Monday, March 16, 2020

भाजपा की राजनीति को कितना बदलेंगे 'महाराज!'

   
मध्यप्रदेश की कांग्रेस राजनीति में अभी तक एक ताकतवर गुट के मुखिया रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा के पाले में हैं। उन्होंने बड़े धूम-धड़ाके के साथ कांग्रेस छोड़ी और भाजपा का दामन थाम लिया! राजनीतिक इतिहास में शायद ये उन चंद दलबदल वाली बड़ी घटनाओं में से एक है, जिसने पूरी राजनीति की धारा को बदला है। 1989 में विश्वनाथप्रताप सिंह ने इसी तरह राजीव गाँधी से विद्रोह कर नई पार्टी बनाकर देश की पूरी राजनीति बदल दी थी! सिंधिया ने देश की तो नहीं, पर प्रदेश की राजनीतिक धारा को जरूर प्रभावित किया है! क्योंकि, 'महाराज' के साथ उनके समर्थकों ने भी कांग्रेस छोड़ने में देर नहीं की! लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने से प्रदेश की राजनीति कैसी करवट लेगी? वे भाजपा के दिग्गजों के साथ किस पायदान पर खड़े होंगे? भाजपा के दिग्गजों की भीड़ में कहीं खो तो नहीं जाएंगे और क्या भाजपा के नेता उन्हें स्वीकार करेंगे या वे भाजपा की सोच में कोई बदलाव कर सकने में समर्थ होंगे? ऐसे कई सवाल हैं, जो आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश की राजनीति में उठेंगे! अब भाजपा की ग्वालियर-चंबल की राजनीति में भी बड़ी अंतरकलह और गुटबाजी देखने को मिल सकती है।  
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- हेमंत पाल
 नसंघ और भाजपा की संस्थापक रही विजयाराजे सिंधिया के पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया उर्फ़ 'महाराज' की राजनीति का अपना अलग ही अंदाज रहा है! वे कांग्रेस में भी उस गुट के मुखिया थे, जो उन्हें नेता के बजाए 'महाराजा' मानता था! उनके भाजपा में जाने के बाद अब उनके अधिकांश समर्थक भाजपा की चौखट पर खड़े हैं। इस नजरिए से देखा जाए तो वे भाजपा में अकेले नहीं आए, अपने साथ पूरा गुट है, जो कहीं न कहीं भाजपा की राजनीति को प्रभावित करेगा! जिस ग्वालियर-चंबल इलाके में उनका प्रभाव है, वहाँ भाजपा के कई बड़े नेता आते हैं! नरेंद्रसिंह तोमर, प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया के अलावा भाजपा के हाल ही में मनोनीत प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा भी इसी इलाके के हैं। ये सभी नेता हमेशा से सिंधिया के सामने चुनौती बनकर खड़े थे! अब इन सभी के साथ सिंधिया को तालमेल बैठाना पड़ेगा या फिर ये भाजपा दिग्गज सिंधिया के साथ समीकरण बैठाएंगे, ये देखना होगा! 
   ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा का दामन थामने के बाद तय है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में कई नए समीकरण बनेंगे! इससे कांग्रेस की राजनीति का क्या हश्र होगा, फिलहाल इससे ज्यादा प्रासंगिक यह है कि भाजपा में कैसी उथल-पुथल होगी! उनके स्वागत में तो सभी नेताओं ने पलक-पांवड़े बिछा दिए। नेताओं के घर-घर उनका भोज हुआ! पर, जब इन नेताओं को 'महाराज' की मौजूदगी से अपना अस्तित्व खतरे में लगेगा, तब क्या होगा? सिंधिया के भाजपा से जुड़ने से सबसे ज्यादा प्रभाव ग्वालियर चंबल के क्षेत्र और उनके नेताओं पर पड़ेगा! पिछले विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र की 34 में से 27 सीटें जीतना ही उनके प्रभाव का संकेत है! अब ये बात अलग है कि ज्योतिरादित्य खुद अपनी पुश्तैनी गुना लोकसभा सीट से सवा लाख वोट से हार गए थे। किंतु, अब सबकी नजर भाजपा की राजनीति में होने वाली संभावित उठापटक पर लगी है!      
  भाजपा के नेताओं का कहना है कि राजनीति में उनके परिवार का सम्मान पहले से है! इस बदलाव से पार्टी में गुटबाजी बढ़ने जैसी कोई बात नहीं है! क्योंकि, वे मानते हैं कि भाजपा में गुटबाजी बढ़ने या घटने जैसा कोई फार्मूला नहीं है! जिसे जो जिम्मेदारी मिलती है, वही उसका कद होता है। पूजने वाले समर्थकों की भीड़ से भाजपा में कद का आकलन नहीं होता! जबकि, सच्चाई ये है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण ग्वालियर-चंबल इलाके के नेताओं के साथ शिवराजसिंह चौहान जैसे नेताओं में भी घबराहट है। इसलिए कि सिंधिया की जैसी राजनीतिक शैली है, उसे पचाना भाजपा के लिए आसान नहीं है! क्योंकि, भाजपा जिस तरह की कैडर बेस पार्टी है, जिसमें पैराशूट से उतरे नेताओं का एडजस्ट होना मुश्किल है! यहाँ संजय पाठक जैसे नेता इसलिए हजम कर लिए जाते हैं, क्योंकि, उनकी अपनी कोई शैली नहीं होती और उनके साथ ऐसे समर्थकों की भीड़ भी नहीं होती जिनकी उन्हें चिंता करना पड़े!
   भाजपा इस बात से लाख इंकार करे कि उनके यहाँ मनमुटाव, असंतोष और गुटबाजी के लिए कोई जगह नहीं है! पर, सच्चाई ये है कि प्रदेश की भाजपा राजनीति में भी असंतोष का पारा चढ़ा हुआ है! फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस में ये सब मुखरता से होता है, भाजपा में ये खेल परदे के पीछे छुपकर खेला जाता है। सिंधिया के आने के बाद अब तक तो उनको शह और मात देने की चाल सोच भी ली गई होगी! क्योंकि, कोई भी नेता अपने राजनीतिक भविष्य को दांव पर लगाकर खुद के तमाशा बनने का इंतजार कभी नहीं करेगा! सिंधिया के सामने बड़ी मुश्किल ये भी है, कि उन्हें भाजपा में अपनी जगह बनाने के साथ, अपने समर्थकों का भी ध्यान रखना है! उधर, कांग्रेस भी यही चाहती है कि सिंधिया ने जिस तरह के लांछन लगाकर कांग्रेस त्यागी है, उन्हें अपनी उस भूल का अहसास जल्दी हो। वे जिस सम्मान और पद की लालसा में भाजपा में गए हैं, उनका ये भ्रम भी टूटे!
   प्रदेश के भाजपा नेताओं के प्रभाव क्षेत्र को देखें तो नरेंद्रसिंह तोमर का ग्वालियर-चंबल, प्रहलाद पटेल का बुंदेलखंड-महाकौशल, गोपाल भार्गव का बुंदेलखंड, नरोत्तम मिश्रा का ग्वालियर, कैलाश विजयवर्गीय का मालवा-निमाड और राकेश सिंह महाकौशल क्षेत्र में अपना प्रभाव रखते हैं। जबकि, शिवराजसिंह चौहान अकेले ऐसे नेता हैं, जिनका पूरे प्रदेश में जनाधार है। भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक भविष्य का अनुमान लगाया जाए तो उनका सबसे ज्यादा सामना शिवराज सिंह से ही होगा! अभी भले ही भाजपा नेता सिंधिया के भाजपा में आने से पार्टी को मजबूती मिलने का दावा कर रहे हों और युवा वर्ग के जुड़ाव की बात कर रहे हों! लेकिन, यह भी सही है कि भाजपा के नेताओं को सिंधिया का आना रास नहीं आ रहा! कारण कि उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर होने के साथ ही भाजपा में उनकी इंट्री भारी-भरकम तरीके से हुई है! यदि अनुमान के मुताबिक वे केंद्र में मंत्री बनाए जाते हैं, तो भाजपा के नेता उनके सामने बौने नजर आएंगे!
  शिवराज सिंह से 'महाराज' का आमना-सामना होने के कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में दोनों के बीच जमकर शाब्दिक जंग छिड़ी थी। गुना में तो कांग्रेस की एक सभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शिवराजसिंह चौहान की तुलना ‘कंस' और ‘शकुनी' तक से की थी। इस सभा में सिंधिया ने कहा था कि शिवराजसिंह चौहान कहते हैं कि वे 'मामा' हैं। भाजपा कहती है कि वे हिंदू धर्म के एकमात्र रक्षक हैं! अगर हम इस पर सहमत हों, भी जाएं तो धर्मग्रंथों में मामा की परिभाषा कैसे की गई है, सब जानते हैं! एक कंस मामा था, जिसने अपने भांजे को खत्म करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी! दूसरा ‘शकुनी मामा' था, जिसने हस्तिनापुर को नाश करने के लिए सब कुछ किया! अब कलयुग में तीसरे मामा भोपाल के वल्लभ भवन (राज्य सचिवालय) में बैठे हैं! आशय ये कि जहाँ दोनों में इतनी कटुता थी, वहां सामंजस्य कैसे बैठेगा? आज नहीं तो कल ये दिखावटी दोस्ती की असलियत तो सामने आएगी ही!     एक तरफ जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की व्यक्तिगत छवि है, दूसरी और भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व से उनके नजदीकी रिश्ते बन गए हैं। दरअसल, सिंधिया उस राज-परिवार से संबंध रखते हैं, जिसने पहले जनसंघ और बाद में भाजपा की नींव रखी! इस घराने को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी सम्मान देता है। ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं के सामने खुला विरोध करना तो कभी संभव नहीं होगा! यही वजह है कि भाजपा के कई नेताओं को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है, जो स्वाभाविक भी है! सिंधिया सामान्यतः विवादों से दूर रहते हैं और युवाओं उनकी खास अहमियत है। ऐसे सकारात्मक माहौल के साथ उनकी पहुंच सीधे पार्टी में ऊपर तक होने का भी अपना असर होगा। 
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