Sunday, December 6, 2015

छोटे परदे पर गढ़ता नकली इतिहास!


- हेमंत पाल 
   टेलीविज़न सीरियलों को लेकर अकसर ऊँगली उठाई जाती है कि ये भारतीय संस्कृति और परिवारों की पहचान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं! संयुक्त परिवारों का जो चेहरा इन सीरियलों में दिखाया जाता है, वास्तव में ऐसा किसी परिवार में नहीं होता! सास-बहू के रिश्तों का जितना नकारात्मक चेहरा सीरियल निर्माता एकता कपूर ने दिखाया, उतना शायद किसी ने नहीं! बात यही ख़त्म नहीं होती! संयुक्त परिवारों की ताकत और सच्चाई को हर दर्शक समझता हैं, इसलिए इसे मनोरंजन ही समझा जाता है! लेकिन, आजकल भारतीय इतिहास के साथ मनोरंजन के नाम पर ख़ासा मजाक किया जा रहा है! कई चैनल्स पर इतिहास से जुड़े सीरियल चल रहे हैं! महाराणा प्रताप, सम्राट अशोक, जोधा-अकबर और मीरा बाई समेत कई सीरियल दर्शक देख चुके हैं या वे चल रहे हैं। इन सीरियलों के कथानक की सत्यता की कोई प्रामाणिकता नहीं है! इतिहास को तोड़ मरोड़कर उसे मनोरंजन बनाकर परदे पर दिखा देने से दर्शकों पर अलग ही प्रभाव पड रहा है!
  सीरियल के निर्माता और चैनल किसी विवाद और कानूनी उलझन से बचने के लिए इसके कथानक को इतिहास से अलग महज मनोरंजन होने की सफाई देकर 'डिस्क्लेमर' लगाकर खुद तो बरी हो जाता है, पर दर्शकों में एक बड़ा वर्ग है जो एक नए इतिहास से परिचित होने से नहीं बचता! टीआरपी की दौड़ में सीरियल बनाने वालों के इस कृत्य को उचित नहीं ठहराया जा सकता! ऐतिहासिक कहानियाँ और कविताएं जिस तरह पढ़ने वाले के मानस पर प्रभाव डालती है, उससे ज्यादा प्रभाव टीवी सीरियल और फिल्मों से होता है! क्योंकि, हर दर्शक की रूचि इतिहास में नहीं होती! वो उसे पढता नहीं है, इसलिए इन्हीं कहानियों को सच मानकर दिमाग में बैठा लेता है। ऐसे में जब कोई प्रामाणिक इतिहास का जिक्र करता है तो वह उस पर भरोसा नहीं करता! जिस तरह चंदबरदाई के चारणी साहित्य 'पृथ्वीराज रासो' में संयोगिता नाम का चरित्र घड़कर जयचंद को गद्दारी का पर्यायवाची शब्द बना दिया! उसी प्रकार मुगले आजम, अनारकली, जोधा अकबर आदि फिल्मों ने एक मनगढ़ंत जोधा बाई नाम रच दिया, जो जनमानस के दिलो दिमाग से कभी निकल नहीं पाएगा!
  सीरियल के लेखकों ने इतिहास को नए सिरे से लिखकर उसे दूषित और विकृत कर दिया जाता है। कथानक में मनगढ़ंत किस्से और प्रसंग जोड़कर उसे मनोरंजक तो बना दिया जाता है, पर इसका सत्यता से कोई वास्ता नहीं होता! इतिहास को तोड़ मरोड़कर ऐतिहासिक पात्रों पर फ़िल्में बनने के बाद अब जिस तरह सीरियल बनाए जा रहे हैं, वो देश की संस्कृति के साथ मजाक ही है, इसका दुखद पहलु ये है कि इसकी तरफ सरकार का कोई ध्यान नहीं! इस नजरिए से देखा जाए तो इतिहास को प्रदूषित और विकृत करने में इन टीवी चैनल्स का सबसे बड़ा हाथ है। जोधा अकबर, महाराणा प्रताप, सम्राट अशोक, मीरां बाई इसके सटीक प्रमाण हैं! मनोरंजन के नाम पर दशकों पहले बनी फिल्म 'मुगले आजम' कोई भी यह मानने को तैयार नहीं था कि अकबर की किसी पत्नी का नाम जोधा बाई था! अकबर नामा, जहाँगीर नामा और अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने भी कहीं अकबर की किसी पत्नी का नाम जोधा नहीं लिखा था! लेकिन, 'मुगले आजम' बनने के बाद इसी विषय पर बनी फिल्म और सीरियल (जोधा अकबर) में इसी का जिक्र हुआ! दर्शकों के जहन में यह बात ठीक नहीं बैठती कि वे मनोरंजन के नाम पर कब तक मनगढंत इतिहास से रूबरू होते रहेंगे? 'मुगले आजम' फिल्म बनने के बाद कई कथित इतिहासकारों ने इस झूंठ को अपनी किताबों में शामिल करके इतिहास की प्रामाणिकता के साथ भी खिलवाड़ ही किया! 
  'महाराणा प्रताप' सीरियल में भी असली कथानक से भटककर अनर्गल बातें दिखाई गई! मेवाड़ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप भी लगे! राजस्थान के एक राजपूत संगठन ने तो इसे लेकर अपना विरोध भी दर्ज कराया था। इस संगठन का आरोप था कि सीरियल में तत्कालीन भाषा, वेशभूषा, तथ्यों एवं ऐतिहासिक घटनाक्रमों को तोड़ मरोड़ कर दर्शाया गया है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के इस सेनानी के जीवन को प्रस्तुत करते समय कपोल कल्पना वाली बातों को नहीं दिखाया जाना चाहिए! इससे इतिहास के साथ खिलवाड़ होता है तथा भावी पीढ़ी में इतिहास के साथ भटकाव की स्थिति पैदा होती है। 'महाराणा प्रताप' सीरियल में कथानक को दिलचस्प और मनोरंजन से भरपूर बनाने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों की पूरी तरह अवहेलना कर की गई! 
   'मीरा बाई' पर बने सीरियल में  अनर्गल प्रसंग जोड़े जाने के आरोप लगे थे! वृंदावन यात्रा पर जा रही मीरा बाई के साथ मेड़ता के शासक वीरमदेव को जोधपुर के शासक मालदेव के भय से छुपते हुए दिखाया गया था! राजा मालदेव और वीरमदेव के बीच जंग दिखाई गई! घायल वीरमदेव द्वारा अपनी मृत्यु से पहले मालदेव को मारना भी दिखाया गया! जबकि, तथ्यात्मक इतहास बताता है कि मालदेव का निधन वीरमदेव की मृत्यु के कई साल बाद हुआ था! वीरमदेव की मौत के बाद उनका बेटा जयमल मेड़ता की गद्दी पर बैठा और जोधपुर के शासक मालदेव से उसने युद्ध भी किए थे। यदि मालदेव और वीरमदेव आपसी झगडे में मारे गए होते तो फिर मालदेव की जयमल के साथ युद्ध कैसे होते? लेकिन, इतिहास की आड़ में सीरियल बनाने वालों को ऐतिहासिक तथ्यों से कोई सरोकार नहीं होता! उनकी नजर तो इतिहास की आड़ में साजिश और संघर्ष दिखाकर टीआरपी कमाने की होती है!   
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