Saturday, September 29, 2018

कहाँ, कैसा असर डालेगा मायावती और कांग्रेस का टूटा रिश्ता!


    मध्यप्रदेश में कांग्रेस को जो उम्मीद नहीं थी, वो हो गया। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस से चार महीने से चल रही बातचीत तोड़कर 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। अब उनका एलान है कि वे सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। लेकिन, कांग्रेस ने अभी भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा! उसे लगता है कि ये मायावती की 'प्रेशर पॉलिटिक्स' का हिस्सा है! लेकिन, यदि ऐसा होता तो छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की 'जनता कांग्रेस (जे) से गठबंधन का एलान नहीं होता। देखा जाए तो मायावती राजनीति का सबसे अविश्वसनीय चेहरा हैं। वे पहले भी कई पार्टियों को गठबंधन की आड़ में झटका दे चुकी हैं। मध्यप्रदेश में तो अब तय है कि बसपा अकेले किला लड़ाएंगी, लेकिन इससे चुनाव के नतीजे कहाँ प्रभावित होंगे, ये समझने वाली बात है। वैसे मायावती के बिदकने का बड़ा कारण कांग्रेस का अनमनापन भी है, जिसने सीटों के बंटवारे की बातचीत को लगातार टाला!  



 - हेमंत पाल

  मायावती की राजनीति ने हमेशा ही चौंकाने वाली रही है। क्योंकि, उत्तरप्रदेश में समाज के सबसे नीचे वाले वर्ग को साथ लेकर बनी 'बहुजन समाज पार्टी' (बसपा) की राजनीति मौकापरस्त रही है। गठन से लगाकर आजतक इस पार्टी ने कई पार्टियों को अपनी रणनीति से ललचाया, भरमाया और फिर झटका देकर किनारे किया। कांशीराम ने जब बसपा बनाई थी, तभी उन्होंने इशारा कर दिया था कि वे भविष्य में किस तरह की राजनीति करने वाले हैं। उन्होंने कहा भी था 'हम मजबूत नहीं, मजबूर सरकार चाहते हैं!' इसका सीधा सा मतलब है कि समर्थन की मज़बूरी का लालच देकर पार्टियों को ब्लैकमेल करना और अपना राजनीतिक स्वार्थ साधना ही बसपा की राजनीतिक शैली है! उत्तरप्रदेश की राजनीति में बसपा ने कई बार कई पार्टियों को साथ देने का वादा करके झटका दिया है। समाजवादी पार्टी, भाजपा के साथ बसपा ने जो किया वो किसी से छुपा नहीं! पर, इस बार मायावती ने कांग्रेस के साथ भी वही कहानी दोहराई है, जो पहले वो कई बार कर चुकी है। उत्तरप्रदेश में भाजपा के साथ आधा-आधा कार्यकाल सरकार चलाने का वादा मायावती ने तोड़ा था! समाजवादी पार्टी के साथ भी वे ऐसा कर चुकी हैं और अभी फिर उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ खड़ी हैं।  
   मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और बसपा के बीच लम्बे समय से बातचीत चल रही थी। लग भी रहा था कि दोनों पार्टियां मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिलकर चुनाव लड़कर भाजपा को टक्कर देंगी! लेकिन, एनवक्त पर मायावती ने रास्ता बदलकर कांग्रेस को अकेला छोड़ दिया! छत्तीसगढ़ में उसने अजीत जोगी की पार्टी 'जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) से गठबंधन कर मध्यप्रदेश की भी सभी 230 सीटें अकेले लड़ने का एलान कर दिया। ये अचानक नहीं हुआ! कांग्रेस से ज्यादा सीटें जुगाड़ने के लिए मायावती ने बीच-बीच में कई बार कुचालें भरी! बसपा के मध्यप्रदेश अध्यक्ष ने एक बार कांग्रेस से किसी गठबंधन की संभावना से इंकार भी किया था! लेकिन, तब भी मायावती ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी! यानी कहीं न कहीं शक की सुई कांग्रेस को तभी इशारा कर रही थी कि गठबंधन की गाँठ अभी पक्की नहीं है। अब छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी से गठबंधन का एलान करने के बाद मायावती ने मध्यप्रदेश में अपने 22 उम्मीदवारों के नाम घोषित करके कांग्रेस से गठबंधन की सारी संभावनाओं को ही ख़त्म कर दिया!     
  विधानसभा चुनाव से पहले ये कांग्रेस को लगने वाला सबसे बड़ा झटका है। छत्तीसगढ़ में अब अजीत जोगी की पार्टी और मायावती मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। कुल 90 में से 35 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी, जबकि जोगी की पार्टी 55 सीटों पर! मायावती ने कहा कि अगर हमारा गठबंधन  चुनाव जीतता है, तो अजीत जोगी मुख्यमंत्री बनेंगे! मायावती ने भले ही जोगी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया हो, पर इस पर सहजता से भरोसा नहीं किया जा सकता! राजनीतिक धोखेबाजी में मायावती का कोई जोड़ नहीं! गठबंधन के बारे में मायावती ने कहा कि वे गठबंधन तभी करती हैं, जब उन्हें समझौते में सम्माजनक सीटें मिलें। जोगी और मायावती की इस जोड़ी में यदि कुछ और क्षेत्रीय पार्टियों का तड़का लगे, तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए! क्योंकि, मायावती ने कहा है बसपा और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) भाजपा को छत्तीसगढ़ में रोकने में सक्षम है, लेकिन यदि कुछ और क्षेत्रीय पार्टियां हमारे साथ जुड़ना चाहेंगी तो हम उनका भी सहयोग लेंगे।
  मध्यप्रदेश में बसपा ने सभी 230 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान करके ये संकेत भी दे दिया कि अब कांग्रेस के लिए उनके दरवाजे बंद हो गए। बसपा चाहती थी कि कांग्रेस मध्यप्रदेश से उसे कम से कम 30 सीटें मिलें। जबकि, कांग्रेस उसे 14-15 सीटें देने के मूड में थी। क्योंकि, कांग्रेस को कुछ सीटें समाजवादी पार्टी को भी अपने साथ लेना चाहती थी। वोटों  विभाजन रोकने के लिए कांग्रेस बसपा का साथ चाहती थी। लेकिन, अब कांग्रेस और बसपा साथ नहीं है, तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। एक तथ्य यह भी है कि कांग्रेस ने बसपा से बातचीत को बहुत हल्के में लिया! उन्हें लगा कि कांग्रेस से जुड़ना मायावती की मज़बूरी है, पर बसपा का ऊंट इस करवट बैठेगा, ये किसी ने नहीं सोचा था! कांग्रेस अभी मायावती से गठबंधन की जमीन तैयार करने की तैयारी कर ही रहे थे, कि बसपा छिटककर दूर खड़ी हो गई!
  मायावती की आखिर कांग्रेस से क्यों नाराज हुई, अभी इस बात का खुलासा नहीं हुआ! लेकिन, समझा जा रहा है कि इसकी जड़ें उत्तरप्रदेश में हैं। एक कारण उत्तरप्रदेश के नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को माना जा सकता है, जो कभी मायावती के सबसे भरोसेमंद थे और चंदे तक का हिसाब रखने थे! लेकिन, अब वे कांग्रेस के साथ हैं। बसपा से बाहर आने के बाद नसीमुद्दीन ने मायावती पर खुलकर टिकट बेचने सहित कई इल्जाम लगाए थे। कहा जाता है कि नसीमुद्दीन की मंशा समाजवादी पार्टी में जाने की थी, लेकिन अखिलेश यादव ने ऐसा नहीं होने दिया! कांग्रेस में नसीमुद्दीन को तवज्जो मिलना भी मायावती को खटक रहा है। ये भी मायावती की नाराजी के कारणों में गिना का रहा है। बदली परिस्थितियों में कांग्रेस को विश्वास है कि बसपा के बिना भी तीनों राज्यों में चुनाव जीता जा सकता है। क्योंकि, परंपरागत रूप से माना जाता है कि भाजपा से ज्यादा बसपा कांग्रेस के वोट बैंक में घुसपैठ करती है। जबकि, छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि मायावती ने सीबीआई और ईडी के डर से कांग्रेस से गठबंधन नहीं किया।
   समझा जा रहा है कि एससी, एसटी एक्ट के खिलाफ सवर्णों की नाराजी का तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव पर असर पड़ना लगभग तय है। छत्तीसगढ़ में तो इसका प्रभाव कम है, पर 'भारत बंद' के दौरान मध्यप्रदेश और राजस्थान में विरोध प्रदर्शन सबसे ज्यादा हुए। इस संशोधन एक्ट से नाराज सवर्णों का रुख भाजपा और कांग्रेस को लेकर एक जैसा लग रहा है। ऐसी स्थिति में मायावती को कहीं न कहीं आशंका थी, कि अगर उन्होंने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा तो गठबंधन में जहां-जहां बसपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे, वहां सवर्ण लोग उनसे किनारा कर सकते हैं। ऐसी ढेर सारी आशंकाएं हैं, जो मायावती और कांग्रेस का रिश्ता टूटने का कारण बनी है। लेकिन, इन सारी शंकाओं, कुशंकाओं का चुनाव के नतीजों पर क्या असर होता है! इसके लिए चार महीने इंतजार कीजिए!
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