Sunday, May 17, 2020

परदे पर 'रोटी' का लम्बा दौर

- हेमंत पाल

   फिल्मों में 'रोटी' को विषय बनाकर फिल्मकारों ने कई बार प्रयोग किए। इनमें जीवन में 'रोटी' को अहमियत दर्शाने की कोशिश की गई और कई बार उसे गीतों में भी ढाला गया। फिल्मों में 'रोटी' से करुणा निर्मित की गई, तो हास्य भी रचा गया। इसके चलते यह तथ्य नकारा नहीं जा सकता कि फिल्मों से लाखों लोगों की थालियों में रोटी नसीब होती है। यह भी विचारणीय है कि कोरोना संकट के चलते फिल्मोद्योग के लाखों लोगों के सामने रोटी का खतरा पैदा हो गया है। चार्ली चैप्लिन को 'मार्डन टाइम' फिल्म में मंदी के दौर में जूते के सोल को उबालकर प्लेट में डालकर रोटी की तरह छुरी कॉंटे से खाते दिखाया गया था। कई बार डायनिंग टेबल के नीचे छुपे नायक या नायिका को चुपके से रोटी खिलाने के दृश्य भी फिल्मों में दिखाई दिए। राजेन्द्रनाथ जैसे कामेडियन को रोटियों की थप्पियां उड़ाते दिखाकर हास्य प्रसंग भी रचे गए।
   रोटी को लेकर 'आवारा' के उस सीन को याद कीजिए जब राज कपूर को जेल हो जाती है। वह लाइन में लगकर रोटी लेता है, फिर उंगलियों पर रोटी को नचाते हुए कहता है 'तू पहले बाहर ही मिल जाती तो मैं अंदर क्यों आता? 'दीवार' में पुलिस इंस्पेक्टर बना शशि कपूर एके हंगल के बेटे को चोरी करके भागते हुए गोली मार देता है। लेकिन, जब पास आकर देखता है, तो उसके हाथों में 'रोटी' होती है। 'समाज को बदल डालो' में शारदा भूख से तड़फते बच्चों को रोटी में जहर मिला कर खिला देती है। मनोज कुमार की फिल्म 'क्रांति' में रोटी और कमल वाला कंसेप्ट दिखाया गया था। अमिताभ की फिल्म 'कालिया' में भी जेल में एक फाइट सीन रोटी को लेकर ही था। यहाँ तक तो ठीक है, गायक और संगीतकार हिमेश रेशमिया तो टीवी के हर रिएलिटी शो में दावा करते दिखाई देता है कि 'तेरे घर में रोटी मैं दूंगा।' 
  'रोटी' को लेकर गीत भी कम नहीं हैं। 1959 में आई फिल्म 'काली टोपी लाल रुमाल' का मोहम्मद रफ़ी का गाया गीत 'दीवाना आदमी को बनाती है रोटियां' भी उस दौर में खासा पसंद किया गया था। 1973 की फिल्म 'ज्वार भाटा' में धर्मेंद्र पर फिल्माए गीत 'दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ' फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत था। इसका संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने दिया था और इस गाने को गायक किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने गाया था। ये फिल्म तेलुगू फिल्म 'दागडू मोथालु' का रीमेक थी। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर औसत प्रदर्शन किया, लेकिन फिल्म अपने गानों के चलते चर्चा में रही थी। मनोज कुमार की फिल्म 'शोर' में टोपी में रोटी लाए हैं, भूख लगे तो खा लेना।  
   फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है कि बड़े घर की बेटी जब गरीब हीरो के घर शादी करके आती है, तो आड़ी-तिरछी रोटियां बेलती है। 'आन' में बागी बना  दिलीप कुमार राजकुमारी नादिरा को उठा लाता है और उससे रोटियां  बिलवाता है। फिल्मों में ललिता पवार ने भी क्रूर सास बनकर कई फ़िल्मी बहुओं की थाली से रोटियां छिनी हैं। 2013 में आई फिल्म 'द लंच बाक्स' में रोटियों के बीच ही प्रेम प्रसंग रचा गया था। मुंबई जिंदगी पर बनी इस फिल्म में डिब्बे वाले गलती से पति नकुल वैद्य को भेजा डिब्बा साजन फर्नांडिस (इरफ़ान खान) के पास पहुँच जाता है। पहली बार टिफिन के बदलने के बाद डिब्बेवाले को अपनी इस गलती का कभी पता ही नहीं चलता और दोनों के टिफिन रोज बदलते रहते हैं। इसी डिब्बे की रोटियों से प्रेम पनपता है। 
  सबसे पहले फिल्म के परदे पर 'रोटी' को मेहबूब ने अपनी पटकथा का आधार बनाया था। 1942 में प्रदर्शित हुई 'रोटी' हिंदी सिनेमा की एक अनूठी फिल्म है। यह एक काल्पनिक देश की कहानी थी, जहाँ आदिम समुदाय निवास करता है। वहाँ संपत्ति की अवधारणा नहीं होती और वस्तुओं के विनियम से लोगों का काम चलता है। वहाँ आधुनिक सभ्यता का एक जोड़ा अपना हवाई जहाज क्रेश होने से पहुँच जाता है। इस तरह आधुनिक सभ्यता और मानवीय गरिमा के द्वंद्व का चित्रण किया गया था। फिल्म के अंत में नायक रेगिस्तान में भूखा-प्यासा दम तोड़ता है, जबकि उसकी मोटर में सोने की ईंटें भरी होती हैं। फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत सितारा देवी के स्वर में 'सजना सांझ भई, आन मिलो-आन मिलो सजना सांझ भई' था। 
   चर्चित कथाकार मोहन राकेश की रचना 'उसकी रोटी' पर 1969 में मणिकौल ने फिल्म बनाई थी। इसे नए सिनेमा की शुरुआत भी माना जाता है। इसे 1970 के फिल्म फेयर अवॉर्ड में बेस्ट फिल्म का क्रिटिक अवॉर्ड मिला था। ये फिल्म एक ट्रक ड्राइवर और उसकी पत्नी के जीवन पर बनी थी। इसके बाद 1974 में राजेश खन्ना और मुमताज की 'रोटी' आई। इस फिल्म के साथ ही मनोज कुमार की 'रोटी कपड़ा और मकान' भी रिलीज हुई थी। इसमें 'रोटी' का सीधे कोई संदर्भ नहीं था, पर अपराधी मंगल सिंह (राजेश खन्ना) को रोटी की अहमियत समझते जरूर बताया गया था। 1990 में मिथुन चक्रवर्ती की भी एक फिल्म 'रोटी की कीमत' नाम से आई थी! लेकिन, इसमें 'रोटी' की बात कम मारधाड़ ज्यादा थी।  
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