Tuesday, May 5, 2020

सबको खुश कर दे, शिवराज के लिए ऐसा विस्तार आसान नहीं!   

  शिवराजसिंह चौहान के सामने मंत्रिमंडल का विस्तार गले में फँसी हड्डी की तरह है! कांग्रेस से बगावत करके भाजपा सरकार बनवाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया से किए वादे निभाना उनकी मज़बूरी है। ऐसे में सबसे बड़ा संकट मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन बनाने के साथ उन बड़े नेताओं को समझाना भी है, जिन्हें विस्तार में दूर रखा जाएगा। इस बात का भी ध्यान रखना है कि वे मंत्री न बनाए जाने से भी नाराज न हों और उपचुनाव में ईमानदारी से काम करें! लेकिन, ये सारी चुनौतियां आसान नहीं है। संभव है कि मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने वाले नेता अभी कोई प्रतिक्रिया न दें, पर उपचुनाव में खुन्नस निकालें! ये संकट ऐसे हैं, जिनसे आसानी से पार नहीं पाया जा सकता। मंत्री न बन पाने से चूके विधायक रूठकर जो संकट खड़ा करेंगे, उसका इलाज कोरोना से कहीं ज्यादा मुश्किल है! यही कारण है कि इस बार मंत्रिमंडल विस्तार आसान नहीं है! 
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- हेमंत पाल

    मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के मंत्रिमंडल विस्तार की सेज सज चुकी है। पहली बार में 28 मंत्रियों के कोटे में 5 मंत्री बना दिए, अब जो 23 जगह बची है, उसमें 8 जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों के लिए रिज़र्व है! इसमें काटछांट की कोई गुंजाइश नहीं! जो 15 जगह बचती है, उसके लिए भाजपा के तीन दर्जन दावेदार हैं और सब ख़म ठोंककर बैठे हैं। सपा और बसपा के तीन विधायक अलग उम्मीद लगाए हैं। इसके अलावा 4 निर्दलीय विधायकों में से भी किसी को लेना पड़ सकता है! इस खेमेबंदी में मुख्यमंत्री के लिए संतुलन बनाना आसान नहीं लग रहा! शिवराजसिंह के सामने सिंधिया के 8 लोगों को मंत्री बनाना एक तरह से राजनीतिक बाध्यता है! ये संख्या किसी भी स्थिति में कम होने के कोई आसार नहीं है! क्योंकि, प्रदेश में भाजपा के सरकार में आने का आधार यही सिंधिया समर्थक हैं। यदि 23 मंत्री (जिसकी संभावना नहीं) शपथ लेते हैं, तो भाजपा को उसमें 15 जगह ही मिलेगी। लेकिन, इन 15 में किसे शामिल किया जाएगा, ये ऐसा यक्ष प्रश्न है, जिसका जवाब आसान नहीं है। भाजपा सरकार के सामने ये ऐसा पेंच है, जो परेशानी का कारण बन सकता है। कई बड़े नेता ऐसे हैं, जिन्हें किनारे करना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा! कहा जा रहा है कि भाजपा अपने कुछ बड़े चेहरों को एडजस्ट करने के लिए सिंधिया समर्थकों की संख्या में कुछ काटछांट करने की कोशिश में है! किंतु, ये ज्योतिरादित्य सिंधिया को मंजूर नहीं है!
    इस बात से इंकार नहीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं। वे भाजपा की राजनीति को भी बहुत अच्छी तरह जानते हैं। बदली परिस्थितियों में कब, कौनसी चाल चलना है, उन्हें ये पता है। निश्चित रूप से भाजपा का दामन थामने से पहले उन्होंने ऐसी सारी संभावनाओं को टटोल भी लिया होगा। फिलहाल सिंधिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने 22 लोगों को उपचुनाव में जितवाना है। क्योंकि, उनकी जीत पर ही शिवराज सरकार और खुद उनका राजनीतिक भविष्य टिका है। इस बार के मंत्रिमंडल विस्तार में जब सिंधिया समर्थकों को जगह मिलेगी, तभी उनके लिए चुनाव जीतना आसान होगा! इस बात को जितना सिंधिया समझते हैं, उतना भाजपा संगठन भी! ऐसे में सारा त्याग भाजपा के उन नामचीन विधायकों को करना होगा, जो कुर्सी की आस लगाए बैठे थे।
    सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट अनुसूचित जाति वर्ग से हैं और कमलनाथ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं। जबकि, इसी खेमे के डॉ प्रभुराम चौधरी भी अनुसूचित जाति से हैं। लेकिन, सिंधिया ने पहले तुलसी सिलावट को मंत्री बनवाया। बुंदेलखंड से गोविंदसिंह राजपूत को पहले मंत्री बनने का मौका मिला! वे ठाकुर समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं! अब एक और ठाकुर प्रद्युमन सिंह तोमर को मौका मिलेगा! संभव है कि राजवर्धनसिंह दत्तीगाँव भी मंत्री बनें, वे भी ठाकुर हैं। गोविंदसिंह राजपूत के कारण शिवराजसिंह के ख़ास भूपेंद्र सिंह का नाम कट गया था! उन्हें दूसरी खेप में भी मंत्री बनने को मिलता है या नहीं, ये देखना है। यदि इस बार भी उनका नंबर नहीं लगा, तो उनका गुस्सा गोविंद राजपूत पर भारी पड़ेगा। पहली बार में सिंधिया ग्वालियर-चम्बल इलाके से कोई मंत्री नहीं बनवा सके! इसलिए वहाँ से अब ज्यादा से ज्यादा को मंत्री बनवाना उनकी मज़बूरी है। क्योंकि, उपचुनाव में सबसे ज्यादा राजनीतिक उठापटक ग्वालियर-चंबल में ही देखने को मिलेगी।
  इस बार के मंत्रिमंडल विस्तार में जो चार सिंधिया समर्थक मंत्री बनने वाले हैं, उनके नाम तो तय हैं। ये चारों ग्वालियर-चंबल के ही हैं। इसके अलावा अन्य चार नामों में एदलसिंह कंसाना, रघुराजसिंह कंसाना और बिसाहूलाल सिंह को सिंधिया समर्थक तो नहीं कहा जा सकता, पर इन्होने सिर्फ मंत्री बनने के लिए कांग्रेस से बगावत की है। बाकी का एक नाम राजवर्धनसिंह दत्तीगाँव है! ऐसी स्थिति में क्षेत्र और जाति संतुलन बैठाने के लिए कुछ भाजपा विधायकों को किनारे करना पार्टी की मज़बूरी होगी। ऐसे में उनकी अगली रणनीति क्या होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। कहा ये भी जा रहा है कि ग्वालियर के कई भाजपा नेता सिंधिया समर्थकों को भाजपा में ज्यादा भाव मिलने से खफा हैं! लेकिन, पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध होने की वजह से चुप हैं! लेकिन, उनकी ये चुप्पी उपचुनाव में भारी पड़ सकती है।
  मई के अंत या जून के पहले हफ्ते में राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। इसलिए भी मंत्रिमंडल विस्तार जरूरी है। मुख्यमंत्री की कोशिश है कि  कोरोना संक्रमण की स्थिति में नए मंत्रियों को शपथ दिलाकर उन्हें जिलों का दायित्व सौंप दिया जाए! ऐसा करने से मुख्यमंत्री का काम थोड़ा बंट सकेगा और नए मंत्री भी अपनी इमेज बना सकेंगे! सबसे ज्यादा फ़ायदा सिंधिया समर्थकों को होगा, जिन्हें 4 महीने बाद चुनाव लड़ना है। सिंधिया के 17 समर्थक ग्वालियर-चम्बल संभाग से हैं। तीन मालवा से एक बुंदेलखंड से और एक विंध्य से है। अभी मालवा (सांवेर) से तुलसी सिलावट और बुंदेलखंड (सुरखी) से गोविंद राजपूत मंत्री बने हैं। अब इमरती देवी, महेंद्र सिंह सिसौदिया, प्रद्युमन सिंह तोमर और प्रभुराम चौधरी का मंत्री बनना पक्का है। जबकि, अन्य चार में हरदीपसिंह डंग, एदलसिंह कंसाना और बिसाहूलाल सिंह को मंत्री बनाए जाने की संभावना है। लेकिन, अभी बहुत कुछ होना बाकी है।
  मंत्रियों के नाम के मामले में सिंधिया समर्थकों में ज्यादा पेंच नहीं है! मुश्किल तो भाजपा में है, जहाँ पार्टी सबको साधकर रखने की कोशिश कर रही है। क्योंकि, ऐसे में जरा सी चूक उपचुनाव में भारी पड़ सकती है, जो भाजपा नहीं चाहती! भाजपा को अपने नेताओं को संतुष्ट करने के साथ उन्हें उपचुनाव में मदद के लिए भी तैयार करना है! जैसे कि गोविंद राजपूत सुरखी से चुनाव तभी जीत सकते हैं, जब गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह कमर कस लें। मंत्री बनाने के लिए अभी भाजपा के जिन नेताओं के नाम चर्चा में आए हैं, वे भूपेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव, रामपाल सिंह, यशोधरा राजे सिंधिया, अजय विश्नोई, गौरीशंकर बिसेन, संजय पाठक, विश्वास सारंग, अरविंद भदौरिया, विजय शाह, ओमप्रकाश सकलेचा, जगदीश देवड़ा, यशपाल सिंह सिसोदिया, हरिशंकर खटीक, प्रदीप लारिया, पारस जैन, रमेश मेंदोला, गोपीलाल जाटव और मोहन यादव हैं। नाम तो सुरेंद्र पटवा का भी सुना जा रहा है, पर वे चैक बाउंस के मामले में फंसे हैं। इनमें गोपाल भार्गव को विधानसभा अध्यक्ष बनाने की बात सुनी जा रही है। राज्यपाल को दी जाने वाली अंतिम सूची के बाद जो राजनीतिक उथल-पुथल मचेगी, उसका अंदाजा लगाना अभी मुश्किल है। भाजपा और शिवराज सिंह बिना विरोध के इस संकट से कैसे उबरते हैं, ये पार्टी की रणनीतिक सफलता होगी। 
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