शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार मुख्यमंत्री बने करीब सवा साल हो गए। इस दौरान कई बार ये चर्चाएं गर्म हुई कि मुख्यमंत्री को बदला जाएगा। वे ज्यादा दिन इस कुर्सी पर नहीं रहेंगे! ये सुरसुरी कहीं और से नहीं, भाजपा के अंदर से चली और फिर कुछ दिन बाद ठंडी भी हो गई! हर बार किसी नए नेता को उनका विकल्प बताया जाता! कुछ दिन बाद वो नाम हाशिए पर चला जाता और उसकी जगह नया नाम आ जाता! केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल से पहले भी ऐसा ही कुछ हुआ, पर बाद में जो परिदृश्य सामने आया, वो बिलकुल अलग था। इस फेरबदल के बाद तो शिवराज सिंह पहले की अपेक्षा ज्यादा ताकतवर होकर उभरे हैं। जिन्हें उनका विकल्प समझा जा रहा था, वो काफी पीछे छूट गए! कहा जा सकता है कि फिलहाल उनके ऊपर खतरे के कोई काले बादल नहीं है।
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- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में लम्बे समय से सतह के नीचे राजनीतिक घमासान खदबदा रहा था। दमोह उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद से माहौल बनाने की कोशिश हो रही थी, कि मुख्यमंत्री को बदला जाएगा। एक महीने पहले तो इस खबर ने बहुत जोर पकड़ा कि जल्दी ही कुछ बड़ा उलटफेर होने वाला है। कुछ नेताओं की बेवजह की मेल-मुलाकातों की ख़बरों और ज्योतिरादित्य सिंधिया के भोपाल आने के बाद तो दावे किए जाने लगे कि बस अब वो वक़्त आ गया, जिसका इंतजार था! पर, ऐसा कुछ नहीं हुआ और न होना था! अब, जबकि केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल का अध्याय पूरा हो गया, बदले हालात में शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी पर कोई खतरा नजर नहीं आ रहा! सिंधिया केंद्र की राजनीति में व्यस्त हो गए, थावरचंद गहलोत राजनीति से विदा होकर महामहिम बना दिए गए और प्रहलाद पटेल के पर कतर दिए गए। इसके अलावा तो ऐसा कोई विकल्प दिखाई नहीं दे रहा, जो मुख्यमंत्री की कुर्सी का दावेदार हो! लेकिन, फिर भी राजनीति ऐसी बंद मुट्ठी है, जिसके बारे में ख़म ठोंककर कुछ कहा नहीं जा सकता! पर, खतरे के जिस अंदेशे को भांपा जा रहा था, लगता है फिलहाल वो टल गया!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अपने मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव किया। उन्होंने अपनी कैबिनेट में 43 को मंत्री पद की शपथ दिलाई, 7 मंत्रियों का प्रमोशन किया, 12 को छुट्टी दी गई, जबकि 36 नए चेहरों को शामिल किया गया! लेकिन, इस राजनीतिक कवायद को लेकर सबका अपना-अपना नजरिया है। इसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले की तैयारी भी माना जा रहा है। साथ ही उन बड़े नेताओं को सबक देने का संकेत भी है, जिन्होंने मंत्री रहते हुए गंभीरता से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई! इन 12 मंत्रियों में रविशंकर प्रसाद सिंह और प्रकाश जावड़ेकर का नाम सबसे ऊपर और चौंकाने वाला हैं। जिन्हें ताकतवर मंत्री माना जाता था, उनकी कुर्सी खिसकते देर नहीं लगी! इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सख्ती भी कहा जा सकता है और राजनीति की कोई नई चाल भी! अपनी खामी को दूसरे के कंधे पर डालकर उसका पत्ता साफ़ करने का कारनामा मोदी पहले भी कर चुके हैं।
मंत्रिमंडल में हुए इस फेरबदल को मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखा जाए, तो एक बिलकुल अलग तस्वीर नजर आती है। केंद्र की राजनीति में जो कवायद की गई, उससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तात्कालिक संकट से मुक्त होने के साथ ताकतवर भी हुए। पिछले कुछ महीनों से मुख्यमंत्री बदले जाने का जो माहौल बनाया जा रहा था, उसकी हवा निकल गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने से उनको अगला मुख्यमंत्री बनाने का समीकरण बैठाने वाले खामोश हो गए। अनुसूचित जाति का कार्ड खेलकर थावरचंद गहलोत को भविष्य का मुख्यमंत्री साबित करने वालों को हमेशा के लिए जवाब मिल गया कि उनकी राजनीतिक पारी अब ख़त्म हो गई! कुछ नेता जो प्रहलाद पटेल को शिवराज सिंह का विकल्प समझते थे, वे ताजा फेरबदल में उनके पर कतरे जाने से दुबक गए! उन्हें उम्मीद नहीं थी, कि दमोह उपचुनाव की हार की सजा उन्हें स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री से भी हटा सकती है। उनका विभाग भी बदल दिया गया। उन्हें पर्यटन और संस्कृति जैसे महत्वपूर्ण विभाग के स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री पद से हटाकर जल शक्ति और खाद्य प्रसंस्करण विभाग में दोयम दर्जे का राज्यमंत्री बना दिया गया। ये उनका राजनीतिक कद घटने का स्पष्ट इशारा है।
मध्यप्रदेश के खाते में मोदी मंत्रिमंडल में पहले से नरेंद्र सिंह तोमर, थावरचंद गहलोत, धर्मेंद्र प्रधान, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते थे। तोमर, गहलोत और प्रधान कैबिनेट तथा पटेल स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री और कुलस्ते राज्यमंत्री थे। धर्मेंद्र प्रधान मध्यप्रदेश के नहीं हैं, पर राज्यसभा में उन्हें प्रदेश की सीट से लिया गया, इसलिए उन्हें मध्यप्रदेश में गिना जाता है। इस बार सबसे बड़ा उलटफेर रहा थावरचंद गेहलोत को मंत्रिमंडल से हटाकर कर्नाटक का राज्यपाल बनाया जाना! ये बात तय है कि नाकारा होने के कारण उन्हें मंत्रिमंडल से हटाया जा रहा था, पर जातीय समीकरण की खातिर उन्हें राज्यपाल पद देकर संतुलन साधने की कोशिश की गई! वे मंत्रिमंडल में प्रदेश के मालवा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी करते थे। अब उनके हटने के बाद मोदी मंत्रिमंडल में मालवा का कोई घनी-घोरी नहीं है। उम्मीद की जा रही थी, कि इंदौर या उज्जैन संभाग से किसी को मौका दिया जाएगा, पर ऐसा नहीं हुआ! यहाँ तक कि विंध्य और महाकौशल से भी किसी का नाम नहीं आया!
मोदी कैबिनेट के विस्तार से पहले राकेश सिंह और कैलाश विजयवर्गीय के भी नाम लिए जा रहे थे। लेकिन, शामिल किया गया ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीरेंद्र खटीक को! सिंधिया का नाम तो पहले से तय था। उनके दलबल सहित कांग्रेस से भाजपा में आने की जो शर्तें थीं, निश्चित रूप से उसमें केंद्रीय मंत्री का पद दिया जाना भी शामिल होगा। पर, टीकमगढ़ के सांसद वीरेंद्र कुमार खटीक का अचानक नाम जुड़ना आश्चर्य की बात रही! थावरचंद गहलोत को हटाए जाने पर किसी अनुसूचित जाति के किसी चेहरे को तो लिया ही जाना था। उन्हें कैबिनेट में लिए जाने के पीछे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को बड़ी वजह माना जा रहा है। सिंधिया का ग्वालियर और खटीक का बुंदेलखंड दोनों इलाकों की सीमाएं उत्तरप्रदेश से मिलती है, जो उत्तरप्रदेश के चुनाव भाजपा को फ़ायदा देगी। वीरेंद्र खटीक का टीकमगढ़ क्षेत्र उत्तर प्रदेश के महोबा, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, ललितपुर, झांसी, जालौन, ललितपुर की सीमाओं के करीब है और इस पूरे क्षेत्र में अनुसूचित जाति का दबदबा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बदले जाने को लेकर जमकर हवा चली थी। सिंधिया समर्थकों ने अंदर ही अंदर सुरसुरी भी छोड़ी थी कि 'महाराज' को अगला मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है! लेकिन, केंद्र की राजनीति में पुनर्वास होने से ये सारे कयास हाशिए पर चले गए। मंत्री बनने से ग्वालियर इलाके में सिंधिया की ताकत बढ़ेगी, इसमें शक नहीं! पर, ये नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा और विष्णुदत्त शर्मा पर निर्भर है कि वे सिंधिया की पतंग को कितनी ढील देते हैं। क्योंकि, ये सभी सिंधिया के इलाके से ही आते हैं। राजनीति की शिक्षा की किसी किताब में ये अध्याय नहीं होता कि अपने प्रतिद्वंदी को कभी अपना कद बढ़ाने का मौका दिया जाए! ऐसा संभव भी नहीं है! पर, इस सारी उठापटक से शिवराज सिंह की कुर्सी को फिलहाल कोई खतरा नजर नहीं आ रहा! बल्कि जो खतरा मंडरा रहा था, वो भी छंट गया! इसके साथ ही, उन विघ्नसंतोषियों को भी सबक मिल गया जो जोड़-तोड़ की राजनीति के जरिए शिवराज सिंह को शह देने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन, फिर भी राजनीति के बारे में कोई दावा नहीं किया जा सकता! जो सुरक्षित दिखाई देता है, वो कब खतरे में पड़ जाए कहा नहीं जा सकता! इसलिए भी कि सत्ता के समीकरण बहुत उलझे हुए होते हैं।
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