- हेमंत पाल
हर साल सैकड़ों फ़िल्में आती हैं और कुछ दिन बाद अपना जलवा दिखाकर परदे से उतर जाती हैं! बाद में कोई उन्हें याद भी नहीं करता! पर, हिंदी फिल्म इतिहास के सौ से ज्यादा सालों में ऐसी फ़िल्में भी हैं, जो मील के पत्थर की तरह यादों की जमीन पर टिकी हुई हैं! मुगले-आजम, मदर इंडिया, शोले, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे और 'मोहब्बतें' को ऐसी ही फिल्मों में गिना जा सकता है, जो अपने अनोखे कथानक, अदाकारी, निर्देशन और संगीत के लिए कालजयी बन गईं! सिनेमा की दुनिया में ये फ़िल्में सफलता का ऐसा पैमाना बन गईं, जिनसे दूसरी फिल्मों का मूल्यांकन किया जाता है। रोमांटिक कहानी, मधुर संगीत और सशक्त अभिनय के मामले में 'मोहब्बतें' ऐसी ही फिल्म थी। हाल ही में इस फिल्म ने अपनी रिलीज के दो दशक पूरे किए हैं। ये कई मायनों में याद की जाने वाली फिल्म भी है।
अभी तक प्रेम कहानियों पर कई फ़िल्में बनाई गई! बल्कि, ये कहना ज्यादा बेहतर होगा कि सबसे ज्यादा फ़िल्में ही ऐसी कहानियों पर बनी, जो प्रेम के इर्द-गिर्द घूमती रहीं! ‘मोहब्बतें’ का कथानक भी युवा प्रेम और एक सख्त प्राचार्य के प्रेम के प्रति नफरत पर केंद्रित था। इस फिल्म को खास तौर पर दो बातों के लिए याद किया जाता है! एक, अमिताभ बच्चन का नारायण शंकर वाला किरदार और दूसरा एक साथ छह नए कलाकारों का परदे पर आना। अमिताभ बच्चन खुद भी अपने किरदार को कई मायनों में स्पेशल मानते हैं। उन्होंने फिल्म को याद करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा भी है 'परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन' मेरे लिए कई वजहों से खास है। इस खूबसूरत प्रेम कहानी और इमोशन्स के रोलर कोस्टर के 20 साल। आपके द्वारा जाहिर किए गए प्यार के प्रति तहे दिल से आभारी हूं।' 'मोहब्बतें' ही वो पहली फिल्म थी, जिसमें अमिताभ ने हीरो के किरदार को तिलांजलि देते हुए चरित्र भूमिकाओं की शुरुआत की थी! इस फिल्म से उदय चोपड़ा, शमिता शेट्टी, प्रीति झंगियानी और किम शर्मा का एक्टिंग का करियर शुरू हुआ था! जबकि, जिमी शेरगिल और जुगल हंसराज के अभिनय को ऊंचाई मिली। अमिताभ 6 साल तक फिल्मों से दूर रहे थे। वापसी के बाद उन्होंने मृत्युदाता, बड़े मियां छोटे मियां और 'कोहराम' जैसी दोयम दर्जे की फ़िल्में की! पर, उन्हें वो पहचान नहीं मिली, जो उन्हें 80 और 90 के दशक में जंजीर, दीवार, शोले और 'सिलसिला' ने दी थी। लेकिन, 27 अक्टूबर 2000 को रिलीज 'मोहब्बतें' के बाद उनके करियर को नया जीवन मिला। इसमें अमिताभ और शाहरुख खान पहली बार साथ आए थे। फिल्म में अमिताभ ने 'गुरुकुल' नाम के कॉलेज के सख्त प्राचार्य नारायण शंकर की भूमिका निभाई, जिसे काफी पसंद किया गया। नारायण शंकर को सख्त मिजाज प्राचार्य बताया गया, जो परंपरा और अनुशासन पर जोर देकर अपने छात्रों को पढ़ाना अच्छा मानते हैं। उन्होंने अपने छात्रों को किसी भी तरह के प्रेम से भी मना कर रखा था। जो भी ऐसा करता पाया जाता, उसे निष्कासित कर दिया जाता है। उनकी इस सख्ती के पीछे भी एक कहानी छुपी होती है।
फिल्म में बहुत कुछ ऐसा था, जो यादगार रहा। फिल्म के शमिता शेट्टी और किम शर्मा के रोल वास्तव में करिश्मा कपूर और काजोल को सोचकर लिखे गए थे। लेकिन, दोनों ने मना कर दिया था। अमिताभ के अपोजिट एक भूमिका श्रीदेवी के लिए भी लिखी गई थी। लेकिन, श्रीदेवी के इंकार के बाद इसे कहानी से ही निकाल दिया गया। मिथुन चक्रवर्ती भी इस फिल्म में छोटा सा रोल करने वाले थे। उनकी भूमिका शेफाली शाह के पति के रूप में थी, पर इस भूमिका के चलते फिल्म की लंबाई ज्यादा बढ़ रही थी, तो उसे भी काट दिया गया। उदय चोपड़ा अपने अपोजिट रिंकी खन्ना को लेना चाहते थे। लेकिन, आदित्य चोपड़ा का कहना था कि उन्हें किसी नई एक्ट्रेस के साथ लांच किया जाना ही ठीक होगा। जितना इस फिल्म को पसंद किया जाता है, उतना ही इसके संगीत को भी लोगों ने पसंद किया था। जतिन-ललित के संगीत में फिल्म में करीब 9 गाने थे। लता मंगेशकर और उदित नारायण ने इन्हें आवाज दी और फिल्म के सभी गाने पसंद किए गए! इसका होली गीत तो आज भी अकसर होली पर सुनाई दे जाता है।
'मोहब्बतें' से पहले अमिताभ बच्चन अपने करियर को लेकर काफी मुश्किलों का सामना कर रहे थे। उनका प्रोडक्शन हाउस 'एबीसीएल' भी घाटे में चला गया था, जिससे न सिर्फ उनकी इमेज खराब हुई बल्कि उन्हें आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ा! यही वो समय था, जब यश चोपड़ा ने अमिताभ को अपने प्रोडक्शन की आने वाली इस फिल्म के बारे में बताया और वे राजी भी हो गए! 'मोहब्बतें' से अमिताभ ने अपनी 'हीरो' वाली इमेज को छोड़ा और एक ऐसे उम्रदराज व्यक्ति का रोल निभाया, जिसे मोहब्बत से नफरत थी। दो पीढ़ियों के अंतर्द्वंद में फँसी ये फिल्म आलोचनात्मक और व्यावसायिक दोनों मोर्चों पर सफल रही थी। लेकिन, आज फिल्म को एक सफल प्रेम कहानी के रूप में याद किया जाता है।
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