Saturday, October 10, 2020

हिंदी सिनेमा के प्रथम पुरुष!

हेमंत पाल

    यदि आपसे ये पूछा जाए कि हिंदी सिनेमा में अमिताभ बच्चन नहीं होते तो क्या होता! निश्चित रूप से सवाल सुनकर कोई भी दो पल को ठिठकेगा जरूर! जवाब ये भी हो सकता है, कि वे नहीं होते तो कोई और होता! लेकिन, अमिताभ के होने से सिनेमा में जो पूर्णता आई, उससे कोई कैसे इंकार करेगा!  अमिताभ बच्चन सिनेमा की दुनिया का ऐसा नाम है, जिसके बिना हिंदी फिल्मों का जिक्र अधूरा है। वे बरसों से दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं। वे ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें तीन पीढ़ियां जानती है। लेकिन, उनके आलोचकों की भी कमी नहीं है! ये स्वाभाविक भी है! क्योंकि, असहमत होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन, अमिताभ के अभिनय, काम के प्रति उनके समर्पण और विवादों से दूर रहने की उनकी आदत को लेकर यदि कोई उंगली उठाए तो उसे सही नहीं कहा जा सकता!
      अब अमिताभ कालजयी हो चुके हैं। अपने अभिनय के दम पर उन्होंने अपनी जगह न सिर्फ बनाई, बल्कि उस शीर्ष पर काबिज हैं। वे जहाँ खड़े हैं, उसके आसपास भी कोई दिखाई नहीं देता! वे बीती आधी सदी से शिखर नायक हैं। न सिर्फ देश के हिंदी फिल्मों के दर्शक उन्हें अपना रोल मॉडल मानते हैं, ब्रिटेन, अमेरिका, सऊदी अरब, मिस्र, जॉर्डन, मलेशिया और पूरे अफ्रीका में अमिताभ का जलवा है। वे दुनिया के हर उस देश में लोकप्रिय हैं, जहां भारतीय मूल के लोग बसे हैं। जहाँ भी लोग हिंदी फ़िल्में पसंद करते हैं, वहां अमिताभ उन लोगों के दिलों में बसे हैं। लेकिन, उन्होंने ये मुकाम आसानी से नहीं पाया। वे आज अभिनय के जिस शिखर पर हैं, वहां पहुंचने में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे। शुरुआती असफलता के बाद उन्होंने सफलता का स्वाद चखा! लेकिन, फिर असफलताओं का एक ऐसा लम्बा दौर भी आया जिसका सफल काफी हिचकोले भरा था। लेकिन, वे उन थपेड़ों से भी संभल गए और अब लोकप्रियता की उस पायदान पर हैं, जहाँ उनका कोई विकल्प नहीं दिखता! 
      एक्शन का अमिताभ से बचपन से ही रिश्ता रहा है। उनके मुंडन के दिन ही अमिताभ के घर के दरवाजे पर एक सांड आया, जो उन्हें पटखनी देकर चला गया था। उससे उनके सिर में गहरा घाव हो गया और कई टांके लगे थे। अपने जीवन में अमिताभ एयरफोर्स में इंजीनियर बनना चाहते थे! पर, नियति को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने शुरूआती दौर में कोलकाता की एक शिपिंग कंपनी में बतौर एग्जीक्यूटिव काम किया। आज भले ही लोग उनकी गंभीर आवाज़ के दीवाने हैं, कभी इसी आवाज़ की वजह से ऑल इंडिया रेडियो ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था। लेकिन, उन्होंने कोलकाता में रेडियो अनाउंसर के तौर पर काम किया। अमिताभ अपने संघर्ष के दिनों को आज भी नहीं भूले। उन्होंने कई रातें मुंबई के मरीन ड्राइव के पास की बेंच पर बिताई। वे आज जब उस जगह के आसपास से गुजरते हैं, तो काफी भावुक हो जाते हैं।
   अमिताभ की हिंदी को लेकर अकसर उनकी प्रशंसा की जाती है। निश्चित रूप से ये उनके पिता की साहित्यिक पहचान का ही प्रभाव है। अमिताभ का रिश्ता एक साहित्यिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से है। पिता की तरह उन्हें भी लिखने-पढ़ने का शौक है। फ़िल्मी दुनिया जैसे दिखावटी माहौल में रहते हुए भी उन्हें साफ़-सुथरी हिंदी बोलना पसंद है। टीवी पर उनके शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में वे जिस तरह की हिंदी का प्रयोग करते हैं, उसे पसंद करने वालों की कमी नहीं। वे अपनी भाषा को लेकर बेहद गंभीर रहते हैं। कभी देखा नहीं गया कि उन्होंने सार्वजनिक रूप दोयम दर्जे की भाषा का प्रयोग किया हो या उनकी किसी बात पर उंगलियां उठी हों! वे हमेशा मानक हिंदी बोलते हैं। उनके शब्दों का उच्चारण अस्पष्ट नहीं होता और न वे खिचड़ी भाषा बोलते हैं। उन्होंने भाषा को स्तरीय और सुसंस्कृत बनाए रखा। वे अपनी फिल्मों के जरिए गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी हिंदी लेकर जाने में सफल रहे! ऐसे क्षेत्रों में भी लोग उनकी फिल्मों के संवाद बोलते सुनाई दे जाएंगे, जहाँ हिंदी नहीं बोली जाती। 
   शुरू से ही अमिताभ की जिंदगी में उतार-चढाव आते रहे। फिल्मों दुनिया में भी सफलता और असफलता का लम्बा दौर चला! 'सात हिंदुस्तानी' से जो दौर शुरू हुआ, वो हिचकोले खाता रहा! ‘जंजीर’ की सफलता ने उनकी जिंदगी बदल दी! इस फिल्म ने उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ का ख़िताब भी दिया। जिसे अमिताभ ने दीवार, शोले, त्रिशूल, काला पत्थर, अमर अकबर एंथोनी, डॉन, लावारिस और ‘मुकद्दर का सिकंदर’ जैसी मारधाड़ वाली फिल्मों में जमकर भुनाया। लेकिन, फिर वे परदे से एकदम गायब से हो गए। कई फ़िल्में फ्लॉप हुई! किंतु, इसके बाद का समय ऐसा आया जिसने नए अमिताभ को जन्म दिया। आज हमारे सामने परदे की दुनिया का वही प्रथम पुरुष खड़ा है, जिसके जिक्र के बिना हिंदी फिल्म इतिहास का कोई अध्याय पूरा नहीं होता!
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