- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार अपनी पूर्ववर्ती शिवराज सरकार के कुछ बोझ बेवजह ढो रही है! उन्हीं में से एक है 'आनंद संस्थान!' भूटान की नक़ल से बने इस ख़ुशी के फॉर्मूले को प्रदेश की शिवराज सरकार ने अपनाया था! अब कमलनाथ सरकार ने भी इसे जारी रखा! पुरानी सरकार जो 'हैप्पीनेस इंडेक्स' का काम बाकी छोड़ गई थी, उसे अब कांग्रेस सरकार पूरा करने की कोशिश में है! तीन साल में भी जो 'हैप्पीनेस इंडेक्स' तय नहीं हुआ था, अब वो प्रयोग फिर नए सिरे से शुरू हो गया! आईआईटी खड़गपुर ने 30 सवालों की एक प्रश्नावली बनाई है, जिसके जरिए लोगों से सरकार और प्रशासन के कामकाज के बारे में सवाल किए जाएंगे! मुद्दा ये है कि जब सरकार आर्थिक संकट से जूझ रही है, तो ऐसे निरर्थक प्रयोगों जिंदा रखने का औचित्य क्या है? 'ख़ुशी' के मामले में भारत बहुत पीछे है। 156 देशों में भारत का स्थान 140वां है। पाकिस्तान और बांग्ला देश जैसे अभावग्रस्त देश भी भारत से आगे हैं। इस रिपोर्ट में फिनलैंड अव्वल है।
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शिवराज सरकार ने जनता को ख़ुशी देने के लिए 'आनंद विभाग' के गठन की घोषणा की थी। पहले इस सोच को 'आनंद मंत्रालय' कहा गया था। लेकिन, भारी उहापोह के बाद अंत में बना 'आनंद संस्थान।' लेकिन, तीन साल में सरकार तय नहीं कर सकी कि ये संस्थान लोगों को ख़ुशी कैसे देगा? भूटान की तर्ज पर जनता का 'हैप्पीनेस इंडेक्स' तैयार करने की भी बात कही गई थी। पर, न तो इस तरह का कोई काम हो पाया न संस्थान ने कोई आधारभूत योजना तैयार की। अब कमलनाथ सरकार भी इस काम को आगे बढ़ाने में लग गई है! सरकार ने नए सिरे से 'हैप्पीनेस इंडेक्स' के लिए सर्वें कराने की बात कही है! वास्तव में भौतिक समृद्धि महज सुविधा है, ख़ुशी नहीं। इससे किसी को आंतरिक खुशी और शांति नहीं मिलती। सरकार को यदि मानसिक ख़ुशी का अहसास कराना है तो उसे जनता के लिए रचनात्मक विकास करना होगा। अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा, जिससे लोगों को वास्तविक आनंद की अनुभूति हो। गुदगुदाने से भी हँसी आती है, ख़ुशी नहीं होती। ऐसे में 'आनंद संस्थान' की सफलता पर सवालिया निशान है।
प्रदेश की अभावग्रस्त, दुखी, परेशान और भविष्य की चिंता से ग्रस्त जनता को आनंदित करना आसान बात नहीं है। सरकारी प्रयोगों से लोगों को खुश करने का फार्मूला कभी सफल नहीं हो सकता! किसी दूसरे देश के फॉर्मूले को भी लागू करने से बात नहीं बनेगी! क्योंकि, दूसरे देशों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बहुत फर्क है। वहां के फॉर्मूले से मध्यप्रदेश के 'हैप्पीनेस इंडेक्स' का निर्धारण भी संभव नहीं है! भूटान और अन्य देशों के जीवन स्तर और प्रदेश के लोगों की जीवन शैली, संस्कृति और जीवन स्तर में बड़ा फर्क है। आश्चर्य की बात तो ये कि जब शिवराज सरकार ने जीवन को आनंदित बनाने वाले इस सरकारी प्रपंच की घोषणा की थी, तब सरकार के पास चार पन्ने का कोई आइडिया तक नहीं था। सामने सिर्फ भूटान का फार्मूला था, जो प्रदेश जीवन शैली से साम्य नहीं रखता! यही स्थिति कमलनाथ सरकार के सामने भी है!
'हैप्पीनेस इंडेक्स' के लिए ग्यारह पन्नों के एक फॉर्म में 17 क्षेत्रों से संबंधित 30 सवाल हैं। सरकारी योजनाओं और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए कदमों के बारे में लोगों की राय जानी जाएगी। सर्वे करने वाले लोग आम जनता से स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, स्वच्छता से जुड़ी योजनाओं के बारे में भी जानेंगे। सरकार के कामकाज के अलावा निजी जिंदगी से जुड़ें कुछ सवाल भी होंगे। जिसमें व्यक्तिगत संबंध, शासन एवं प्रशासन, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा बोध वाले सवाल होंगे! साथ ही आय, अधोसरंचना, परिवहन, सामाजिक समावेशिता, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन, समय का उपयोग, जीवन में सार्थकता, लैंगिक समानता, स्वयं के जीवन में संतुष्टि और सकारात्मक-नकारात्मक भावनाओं के पैमाने वाले सवालों के जवाब भी पूछे जाएंगे!
'आनंद संस्थान' का ये सर्वे सितंबर से मार्च 2020 तक चलेगा। मार्च में इस सर्वे की रिपोर्ट आएगी। कहा गया है कि इस आधार पर सरकार अपने कामकाज में बदलाव लाएगी। जिन योजनाओं का लाभ कम मिल रहा है, उनकी प्रक्रिया बदली जाएगी। बदलाव के नतीजे देखने के लिए एक साल बाद फिर दूसरा सर्वे कराया जाएगा। ये सर्वे लोगों के आनंद का स्तर यानी हैप्पीनेस इंडेक्स पता करने के लिए किया जा रहा है। पिछली भाजपा सरकार के समय इस सर्वे की कवायद शुरु हुई थी! अब नई सरकार इसे नए सिरे से करा रही है। इस सर्वे के माध्यम से ये जाना जाएगा कि आखिर लोगों की ख़ुशी का पैमाना क्या है और उनकी ख़ुशी की वजह किस तरह की हैं? वे अपने जीवन से कितने संतुष्ट हैं और सरकार से उनकी उम्मीदें क्या है? लेकिन, जिस तरह की योजना बनाई गई है, उसका कोई सार्थक नतीजा निकलेगा, उसके आसार नजर नहीं आते! क्योंकि, ये सारी कवायद शिवराज-सरकार कर चुकी है! कमलनाथ सरकार दोबारा मंथन करके क्या अमृत निकालेगी, ये समझ से परे है!
सरकार का मकसद है कि 'आनंद संस्थान' ऐसे स्वयं सेवकों को तैयार करे, जो सरकारी दफ्तरों और समाज में लोगों को सकारात्मक जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित करें! स्वयं सेवक निजी क्षेत्र या किसी कार्यालय के कर्मचारी भी हो सकते हैं। सरकार का मानना है कि अधिकारियों और कर्मचारियों में सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए लगातार कोशिश करने की जरुरत है। इसलिए की आनंद प्रबंधन वास्तव में सार्वजनिक सेवाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से संबंधित है। लोगों के जीवन में खुशहाली लाने का काम दुनिया में कई जगह हो रहा है। किन्तु, खुशहाली के लिए सबसे पहले सरकार को अपनी जिम्मेदारियां निभाना होती है। लोगों की व्यक्तिगत मुसीबतें कम हों और वे खुश रहें इसके लिए काम करना होता है! जबकि, आज मध्यप्रदेश (और देश में भी) में हर आदमी महंगाई, भ्रष्टाचार, महंगी बिजली, प्रदूषित पानी, टूटी छत, ठंडे व्यवसाय, बेरोजगारी, अफसरों की अकड़, नेताओं के अहम् से पीड़ित है। ऐसे में कैसे संभव है कि सरकारी गुदगुदी से कोई खुलकर हँस सकेगा?
सरकार का 'आनंद संस्थान' का ये प्रयोग शहरों में चलने वाले 'लाफिंग क्लब' जैसा है! सुबह साथ घूमने वाले लोग अपना तनाव दूर करने के लिए एक साथ गोला बनाकर खड़े होते हैं और बेवजह हंस लेते हैं! सरकार को लगा होगा कि वो भी लोगों को ऐसे ही बेवजह हंसने के लिए मजबूर कर सकती है! जिनके जीवन में तनाव, अभाव और हर वक़्त भविष्य की चिंता हो, उन्हें अंतर्मन की ख़ुशी देने में बरसों लग जाएंगे! अपने प्रयोग की कथित सफलता का जश्न मनाने और वाहवाही के लिए सरकार कुछ समय बाद आंकड़ें दिखा दे, पर वो सच नहीं होगा!
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