- हेमंत पाल
फिल्मों पर समाज और तत्कालीन राजनीति का प्रभाव हमेशा दिखाई दिया है! सौ साल से ज्यादा पहले जब फिल्म निर्माण शुरू हुआ था, तब से यही होता आया है। कभी फिल्मों पर महात्मा गाँधी का प्रभाव दिखा तो कभी नेहरु के सुधारवादी सोच को फिल्मों के कथानक में देखा गया। लेकिन, सरकार की सामाजिक नीतियों को कभी फिल्मों के विषय बनाया गया हो, ऐसा करीब पांच-छह सालों में ज्यादा देखा गया। सीधे शब्दों में कहें, तो मोदी राज का फिल्मों पर प्रभाव कुछ ज्यादा ही दिखने लगा है। सरकार की नीतियां के साथ आतंकवाद पर उसके एक्शन भी फिल्मों में जगह पाने लगे। पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा भी फिल्मों के बिकाऊ विषय बने! महिला सशक्तिकरण, भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ मुहिम भी फिल्मों में दिखाई दी।
'टॉयलेटः एक प्रेमकथा' मोदी संदेश का सबसे सटीक उदाहरण है। इसमें घर में टॉयलेट होने की जरुरत के बहाने उनके स्वच्छ भारत अभियान का जबर्दस्त प्रचार किया गया। इसके बाद आई 'पैडमैन' जिसमें पीरियड के दौरान महिलाओं को होने वाली परेशानियों को फ़िल्मी चाशनी के साथ परोसा गया! शाहिद कपूर की 'बत्ती गुल मीटर चालू' भी आई, जो बिजली की समस्या पर बनी थी। पर, बात बनी नहीं! निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने 'मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर' की घोषणा की थी। इसमें मुंबई की झुग्गियों में रहने वाला बच्चा अपनी माँ के लिए टॉयलेट बनवाने की कोशिश में प्रधानमंत्री से मदद मांगता है। लेकिन, इस फिल्म की बाद में कोई खबर नहीं मिली! सुई धागा, यूनियन लीडर और 'लव सोनिया' भी ऐसी फ़िल्में आई जिनके विषय गंभीर थे। वरुण कपूर और अनुष्का शर्मा की 'सुई धागा' के जरिए देश में हथकरघा के बहाने कुटीर उद्योगों के महत्व और इनसे जुड़े लोगों और परिवारों की मुश्किलों को सामने लाने की कोशिश की गई! देश में चीन के बढ़ते बाजार के बीच इस फिल्म में स्वदेशी के इस्तेमाल और मेड इन का संदेश छुपा था।
अक्षय कुमार युवाओं के लिए नए देशप्रेमी रोल मॉडल के रूप में उभरे। 'हॉली डे' और 'बेबी' के बाद उनकी 'एयरलिफ्ट' और 'रुस्तम' से भी देश प्रेम का गुबार उठता दिखाई दिया। वे मोदी सरकार के समर्थक अभिनेता के रूप में उभरे और फिल्मों से सामाजिक संदेश भी देने लगे! अक्षय ने अपनी ऐसी राष्ट्रीय और सामाजिक छवि बनाई कि आमिर, सलमान और शाहरुख की तिकड़ी का साम्राज्य डोल गया। जबकि, इन तीनों खानों ने लम्बे समय तक परदे पर राज किया।
फिल्मों ने मोदी राज में सिर्फ सामाजिक बदलाव को ही अपना विषय नहीं बनाया, बल्कि कश्मीर मुद्दे और पाकिस्तान की हरकतों को भी लताड़ने में कसर नहीं छोड़ी! कश्मीर मुद्दे पर हॉली-डे, हैदर, बेबी, फैंटम, वजीर, सरबजीत, कॉफी विद डी, हिंद का नापाक को जवाबः एमएसजी लॉयनहार्ट-2, द गाजी अटैक, नाम शबाना, मुल्क, राजी, कमांडो और 'उरी' जैसी फ़िल्में बनी! एक तरफ जब फिल्मकार पाकिस्तान और कश्मीर के आतंकवाद को निशाना बना रहे थे, ऐसे में सलमान खान 'बजरंगी भाईजान' बनकर एक खोई बच्ची को छोड़ने पाकिस्तान चले गए! इस फिल्म में अलग ही मानवीय संदेश था। सलमान की ही 'एक था टाइगर' और 'टाइगर जिंदा है' आई, जिसमें कैटरीना कैफ सहृदय पाकिस्तानी एजेंट बनीं है, जो आतंक के खिलाफ लड़ने में सलमान की मदद करती हैं। रणदीप हुड्डा की 'सरबजीत' में दर्शकों ने पाकिस्तान की क्रूरता भी दिखाई दी।
परदे पर महिला सशक्तिकरण की भी धूम मची। 'मर्दानी' और 'मर्दानी-2' के साथ 'मैरी कॉम' ने औरत की ताकत दिखाई तो 'हिचकी' ने औरत के आत्मविश्वास की प्रबलता को बढ़ाया! पीकू, एनएच-10, एंग्री इंडियन गॉडेसेस, नील बटे सन्नाटा, पिंक और 'सुल्तान' से लगाकर आमिर खान की 'दंगल' तक में नयापन दिखा! नरेंद्र मोदी युवाओं के लिए नए रोल मॉडल ढूंढ़ने पर जोर देते देखे गए! इसी का नतीजा है कि सच्ची प्रेरक कहानियों पर कई बायोपिक भी बनी! फिल्मकारों का मिशन-मोदी अभी जारी है, क्योंकि सरकार भी यही चाहती है!
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