भाजपा ने विष्णुदत्त शर्मा उर्फ़ 'वीडी' को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कई संकेत दिए हैं। उनके अध्यक्ष बनने से या तो प्रदेश में भाजपा की राजनीति बदलेगी या फिर एक नए शीतयुद्ध की शुरुआत होगी। क्योंकि, उनके साथ विरोध की एक बड़ी श्रृंखला जुड़ी है, जिसके सुलझने में वक़्त लगेगा! दस साल से बड़े पदों पर ख़म ठोंककर बैठे नेताओं के जाने के भी बदले जाने के आसार हैं। 'वीडी' की संघ पृष्ठभूमि उन्हें बड़े नेताओं के खुले विरोध से तो बचाएगी, पर इसका एक खतरा पार्टी के भाजपा और संघ में बंटने का भी है! विष्णुदत्त शर्मा का तेज तर्राट व्यवहार पहले भी विरोध का कारण रहा है! अब, वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, तो इस विरोध के मायने भी बदलेंगे! संभवतः पहला बदलाव जातीय समीकरणों के संतुलन के तहत नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को नई जिम्मेदारी देने से होगा। सारी नजरें इस बात पर लगी हैं कि 'वीडी' खुद को बदलेंगे या पार्टी को अपने हिसाब से बदलने की कोशिश करेंगे!
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- हेमंत पाल
विष्णुदत्त शर्मा का भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनना कई मायनों में पार्टी के सोच में बदलाव का इशारा है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए लम्बे समय से कयास लगाए जा रहे थे। यह भी लग रहा था कि शायद पार्टी राकेश सिंह को दोबारा से मौका दे। क्योंकि, प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उनका कार्यकाल अभी बाकी था। लेकिन, सारी अटकलों को किनारे करते हुए कमान वीडी शर्मा को सौंप दी गई। जबकि, इसमें बड़ी अड़चन उनका ब्राह्मण होना था। अब माना जा रहा है, कि जातिगत समीकरणों को साधने के लिए संभव है कि संगठन स्तर पर कोई बड़ा बदलाव हो। समीकरण देखें, तो फिलहाल नेता प्रतिपक्ष के तौर पर गोपाल भार्गव ब्राह्मण चेहरा हैं और नरोत्तम मिश्र मुख्य सचेतक! इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान पार्टी का ओबीसी चेहरा थे। ऐसे में माना जा रहा था कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर किसी आदिवासी या दलित चेहरे को मौका दिया जा सकता है, लेकिन ब्राह्मण चेहरे के सामने आने ने सबको चौंका दिया।
'वीडी' को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद प्रदेश के शीर्ष पदों पर बिगड़े जाति समीकरण को संभालने की जुगत लगाई जा रही है। ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में संगठन में कुछ पदों पर बदलाव होना लगभग तय है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद सबसे पहले बदले जाने की चर्चा सबसे ज्यादा है। इस पद पर वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव हैं, जो बुंदेलखंड के बड़े नेता हैं। जब, पार्टी के नए अध्यक्ष पद की बात चली, वीडी शर्मा का नाम सबसे ऊपर था! लेकिन, उनका ब्राह्मण होना आड़े आ रहा था। अब, जबकि उन्हें अध्यक्ष बना दिया गया तय है कि बाद के हालात को संभाला जाएगा। प्रदेश अध्यक्ष के नाम की चर्चा के दौरान पार्टी के सामने सबसे बड़ी परेशानी वाली बात भी जातिगत समीकरणों को संतुलित करना था। यही कारण था कि अन्य विकल्पों पर विचार किया जा रहा था। गोपाल भार्गव के नेता प्रतिपक्ष होने के कारण ही विधायक दल के मुख्य सचेतक नरोत्तम मिश्रा और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अपनी कोशिशें कम कर दी थीं। लेकिन, वीडी शर्मा के नाम पर पार्टी की मुहर लगने के बाद अब यही विकल्प बचा है कि बाकी के ब्राह्मण नेताओं को नया काम सौंपा जाए!
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चेहरा वीडी शर्मा राजनीतिक अनुभव में अन्य नेताओं से कमजोर हैं। इसके बावजूद इसके संघ ने उनके नाम पर सहमति दी और उन्हें कमान सौंपी! दरअसल, संघ ने प्रदेश में भाजपा की सेकंड-लाइन बनाने पर काम शुरू कर दिया है। इसका तात्पर्य है कि प्रदेश भाजपा के मठाधीशों को हाशिए पर लाना है। विष्णुदत्त शर्मा उर्फ़ 'वीडी' यूं तो रहने वाले चंबल के मुरैना के हैं, लेकिन मौजूदा वक्त में खजुराहो से सांसद हैं। 'वीडी' के मुकाबले नरोत्तम मिश्रा हों, कैलाश विजयवर्गीय, प्रभात झा, फग्गन सिंह कुलस्ते, शिवराज सिंह चौहान या लाल सिंह आर्य अनुभव के मामले में काफी वरिष्ठ हैं। इनके मुकाबले वीडी शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना पार्टी में युवाओं को नेतृत्व सौंपने की और बढ़ाया गया कदम माना जा रहा है।
भाजपा की कमान खजुराहो सांसद वीडी शर्मा को मिलना एक बड़े बदलाव की आहट है! यह बदलाव सिर्फ प्रदेश भाजपा का चेहरा ही नहीं बदलेगी, बल्कि इसका गहरा असर पूरे प्रदेश की भाजपा राजनीति पर होगा। राजनीति को समझने वालों के लिए ये एक चौंकाने वाला फैसला है। लेकिन, भाजपा की कार्यशैली समझने वालों को कोई हैरानी नहीं है। क्योंकि, विरोध में सहमति ढूँढना हमेशा ही भाजपा के राजनीतिक प्रयोग का हिस्सा है। हैरानी की सबसे बड़ी वजह है, वीडी का इतिहास। पहले जब भी 'वीडी' का नाम विधानसभा या लोकसभा चुनाव की उम्मीदवारी के लिए सामने आया, विरोध करने वालों ने विरोध का झंडा थामने में देर नहीं की। इसका कारण था उनकी संघ वाली पृष्ठभूमि और तेज़तर्रार छवि! 'वीडी' के वरिष्ठ भी जानते हैं कि वीडी को कमान मिलना बहुतों को हाशिए पर धकेल देगा।
जब भोपाल लोकसभा से दावेदारी को लेकर विष्णुदत्त शर्मा का नाम सामने आने की बात चली, तो पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने तो यहाँ तक कह दिया था कि ये वीडी शर्मा कौन है, मैं उन्हें नहीं जानता! इसके बाद मुरैना से उनके चुनाव लड़ने की बात आई तब भी उनका नाम हटा दिया गया। विधानसभा चुनाव में मौका न मिलने से 'वीडी' वैसे भी नाराज से चल रहे थे! आखिर उन्हें लोकसभा चुनाव में खजुराहो सीट से मौका दिया गया! जबकि, यहाँ से फिल्म एक्टर और बुंदेलखंड को राज्य बनाने की मुहिम में लगे राजा बुंदेला का नाम चल रहा था। 'वीडी' के विरोध को देखते हुए उनकी जीत की बहुत ज्यादा उम्मीद भी नहीं की गई थी! खजुराहो के पूर्व विधायक गिरिराज किशोर ने तो राकेश सिंह को इस्तीफा तक भेज दिया था। खूब पुतले फूंके गए, पर अंततः वीडी चुनाव जीत गए।
मध्यप्रदेश को संघ का भी सबसे मज़बूत गढ़ माना जाता है और संघ की प्रयोगशाला भी! पिछले दिनों संघ प्रमुख ने प्रदेश का लंबा दौरा भी किया! उन्होंने पार्टी के आदिवासी एजेंडे की बात की, लेकिन प्रदेश की कमान सौंपी गई ब्राह्मण नेता को! जाहिर है कि संघ ने पार्टी के कुछ नेताओं को संदेश देने की भी कोशिश की है! खुले विरोध के बावजूद खजुराहो फतह करने वाले वीडी संघ के एजेंडे के तहत फैसले लेंगे और संगठन को भी वही आकार देंगे। ऐसे बदलाव से कुछ लोगों को तकलीफ भी होगी। अभी तो सबने खुश होने का दिखावा किया है! लेकिन, तय है कि वीडी के एक्टिव होने के बाद पार्टी की रणनीति के साथ 'मठाधीशों' की राजनीति में बदलाव आएगा।
माना जा रहा है कि अब वीडी अपनी नई टीम बनाएंगे और उनकी टीम में नए व युवा चेहरे अधिक होंगे। ऐसा होने पर ही भाजपा संगठन में चला आ रहा यथास्थितिवाद खत्म होगा। वीडी के चयन के साथ ही भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने यह भी साफ कर दिया कि प्रदेश में अब सेकंड लाइन काम करेगी। वीडी को अगले चुनाव तक काम करने का अवसर मिला है, तब तक वे स्वयं को सिद्ध कर सकते हैं। अध्यक्ष पद के अब तक के सारे दावेदार वरिष्ठ नेता अब मार्गदर्शक मंडल की तरह काम करेंगे। संगठन की कमान संभालने की उनकी हसरत अब केवल हसरत बन रह गई है।
वीडी शर्मा के आने के बाद प्रदेश पदाधिकारियों में बड़ा बदलाव होना तय है। प्रदेश में 6 साल से कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। अब पार्टी प्रदेश अध्यक्ष को प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत का भी साथ मिलेगा। भगत ने भी स्पष्ट कर दिया है, कि अब काम करने वाले और कार्यकर्ताओं के बीच पकड़ रखने वाले नेताओं को आगे लाया जाएगा। नए प्रदेश अध्यक्ष ने भी संकेत दिए कि पार्टी के विपक्ष में होने के बाद मजबूती और ताकत को बढ़ाने के लिए जो भी जरूरी होगा, किया जाएगा। जिम्मेदारियों को भी बदला जाएगा। 2014 में नंदकुमार सिंह चौहान ने अध्यक्ष बनने के बाद थोड़ा बदलाव किया था! लेकिन, ज्यादातर टीम वही रही। बाद में राकेश सिंह ने जिम्मा संभाला, लेकिन पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव के कारण उन्होंने भी कोई बदलाव नहीं किया। अब माना जा रहा है कि मार्च-अप्रैल में भाजपा की नई टीम सामने आ सकती है। संघ के निर्देश हैं कि 15 साल तक सत्ता में मंत्री रहे या अन्य किसी सरकारी व्यवस्था में रहे लोगों को संगठन में लाया जाए। इसमें से कुछ महामंत्री, मंत्री व प्रदेश उपाध्यक्ष पद के साथ प्रदेश प्रवक्ता बनेंगे।
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