Wednesday, March 25, 2020

संभले कदम ही शिवराज सरकार को चुनौतियों से बचांएगें!

    पंद्रह महीने चली कांग्रेस की कमलनाथ सरकार जिस तरह गिरी और शिवराजसिंह चौहान ने भाजपा की सरकार बनाई, वह राजनीति के इतिहास की अनोखी घटना है। लेकिन, शिवराजसिंह के लिए विधानसभा के बचे करीब साढ़े तीन साल सरकार चलाना काँटों भरे ताज की तरह होंगे। उन्हें कमलनाथ सरकार की अच्छी योजनाओं को भी बनाए रखना होगा, जिनसे जनता खुश हुई! साथ ही अपने पिछले कार्यकाल के समय लिए गए गलत फैसलों की समीक्षा करना होगी, जो पार्टी की हार का कारण बने थे! लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती होगी 22 बगावती कांग्रेसी  विधायकों को फिर चुनाव जिताना! क्योंकि, सरकार की बुनियाद इन्हीं विधायकों की फिर से जीत पर टिकी है। शिवराज सरकार के शुरूआती छह महीनों के फैसले भी तलवार की धार पर चलने जैसे होंगे! यही फैसले उपचुनाव में जीत का आधार बनेंगे! शिवराजसिंह चौहान को जनता के सामने अपने राजनीतिक और प्रशासनिक कौशल का लोहा मनवाने के साथ पार्टी के सामने भी अपने चयन को सही साबित करना है!
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- हेमंत पाल 

   शिवराजसिंह चौहान ने चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ले ली। ये राजनीति की वो अनपेक्षित घटना है, जिसके किस्से बरसों तक सुनाए जाते रहेंगे। कांग्रेस के नजरिए से ये एक सबक है कि किसी नेता की इतनी उपेक्षा नहीं की जाना चाहिए कि वो बगावत पर उतर आए! जबकि, भाजपा ने जता दिया कि राजनीति में कैसे बाजी पलटकर अपनी जीत का आधार बनाया जाता है! ये पूरा राजनीतिक घटनाक्रम कैसे घटा, कांग्रेस के सिंधिया समर्थक विधायकों की बगावत के बीच से भाजपा ने सत्ता के शिखर तक पहुँचने का रास्ता कैसे खोजा, इस कथा का कई बार पारायण हो चुका! लेकिन, इस माहौल में शिवराजसिंह चौहान का फिर मुख्यमंत्री बनना, उनके राजनीतिक कौशल का बेहतरीन नमूना माना जाएगा! उन्होंने साबित कर दिया कि विपरीत परिस्थितियों में अपने मोहरों को को किस तरह चला जाए कि भी उनकी राजनीतिक चाल बहुत कारगर साबित होती हैं! राजनीति का जो प्रहसन देश और प्रदेश की राजधानी के मंच पर खेला गया, उसकी पटकथा करीब चार महीने पहले से लिखी जाने लगी थी! इस पूरे प्रसंग में शिवराजसिंह की भूमिका अहम् थी, और उन्हें इसी पटकथा के सफल मंचन का इनाम भी मिला!   
   इस बात से इंकार नहीं कि शिवराजसिंह चौहान का पिछला 13 साल का कार्यकाल उतना चुनौती भरा नहीं था, जितने कि आने वाले साढ़े 3 साल होंगे! पिछले तीनों कार्यकाल के लिए जनता ने अपना समर्थन देकर उन्हें कुर्सी सौंपी थी! इस बार भाजपा ने कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीनी है! ऐसे में चोट खाई कांग्रेस भी भाजपा सरकार को बार-बार घेरने से बाज नहीं आएगी। नई भाजपा सरकार को बहुत फूंक-फूंककर कदम रखना होंगे! क्योंकि, परिस्थितियां  उतनी अनुकूल नहीं है, कि भाजपा निष्कंटक होकर साढ़े तीन साल निकाल सके! जो चुनौती कमलनाथ सरकार के सामने थी, वही अब भाजपा के सामने खड़ी है! कांग्रेस की तरह भाजपा भी बहुमत के किनारे पर है, इसलिए उसे भी तलवार की धार पर संभलकर कदम रखना होगा। एक भी गलत फैसला उसकी राह में फिसलन पैदा कर सकता है। 
   भाजपा की नई सरकार के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती होगी, उन 22 विधायकों को उपचुनाव में जिताना, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत करके भाजपा के पाले में आए हैं। शिवराजसिंह को ये भी याद रखना होगा कि इस बगावत ने ही, उनकी सरकार बनने का मौका दिया है! लेकिन, वे जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां के सभी मतदाता और समर्थक उनके इस फैसले से खुश होंगे, ये जरुरी नहीं! बगावत से नाराज मतदाता उपचुनाव में इन नेताओं के खिलाफ वोट दे सकते हैं! क्योंकि, हर मतदाता राजनीति की बारीकियों से वाकिफ नहीं होता! वो, तो उतना ही सच समझता है, जो सामने दिखाई दे रहा है! इन 22 बागियों का उपचुनाव जीतना भाजपा सरकार के स्थायित्व के लिए भी बहुत जरुरी है। इनमें से कम से कम 17-18 सीटें जीतने पर ही सरकार के साढ़े 3 साल आराम से गुजरेंगे, अन्यथा बाजी के पलटने में देर नहीं लगेगी। इन 22 विधानसभा क्षेत्र के भाजपा नेता भी पैराशूट से उतरकर भाजपा में ताकतवर बने, इन बागी कांग्रेसियों को आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे! क्योंकि, भाजपा के टिकट पर उनकी जीत पुराने भाजपा नेताओं की बरसों की मेहनत पर पानी फेर देगी! इसलिए वे कभी नहीं चाहेंगे कि ये बागी विधायक उपचुनाव जीतें! सामने भले ही वे पार्टी के निर्देश का उल्लंघन न करें, पर खुद का राजनीतिक नुकसान होते देखना वे भी नहीं चाहेंगे। 
   कांग्रेस से बगावत करने वाले 22 में से 17 विधायक ग्वालियर-चंबल इलाके के हैं। इन 22 सीटों के अलावा पहले से खाली हुई आगर-मालवा और जौरा विधानसभा सीटों को भी जीतना भी भाजपा को आसान नहीं समझना चाहिए! यदि भाजपा इस चुनौती में पिछड़ती है, तो सरकार मुश्किल में आ जाएगी। तब बाजी किसी भी करवट पलट भी सकती है। इनमें से अधिकांश सीटें जीतना ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक भविष्य के लिए भी बेहद जरुरी है। वे जिस भरोसे से 22 विधायकों को तोड़कर भाजपा में लाए हैं, वो पूरी योजना तभी कारगर होगी, जब उपचुनाव में अधिकांश सीटें भाजपा जीते! इसमें जरा भी गड़बड़ी सारी मेहनत पानी फेर सकती है। इस मुश्किल चुनौती को सिद्धहस्थ राजनीतिक कौशल से ही इन्हें जीता जा सकता है। 
   कमलनाथ सरकार ने अपने सवा साल के कार्यकाल में कुछ अच्छे फैसले भी किए हैं! उनके बारे में भी शिवराज सरकार को सोचना होगा। उन्हें जारी रखना हैं या बंद करना है, ये सब भी जनता की नजर में होगा! क्योंकि, जिन फैसलों से जनता को सीधा फ़ायदा मिला, उन्हें बदलना नई सरकार के लिए मुसीबत का कारण बन सकता है! हर तरह के माफिया के खिलाफ सख्ती, सहकारी गृह निर्माण संस्थाओं में भारी गड़बड़ियां और किसानों की कर्ज माफ़ी ऐसे ही फैसले हैं, जिनसे जनता सीधे लाभांवित हुई! शिवराज सरकार को इन फैसलों को न तो रोकना चाहिए और न बदलना चाहिए। बल्कि, इन्हें उसी सख्ती से जारी रखा जाना चाहिए, ताकि जनता को शिकायत का मौका न मिले। जो माफिया कमलनाथ सरकार की सख्ती से सामने आया है, उसे कहीं फिर दुबकने का मौका नहीं मिले! इसके लिए नौकरशाही की नकेल भी कसना होगा, जो माफिया को बचाने के लिए मौके की तलाश में है! 
  शिवराज सरकार को अपनी प्रबंधन शैली और प्रशासनिक क्षमता का भी नए सिरे से मूल्यांकन करना होगा। पिछले कार्यकाल की तरह नौकरशाही को खुली छूट देना उनके लिए परेशानी का कारण बन सकता है। कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद इसकी संभावना कुछ ज्यादा ही है। प्रदेश के लोगों को कमलनाथ सरकार की सख्त प्रशासनिक शैली ने प्रभावित किया, इसमें शक नहीं! अब शिवराजसिंह चौहान ने फिर सरकार बना ली, तो उन्हें नौकरशाही को काबू में करना जरुरी होगा। क्योंकि, जनता की नौकरशाही से नाराजी का नजला सरकार को भुगतना पड़ सकता है। आज की स्थिति में भाजपा के स्थायित्व के लिए यही जरुरी है!
  शिवराजसिंह चौहान को उन कारणों को फिर से तलाशना और उन पर चिंतन करना होगा, जो 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार का कारण बने थे। सत्ता खोने के पीछे पार्टी के अंदर असमानता के हालात और ऊँची जाति का विद्रोह भी बड़ा कारण था, जिसे अब संभालना होगा! आरक्षण वाले मुद्दे पर सरकार और पार्टी को संभलकर फैसला करना होगा! क्योंकि, इससे भी चुनाव में भाजपा के प्रति नाराजी बढ़ी थी। ऊँची और नीची जातियों के बीच संतुलन बनाकर चलना हर सरकार का काम होता है! इसमें जरा भी संतुलन बिगड़ा तो दूसरा वर्ग विद्रोह की स्थिति में आने में देर नहीं करता! ये इसलिए भी जरुरी है, क्योंकि साढ़े 3 साल बाद भाजपा को फिर चुनाव के इसी मैदान में उतरना है!   
   नई सरकार को अपनी कुछ पुरानी योजनाओं की नए सिरे से समीक्षा करना होगी! भावांतर योजना, किशोरी विवाह योजना, लाड़ली लक्ष्मी, मध्यान्ह भोजन योजना, रेत उत्खनन नीति और नर्मदा किनारे करोड़ों का पौधरोपण जैसी योजनाओं के गलत क्रियान्वयन से जनता नाराज हुई थी। निःसंदेह ये योजनाएं सही हैं, पर इनको अफसरों ने जिस तरह संचालित किया, उससे उनकी खामियां सामने आ गई! नौकरशाही पर आंख मूंदकर भरोसा करना भी सरकार बड़ी गलती रही! जिस नौकरशाही पर इसके क्रियान्वयन जिम्मेदारी थी, उन्होंने ही इसका बंटाधार किया। इस बारे विधायकों ने भी शिकायत की, पर उनकी बातों की अनदेखी की गई! शिवराजसिंह के पिछले कार्यकाल में नौकरशाही इतनी निरंकुश हो गई थी, कि उनकी हरकतें चुनाव में पार्टी पर भारी पड़ गई! सबसे ज्यादा निरंकुशता शिवराजसिंह के 13 साल के अंतिम कार्यकाल में सामने आई थी! इसलिए सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन की लगातार समीक्षा जरुरी है, और खामियों में सुधार की भी दरकार होनी चाहिए! अब देखना है कि सिंधिया गुट के समर्थन के पैबंद से बनी सरकार कैसे अपनी जमीन तलाश कर अपने संभले कदम रखती है!  
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