Monday, April 27, 2020

पाँच पांडव और सत्ता की खामोश महाभारत!

- हेमंत पाल

   सरकार के मुखिया के साथ ही उसके मंत्रिमंडल की भी शपथ होती है! लेकिन, कोरोना काल ने मध्यप्रदेश की शिवराजसिंह सरकार को आकार लेने में 29 दिन का वक़्त लगाया! वो भी बेहद लघु संस्करण में! इसे कोरोना संक्रमण से जूझती सरकार की मज़बूरी माना जाना चाहिए कि मुख्यमंत्री 30 मंत्री बना सकते हैं, लेकिन नंबर लगा सिर्फ पाँच का! इसमें भी दो ऐसे नेता हैं, जो सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में आए थे। तीन चेहरे भाजपा से हैं। पर, इनमें एक भी ऐसा नहीं, जिसे मुख्यमंत्री का नजदीकी समझा जाए! इसे पार्टी की कोई छुपी रणनीति समझा जा सकता है या भविष्य की कोई चाल! अभी ये सिर्फ कयास हैं! लेकिन, दो दिन बाद इन पांच मंत्रियों को जिस तरह की जिम्मेदारी सौंपी गई, उसने जरूर नए समीकरण गढ़ दिए! बागी कांग्रेसियों को कमजोर विभाग देकर शिवराजसिंह ने ये जता दिया कि पार्टी में उनकी हैसियत क्या है! दरअसल, ये सत्ता की खामोश 'महाभारत' है जिसमें जंग का उद्घोष तो नहीं हो रहा, पर अंदर ही अंदर दांव-पेंच चले जा रहे हैं!   
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     शिवराजसिंह चौहान के शपथ लेने के बाद मंत्रिमंडल को लेकर लम्बे समय तक सन्नाटा रहा! मुख्यमंत्री अकेले ही व्यवस्था का किला लड़ाते रहे! इसके बाद 15 दिन तक कवायद चलती रही! कभी 12 सदस्यों के मंत्रिमंडल के शपथ लेने की खबर फैली तो कभी 7 या 8 का आंकड़ा सामने आया। लेकिन, जब शपथ की सेज सजी, तो सिर्फ 5 चेहरे दिखाई दिए! उनमें भी प्रतिबद्धताओं का बंटवारा रहा! बगावत के मुखिया  ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके समर्थकों के लिए जिस तरह का वादा किया गया था, वो भी टूट गया! एक बात यह भी स्पष्ट हो गई, कि भले भाजपा और सिंधिया गुट में राजनीतिक दोस्ती लम्बी चले, पर एक महीन लकीर दोनों के बीच हमेशा खिंची रहेगी और दो पाले भी बने रहेंगे! वादे के मुताबिक 22 बग़ावतियों में से 10 को मंत्री बनाना था, जिसमें एक का पद उपमुख्यमंत्री का होना था! पर, अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ! शायद कोरोना संकट ने भाजपा को वादा पूरा करने से रोका हो, पर विभागों की जिम्मेदारी में तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत दोनों की कमजोर कुर्सियां दी गई! सिलावट को जल संसाधन और राजपूत को नागरिक आपूर्ति विभाग दिए! जबकि, नरोत्तम मिश्रा इस बदलाव में ताकतवर बनकर उभरे हैं! महामारी के इस दौर में स्वास्थ्य और गृह ही दो दमदार विभाग हैं, जो उनको सौंपे गए! 
    जब मंत्रिमंडल बनाए जाने की हलचल शुरू हुई, तो सिंधिया ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर अपने उन सभी 6 नेताओं को मंत्री बनाने का दबाव डाला, जो कांग्रेस सरकार में भी मंत्री थे! लेकिन, कांग्रेस की तरह वे भाजपा में दबाव की राजनीति चलाने में सफल नहीं हुए! ये कभी होना भी नहीं है! भाजपा में कभी कोई नेता दबाव बनाकर अपना काम साधने में सफल नहीं हो सका, ऐसे में सिंधिया कभी भाजपा में दबाव की राजनीति चला सकेंगे, ऐसा नहीं लगता! फिर ये वक़्त की भी जरुरत है, कि फिलहाल राजनीतिक मंतव्य न साधकर छोटे मंत्रिमंडल से काम चलाया जाए! लेकिन, इस छोटे मंत्रिमंडल में भी सिंधिया गुट के दोनों मंत्रियों का कद छांट दिया गया! सिंधिया के दांया हाथ कहे जाने वाले तुलसी सिलावट को हल्का जल संसाधन दिया गया! उन्हें अनुसूचित जाति के कोटे से लिया गया है। जबकि, कांग्रेस सरकार में वे भारी-भरकम स्वास्थ्य मंत्री थे और शिवराज सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाने की बात कही जा रही थी। सिंधिया के दूसरे ख़ास सहयोगी गोविंद राजपूत को अब सहकारिता, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग दिए गए। जबकि, कांग्रेस के समय वे राजस्व और परिवहन विभाग मंत्री थे। वे मंत्रिमंडल में राजपूतों का प्रतिनिधित्व करेंगे।   पदों में हुई कतरब्यौंत के पीछे की राजनीति को आसानी से समझा जा सकता है।
  अब आते हैं भाजपा के तीन मंत्रियों के छिद्रांवेषण पर! ये हैं ब्राह्मण कोटे से नरोत्तम मिश्र, अन्य पिछड़ी जाति कोटे से कमल पटेल और आदिवासी-महिला कोटे से मीना सिंह! इनमें नरोत्तम मिश्र ऐसा बड़ा नाम है, जो लम्बे अरसे तक प्रदेश में मंत्री रहे हैं और सिंधिया गुट की बगावत में उनकी खासी भूमिका रही! पार्टी के दिल्ली दरबार में भी उनकी ऊपर तक पहुँच है! उन्हें तो मंत्री बनना ही था और वे बन भी गए! लेकिन, उन्हें मुख्यमंत्री समर्थक नहीं कहा जा सकता! उनकी अपनी अलग हैसियत और दबदबा है! उन्हें स्वास्थ्य और गृह जैसे बड़े विभाग भी मिले! यदि पूरा मंत्रिमंडल बनता तो तय है वे उपमुख्यमंत्री बनते! लेकिन, मंत्रियों में हरदा के विधायक कमल पटेल की मौजूदगी ने सबसे ज्यादा चौंकाया! क्योंकि, शिवराजसिंह और उनके बीच वैमनस्यता के कई किस्से चर्चित हैं। कुछ साल पहले कमल पटेल के छोटे बेटे की एक आपराधिक वारदात को लेकर भी काफी विवाद हो चुका है। बताते हैं कि कमल पटेल को मंत्री बनाने के लिए शिवराज विरोधियों की बड़ी भूमिका रही! राजनीति के मैदान में उन्हें उमा भारती और विक्रम वर्मा के नजदीक समझा जाता है! उन्हें कृषि विभाग मिला, जो भाजपा सरकार के नजरिए से महत्वपूर्ण भी है। मीना सिंह को महिला और आदिवासी कोटे से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। वे 5 बार से विधायक हैं! कोरोना संक्रमण को लेकर बनी पार्टी की टॉस्क फोर्स में भी वे हैं। उन्हें भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा की करीबी माना जाता हैं और इसी कोटे से उन्हें जगह मिली। लेकिन, वे भी शिवराज समर्थकों की गिनती में नहीं हैं! 
    इस मंत्रिमंडल में शिवराज के करीबी लोगों का अभाव है। 5 मंत्रियों में एक भी उनके गुट का नहीं है। रामपाल सिंह, भूपेंद्र सिंह और राजेंद्र शुक्ल में से किन्ही दो को शामिल करने के लिए मुख्यमंत्री ने पूरा जोर तो लगाया, पर पार्टी नहीं मानी! भूपेंद्र सिंह और राजेंद्र शुक्ल को भरोसा था कि उनकी जगह पक्की है, पर उनकी उम्मीदों को धराशायी होने में देर नहीं लगी! भूपेंद्र सिंह तो शपथ की तैयारी से भोपाल भी आ गए थे। जब उन्होंने देखा कि लिस्ट में उनका नाम नहीं है, तो सागर वापस चले गए। राजेंद्र शुक्ल भी कई दिन से भोपाल में थे, किंतु जब शपथ लेने का मौका नहीं मिला तो मायूस होकर रीवां लौट गए! कांग्रेस के बागी बिसाहूलाल सिंह का नाम भी शपथ लेने वालों में था, पर विंध्य को बैलेंस करने के लिए मीना सिंह को लेना ज्यादा सही समझा गया! सबसे ज्यादा आश्चर्य तो गोपाल भार्गव का पत्ता कटने से हुआ! पर, गोविंद राजपूत को सागर इलाके से मंत्रिमंडल में लेना राजनीतिक मज़बूरी थी, तो गोपाल भार्गव चूक गए! एक कारण जातीय समीकरण बिगड़ने का भी था! एक ब्राह्मण नरोत्तम मिश्र हैं, दूसरे गोपाल भार्गव हो जाते! यही स्थिति भूपेंद्र सिंह के मामले में होती! गोविंद राजपूत की तरह भूपेंद्र सिंह भी राजपूत हैं! वास्तव में ये राजनीति की सोशल इंजीनियरिंग है, जिसका पालन करना पड़ता है! फिर चाहे कोई नेता नाराज ही क्यों न हो जाए!
  शिवराज सिंह और भाजपा ने सारे समीकरण तो साध लिए, पर ग्वालियर-चम्बल संभाग से किसी बागी कांग्रेसी को नहीं लेना महंगा पड़ सकता है! क्योंकि, नए मंत्रियों को शामिल करने का काम अब उपचुनाव के बाद ही होना है। यहाँ कि 16 खाली सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होना है और सरकार का भविष्य इन्हीं पर टिका है। 5 महीने बाद सबसे बड़ा चुनावी धमासान भी इसी इलाके में होना है! सिंधिया खेमे के जो 6 विधायक कांग्रेस राज में मंत्री थे, उनमें से ग्वालियर-चम्बल संभाग के चार अभी इंतजार कर रहे हैं! यदि वे चुनाव से पहले मंत्री बने, तो उनके लिए चुनाव आसान हो जाएगा! पर, यदि ऐसा नहीं हुआ तो पांसा उल्टा भी पड़ सकता है! लेकिन, अभी सब माहौल को परख रहे हैं! प्रदेश में फ़िलहाल सत्ता की खामोश 'महाभारत' चल रही है। इसमें कौन कौनसा दांव चलता है, अभी कहा नहीं जा सकता! क्योंकि, सबके तरकश में तीरों की कमी नहीं है! 
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