Tuesday, March 19, 2019

मालवा-निमाड़ में भाजपा चेहरे बदले तो कोई बात बने!

  मध्यप्रदेश की राजनीति में टोटका है कि जिस पार्टी की स्थिति मालवा-निमाड़ में अच्छी होती है, वही सरकार बनाती है! विधानसभा चुनाव में तो ये कई बार साबित भी हो चुका है! पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ज्यादा सीटें जीती तो उसकी सरकार बनी! इस बार कांग्रेस आगे निकल गई तो प्रदेश में कमलनाथ को सरकार बनाने का मौका मिला! लोकसभा चुनाव में भी यही टोटका काम करता है! आशय यह कि मालवा-निमाड़ के मतदाता जिस पार्टी को पसंद करते हैं, केंद्र में उसी पार्टी का झंडा लहराता है। अब देखना है कि इस इलाके की 8 सीटें क्या संकेत देती हैं! अभी तो 7 पर भाजपा का कब्ज़ा है, पर ये आंकड़ा दोहराया जा सकेगा, इसमें शक है। क्योंकि, पार्टी का सर्वे चेहरे बदलने की हिदायत दे रहा है! लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भाजपा के पास वो 8 जिताऊ चेहरे हैं, जो 2014 की तरह यहाँ की सभी सीटें हथिया सकें?        
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- हेमंत पाल

    ध्यप्रदेश में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बना ली! उसे ये जीत भले ही हाशिये पर मिली हो, पर जीत आखिर जीत होती है! अब कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती लोकसभा चुनाव में अपनी इस जीत को दोहराना है! दूसरी तरफ भाजपा के लिए भी चुनौती है कि वो हार के गम से बाहर निकलकर अपनी पिछली सफलता को दोहराए! 29 लोकसभा सीटों में से पिछले चुनाव में भाजपा ने 27 सीटें जीती थीं! बाद में उपचुनाव में कांग्रेस ने झाबुआ-रतलाम सीट जीतकर आंकड़ा घटाकर 26 कर दिया था! लेकिन, इस बार मामला आसान नहीं लग रहा! भाजपा के लिए सबसे बड़ा संकट मालवा-निमाड़ की 8 सीटें हैं, जहाँ फिलहाल पार्टी की हालत ठीक नजर नहीं आ रही! आठ में से एक सीट झाबुआ-रतलाम भाजपा के हाथ से उपचुनाव में चली गई थी! देवास-शाजापुर के मौजूदा सांसद मनोहर ऊंटवाल विधायक चुन लिए गए हैं! इसलिए यहाँ तो भाजपा के सामने चुनौतियाँ खड़ी ही हैं! लेकिन, बाकी की 6 सीटों के मौजूदा सांसदों के फिर से जीतने में शंका है! मध्यप्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में 6 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, इनमें से 3 सीटें (धार, झाबुआ-रतलाम और खरगोन) मालवा-निमाड़ में हैं।  
   इंदौर सीट को मालवा-निमाड़ की सबसे प्रतिष्ठित सीट माना जाता है! यहाँ से भाजपा की सुमित्रा महाजन उर्फ़ 'ताई' लगातार आठ बार से चुनाव जीत रही हैं! पिछला चुनाव जीतकर वे लोकसभा अध्यक्ष जैसे बड़े पद पर पहुंची! लेकिन, इस बार तय नहीं है कि उन्हें भाजपा फिर से उम्मीदवार बनाएगी! मुद्दे की बात ये कि 'ताई' को टिकट न दिए जाने की मांग पार्टी के नेता ही कर रहे हैं। लेकिन, पार्टी की मुश्किल ये भी है कि यदि उन्हें बदला जाता है तो टिकट किसे दिया जागा? भाजपा के सर्वे में सुमित्रा महाजन की स्थिति को भी संतोषजनक नहीं पाया गया! उनकी हार-जीत कांग्रेसी उम्मीदवार के चेहरे पर निर्भर है! ये स्थिति सिर्फ इंदौर नहीं है! मालवा- निमाड़ की शेष 7 सीटों पर जीत को लेकर भी भाजपा निश्चिंत नहीं है! 
 विधानसभा चुनाव के नतीजों का भी संकेत है कि 8 संसदीय सीटों में से 6 सीटों पर भाजपा की हालत खस्ता है। जिन दो सीटों पर कांग्रेस पीछे हैं, उनमें एक इंदौर है, जहाँ भाजपा और कांग्रेस दोनों ने 4-4 विधानसभा सीट जीती हैं। इस वजह से इंदौर में कांग्रेस का उत्साह शिखर पर है! जबकि, मंदसौर में भाजपा का अपेक्षाकृत भारी है! लेकिन, यहाँ के सांसद सुधीर गुप्ता को जीतने वाला उम्मीदवार नहीं माना जा सकता! मालवा और निमाड़ इलाके की 66 विधानसभा सीटों में से इस बार कांग्रेस को 36, कांग्रेस समर्थक निर्दलियों को 3 तीन और भाजपा को 27 सीटें मिली हैं। भाजपा ने अपने सर्वे में खंडवा, खरगोन, धार, देवास-शाजापुर और उज्जैन में भाजपा को कमजोर पाया है। इसका कारण है वहां के सांसद, जिनसे जनता नाराज है! पिछले चुनाव में निमाड़ की 2 सीटों खंडवा से नंदकिशोर चौहान और खरगोन से सुभाष पटेल को जीत हांसिल हुई थी! लेकिन, फ़िलहाल दोनों को कमजोर आँका गया है! यदि इन्हें दोबारा टिकट दिया जाता है तो पार्टी का दांव उल्टा पड़ सकता है! जबकि, मालवा की 6 सीटों में से झाबुआ-रतलाम फिलहाल कांग्रेस के पास है और भाजपा के पास कांतिलाल भूरिया का कोई तोड़ भी नहीं है! देवास-शाजापुर सांसद मनोहर ऊंटवाल को पार्टी विधानसभा चुनाव लड़वा चुकी है, इसलिए उनकी जगह कोई नया चेहरा आना तय है! 
  धार में सावित्री ठाकुर, मंदसौर में सुधीर गुप्ता और उज्जैन में चिंतामण मालवीय का फिर से जीतना भी मुश्किल है! मंदसौर में भले ही भाजपा का पलड़ा भारी है, पर वहाँ के लोग सुधीर गुप्ता से मुक्ति चाहते हैं! इन सभी में यदि पार्टी किसी पर फिर से भरोसा कर सकती है, तो इंदौर से सुमित्रा महाजन के बाद उज्जैन से चिंतामण मालवीय हो सकते हैं। इसके अलावा तो पार्टी को अपने 5 मौजूदा सांसदों को उम्मीदवारी से बाहर करना ही होगा! भाजपा के लिए माहौल भी अब पिछले चुनाव जैसा नहीं है! मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने से भी मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो सकता है! ऐसी स्थिति में भाजपा के लिए घरभर के बदलने से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता! जबकि, पार्टी को भरोसा है कि मालवा-निमाड़ की 8 सीटों में से आदिवासी बहुल 3 सीटों पर मेहनत करना पड़ेगी, बाकी की सीटों पर हम मजबूत हैं। लेकिन, वास्तव में सर्वे का इशारा इस बात की पुष्टि नहीं कर रहा!
  लोकसभा चुनाव को विधानसभा चुनाव में मिली सीटों के नजरिए से परखा जाए, तो भी स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि भाजपा को आदिवासी इलाके की 12 सीटों नुकसान झेलना पड़ा है! पिछले विधानसभा चुनाव में 22 आदिवासी सीटों में से भाजपा को 18 सीटें मिली थीं! जबकि, इस बार गणित पलट गया और कांग्रेस के खाते में 16 सीटें चली गईं! इस नुकसान का कारण भाजपा आदिवासियों के सामाजिक संगठन 'जय आदिवासी संगठन' (जयस) को मान रही है! इसके अध्यक्ष हीरालाल अलावा ने मनावर (धार) से कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा और जीता! भाजपा का अनुमान है कि धार, रतलाम-झाबुआ और खरगोन में 'जयस' की पकड़ के कारण माहौल भाजपा के लिए अनुकूल नहीं है। लेकिन, इस माहौल को अपने पक्ष में बनाने के लिए भाजपा के पास कोई फार्मूला  नहीं आ रहा! मालवा-निमाड़ की तीन लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित हैं। इनमें से दो पर भाजपा और एक पर कांग्रेस का कब्जा है। अब इस लोकसभा चुनाव में किस पार्टी का किस सीट पर कब्ज़ा बरक़रार रहता है और किस पर से छिनता है, ये तो भविष्य ही बताएगा! लेकिन, भाजपा यदि सारे घर के बदले, तभी उसका घर ज्यादा रोशन होगा!   
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