी मुस्तैदी से किला लड़ा रहे हैं। लेकिन, भाजपा का पूरा ध्यान इस बात पर भी है कि कहीं कांग्रेस के तीनों क्षत्रप एक होकर उनका किला न छीन लें! यही कारण है कि भाजपा की तरफ से एक नियोजित तरीके से कांग्रेस में गुटबाजी को प्रचारित भी किया जाने लगा है। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों सभाएं तो जमकर कर रहे हैं, पर अभी भी कहीं न कहीं उनका 'अपना आदमीवाद' साफ़ दिख रहा है! दोनों नेता इस बात का भी ध्यान रख रहे हैं कि उनके समर्थक कहीं टिकट की दौड़ में पिछड़ न जाएं! अभी चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की कोई सूची जारी नहीं हुई! लेकिन, जब वो समय आएगा, तब भी तीनों को सामंजस्य रखना होगा! क्योंकि, दिखने वाली जरा सी लापरवाही भाजपा की हल्ला ब्रिगेड को मौका दे सकती है।
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