Tuesday, April 21, 2020

पाँच में से कोई मंत्री मुख्यमंत्री खेमे का नहीं!


- हेमंत पाल

  मुख्यमंत्री बनने के करीब एक महीने बाद अब शिवराजसिंह चौहान के मंत्रिमंडल ने भी औपचारिक शपथ ली! ये कोरोना संक्रमण से जूझती सरकार की मज़बूरी है कि मुख्यमंत्री को 30 मंत्री बनाने थे, लेकिन बनाए गए सिर्फ पाँच! इन पाँच में दो वे नेता हैं, जो कांग्रेस से विद्रोह करके भाजपा के पाले में आए थे। लेकिन, बाकी के तीन भी ऐसे नहीं, जिन्हें शिवराजसिंह का समर्थक माना जाए!
  सरकार के गठन को लेकर करीब डेढ़-दो हफ्ते से कशमकश चल रही थी। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी बीच का रास्ता निकालने में लगा रहा। विद्रोही गुट के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बीच भी इसे लेकर बैठक हुई! उसके बाद ही ये रास्ता निकाला गया! सिंधिया का दबाव तो उन सभी 6 नेताओं को मंत्री बनाने का था, जो कमलनाथ सरकार में भी थे! लेकिन, भाजपा इसके लिए राजी नहीं हुई और न होना था! क्योंकि, ऐसी स्थिति में भाजपा के भी करीब 8-10 विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ता, जो वक़्त की जरुरत नहीं है। फिलहाल सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत ही इस छोटे मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं!
    जब भी मंत्रिमंडल बनता है, सबकी नजर ये ढूंढने की कोशिश में होती है, कि इसमें मुख्यमंत्री की पसंद के चेहरे कितने हैं! तय है कि सरकार का मुखिया अपने समर्थकों को तो रखता ही है! लेकिन, शिवराजसिंह के 5 मंत्रियों के आगे-पीछे का इतिहास देखा जाए, तो इनमें से एक को भी उनके विश्वस्थ साथियों में नहीं गिना जा सकता! बताते हैं कि उन्होंने गोपाल भार्गव, रामपाल सिंह, भूपेंद्र सिंह और राजेंद्र शुक्ल में से किन्ही दो को शामिल करने के लिए मुख्यमंत्री ने जोर भी लगाया, पर पार्टी ने इजाजत नहीं दी! शपथ लेने वालों में सबसे चौंकाने वाला नाम है हरदा के विधायक कमल पटेल का! वे कभी शिवराजसिंह समर्थक नहीं रहे! दोनों के बीच राजनीतिक वैमनस्यता के कई किस्से भी मशहूर हैं। कमल पटेल को मंत्री बनवाने के लिए शिवराज विरोधी खेमा पूरी तरह सक्रिय हो गया था। उधर, दिल्ली के नेताओं ने भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को कमल पटेल के बारे में अपनी मंशा बता दी थी! पहले उन्हें उन्हें उमा भारती और विक्रम वर्मा का नजदीकी माना जाता था। दो दिन पहले उन्होंने भाजपा के एक बड़े नेता से कहा भी था, कि वे पहली लिस्ट में बनेंगे और बने भी! मंत्री बनने के बाद भी वे मुख्यमंत्री के पक्ष में रहेंगे, इसमें शक है। क्योंकि, वे कई बार पार्टी मंच पर मुखरता से शिवराजसिंह को लेकर अपना विरोध दर्शा चुके हैं।
   तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ सशर्त कांग्रेस से भाजपा में आए हैं, इसलिए उनसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे कभी शिवराजसिंह के प्रति प्रतिबद्ध हो सकते हैं। जो नेता अपने आका के कहने पर पद और पार्टी दोनों को तिलांजलि दे दे, वे किसी और नेता को कभी अपना कैसे मानेंगे! तुलसी सिलावट कमलनाथ की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे और गोविंद राजपूत परिवहन मंत्री! इन 5 में नरोत्तम मिश्र ऐसा नाम है, जो अपने आपमें बड़े नेता हैं और सिंधिया विद्रोह में उनकी बड़ी भूमिका रही है! उन्हें तो मंत्री बनना ही था और वे बन गए! इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री समर्थक नहीं कहा जा सकता! पाँचवा नाम मीना सिंह का है, जिन्हें आदिवासी और महिला कोटे से शामिल किया गया। ये भी चौंकाने वाला नाम रहा! वे मानपुर से 5 बार विधायक रही हैं और कोरोना संक्रमण को लेकर बनी भाजपा की टॉस्क फोर्स में भी हैं। वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा की नजदीकी हैं और इसी के चलते उन्हें जगह मिली।
    शिवराजसिंह के मंत्रिमंडल के गठन में इस बार पूरी तरह भाजपा के दिल्ली दरबार की चली। वहां से मुहर लगने के बाद ही ये पाँच नाम तय हुए! भाजपा के दो दिगज्जों गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह का नाम तो अंतिम समय में कटा! भूपेंद्र सिंह तो शपथ लेने की तैयारी से भोपाल भी आ गए थे। लेकिन, जब उन्होंने देखा कि उनका नाम लिस्ट में नहीं है, तो वापस सागर लौट गए। भाजपा ने मुख्यमंत्री की पसंद को तवज्जो देने के बजाए जातिगत समीकरणों का भी ज्यादा ध्यान रखा! शामिल 5 मंत्री अलग-अलग पांच समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। नरोत्तम मिश्र ब्राह्मण हैं, मीना सिंह आदिवासी होने के साथ महिला हैं। कमल पटेल कुर्मी हैं, गोविंद राजपूत ठाकुर और तुलसी सिलावट अनुसूचित जाति के हैं।
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