- हेमंत पाल
दुनिया में महामारियों का एक लम्बा इतिहास रहा है। आज के 'कोरोना वायरस' की तरह कई बार ऐसी जानलेवा बीमारियां फैली, जिसने लाखों लोगों की जान की है। जब विज्ञान ज्यादा उन्नत नहीं था, हैजा भी महामारी बना था। लेकिन, जहाँ तक परदे की दुनिया की बात है, फिल्मों की कहानियों में इस विषय पर भी कल्पना के घोड़े जमकर दौड़ाए जा चुके हैं। फिल्म इंडस्ट्री के लिए महामारी का कहर नई बात नहीं है! हॉलीवुड में तो ऐसी कई फ़िल्में आई, जिनमें वायरस जनित बीमारी का कहर दर्शाया गया या बीमारियों के वायरस को प्रयोगशाला में जैविक हथियार की तरह विकसित किया गया। फिल्मकार अपने कथानक के जरिए दर्शकों के लिए बड़े परदे पर ऐसा खौफनाक माहौल पहले ही बना चुके हैं। लेकिन, बॉलीवुड के फिल्मकार इस तरह का साहस कभी नहीं कर सके! वे आज भी प्रेम कहानियों और हंसीठट्ठे की फ़िल्में बनाकर सौ या सो सौ करोड़ की कमाई में उलझे हैं।
2011 में आई फिल्म 'कोंटेजियन' को 'कोरोना वायरस' का पूर्वाभास करने वाली सबसे नजदीकी फिल्म माना जा सकता है। स्टीवन सोडरबर्ग के निर्देशन में बनी ‘कॉन्टेजियन’ की कहानी 'कोराना' महामारी से बहुत कुछ मिलती थी। यह फिल्म अपने अनोखे कथानक के कारण सफल भी हुई! दुनिया में 'कोरोना' के सामने आते ही इस फिल्म की भी चर्चा होने लगी! फिल्म की कहानी नायिका ग्वेनेथ पॉल्ट्रो से शुरू होती है। एक शेफ का हाथ संक्रमित मांस को लग जाता है! लेकिन, वह हाथ नहीं धोता। इसके बाद वो वायरस ग्वेनेथ पाल्ट्रो के किरदार तक पहुंच जाता है। यहीं से ये वायरस फैलना शुरू होता है और एक महामारी का रूप ले लेता है।
ग्वेनेथ पाल्ट्रो
का इलाज भी होता है, किंतु कुछ दिन बाद उसकी मौत हो जाती है। इसी संक्रमण से उसके बेटे की भी मौत होती है। धीरे-धीरे ये संक्रमण फैलता जाता है। क्योंकि, बीमारी लाइलाज होती है। सबकुछ थम सा जाता है। एयरपोर्ट्स, सड़कें, बाजार सब खाली हो जाते हैं। फिल्म में जो दिखाया गया था, उन सारी स्थितियों की तुलना आज के हालातों से की जा सकती है। इस फिल्म में ग्वेनेथ पॉल्ट्रो के अलावा केट विंसलेट, मैट डेमन, जूड लॉ जैसे बड़े कलाकारों ने काम किया था।
2019 में आई अंग्रेजी वेब सीरीज 'द हॉट जॉन' में 1989 का दौर बताया गया था। 6 एपीसोड की इस सीरीज की कहानी में वैज्ञानिकों को वॉशिंगटन-डीसी के रिसर्च लैब में चिंपांजियों में इबोला वायरस मिलता है। इस वायरस से इंसानों में भी खतरा पैदा हो जाता है। इंसानों को बचाने के लिए वैज्ञानिक अमेरिकी आर्मी कोशिश करती हैं और अंत में वे कामयाब भी हो जाते हैं। 2016 में आई हॉलीवुड फिल्म 'पेनडैमिक' को जॉन सूट्स ने निर्देशित किया था। ये फिल्म जॉम्बी नाम के एक वायरस के फैलने की कहानी है। इस वायरस से इलाके में संक्रमण फैल जाता है और बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होने लगते हैं। जॉम्बी के फैलने के बाद सड़कों पर घूम रहे लोगों को बचाने की कोशिश शुरू होती है। वायरस से निपटने के लिए डॉक्टर्स और रेस्क्यू टीम डट जाती है।
1995 में आई ‘ब्लाइंडनेस’ एक थ्रिलर फिल्म थी। इस फिल्म में व्हाइट सिकनेस को महामारी की तरह दिखाया गया था। फिल्म की कहानी भी 'कोरोना वायरस' के कहर से मिलती जुलती थी। कहानी के मुताबिक एक व्यक्ति को अचानक दिखना बंद हो जाता है। उसका इलाज कर रहा डॉक्टर भी अपनी आंखें खो देता है। बाद में ये बीमारी दुनियाभर में फैल जाती है। फिल्म में भय का जबरदस्त माहौल निर्मित किया गया। था फिल्म में जूलियन मूर और मार्क रफेलो जैसे एक्टर्स ने काम किया था। 2008 की फिल्म 'पोंटीपूल' भी वायरस के खतरे से रची गई कहानी थी। इसका निर्देशन ब्रूस मैकडॉनल्ड ने किया था।
इसमें ऑन्टारियो के पोंटीपूल का एक रेडियो जॉकी ग्रांट मैजी सुनने वालों को एक वायरस के बारे में चेतावनी देता है। शहरभर में फैल चुके इस वायरस के कारण लोग जॉम्बी में बदलते जा रहे हैं। 1995 की फिल्म 'आउटब्रैक' भी बंदरों से फैले वायरस पर केंद्रित थी।
फिल्म में केविन स्पेसी, मॉर्गन फ्रीमैन, डस्टिन हॉफमैन ने काम किया था। वुल्फगैंग पीटरसन निर्देशित इस फिल्म में बंदरों से फैले एक वायरस से उत्पन्न खतरे को दिखाया था। अफ्रीका के रेन फॉरेस्ट से लाए बंदरों से फैले वायरस से बचाव के लिए वैज्ञानिकों को मेहनत करते दिखाया गया था।
'द एंड्रोमेडा स्ट्रेन' 1971 आई ऐसी फिल्म थी, जिसने शायद पहली बार वायरस से होने वाले खतरे का अहसास कराया था। 1972 में इस फिल्म को दो ऑस्कर कैटेगरी में नॉमिनेट भी किया गया था। कथानक के अनुसार एरिजोना टाउन के नजदीक एक सैटेलाइट क्रैश हो जाती है। इस घटना के बाद उस इलाके के लोग अचानक मरना शुरू हो जाते हैं। वैज्ञानिक सैटेलाइट से धरती पर पहुंचे जानलेवा वायरस से लड़ने की कोशिश में लग जाते हैं और अंत में अपनी कोशिश में सफल भी होते हैं। ऐसे ही 2009 की फिल्म 'द था' आर्कटिक रिसर्च सेंटर पर काम कर रहे चार इकोलॉजी रिसर्च स्टूडेंट्स की कहानी थी। इन्हें पता चलता है कि दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बर्फ पिघलने से खतरा इसलिए नहीं है, क्योंकि पिघलती बर्फ में ऐसा पैरासाइट छुपा है, जो महामारी फैला सकता है। इस फिल्म में वेल किल्मर की अहम भूमिका थी। वायरस का आतंक बताने वाली 2008 में आई फिल्म 'क्वारंटाइन' भी थी। फिल्म का निर्देशन जॉन एरिक डॉडल ने किया था। इसमें कुछ पत्रकारों को अमेरिका के के लॉस एंजेलिस में रात में फायर-क्रू के साथ काम करने के लिए कहा जाता है। एक इमरजेंसी कॉल के दौरान वे एक अपार्टमेंट में पहुंचते हैं, जहां पुलिस पहले से होती है। बाद में पता चलता है कि बिल्डिंग में एक ऐसी महिला है, जो अंजान वायरस से पीड़ित रहती है। इस फिल्म में भी वायरस के भय को दर्शाया गया था। 'ट्रायोफोबिया' नाम की शॉर्ट फिल्म भी वायरस के कथानक के कारण सुर्ख़ियों में है। इसमें दिखाया गया है कि संक्रमण के चलते एक महिला की जिंदगी कैसे हमेशा के लिए बदल जाती है।
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