Sunday, March 22, 2020

तोमर मुख्यमंत्री बने तो भाजपा के लिए कई मुश्किलें आसान!

  मध्यप्रदेश में सत्ता के समीकरण नए सिरे से सजना शुरू हो गए। बीते 15 महीने में जो नेता विपक्ष की राजनीति कर रहे थे, वो अब सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने को बेताब हैं! लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि भाजपा की नई सरकार का मुखिया कौन होगा? क्या पिछला विधानसभा चुनाव हारे शिवराजसिंह चौहान को फिर मौका दिया जाएगा या फिर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर इसके लिए सही चुनाव होंगे! फिलहाल इन दोनों के नाम ही चर्चा में ज्यादा हैं! लेकिन, बहुत से ऐसे कारण हैं, जो मुख्यमंत्री की कुर्सी नरेंद्र तोमर की तरफ झुकाते नजर आ रहे हैं! भाजपा का दिल्ली दरबार भी मध्यप्रदेश में किसी नए चेहरे के पक्ष में लगता है! क्योंकि, भाजपा की सरकार के लिए आने वाले साढ़े तीन साल आसान नहीं है! तोमर का नाम भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की 'गुड बुक' में हैं। वे कांग्रेस के 22 बागी विधायकों को उपचुनाव जिताने और बचे साढ़े तीन साल सरकार चलाने में अकेले समर्थ नेता दिखाई दे रहे हैं।  
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- हेमंत पाल 

  मध्यप्रदेश में फिर से सत्ता में आ रही भाजपा का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? ये ऐसा सवाल है, जो सियासी गलियारों में लगातार घनघनाकर अपनी मौजूदगी लगातार दर्ज करा रहा है। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शिवराजसिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर का नाम सबसे आगे हैं। उसके बाद नरोत्तम मिश्रा और केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत का नाम है! सारी स्थितियां दर्शा रही है कि भाजपा का दिल्ली दरबार भी ऐसे नेता को नेतृत्व सौंपना चाहता है, जो विपरीत हालात से निपटने की कूबत रखता हो! भाजपा को नए मुखिया के चुनाव में बहुत फूंक-फूंककर कदम रखना होंगे! क्योंकि, स्थितियां उतनी अनुकूल भी नहीं है कि भाजपा निष्कंटक होकर साढ़े तीन साल निकाल सके! जो चुनौती कमलनाथ सरकार बनने पर कांग्रेस के सामने थी, वही अब भाजपा के सामने है! मुहाने पर बहुमत होने से भाजपा को तलवार की धार पर संभलकर चलना होगा, जो आसान नहीं है। 
      कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद शिवराजसिंह चौहान खुद को सरकार के स्वाभाविक दावेदार मानकर चल रहे हैं। उनकी अति-सक्रियता से लग रहा है, कि उन्होंने मानसिक रूप से खुद को बतौर मुख्यमंत्री तैयार भी कर लिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भोपाल आने पर भी शिवराजसिंह ने हर संभव प्रयास किए, कि उनका पलड़ा भारी दिखाई दे! लेकिन, आने वाले वक़्त की चुनौतियों का इशारा है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए नरेंद्रसिंह तोमर सबसे बेहतर चयन हैं। क्योंकि, वादे के मुताबिक यदि भाजपा ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करती है, तो ग्वालियर-चंबल अंचल प्रदेश में सबसे ताकतवर इलाका हो जाएगा। एक शहर से दो मंत्रियों का केंद्र में होना भी राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से सही नहीं माना जा सकता। इसलिए तोमर को भोपाल भेजने से ऐसा राजनीतिक संतुलन बनेगा, जो भाजपा को भविष्य में फ़ायदा देगा। 
  इससे ग्वालियर-चंबल अंचल से ज्योतिरादित्य को केंद्रीय मंत्रिमंडल में लेने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। यदि ऐसा होता है, तो नरेंद्र तोमर को विधानसभा की खाली जौरा सीट से उपचुनाव लड़ाया जा सकता है। पिछली शिवराज सरकार में ग्वालियर-चंबल इलाके से सात मंत्री थे। इस बार भी ऐसा ही कुछ रहने की उम्मीद है। प्रदेश में राजनीतिक रूप से ग्वालियर-चम्बल पावरफुल हो जाएगा! एक केंद्रीय मंत्री के अलावा प्रदेश का मुख्यमंत्री भी यहीं से होगा। मोदी सरकार में लंबे समय से केंद्रीय मंत्री पद संभाल रहे नरेंद्रसिंह तोमर का मुख्यमंत्री बनने के आसार इसलिए मजबूत है कि वे पहले प्रदेश में मंत्री रह चुके हैं। दो बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाल चुके हैं। कार्यकर्ताओं और विधायकों से भी तोमर का गहरा नाता है। जहां आगे उपचुनाव होना हैं, उनमें से अधिकांश सीटें ग्वालियर-चंबल अंचल की हैं। तोमर भी इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए पार्टी उन पर दांव लगा सकती है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने ताजा राजनीतिक उठापटक में एक बड़ी जिम्मेदारी तोमर को सौंपी थी। सिंधिया को भोपाल ले जाकर राज्यसभा का पर्चा भराने तक की जिम्मेदारी तोमर के पास थी। अहम मसलों पर रणनीति भी तोमर के दिल्ली के निवास पर ही बनी! 
    भाजपा की नई सरकार के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती होगी, उन 22 विधायकों को चुनाव जिताना, जो सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में आए हैं। वे जिस भी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां के सारे मतदाता उनके इस फैसले से खुश तो शायद नहीं होंगे! चुनाव में वे इन नेताओं के खिलाफ वोट दे सकते हैं! फिर वहां के भाजपा नेता भी पैराशूट से उतरकर भाजपा में प्रभावशाली बने इन विद्रोहियों को स्वीकार नहीं करेंगे! इसका कारण ये भी है कि भाजपा के टिकट पर उनकी जीत भाजपा पुराने नेताओं की बरसों की मेहनत पर पानी फेर देगी! इसलिए वे नहीं चाहेंगे कि बागी विधायक उपचुनाव जीतें! ऐसे में नरेंद्रसिंह तोमर को मुख्यमंत्री बनाए जाने का पक्ष इसलिए भी मजबूत है कि 22 में से 17 विधायक ग्वालियर-चंबल इलाके के हैं। तोमर के मुख्यमंत्री होने से उनकी जीत का आधार पुख्ता होगा। लेकिन, यदि शिवराजसिंह को प्रदेश की कमान सौंपी जाए तो वे यहाँ कमजोर पड़  सकते हैं। इन 22 सीटों के अलावा पहले से खाली आगर-मालवा और जौरा सीटों को भी जीतना आसान चुनौती नहीं है। यदि भाजपा इस चुनौती में पिछड़ती  है,तो फिर सरकार पलटने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता! इनमें से अधिकांश सीटें जीतना नरेन्द्रसिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों के राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद जरुरी है। सिद्धहस्थ राजनीतिक कौशल से ही इन्हें जीता जा सकता है। 
   नरेंद्रसिंह तोमर की प्रबंधन शैली और प्रशासनिक क्षमता भी उनके मुख्यमंत्री बनने का कारण बन सकता है। कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद इसकी सबसे ज्यादा जरुरत भी है। प्रदेश के लोगों ने शिवराजसिंह के 13 साल के कार्यकाल में जिस तरह का लुंज-पुंज प्रशासन देखा, उन्हें कमलनाथ की सख्त प्रबंधकीय शैली ने प्रभावित किया था। यदि शिवराजसिंह वापस सरकार बनाते हैं, तो प्रदेश फिर नौकरशाहों के हाथ में चला जाएगा, जो आज की स्थिति में भाजपा के लिए ठीक नहीं है! तोमर में क़ाबलियत है, कि वे नौकरशाहों पर नकेल डालकर सफल सरकार चला सकते हैं! इसके अलावा नरेन्द्रसिंह तोमर की कार्यकर्ताओं से निकटता और उनकी संवाद शैली भी पार्टी के लिए अच्छा माहौल बनाएगी। वे कम जरूर बोलते हैं, पर उनकी सुनने की क्षमता बहुत अच्छी है। पार्टी अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने कार्यकर्ताओं की बात को हमेशा गंभीरता से सुना भी है। जबकि, शिवराजसिंह की वाचालता और एकालाप वाली शैली किसी के गले नहीं उतरती! 
   2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मध्यप्रदेश की सत्ता गँवाई थी! शिवराजसिंह के मुख्यमंत्री होते पार्टी के सत्ता गंवाने के पीछे पार्टी के अंदर असमानता के हालात और ऊँची जाति के विद्रोह को भी कारण माना जा रहा था। यही वजह है कि शिवराजसिंह चौहान अभी भी सभी विधायकों को स्वीकार्य नहीं हैं। भाजपा विधायक दल में शिवराजसिंह को फिर मुख्यमंत्री बनाए जाने पर कई का विरोध है। भाजपा नेताओं और विधायकों की मांग है कि इस बार किसी और को मौका मिलना चाहिए। लेकिन, किसे मिलना चाहिए? इस सवाल पर अधिकांश का जवाब नरेंद्रसिंह तोमर के पक्ष में है! केंद्र में पिछले 6 साल के दौरान उन्होंने पार्टी नेतृत्व से सामंजस्य भी बनाकर रखा है और वे मोदी-शाह की 'गुड़ बुक' वाले नेताओं में से एक हैं।
   प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में भी तोमर की भूमिका 'किंग मेकर' की रही है। कांग्रेस से विद्रोह करके भाजपा को सरकार बनाने के हालात मुहैया कराने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया भी नहीं चाहेंगे कि शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री बनें! क्योंकि, 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवराजसिंह ने चुनाव प्रचार के समय राजनीतिक संस्कारों की सारी मर्यादाएं लांघते हुए सिंधिया राजपरिवार के बारे में बहुत कुछ अनर्गल कहा था! उन्होंने ज्योतिरादित्य के अलावा सिंधिया परिवार पर भी 'कमर के नीचे' निजी हमले किए थे। इससे यशोधराराजे तो इतनी नाराज हो गई थीं कि वे कोप भवन में जाकर बैठ गई थीं। बाद में उन्हें किसी तरह मनाकर चुनाव में सक्रिय किया गया। शिवराजसिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में आने के बाद भी नहीं छोड़ा! भोपाल में नॉन स्टॉप बोलते हुए उन्हें 'विभीषण' तक कह डाला!      
    नरेंद्र तोमर और शिवराजसिंह के बाद तीसरा नाम नरोत्तम मिश्रा का भी सामने आया है। पर उनके नाम पर सहमति होने की उम्मीद कम ही है। वे भिंड, मुरैना में अपनी पकड़ रखते हैं। लेकिन, नरोत्तम के नाम पर सिंधिया का सहमत होना भी जरुरी है। नरोत्तम मिश्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रिश्ते हमेशा ही तनाव भरे रहे हैं। देखा जाए तो नरेन्द्रसिंह तोमर जैसी शैली नरोत्तम मिश्रा की भी है। वे भी कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय, प्रबंधन में पारंगत और ग्वालियर-चम्बल में लोकप्रिय है। लेकिन, इस बड़ी चुनौती के लिए पार्टी उन्हें चुनती है या नहीं, ये बड़ा सवाल है। चौथा नाम थावरचंद गेहलोत का भी आया, पर मुख्यमंत्री जैसे अहम् पद के लिए ये बहुत कमजोर नाम है! क्योंकि, विधानसभा के बचे कार्यकाल में भाजपा निश्चिंतता से सरकार चला सकेगी, ऐसा भी नहीं है! फिलहाल, भाजपा को मुख्यमंत्री पद के लिए ऐसे रणनीतिकार को चुनना है, जो हर मुश्किल स्थिति में सही समय पर सही फैसला ले सके। कम से कम शिवराजसिंह और नरोत्तम मिश्रा में ये काबलियत तो नहीं है! यही कारण है कि नरेंद्रसिंह तोमर को ऐसे मुश्किल हालात में सबसे सही नाम माना जा रहा है!  
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