Tuesday, March 5, 2019

'ताई' से इंदौर की चाभी छिनेगी या उसी पल्ले में बंधी रहेगी?


- हेमंत पाल


  भारतीय जनता पार्टी के लिए इंदौर प्रदेश की सबसे प्रतिष्ठित सीट है! यहाँ 'ताई' यानी सुमित्रा महाजन को 9वीं बार जीतकर रिकॉर्ड बनाना है, लेकिन उनकी राह में 'भाई' यानी कैलाश विजयवर्गीय खड़े हैं। 'ताई' से इंदौर की चाभी छीनने में कांग्रेस तो पूरा दम-ख़म लगा ही रही है, भाजपा भी इस कोशिश में पीछे नहीं दिख रही! क्योंकि, अपने 8 संसदीय कार्यकाल में सुमित्रा महाजन ने शहर में उपलब्धियों का ऐसा कोई पहाड़ खड़ा नहीं किया, जो उन्हें 9वीं जीत दिलाए! इसके अलावा सत्यनारायण सत्तन जैसे नेता भी हैं, जो ख़म ठोंककर 'ताई' खिलाफ खड़े हैं। ऐसे में ये सवाल लाख टके का है कि 'ताई' से इंदौर की चाभी कौन छीनेगा?      
000 

  कांग्रेस करीब तीन दशक से इंदौर लोकसभा सीट जीतने के लिए छटपटा रही है। यहाँ तक कि कांग्रेस की एक पूरी पीढ़ी 'ताई' को सांसद की कुर्सी पर बैठे देखते हुए बुढाने लगी! वे अकेली ऐसी महिला सांसद हैं, जो एक ही लोकसभा सीट और एक ही पार्टी से लगातार 8 लोकसभा चुनाव जीती हैं। लेकिन, इस बार माहौल कुछ अलग है! इंदौर जैसे भाजपा के गढ़ में विधानसभा चुनाव में पार्टी की दुर्गति के बाद भाजपा को खतरा नजर आने लगा है। विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में 'ताई' और 'भाई' में हुई खींचतान का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा! इंदौर संसदीय क्षेत्र की 8 में से कांग्रेस ने चार सीटें जीतकर पार्टी का सारा गणित बिगाड़ दिया। पार्टी ने इस हार से ये सबक सीखा कि वो अब 'ताई' औऱ 'भाई' में सुलह कराने की कोशिश में है। इसका पहला इशारा ये है कि पार्टी ने कैलाश विजयवर्गीय के सबसे नजदीकी विधायक रमेश मेंदौला को सुमित्रा महाजन को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी है। पार्टी की ये ऐसी रणनीति है कि न चाहते हुए भी कैलाश विजयवर्गीय को 'ताई' के लिए नरमी बरतना पड़ेगी!
  सबसे बड़ा सवाल ये है कि पार्टी सुमित्रा महाजन को लोकसभा का उम्मीदवार बनाती भी है या नहीं! फिलहाल ये फैसला भविष्य के गर्भ में है! लेकिन, यदि 'ताई' को टिकट मिला और उन्होंने 9वीं बार जीतीं, तो वे नया संसदीय इतिहास बना देंगी! वे देश की पहली महिला सांसद होंगी, जो लगातार 9 बार एक ही पार्टी से लोकसभा चुनाव जीतेंगी! लेकिन, 'ताई' को ये इतिहास रचने के लिए इंदौर के सभी गुटों साधना होगा! ख़ासकर कैलाश विजयवर्गीय को साथ लेना होगा, जिनका आज भी शहर में डंका बजता है। खुसुर-पुसुर तो ये भी हैं कि कैलाश विजयवर्गीय खुद ही लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड में हैं, इसीलिए उन्होंने विधानसभा चुनाव से दूरी बनाई है। ऐसे हालात से निपटने के लिए ही शायद पार्टी ने रमेश मेंदौला के हाथ में चुनाव की कमान सौंपी है।
  भाजपा इस बार इंदौर में कोई रिस्क लेगी, ऐसा नहीं लगता! कारण कि विधानसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में इन दोनों की तनातनी का नतीजा अच्छा नहीं निकला! 'ताई' ने अपने जिन भी समर्थकों को टिकट दिलाया, कैलाश विजयवर्गीय  ने उसका विरोध किया! मामला इतना गंभीर हो गया था कि 'ताई' को मनाने के लिए नरेद्रसिंह तोमर और विनय सहस्त्रबुद्धे को इंदौर आना पड़ा! 'ताई' की बात मान ली गई, पर उनकी पसंद के 5 में से 4 उम्मीदवार चुनाव हार गए। यही कारण है कि पार्टी अब रिस्क लेना नहीं चाहती! पार्टी का मानना है रमेश मेंदोला के बीच में होने से कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश जाएगा और मेंदोला के इलाके से सुमित्रा महाजन को अच्छी लीड मिलेगी।
   पिछला लोकसभा चुनाव सुमित्रा महाजन करीब साढ़े चार लाख वोट से जीतीं थी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को संसदीय क्षेत्र की 8 में से 4 सीटें जीती है, इसलिए कांग्रेस मुकाबले को बराबरी का मान रही है। कांग्रेस का मानना है कि उसे प्रदेश में चुनावी वादे पूरे करने का भी फायदा लोकसभा चुनाव में मिलेगा। कांग्रेस के उत्साह की वजह ये भी है कि 2014 में साढ़े 4 लाख का जीत का आंकड़ा विधानसभा चुनाव में घटकर करीब 95 हज़ार रह गया! साथ ही इस बार लोकसभा चुनाव में करीब 25 लाख 70 हजार मतदाता वोट डालेंगे! जबकि, विधानसभा चुनाव में करीब 24 लाख 80 हजार मतदाता थी। करीब एक लाख नए मतदाताओं के नाम जुड़े हैं। इनमें भी ऐसे युवा मतदाता ज्यादा हैं, जो पहली बार वोटिंग करेंगे। दरअसल, ये नए मतदाता ही फैसला करेंगे कि लोकसभा में उनका अगला प्रतिनिधि किस पार्टी का और कौन होगा!
    आठ लोकसभा चुनावों से अजेय बनी सुमित्रा महाजन के लिए इस बार परेशानी कांग्रेस से ज्यादा अपने घरवालों से है। एक मंचीय कवि और भाजपा नेता सत्यनारायण सत्तन ने तो ख़म ठोंककर चुनौती दे डाली है कि यदि पार्टी ने इस बार भी 'ताई' को ही उम्मीदवार बनाया तो वे भी चुनाव लड़ेंगे! जबकि, वे खुद टिकट न मांगकर चार नाम हवा में उछाल रहे हैं। इसमें एक कैलाश विजयवर्गीय का भी है! ये पहली बार नहीं है कि 'ताई' खिलाफ माहौल बना हो! 2009 में भी भाजपा के एक गुट ने उन्हें टिकट दिए जाने का विरोध किया था! इस चुनाव में जमकर सेबोटेज भी हुआ था। स्थिति ये आ गई थी कि 'ताई' कांग्रेस उम्मीदवार सत्यनारायण पटेल से बमुश्किल साढ़े 11 हज़ार वोट से चुनाव जीत सकी थीं। इस बार फिर भाजपा में 'ताई' के खिलाफ आवाज उठ रही है। भाजपा में भी बदलाव का नारा बुलंद होता दिखाई देने लगा है। कभी प्रकाशचंद्र सेठी से इंदौर की चाभी छीनने वाली 'ताई' के हाथ से अब चाभी छीनने वालों की लाइन लग गई है! कांग्रेस ही नहीं भाजपा में भी चाभी छीनने वाले बाँह चढ़कर खड़े हैं। 'ताई' ने योग्य व्यक्ति को चाभी सौंपने की बात क्या कह दी, उनके विरोधी सक्रिय हो गए! उन्होंने पार्टी अध्यक्ष राकेश सिंह की मौजूदगी में भी इसी बात को दोहराया तो कैलाश विजयवर्गीय के समर्थन में जमकर नारेबाजी हुई। ये इस बात का संकेत है कि भाजपा में सतह के नीचे काफी खदबदाहट है। 
  इस सीट के राजनीतिक समीकरण को परखें तो इस बार चुनाव में न कोई लहर है और न हवा! नरेंद्र मोदी की वजह से पिछले चुनाव में भाजपा का जो माहौल था, वो अब नहीं बचा! ऐसी स्थिति में जो अच्छा उम्मीदवार  मैदान में उतारेगी, जीत की संभावना उसकी ही ज्यादा है। लेकिन, कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी मुसीबत ये है कि 'ताई' के सामने किसे उतारा जाए? कांग्रेस में उम्मीदवार को लेकर गहन मंथन का दौर चल रहा है! कई नए पुराने नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं! लेकिन, लगता नहीं कि जो घिसे-पिटे नाम हवा में हैं, उनमें से कोई उम्मीदवार हो सकता है!
  इंदौर लोकसभा की सीट देश की हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है। इंदौर सीट का पहला चुनाव 1957 में हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार खादीवाला जीते थे। इसके बाद 1984 तक इस सीट से कांग्रेस ही जीतती रही! लेकिन, 1989 में जब भाजपा ने सुमित्रा महाजन को इस सीट पर उतारा तो इसके बाद से यह सीट उन्हीं के नाम हो गई! उन्होंने इस चुनाव में कांग्रेस के भारी भरकम नेता प्रकाशचंद्र सेठी को हराया। जबकि, सुमित्रा महाजन इससे पहले महेश जोशी से विधानसभा चुनाव हार चुकी थीं। वे 1982-85 में इंदौर महापालिका में पार्षद भी रही हैं। सुमित्रा महाजन का राजनीतिक जीवन 1980 के दशक में शुरू हुआ, जब वे इंदौर की उप-महापौर चुनी गईं थी। पर, लोकसभा उनको इतनी रास आई कि वे तीन दशक में 8 चुनाव जीत चुकी हैं। इन 8 चुनाव में कांग्रेस ने हर बार उन्हें हराने के लिए सारी कोशिशें की, पर अभी तक सफलता नहीं मिली है! देखना है इस बार भी कोई 'ताई' से चाभी छीनता है या इंदौर की चाभी उन्हीं के पल्ले में बंधी रहेगी! 
--------------------------------------------------------

No comments: