Tuesday, July 9, 2019

मध्यप्रदेश के विकास के छद्म दावों से झांकती सच्चाई!


  मध्यप्रदेश के विकास के दावे छद्म और झूठे हैं। दिखाने के लिए विकास के नाम पर सड़कें, पुल और पुलिया दिखाई जाती है! जबकि, किसी राज्य का वास्तविक विकास प्रति व्यक्ति आय, गरीबी का अनुपात, ऊर्जा की उपलब्धता, स्वास्थ्य और शिक्षा, कृषि विकास के हालात और राजकोषीय घाटे की स्थिति मानी जाती है। वित्त आयोग की टीम ने मध्यप्रदेश की यात्रा के दौरान ऐसे सारे दावों की भी पोल खोल दी, जिसमें राज्य को बीमारू राज्य से उबरने की बात कही गई थी! आयोग ने भाजपा सरकार के 15 साल के कार्यकाल में हुई उन्नति के दावों को भी खोखला माना! वित्त आयोग के अध्यक्ष की सबसे कड़ी टिप्पणी किसानों की कर्ज माफ़ी को लेकर थी! उन्होंने कहा कि ये स्थाई हल नहीं है! ये प्रयोग पहले भी हो चुका है। किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए अन्य विकल्प सोचे जाना चाहिए!
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- हेमंत पाल

    केंद्रीय वित्त आयोग की टीम अध्यक्ष एनके सिंह के नेतृत्व में मध्यप्रदेश आई थी। आयोग ने अपनी समीक्षा में प्रति व्यक्ति आय, कृषि और ऊर्जा के मामले में प्रदेश सरकार की जमकर खिंचाई की! उन्होंने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के इस दावे की धज्जियाँ उड़ा दी, कि मध्यप्रदेश बीमारू राज्य की स्थिति से उबरकर उन्नति की राह पर है! 15वें वित्त आयोग के आंकड़ों से खुलासा हुआ कि प्रदेश का हर तीसरा व्यक्ति गरीब है। प्रति व्यक्ति आय भी अन्य राज्यों से काफी कम है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति और मानव विकास सूचकांक में भी कमी आई है। वित्त आयोग के अध्यक्ष ने प्रदेश की पिछली भाजपा सरकार के 15 साल के कार्यकाल में हुए राज्य के विकास का लेखा-जोखा भी सामने रखा। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 90,998 रुपए है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये औसत 1.26 लाख रुपए है। प्रदेश में गरीबी का अनुपात भी 33% है, जबकि पूरे देश में यह औसत 21% पर है।
  इसका सीधा सा आशय है कि हम देश के कई पिछड़े राज्यों की सूची में भी नीचे की पायदान पर खड़े हैं। कांग्रेस के शासनकाल की यूपीए सरकार के दौरान बनी 'रंगराजन समिति' ने 2014 में शहरों में रोजाना 47 रुपए और गांवों में 32 रुपए से कम खर्च करने वालों को गरीब माना था। इससे पहले 2011 में बनी 'तेंदुलकर समिति' ने शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति रोज 33 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों में रोज 27 रुपए खर्च करने वाले परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर माना था। इसी तरह 'फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट' (एफआरबीएम) के तहत राजकोषीय घाटे पर भी टिप्पणी की गई! कहा गया कि ये घाटा भी 3% से अधिक नहीं होना चाहिए। जबकि, यह 3.2% तक पहुंच गया, लेकिन इसमें कोई दिक्कत नहीं। बिजली के क्षेत्र में घाटा ज्यादा है। ट्रांसमिशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन लाॅस बढ़ गया। इसे कम करने की जरूरत है।
   वित्त आयोग ने प्रदेश के विकास को लेकर कुछ जरूरी सुझाव भी दिए। कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति से जुड़ी योजनाओं में बदलाव की जरुरत है। शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी काफी कुछ सुधार किया जाना है। आयोग के अध्यक्ष ने किसानों की कर्ज माफी के राजनीतिक कारनामे के बारे में कहा कि ये कोई अंतिम विकल्प नहीं है। 2004 में भी सरकार ने किसानों का कर्जमाफ किया था! इस बार भी किया गया है। ये कोई स्थाई समाधान नहीं है! कृषि आय में सब्सिडी व किसानों को सक्षम बनाने से किसानों की समस्याओं का समाधान हो सकता है।
  प्रदेश के दोनों बड़े राजनीतिक दलों ने वित्त आयोग अध्यक्ष को अपने-अपने सुझाव दिए। कांग्रेस की और से कहा गया कि राज्य देश के बाकी प्रदेशों की तुलना में ‘मानव विकास मानकों’ के संदर्भ में चुनौतियों का सामना कर रहा है। राज्य के विकास के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है! लेकिन, राज्य के पास पर्याप्त राशि नहीं है। प्रदेश के कर्ज लेने की सीमा भी अत्यंत सीमित है। किसानों के लिए विशिष्ट अनुदान राशि उपलब्ध कराई जाए। केंद्र द्वारा आयोजित कोर योजनाओं में फंडिंग पैटर्न भी 80 और 20 प्रतिशत किया जाए। केंद्रीय राजस्व में प्रदेश की हिस्सेदारी भी विकसित राज्यों की तुलना में 10% ज्यादा रखी जाए। प्राकृतिक आपदा के समय किसानों के लिए अलग से कोष बनाए जाने की भी बात की गई! कांग्रेस ने प्रदेश के ‘राइट-टू-वॉटर’ और ‘राइट-टू-हेल्थ’ के लिए विशेष पैकेज की भी मांग की।
  जबकि, भाजपा ने अपने मांग पत्र में करों में राज्य की हिस्सेदारी 42% से बढ़ाकर 50% कर देने का सुझाव दिया। जबकि, आयोग के अध्यक्ष का तर्क है कि वास्तव में अभी भी राज्यों को 51% भुगतान किया जा रहा है। राज्य में वन क्षेत्र और जनजातीय वर्ग अधिक होने का हवाला देते हुए पार्टी ने कहा कि केंद्र को दूरस्थ वनवासी क्षेत्रों के विकास के लिए अलग से राशि का प्रावधान करना चाहिए। पार्टी ने कृषक कल्याणकारी योजनाओं में केंद्र का अंश बढ़ाने और नदियों के जल संरक्षण के लिए अलग से राशि देने की भी जरूरत बताई। पार्टी ने इंदौर और भोपाल के स्वच्छता पायदानों में अव्वल आने का संदर्भ देते हुए स्वच्छता अभियान के लिए अधिक अनुदान पर भी जोर दिया। भाजपा की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वित्त आयोग के अध्यक्ष को ऐसा फार्मूला बनाने का सुझाव दिया, जिससे प्रदेश में गरीबी का उन्मूलन हो सके। कहा गया कि देश में प्राकृतिक संसाधनों पर सभी राज्यों का समान अधिकार है। लेकिन, देखा गया है कि आजादी के बाद कुछ राज्य विकास की दौड़ में काफी आगे निकल गए, कुछ राज्य पिछड़ गए। ऐसे में जरूरी है कि ऐसे राज्यों को भी ढंग से न्याय मिलें। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कई प्राकृतिक संसाधन हैं। लेकिन, राज्यों को पूरा लाभ नहीं मिलता!
 सबसे गंभीर बात ये थी कि वित्त आयोग ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के इस दावे को झूठा साबित कर दिया कि मध्यप्रदेश बीमारू राज्य के गर्त से बाहर निकल गया है! 69वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 15 अगस्त 2015 को की गई उनकी वो घोषणा भी याद आती है, जब उन्होंने कहा था कि राज्य अब हर क्षेत्र में तेजी से विकास करने वाला प्रदेश बन गया है। उन्होंने कहा था कि प्रदेश के माथे से बीमारू प्रदेश का कलंक मिट गया है! उन्होंने कहा था कि अभी तक हमारे प्रदेश की पहचान बीमारू राज्य के रूप में हुआ करती थी, अब ऐसा नहीं रहा। राज्य में आर्थिक विकास दर दहाई पर पहुंच गई और कृषि विकास दर 20% के आसपास है। उन्होंने किसानों के हित के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं का जिक्र करते हुए कहा था कि सरकार का लक्ष्य कृषि को फायदे का पेशा बनाना है। इसलिए किसानों को शून्य ब्याज दर पर कर्ज दिया जा रहे है! राज्य सरकार 10% की सब्सिडी भी दे रही है। इसके अलावा सिंचाई की सुविधा में भी इजाफा हुआ है। लेकिन, वित्त आयोग की टीम ने जो आईना दिखाया उसने साबित कर दिया कि मध्यप्रदेश अभी भी बीमारू राज्य की श्रेणी में ही है और विकास के सारे दावे खोखले और झूठे हैं! 
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