Wednesday, September 3, 2025

भव्य रूप में फिर अवतरित होंगे 'राम'

     हिंदी सिनेमा में 'रामकथा' और 'महाभारत' दो ऐसे पौराणिक प्रसंग हैं, जो फिल्म इतिहास में दर्शकों के सबसे पसंदीदा विषय रहे। फिल्म निर्माण के शुरुआती दौर में सबसे ज्यादा चलने वाली फिल्म रामायण पर आधारित 'लंका दहन ही थी। इसके बाद भी राम, सीता, हनुमान और रावण इन चार पात्रों पर केंद्रित कथानक हर दशक में फ़िल्में बनती और पसंद की जाती रही। इसी एक कथा को कई बार अलग-अलग प्रसंग जरिए परदे पर उतारा गया। सिर्फ बड़े परदे पर ही नहीं, छोटे परदे पर भी राम-रावण कथा कई बार फिल्माई गई। अब बड़े परदे पर राम कथा को लेकर सबसे भव्य और महंगा प्रयोग हो रहा है। बताते हैं कि 400 करोड़ के बजट पर दो भागों में 'रामायणम' नाम से बड़े कलाकारों को लेकर फिल्म बनाई जा रही है। 

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- हेमंत पाल

     धार्मिक कथाओं में हिंदी सिनेमा का सबसे लोकप्रिय पात्र भगवान राम हैं। सवा सौ साल पहले सिनेमा के शैशव काल में फिल्मकारों ने रामकथा के सहारे ही अपनी नैया पार लगाई थी। क्योंकि, तब माइथोलॉजिकल कथाओं के जरिए ही दर्शकों को सिनेमाघरों तक लाया जाता था। यही वजह है कि भगवान राम की कथा को जनता तक पहुंचाने में सिनेमा के योगदान को बहुत बड़ा माना जाता है। बड़े परदे पर राम जी कि कथा का सिलसिला उस दौर में ही शुरू हो गया था, जब भारत में फिल्में बनना शुरू हुई। लेकिन, तब उनमें आवाज नहीं होती थी। हिंदी सिनेमा के पुरोधा कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के ने मूक फिल्मों के दौर में 1917 में ‘लंका दहन’ से राम नाम का जो पौधा लगाया था, उसे जीवी साने ने 1920 में ‘राम जन्म’ से आगे बढ़ाया। फिर वी शांताराम ने 1932 में ‘अयोध्या का राजा’ से इस परंपरा को गति दी, तो विजय भट्ट ने 1942 में ‘भरत मिलाप’ और 1943 में ‘राम राज्य’ से इसे सिनेमा के लिए एक आसान और दर्शकों का पसंदीदा विषय बना दिया।
    बताते हैं कि दादासाहब ने जब सिनेमा हॉल में 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' (1906) देखी, तो परदे पर जीसस के चमत्कार देखकर उन्हें लगा कि इसी तरह भारतीय देवताओं राम और कृष्ण की कहानियां भी परदे पर आ सकती हैं। इसी विचार के साथ उन्होंने 'मूविंग पिक्चर्स' के बिजनेस में कदम रखा। भारतीय माइथोलॉजी पर आधारित 'राजा हरिश्चंद्र' बनाने के बाद दादा साहब ने अपनी दूसरी फिल्म की कहानी के लिए रामकथा को चुना। सिनेमा में इस कथानक को उतारने की ये पहली कोशिश ‘लंका दहन’ जबरदस्त कामयाब हुई और बाद के सालों में इसने, हिंदी फिल्मों से लेकर साउथ तक के कई फिल्ममेकर्स को इस तरह की फिल्में बनाने के लिए प्रेरित किया। 
     देखा गया कि फिल्म इतिहास के हर दशक में किसी न किसी रूप में राम परदे पर अवतरित होते रहे हैं। शुरुआती दिनों में ‘अयोध्या चा राजा’ ने टॉकीजों में दर्शकों की श्रद्धा बरसाकर इस परंपरा को बढ़ाया। कहा जा सकता है कि सिनेमा में कोई चले या नहीं, राम का नाम हमेशा अपना असर दिखाता रहा। इसके बाद 1961 में बाबूभाई मिस्त्री की 'संपूर्ण रामायण' ने फिर दर्शकों को टॉकीज में सियाराम बुलवा दिया था। इस फिल्म में रावण और हनुमान को हवा में उड़ता दिखाकर, लंका दहन और राम-रावण युद्ध के युद्ध के दृश्य फिल्माकर दर्शकों को नया अनुभव दिया था। रावण की भूमिका बीएम व्यास ने रावण बनकर अपने आपको उस ज़माने का चर्चित खलनायक साबित किया था, जो आसान बात नहीं थी। राम, रामायण और हनुमान पर केंद्रित फिल्मों के इतिहास के बाद अब एक बार फिर बड़े परदे पर राम भगवान अवतरित हो रहे हैं। सिनेमा में राम को लेकर कई बार प्रयोग हुए हैं। राम, सीता और रावण की कहानी बरसों से सुनी और सुनाई जाती रही है। फिर भी इसे लेकर दर्शकों की उत्सुकता बनी है। इसलिए कि उसका प्रस्तुतीकरण हमेशा ही चौंकाने वाला रहा।
   नितेश तिवारी की 4000 करोड़ की फिल्म 'रामायण' को लेकर क्रेज़ होने का कारण इसके कलाकारों के साथ इसका भव्य प्रस्तुतीकरण भी है। इसमें राम का किरदार रणबीर कपूर और रावण का दक्षिण के सितारे यश निभा रहे हैं। सनी देओल जैसे कलाकार का हनुमान का किरदार निभाना भी कम आश्चर्यजनक नहीं है। इस 'रामायण' फिल्म की पहली झलक को जिस तरह पसंद किया गया, वो इस बात का प्रमाण है, कि इस फिल्म के निर्माण का स्तर क्या होगा। इसके रिलीज हुए पहले टीजर में रणबीर कपूर और यश की पहली झलक देखने को मिली। दो हिस्सों में बनने वाली इस फिल्म का पहला हिस्सा अगले साल (2026) में परदे पर आएगा।
     नितेश तिवारी की इस फिल्म के बजट ने हर किसी को हैरानी में डाल दिया। फिल्म के प्रोड्यूसर नमित मल्होत्रा ने हाल ही में खुलासा किया कि इस मोस्ट अवेटेड माइथोलॉजिकल फिल्म का बजट 4000 करोड़ रुपए है। ये भारत की अब तक की सबसे महंगी फिल्म होगी। फिल्म से इतनी कमाई हो सकेगी या नहीं अभी इस बारे में संशय है। वैसे बॉक्स ऑफिस का फार्मूला है, कि किसी भी फिल्म को हिट होने के लिए उसे अपनी लागत से दोगुना कमाई करना होती है। यदि 'रामायणम' के बारे में बात की जाए को दोनों पार्ट्स को हिट होने के लिए 8000 करोड़ रुपए कमाना पड़ेंगे। लेकिन, जिस तरह फिल्म का निर्माण हो रहा है, ये आंकड़ा बड़ा नहीं लग रहा।  
    'रामायण' को इतने बड़े खर्च से बनाने का फैसला इसलिए आश्चर्य की बात है, कि फिल्म के मूल कथानक से देश का बच्चा बच्चा वाकिफ है। राम-रावण युद्ध का हर दृश्य दर्शक कई बार फिल्मों और सीरियल में देख चुके हैं। उसी को फिर फिल्माया जाएगा, वो भी बिना किसी बदलाव के। क्योंकि, भगवान राम जैसे किरदार की लोकप्रियता का आलम यह है कि फिल्म जगत के 112 साल के इतिहास में हर दशक में सिनेमा के परदे व टीवी पर किसी-न-किसी रूप में राम अवतरित होते रहे हैं। गिनती लगाई जाए, तो अभी तक 50 से ज्यादा फिल्में और 18 टीवी शो इसी रामकथा पर बन चुके हैं। इनमें 17 हिंदी में और तेलुगु में सबसे ज्यादा 18 फिल्में बनी। अभी तक देश में अलग-अलग भाषाओं में जितनी भी पौराणिक फिल्में बनी, उनमें राम-रावण युद्ध पर बनी फिल्में ही सबसे ज्यादा पसंद की गई। याद किया जाए तो रामानंद सागर के सीरियल 'रामायण' ने तो दर्शकों की श्रद्धा के रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। 1980 व 1990 का दशक इसी सीरियल के नाम रहा।
    रामकथा पर आधारित अधिकांश फिल्मों ने अच्छी कमाई की। 1917 में दादा साहब फाल्के के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘लंका दहन’ (1917) देखने वाले दर्शकों की सिनेमाघर के बाहर कतार लगी रहती थी। मूक फिल्मों के दौर में भी रामकथा पर बनी 'लंका दहन' ऐसी फिल्म आई थी, जिसने दर्शकों की लाइन लगवाई थी। मुंबई के थिएटर्स में ये फिल्म 23 हफ्तों तक चली। इससे ऐसी कमाई हुई थी कि पैसों से लदे बोरे बैलगाड़ी पर प्रोड्यूसर के घर भेजे जाते थे। 'लंका दहन' में अन्ना सालुंके ने सिनेमा के इतिहास का पहला डबल रोल किया था। उन्होंने इस फिल्म में राम के साथ सीता का भी किरदार निभाया था। उन्होंने फिल्म में राम व सीता दोनों के किरदारों को अपने बेहतरीन अभिनय से जीवंत बनाया था। क्योंकि, उस दौर में महिलाओं का फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं समझा जाता था। इसलिए महिलाओं के किरदार भी पुरुष निभाया करते थे। इससे पहले दादा साहब फाल्के की फिल्म ‘राजा हरिशचंद्र’ में अन्ना सालुंके तारामती का किरदार निभा चुके थे। यही वजह रही कि फाल्के ने सीता की भूमिका भी उन्हीं को सौंपी। 
    मूक फिल्मों के समय में राम का किरदार निभाने वाले अभिनेताओं में 'राम राज्य' के हीरो प्रेम अदीब को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता रहा। उनके फोटो पर भगवान की तरह माला चढ़ाई जाती थी। इसी तरह 'संपूर्ण रामायण' में राम का किरदार निभाकर महिपाल भी चर्चित हुए। फिल्मों के लंबे दौर के बाद दूरदर्शन पर 'रामायण' सीरियल में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल को तो देशभर में राम के अवतार के रूप में ही देखा जाने लगा था। आज भी उनकी यही छवि है। 1997 में प्रसारित लोकप्रिय सीरियल 'जय हनुमान' में अभिनेता सिराज मुस्तफा खान ने भगवान राम का किरदार निभाया था। उन्हें भी लोगों ने पसंद किया। मूक फिल्मों के दौर में तो खलील अहमद भी 1920 से 1940 तक सक्रिय रहे। उन्होंने सती पार्वती, महासती अनुसुया, रुक्मिणी हरण, लंका नी लाडी और द्रौपदी जैसी फिल्मों में कृष्ण व राम के किरदार निभाए थे। 
     वर्ष 1942 में आयी भरत मिलाप और वर्ष 1943 में रिलीज हुई राम राज्य में प्रेम अदीब ने ही प्रभु राम की भूमिका निभाई थी। इन दोनों फिल्मों ने उनको उस दौर का एक सफल अभिनेता बनाया था। उनकी निभाई राम की भूमिका लोगों को बेहद पसंद आई। यही वजह रही कि इसके बाद रामायण की कथा पर बनी 6 फिल्मों रामबाण (1948), राम विवाह (1949), रामनवमी (1956), राम हनुमान युद्ध (1957), राम लक्ष्मण (1957), राम भक्त विभीषण (1958) जैसी फिल्मों में वे राम बने। प्रेम अदीब ने तो 'राम राज्य' की शूटिंग के दौरान नॉनवेज तक खाना छोड़ दिया था। 
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