साक्षात्कार : उमंग सिंघार
कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार हमेशा अपने बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं। इस बार उन्होंने आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठाकर कांग्रेस और भाजपा दोनों की राजनीति को गरमा दिया। वे अपनी बात को सही भी मानते हैं। क्योंकि, जब प्रदेश में हर वर्ग से मुख्यमंत्री बन चुके तो फिर आदिवासियों को हाशिए पर क्यों छोड़ दिया गया! उनका कहना है कि मौका मिला तो वे अपनी इस बात को पार्टी के बड़े नेताओं के सामने रखने से भी चूकेंगे नहीं!
- हेमंत पाल
इन दिनों आदिवासी विधायक उमंग सिंघार अपने मुखर बयान की वजह से सियासी गलियारों में खासी चर्चाओं में हैं। उन्होंने प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री के मुद्दे को हवा देकर बरसों पुरानी मांग को फिर उठा दिया। धार जिले की गंधवानी विधानसभा सीट से लगातार तीन बार जीते उमंग का कहना है कि जब प्रदेश में सरकार बनाने में आदिवासियों की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है, तो फिर आदिवासी मुख्यमंत्री की दावेदारी करने में क्या बुराई ! ये सही है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह पार्टी हाईकमान और जीते हुए विधायक तय करते हैं। लेकिन, दावेदारी करने में क्या बुराई! जब हर समाज के नेताओं को मौका मिला तो आदिवासी समाज को भी प्रतिनिधित्व का मौका तो मिलना ही चाहिए।
'सुबह सवेरे' से चर्चा करते हुए वे न तो अपनी बात से पलटते हैं और न बचते नजर आते हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि यदि कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए आदिवासी महत्वपूर्ण है, तो फिर उन्हें मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया जाता। उनकी दावेदारी को गलत या बगावत क्यों समझा जाता है। आज का आदिवासी युवा योग्य है, समर्थ है, पढ़ा-लिखा है और उसमें नेतृत्व करने की योग्यता है, तो फिर उसे मौका देने में बुराई क्या है! जब ब्राह्मण, वैश्य, राजपूत और ओबीसी सभी वर्ग के नेता मुख्यमंत्री बन चुके तो आदिवासी क्यों नहीं!
मध्यप्रदेश की फायरब्रांड कांग्रेस नेता स्व जमुना देवी भतीजे और उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने के साथ उसे अपने ढंग से आगे बढ़ाने वाले उमंग सिंघार का कहना है कि मैंने अपने समाज की भावना रखी है। मैं अपने लिए व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी भी नहीं कर रहा हूं। मैं सिर्फ आदिवासी मुख्यमंत्री की बात कर रहा हूं। मैंने जो कहा वह आदिवासियों की भावना थी और मैं अपने बयानों से भी पीछे भी नहीं हट रहा। ये मेरी आदत भी नहीं है कि मैं बोलकर अपनी बात से पलट जाऊं या नए मतलब समझाने लगूं। मैंने जो कहा साफ़ कहा और मैं अपनी बात पर कायम हूं और रहूंगा।
जब उनसे पूछा गया कि आप किस आदिवासी नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी के योग्य पाते हैं? तो उनका कहना था कि ये चुनना मेरा अधिकार क्षेत्र नहीं है। ये तो पार्टी हाईकमान को तय करना है कि पार्टी में योग्य आदिवासी नेता कौन है! लेकिन, उनका तार्किक रूप से कहना था कि जब राजनीतिक पार्टियां ये मानती हैं कि आदिवासियों के वोटों के बिना कोई पार्टी प्रदेश में सरकार नहीं बना सकती, तो फिर उनकी ताकत को नजरअंदाज क्यों किया जाता है। प्रदेश में 20 फीसदी से ज्यादा आदिवासी वोटर हैं, जो भी पार्टी की सरकार तय करते हैं, तो मेरी मांग को जायज समझा जाना चाहिए।
उनसे कहा गया कि कांग्रेस में आपकी मांग का समर्थन करने वाला कोई सामने नहीं आया, पर भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने आपकी बात को सही कहा! इस पर कांग्रेस विधायक का जवाब था कि उन्होंने मेरी बात का समर्थन के बहाने शिवराज सिंह पर तीर चलाया है। यदि उन्हें मेरी बात इतनी यही सही लगती है, तो फिर उन्हें भाजपा में भी इस बात को उठाना चाहिए! शिवराज सिंह जब आदिवासियों से इतनी आत्मीयता दिखा रहे हैं, तो उनके राजनीतिक भविष्य की भी चिंता करें।
उमंग सिंघार ने कहा कि यदि जरूरत पड़ी तो मैं पार्टी के मंच पर भी अपनी बात रखने से नहीं हिचकूंगा, क्योंकि जब हर समाज अपनी बात रख सकता है, तो मैं आदिवासी समाज की बात को भी अपनी पार्टी के सामने रखूंगा। अब यह पार्टी हाईकमान को तय करना है कि किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिले। आज की तारीख में आदिवासी युवा जागरूक हो चुका है। वह अपना राजनीतिक अधिकार भी मांग सकता है। ऐसी स्थिति में जब दोनों ही पार्टियां आदिवासियों की ताकत को समझ रही है, तो फिर इस मांग को अनुचित क्यों माना जा रहा। मैंने आदिवासी मुख्यमंत्री को लेकर अपनी बात कही है किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया और न अपने आपके लिए ऐसी कोई दावेदारी की। ये समाज की भावना थी, जिसे मैंने सामाजिक मंच से उठाया है।
उन्होंने आदिवासियों को वनवासी बताए जाने की भाजपा की कोशिश पर भी आपत्ति ली। उमंग सिंघार का कहना था कि पूरे देश में बरसों से आदिवासी समाज कहा जा रहा है, तो भाजपा को नया नाम देने का अधिकार किसने दिया। दरअसल, इसके पीछे भाजपा और संघ की सोची-समझी चाल है। वे आदिवासियों को हिंदू साबित करके हमें आरक्षित वर्ग के तहत मिलने वाली सुविधाओं से वंचित करना चाहते हैं। संघ के अनुषांगिक संगठनों ने इसके लिए बहुत कोशिश कर ली, पर वे सफल नहीं हुए।
कांग्रेस विधायक ने यह भी कहा कि आदिवासी पूरी तरह कांग्रेस के साथ थे और आगे भी रहेंगे। वे भाजपा के भरमाने से बदलने वाले नहीं हैं। वे जानते हैं कि हमारा असल हितैषी कांग्रेस है न कि भाजपा। विश्व आदिवासी दिवस पर छुट्टी घोषित न करने पर भी कांग्रेस विधायक आक्रोशित नजर आए! उनका कहना था कि अब हमारी सरकार बनेगी तो छुट्टी फिर शुरू होगी। जब मुख्यमंत्री हर समाज को उनके त्यौहार पर छुट्टी दे सकते हैं, तो आदिवासियों के साथ ये भेदभाव क्यों किया गया! इसका जवाब आदिवासी अगले चुनाव में जरूर देंगे।
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