Monday, September 10, 2018

'सपाक्स' की आहट से बदलते समीकरण!


- हेमंत पाल 
 
   दो साल पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के लिए बनाए कानून एवं नियमों को असंवैधानिक मानते हुए इसे निरस्त कर दिया था। इस निर्णय के खिलाफ प्रदेश सरकार के सुप्रीम कोर्ट में जाने से गैर-आरक्षित वर्ग के सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी नाराज हो गए! 'सपाक्स' इसी नाराजी की कोख से उपजा संगठन है। अब 'सपाक्स' ने अपनी ताकत को चुनाव के मैदान में आजमाने का फैसला किया है। अगले विधानसभा चुनाव में 'सपाक्स' ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है। सरकारी नौकरी में अनारक्षित वर्ग के लोगों की संख्या पांच लाख से ज्यादा है। इनके परिवार और संबंधियों को जोड़ लिया जाए तो ये संख्या कई लाख होगी! इन सभी की नाराजी का फ़ायदा लेने के लिए ही 'सपाक्स' राजनीति में उतरना चाहता है। क्योंकि, एससी-एसटी कानून में संशोधन और आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस दोनों साथ खड़े हैं। वे समझ नहीं पा रहे कि सामान्य वर्ग में कितनी नाराजी है।  लेकिन, ये कांग्रेस और भाजपा को कितना नुकसान और फ़ायदा देगा, अभी इस बारे में कोई अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी! 
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    मध्यप्रदेश की राजनीति दो दलीय है! यहाँ अभी तक कोई तीसरा विकल्प खड़ा नहीं हो सका। जब भी कांग्रेस और भाजपा के अलावा किसी तीसरे राजनीतिक विकल्प का जिक्र आता, तो नजरें बहुजन समाज पार्टी (बसपा) या समाजवादी पार्टी (सपा) पर जाकर टिक जाती है। क्योंकि, उत्तरप्रदेश की राजनीतिक पृष्ठभूमि से उभरी इन दोनों ही पार्टियों ने प्रदेश में कुछ अर्थों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है! लेकिन, उनका प्रभाव उन्हीं सीटों तक रहा, जो उत्तरप्रदेश की सीमा से लगती हैं। महाकौशल, मालवा, निमाड़ या मध्यप्रदेश के अन्य इलाकों में बसपा या सपा की असरदार राजनीति नदारद है। कांग्रेस और भाजपा की हार-जीत पर भी ये असर डाल सकते में सफल नहीं होते! लेकिन, ताजा राजनीतिक संदर्भों में सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक कर्मचारी संगठन 'सपाक्स' को प्रदेश में तीसरा विकल्प समझा जा रहा है! अपने नाम से 'सपाक्स' अपने राजनीतिक अस्तित्व का संकेत नहीं देता! इसलिए ये संगठन विधानसभा चुनाव में 'उगता सूरज' नाम से राजनीतिक पार्टी मैदान में उतार रहा है! इस संगठन के असर को कांग्रेस और भाजपा दोनों ही समझ रहे हैं! देखना है कि चुनाव में 'सपाक्स' अपनी मौजूदगी से खुद की पहचान बना पाता है या किसी और पार्टी के लिए मददगार बनता है!       
     संसद में एससी, एसटी एक्ट में हुए नए संविधान संशोधन के खिलाफ सवर्णों के बंद को 'सपाक्स' के मौन समर्थन ने उसकी ताकत दिखा दी! प्रदेश की जनता तक ये संदेश पहुँच गया कि राजनीतिक विचारधारा से हटकर भी कोई मंच है, जो सवर्णों की बात को आवाज दे सकता है! इस संगठन ने सरकारी सेवाओं में कार्यरत ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को ताकत देने की कोशिश की, जो अभी तक आरक्षण राजनीति के सामने खामोश रहने के लिए मजबूर थे। 'सपाक्स' की वजह से ही एससी-एसटी एक्ट और प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर होने वाले विरोध ने जोर पकड़ा! इस संगठन का मकसद सरकारी नौकरियों में होने वाले प्रमोशन में आरक्षण को खत्म कराना है। यह संगठन जातिवाद समाप्त करने का भी पक्ष लेता है। शायद इसीलिए इस संगठन का नारा है 'साथ चलेंगे विकास करेंगे।'
   दरअसल, 'सपाक्स' की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण है 'अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स) का विरोध। इसीलिए 'सपाक्स' को 'अजाक्स' का प्रतिद्वंदी संगठन कहा जाता है। 'सपाक्स' ने ही मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 2002 में पारित 'आरक्षण के आधार पर पदोन्नति कानून' का विरोध किया था। इसे हाईकोर्ट ने भी असंवैधानिक करार दिया। लेकिन, प्रदेश सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई! बस यहीं से 'सपाक्स' की नींव पड़ी! संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी का ये संगठन आज प्रदेश के सभी जिलों में सक्रिय है और इसके कई मोर्चे भी हैं। इस संगठन की विचारधारा कभी राजनीतिक नहीं रही, पर वर्तमान संदर्भों में 'सपाक्स' का नजरिया राजनीतिक हो गया! क्योंकि, एससी, एसटी कानून में केंद्र सरकार ने जो संविधान संशोधन किया, वो सवर्ण जनमानस की उस सोच से मेल खाता है, जो 'सपाक्स' का मकसद है। आरक्षण, जातिय भेदभाव जैसे मुद्दों ने 'सपाक्स' और एससी, एसटी कानून का विरोध करने वाले अराजनीतिक लोगों को एक मंच पर ला दिया है! उनकी इस योजना के पीछे मूल मकसद राजनीति में लागू आरक्षण का विरोध करना, क्योंकि देश के विकास में यही सबसे बड़ा रोड़ा बना है। आरक्षण विरोधी युवाओं का भी 'सपाक्स' के प्रति रुझान बढ़ा है!
   अनारक्षित सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के इस संगठन के राजनीतिक असर को कभी न तो समझा गया और न ऐसी कोई जरुरत पड़ी! क्योंकि, सरकारी सेवा से जुड़े लोगों को अपनी राजनीतिक सोच को सार्वजनिक रूप से दर्शाने पर रोक होती है! लेकिन, एससी,एसटी एक्ट में बदलाव से सवर्णों में उभरे गुस्से ने 'सपाक्स' को अपनी राजनीतिक ताकत परखने पर मजबूर कर दिया! यही कारण है कि इसे आज कांग्रेस और भाजपा के सामने तीसरा प्रमुख प्रतिद्वंदी समझा जा रहा है। 'सपाक्स' ने अगले विधानसभा चुनाव में अपनी मौजूदगी का फैसला करके दोनों प्रमुख पार्टियों की नींद उड़ा दी! 'सपाक्स' ने प्रदेश की सभी 230 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का एलान कर दिया और राजनीतिक पार्टी बनाने की बात कही है। अनुमान है कि 'सपाक्स' के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी खुद उज्जैन जिले की बड़नगर विधानसभा से चुनाव लड़ेंगे!
   'सपाक्स' की स्पष्ट राजनीतिक विचारधारा भाजपा और कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल भी है। क्योंकि, एससी-एसटी कानून में संशोधन का विरोध करने का साहस इन दोनों ही पार्टियों में नहीं है। केंद्र में सरकार भाजपा की है, इसलिए भाजपा तो विरोध करने से रही! पर, कांग्रेस भी एससी-एसटी वोटों के लोभ में मुँह बंद किए है! उसे डर है कि यदि संविधान संशोधन के खिलाफ मुँह भी खोला तो एक बड़ा वर्ग उसके हाथ से निकल जाएगा! लेकिन, 'सपाक्स' का गठन इस विरोध की कोख से जन्मा है, इसलिए उसे खुलकर बोलने और सामने आने में कोई संकोच नहीं है, और यही आज वक़्त की मांग है! 'सपाक्स' अनारक्षित वर्ग के इसी सोच का फ़ायदा उठाकर अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाना चाहता है। इस बार का विधानसभा चुनाव उसके लिए शायद सबसे अच्छा मौका साबित हो! विधानसभा चुनाव में 'सपाक्स' उनकी इसी विचारधारा के संगठन के साथ गठबंधन करने को भी तैयार है! क्योंकि, 'सपाक्स' के अधिकांश सदस्य सरकारी नौकरी में हैं, जो खुलकर राजनीति करने मैदान में नहीं आ सकते! लेकिन, 'सपाक्स' की सबसे बड़ी ताकत है उसका एससी-एसटी को मिलने वाले आरक्षण के प्रति उसका विरोध! समाज में धारणा के समर्थकों की कमी नहीं है, पर उस विरोध को मंच देकर 'सपाक्स' ने लोगों को सोचने पर मजबूर तो कर दिया!   
     'सपाक्स' के चुनाव लड़ने के फैसले से प्रदेश की राजनीति का चेहरा कहाँ और कैसे बदलेगा, इसे लेकर अभी कई तरह अनुमान हैं! एससी-एसटी कानून  में संशोधन से सामान्य वर्ग की भाजपा के प्रति नाराजी साफ़ नजर आ रही है! ऐसे में 'सपाक्स' के चुनाव लड़ने से भाजपा विरोधी वोट उसकी झोली में गिरेंगे जो कांग्रेस नहीं चाहती! कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि किसी भी स्थिति में सरकार विरोधी वोटों का बंटवारा न हो! क्योंकि, सत्ता विरोधी वोटों के बंटने से भाजपा को फ़ायदा मिलना तय है। 'सपाक्स' के राजनीति में उतरने को भाजपा अपनी जीत की तरह देख रही है। इसकी वजह भी साफ है! 'सपाक्स' जब मैदान में उतरेगा तो सत्‍ता विरोधी वोट बटेंगे और ये विभाजित वोट कांग्रेस के लिए नुकसानदायक है। लेकिन, अभी भी बहुत सारे किन्तु, परन्तु हैं जो प्रदेश में राजनीति के समीकरण बदल सकते हैं।
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