Wednesday, March 11, 2020

'कमल' खिलेगा या 'कमल' बचेगा!

- हेमंत पाल

  मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार फ़िलहाल आईसीयू में है। सरकार की स्थिति गंभीर है। हिचकियाँ चल रही है। डॉक्टर पूरी कोशिश में है कि सरकार की सांसे सामान्य हो जाएं, पर बार-बार बढ़ रही हिचकियों ने चिंता बढ़ा दी है। हालात देखकर राजनीतिक डॉक्टर कोई बुलेटिन जारी करने की स्थिति में भी नहीं है। राजनीति के इन जानकार डॉक्टरों का निष्कर्ष है कि सरकार की ये हालत खुद की गलती से हुई है। वक़्त पर असंतोष का इलाज नहीं करने पर असंतोष के वायरस ने सरकार को बीमार कर दिया है। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि राजनीति के तालाब में सालभर पहले मुरझाया 'कमल' फिर खिल उठेगा या 'कमल' के नाथ इस तालाब से अपनी सरकार  हिचकोले खाती नाव को बचाकर किनारे तक ले जाएंगे।   
  ये तो हुई होली जैसी मजाक की बात! पर, वास्तविक स्थिति भी यही है। कमलनाथ सरकार आज जिस संक्रमणकाल से गुजर रही है, उसके लिए कोई और नहीं वे खुद जिम्मेदार है। विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता! चुनाव अभियान समिति के मुखिया के तौर पर उन्होंने पूरे प्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर सरकार बनने के बाद सिंधिया को हाशिये पर रख दिया गया। सवा साल में कमलनाथ ने ऐसी कोई पहल नहीं की, जो सिंधिया का प्रभाव दिखाए! ऐसे में सिंधिया का नाराज होना स्वाभाविक था और उसी का नतीजा है कि आज सरकार आईसीयू में अंतिम सांसे गिन रही है। 
    कांग्रेस में हाशिए पर आ गए, ज्योतिरादित्य सिंधिया यदि अपना वजूद तलाशने के लिए विद्रोह करने के मूड में आ गए, तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है! उन्हें राजनीतिक गद्दार कहने वाले ये क्यों भूल जाते हैं, कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने उनको आगे करके ही विधानसभा चुनाव लड़ा गया! लेकिन, बदले में उन्हें मिला कुछ नहीं। उन्हें राज्यसभा में भेजे जाने की बात चली, तो प्रियंका गाँधी का नाम उछालकर उन्हें किनारे कर दिया गया। जबकि, ऐसी ही नाराजी बताकर सचिन पायलेट राजस्थान में उपमुख्यमंत्री बना दिए गए, पर सिंधिया को न तो राज्यसभा में जाने दिया जा रहा है और न पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनने दिया गया। ऐसी स्थिति में सिंधिया ने जो फैसला किया उसे गलत भी नहीं कहा जा सकता!
   कांग्रेस में घमासान मचा है। प्रदेश में पार्टी के नए मुखिया का नाम भी तय होना है, जिसे लेकर जूतमपैजार मची है! ऐसी स्थिति में एक सर्वमान्य पार्टी अध्यक्ष कैसे चुना जाएगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है! कमलनाथ जब पार्टी अध्यक्ष चुने गए थे, तब हालात अलग थे! प्रदेश में 15 साल से भाजपा का राज था और कांग्रेस किसी भी स्थिति इससे मुक्ति चाहती थी! जबकि, अब हालात अलग हैं! प्रदेश में कमलनाथ सरकार है और कांग्रेस सारे नेता विपक्ष को भूलकर घर की जंग व्यस्त हैं! पार्टी में कमलनाथ को समन्वय में पारंगत माना जाता है! उन्होंने अपनी इसी कला से चुनाव जीता, सरकार बनाई और बिना कोई समझौता किए चला भी रहे हैं! लेकिन, पार्टी प्रदेश अध्यक्ष को लेकर पेंच फँसा हुआ लग रहा है! यही कारण है कि इस पद के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सामने आते ही कई नेता कुलबुलाने लगे! उनके नाम पर विरोध का कारण समझ से परे है। क्या कारण है कि किसी भी पद के लिए सिंधिया का नाम आने पर कांग्रेस के नेताओं के पेट में दर्द क्यों होने लगता है? 
  ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश की राजनीति में पिछड़ते जा रहे हैं। वे प्रदेश अध्यक्ष बनकर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे, लेकिन दिग्विजय सिंह ने ये होने नहीं दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश पहले ही कर चुके हैं! लेकिन, फिर भी वे संगठन पर अपने समर्थक को ही देखना चाहते हैं! जबकि, कांग्रेस आलाकमान नहीं चाहता कि प्रदेश में दो पावर सेंटर बन जाएं! जिनमें खींचतान हो और नुकसान पार्टी को उठाना पड़े! क्योंकि, ऐसी स्थिति में सत्ता और संगठन में तालमेल गड़बड़ा सकता है! 
  ये प्रहसन अब क्लाइमेक्स से आगे निकल गया है! इसका पटाक्षेप तब तक नहीं होगा, जब तक कोई निर्णायक स्थिति नहीं आती! लेकिन, पार्टी आलाकमान भी प्रदेश की राजनीति में असंतुलन बनाए रखना नहीं चाहेगा! यदि प्रदेश में दोनों प्रमुख पद एक ही खेमे के हिस्से में आ गए तो राजनीतिक अराजकता की स्थिति निर्मित होना तय है, जो पार्टी के लिए नुकसानदेह होगी! इसलिए जरुरी है कि सत्ता और संगठन में संतुलन के नजरिए से फैसला किया जाए। अभी कोई बड़े चुनाव नहीं होना है, कि आदिवासी अध्यक्ष का कार्ड खेला जाए! लेकिन, किसी ऐसे नेता को जरूर खोजा जाए जो पार्टी के तीनों बड़े नेताओं के बीच संतुलन बनाकर सरकार और संगठन को मजबूती देने में कामयाब रहे! क्योंकि, हाशिए पर बहुमत से टिकी सरकार की नींव को मजबूती मिले, इसके लिए सबसे ज्यादा जरुरी है कि घर में एकता कायम रहे! यदि घर में फूट पड़ी तो कोई भी बाहर से पत्थर मारकर घर गिरा सकता है! पर, ये बात कांग्रेस के उन नेताओं को भी समझना चाहिए जो घर की कलह को सड़क पर लाकर जगहंसाई करवा रहे हैं!
  ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने की ख़बरें हवा में है। पर, यदि वे ऐसा करते हैं तो उनका राजनीतिक करियर संकट में पड़ना तय है। क्योंकि, भाजपा का इतिहास है कि उसने कभी किसी दूसरी पार्टियों से आने वाले नेताओं के साथ अच्छा सुलूक नहीं किया है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब अन्य पार्टियों से आए नेता भाजपा में आकर अप्रासंगिक हो गए! महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री बनने की जिद पर शिवसेना से दूर हो चुकी भाजपा ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनने देगी, इसमें ढेरों अड़चनें हैं। लेकिन, राजनीति में कुछ भी कहा नहीं जा सकता। कभी भी कुछ भी हो सकता है। अभी तक आत्मविश्वास से चल रही कमलनाथ सरकार हिचकोले खा रही है। अभी तक तीन पाए पर खड़ी सरकार अपने एक पाए  नजरअंदाज कर रही थी! जब उस पाए ने हिलकर अपनी अहमियत दिखाई तो पूरी सरकार कांप गई! कांपने वाली सरकार गिरती  बचती है, अभी इस बारे में सिर्फ कयास लगाए जा सकते हैं। 
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