Monday, December 21, 2015

नया ट्रेंड नहीं है ऐतिहासिक-कॉस्ट्यूम ड्रामा!

- हेमंत पाल 

  फ़िल्मी दुनिया में 'ट्रेंड्स' का एक अलग ही नजरिया है! किसी एक ढर्रे की फ़िल्में बनाने का! जब कॉमेडी फिल्मों की बाढ़ आती है, तो हर फिल्मकार कॉमेडी बनाने लगता है। जब रोमांस की फ़िल्में आती है तो नई-नई प्रेम कहानियां सामने आती है! यही चलन बीच-बीच में ऐतिहासिक फिल्मों को लेकर भी आता है। इस तरह कि फिल्मों के निर्माण में समय भी ज्यादा लगता है और इसका बजट भी बड़ा होता है, इसलिए हर निर्माता ये साहस नहीं कर पाता! लेकिन, जो ये साहस करते हैं, वे या तो बड़ी कमाई करते हैं या बड़ा नुकसान झेलने के लिए भी तैयार रहते हैं! इन दिनों ऐसी ही ऐतिहासिक कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों का दौर आया है। इनमें कुछ फ़िल्में इतिहास के किसी प्रसंग से जोड़कर बनाई जाती हैं, कुछ पूरी तरह फिक्शन फ़िल्में होती है, जिनका इतिहास और वर्तमान तो क्या वास्तविकता से भी कोई लेना-देना नहीं होता! 

   हिंदी फिल्मों में फिलहाल का ये दौर साउथ से आया है! 'बाहुबली : द बिगनिंग' पूरी तरह से फिक्शन फिल्म थी, जिसमें एनिमेशन के जरिए माहौल बनाकर ऐसी प्रेम कहानी गढ़ी, जिसने दर्शकों को चमत्कृत कर दिया! साउथ की इस फिल्म से बॉलीवुड को झटका भी लगा और कुछ नया करने का आईडिया भी मिला! अपने प्रेजेंटेशन के कारण 'बाहुबली' का जादू न सिर्फ फिल्मकारों के सिर चढ़कर बोला, बल्कि दर्शक भी अभिभूत हो गए! यदि सलमान खान की 'बजरंगी भाई जान' की जगह और कोई फिल्म 'बाहुबली' के आसपास रिलीज होती तो, पानी भी नहीं मांगती! 'बाहुबली' के बाद तमिल में बनी फिल्म 'पुलि' भी हिंदी में डब होकर रिलीज़ हुई, पर वो चमत्कार नहीं कर सकी! फिर आई 'रुद्रमादेवी' जो 'बाहुबली' के आसपास भी नहीं लगी! ये सभी फ़िल्में कॉस्ट्यूम ड्रामा तो थी, पर इनका  ऐतिहासिकता से कोई लेना-देना नहीं था! 
  अब बॉलीवुड फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' आई है, जो मराठा पेशवा बाजीराव प्रेम प्रसंग से जुडी कहानी पर बनी है। ये कहानी सच है या नहीं, इस तर्क में खुद फिल्म के निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली नहीं फँस रहे! पर, जिस तरह इस कॉस्ट्यूम ड्रामा बनाया गया है, वो तारीफ के काबिल है! इसके बाद का अगला चरण है 'बाहुबली : द बिगनिंग' का दूसरा पार्ट 'बाहुबली : द कंक्लूजन।' केतन मेहता भी 'रानी लक्ष्मीबाई' बनाने की तैयारी कर रहे हैं। आशुतोष गोवारिकर भी 'मोहन जोदड़ो' लेकर आ रहे हैं, जो प्रागैतिहासिक कालखंड पर आधारित है! ये तो वो प्रोजेक्ट हैं, जो घोषित हैं, कई फिल्मकार ऐसे विषयों की खोज में भी लगे हैं! आशय ये है कि ऐतिहासिक और कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों का दौर फिर शुरू होने वाला है! वैसे इसकी शुरुआत तो आशुतोष गोवारिकर ने 'जोधा-अकबर' बनाकर कुछ साल पहले कर ही दी थी!   
   अपना इतिहास देखना सभी को अच्छा लगता है। लेकिन, इतिहास को किताब में पढ़ने और परदे पर देखने में फर्क होता है। जब फिल्मकार इतिहास को फंतासी अंदाज परदे पर उतारता है तो दर्शकों का रोमांचित होना स्वाभाविक होता है। लेकिन, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि ये ऐतिहासिक फ़िल्में सफल हो ही जाएंगी! इन ऐतिहासिक फिल्मों का इतिहास बताता है कि ये फार्मूला ही हमेशा चला! फिल्मों के साइलेंट दौर में 1924 में आई बाबूराव पेंटर ने 'सति पद्मिनी' निर्देशित की थी। चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की एक झलक दिल्ली का नवाब अलाउद्दीन ख़िलजी देख लेता है। पद्मिनी को पाने के लिए चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर देता है। अलाउद्दीन ख़िलजी चित्तौड़ के राजपूतों को हरा तो देता है, पर पद्मिनी उसे नहीं मिलती! वो अलाउद्दीन के हाथ आने से पहले ही जौहर कर लेती है। हिंदी फिल्मकारों ने मुग़लकाल से जुडी कहानियों पर ही ज्यादा फ़िल्में बनाई गई है। जोधा, अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ, पसंदीदा करैक्टर साबित हुए।
जब फिल्मों को आवाज मिली तो पहली बोलती फिल्म ही 'आलमआरा' कॉस्ट्यूम ड्रामा ही थी! निर्देशक सोहराब मोदी की यह हिंदी फिल्मों के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। बाद में सोहराब मोदी ने पुकार, सिकंदर, पृथ्वी वल्लभ और झाँसी की रानी जैसी ऐतिहासिक फ़िल्में बनाई! 'झांसी की रानी' पहली टेक्नीकलर फिल्म थी। 
  देखा गया है कि इतिहास से जुडी फिल्मों में भी महिला कैरेक्टरों को ही ज्यादा पसंद किया गया है। जहांगीर और अनारकली से प्रेम कहानी पर बनी 'अनारकली' और 'मुग़ले आज़म' का आज भी उल्लेख किया जाता है। 'अनारकली' का वास्तविकता से कोई सरोकार हो न हो, लेकिन परदे पर ये काल्पनिक चरित्र अमर जरूर हो गया। 'मुग़ले आज़म' में सम्राट अकबर और जोधा के बीच जहांगीर को लेकर टकराव हुआ था। जबकि, आशुतोष  गोवारिकर की 'जोधा-अकबर' में ये नई प्रेम कहानी में बदल गया। कमाल अमरोही की फिल्म 'रजिया सुलतान' दिल्ली की शासक रज़िया की कहानी थी, जिसे गुलाम याकूत से प्रेम हो जाता है। इसी कहानी पर 60 दशक में निरुपा रॉय और कामरान लेकर फिल्म बनाई गई थी! 'ताजमहल' में मुमताज़ महल और शाहजहाँ की अमर कहानी केंद्र में थी! शाहजहाँ की बेटी 'जहाँआरा' पर भी फिल्म बन चुकी है। 
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