Sunday, October 4, 2020

परदे के कैनवस पर 'यश' की प्रेमकथाएं!  

हेमंत पाल
     जब से हिंदी फिल्म निर्माण का दौर शुरू हुआ, फ़िल्मकारों ने अपनी पसंद और दर्शकों के मिजाज के मुताबिक फिल्म बनाना शुरू किया। शुरूआती दौर में धर्म आधारित कहानियों पर कई फ़िल्में बनी। उस समय 'रामायण' और 'महाभारत' के प्रसंग ही ऐसे विषय थे, जिन्होंने दर्शकों को सिनेमाघर तक आने के लिए मजबूर किया। लेकिन, धीरे-धीरे प्रेम कहानियां दर्शकों की पहली पसंद बनी। बॉलीवुड में प्रेम कथाओं को पसंद करने वालों का नया दर्शक वर्ग खड़ा हो गया। परदे पर कई खूबसूरत प्रेम कहानियों को जीवंत किया गया। किंतु, बॉलीवुड को यश चोपड़ा नाम का एक ऐसा फ़िल्मकार मिला, जिसने फिल्मों में प्रेम की परिभाषा ही बदल दी! उन्होंने फिल्मों में प्रेम कहानियों को सेलुलॉइड पर उकेरने का नजरिया हमेशा के लिए ही बदल दिया। 
    आजादी के बाद जब धार्मिक फिल्मों से दर्शक उबने लगे तो आजादी की कहानियों को फिल्मों के विषय बनाया। लेकिन, धीरे-धीरे निर्माता, निर्देशकों ने दर्शकों की पसंद के मुताबिक खुद को ढालना शुरू किया और 60 के दशक के आते-आते प्रेम को वरीयता दी जाने लगी! राजकपूर की आरके फिल्म्स, चेतन आनंद और देवआनंद की नवकेतन, रामानंद सागर की सागर आर्ट और यश चोपड़ा की यशराज फिल्म्स ने कुछ ऐसे विषय चुनना शुरू किए, जिसमें उनकी महारथ थी! रोमांस इन सभी का सबसे ज्यादा पसंदीदा विषय था, पर उसके प्रस्तुतीकरण का सबका अपना अंदाज अलग था। इनमें यश चोपड़ा अकेले ऐसे फ़िल्मकार थे, जिन्होंने पारिवारिक पृष्ठभूमि में प्रेम को गढ़ा! लेकिन, बीच में 'दीवार' जैसी एक्शन फिल्म भी बनाई, जो हिंदी फिल्म इतिहास में मील का पत्थर बनी! उन्होंने 'कभी-कभी' में अमिताभ बच्चन को प्रेमी की तरह पेश किया तो 'दीवार' से उसी अमिताभ को 'एंग्री मैन' बना दिया। इस जोड़ी ने ‘कभी कभी’ और ‘त्रिशूल’ जैसी फिल्में भी दी।                
    अपने पांच दशक के करियर में यश चोपड़ा ने परदे पर प्रेम की नई परिभाषा को गढ़ा है। ख़ास बात ये कि उनकी फिल्मों में प्रेम नदी के नैसर्गिक बहाव की तरह बहता दिखाई देता है! कभी ऐसा नहीं हुआ कि फिल्म के किसी प्रेम दृश्य को देखकर नजरें चुराना पड़ी हो! ये उनके निर्देशन का ही कमाल था कि अपने निर्देशन की पहली फिल्म 'दाग' में उन्होंने राजेश खन्ना से हत्या भी करवाई, पर प्रेम के धरातल में उस पात्र को कहीं कमजोर नहीं पड़ने दिया। इसलिए कि वे दर्शकों की नब्ज को अच्छी तरह पहचानते थे। किस दौर में दर्शक को मनोरंजन की कौनसी खुराक चाहिए, ये उन्हें पता था। उनका करियर भाई बीआर चोपड़ा के साथ अलग तरह की फिल्मों के साथ शुरू हुआ था! यश चोपड़ा की पहली सबसे फिल्म ‘वक़्त’ को माना जाता है! 1965 में आई इस फिल्म से ही फिल्मों में मल्टी स्टार का चलन शुरू हुआ। किंतु, उन्हें सिलसिला, चांदनी, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे और 'वीर जारा' जैसी प्रेम में पगी फिल्मों के लिए याद किया जाएगा।
    अपने करियर के शुरूआती दौर में यश चोपड़ा ने पारिवारिक कहानियों में एक्शन को जोड़कर फ़िल्में बनाई! यही कारण है कि 'दीवार' और 'त्रिशूल' पूरी तरह एक्शन फ़िल्में थीं, पर उसे पारिवारिक कहानियों के धागे में पिरोया गया था! दोनों ही फिल्मों में अमिताभ ने ऐसे विद्रोही बेटे का किरदार निभाया जो माँ की ममता से बंधा रहता है। 'त्रिशूल' में एक गाना था 'मोहब्बत बड़े काम की चीज है, ये कुदरत के ईनाम की चीज है!' अमिताभ और शशि कपूर पर इस गाने में प्रेम को बेकार और बेदाम की चीज भी बताया गया था! लेकिन, यश चोपड़ा ज्यादा दिन प्रेम के जादू से अलग नहीं रह सके। उन्होंने ‘चांदनी’ से रोमांटिक फिल्मों की शुरूआत की, तो फिर पीछे नहीं मुड़े! इसके बाद अनिल कपूर और श्रीदेवी को लेकर ‘लम्हे’ में नया प्रयोग भी किया। लेकिन, उनकी प्रेम की पारी में उनके साथी बने शाहरुख़ खान! उनके साथ 1993 में उनका सफर ‘डर’ के साथ शुरू हुआ था। शाहरुख ने एक पागल प्रेमी की ऐसी भूमिका निभाई थी, जिसका आज भी कोई जोड़ नहीं मिलता! 
     यश चोपड़ा ने फिल्म निर्माण में दर्शकों के मूड और वक़्त की नजाकत का भी बहुत ध्यान रखा! यही कारण है कि उनकी फ़िल्में समयकाल से जुड़ी लगती थीं। जब लोगों के बीच अमिताभ बच्चन और रेखा के बीच पनपता प्रेम और जया बच्चन की आपत्ति चर्चा में थी, उन्होंने इन तीनों को लेकर 'सिलसिला बनाई! फिल्म की कहानी इन तीनों की असल जिंदगी से अलग थी, पर रेखा और जया के बीच का तनाव और अमिताभ का दो हिस्सों में बंटा हर दर्शक ने महसूस किया। फिल्म के दो पात्रों के बीच पनपता प्रेम और पति-पत्नी के रिश्तों में बढ़ती उलझन को दर्शकों ने उनकी असल जिंदगी से जोड़कर देखा। लोगों को ये भी लगा कि यह सिर्फ फिल्म के रची गई प्रेम कहानी नहीं, बल्कि दो दिलों के मिलने और बिछुड़ने की असली दास्तान है। विवाहेत्तर रिश्तों पर बनी इस फिल्म में अमिताभ और रेखा की केमिस्ट्री चर्चा में रही। ऐसे में तीसरे कोण पर खड़ी जया को देखकर दर्शकों की आँखें भी गीली हुई! दर्शकों के लिए ये फिल्म नहीं, सच्ची कहानी का फिल्मांकन जैसा था। तब कहा गया था कि इन तीनों को साथ लेकर यश चोपड़ा ही फिल्म बना सकते थे!  
     यश चोपड़ा की आखिरी फिल्म थी ‘जब तक है जान!’ अपने 80वें जन्मदिन के मौके पर 2018 में उन्होंने कहा था कि ये उनकी अंतिम फिल्म है। अब वे फिल्मों से बिदा होकर परिवार के साथ रहेंगे! इस फिल्म के पूरा होने से पहले ही वे काम से तो मुक्त हो गए! लेकिन, परिवार के साथ नहीं रह सके! 21 अक्टूबर, 2012 को प्रेम का ये चितेरा अपनी कूंची साथ लेकर चला गया! 
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