Friday, December 25, 2015

प्रशासनिक व्यवस्था की हर सीढ़ी का मुँह खुला!


- हेमंत पाल 


 प्रदेश सरकार भ्रष्ट नौकरशाही पर पूरी तरह से लगाम नहीं लगा पा रही है! प्रदेश में 'भारतीय मुद्रा के आचमन' का नजारा यह है कि अरबपति अफसरों और करोड़पति क्लर्को, बाबुओं, पटवारियों से लगाकर चपरासियों में कमाने की होड़ लगी है। बड़े अफसरों के अलावा करोड़पति चपरासियों, पटवारियों और क्लर्कों के यहाँ भी जब छापा मारा जाता है तो अकूत संपत्ति का मूल्यांकन करने में ही महीनों लग जाते हैं। सरकारी जाँच एजेंसियों ने पिछले कुछ सालों के दौरान एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की काली कमाई उजागर की है। इस धरपकड़ से यह बात जरूर सामने आई कि सरकारी दफ्तरों का पूरा अमला कड़ी बनाकर भ्रष्टाचार लिप्त है। अफसरों के पास नगदी और सोना रखने के लिए जगह नहीं है। कोई अपनी काली कमाई को बिस्तर बनाकर सोता है तो किसी ने बैंक के लॉकरों को नोटों से ठूंस रखा हैं। इस सबके बाद भी अभी तक व्यवस्था ने वे कारण नहीं तलाशे, जिनके चलते अफसर इतने मालामाल हुए! अगर ये कारण तलाशे जाते तो साठगांठ का खुलासा हो सकता था, जिसके संरक्षण में यह सब हो रहा है। भ्रष्टाचार की तहकीकात उन गठजोड़ों का भी खुलासा कर सकती है, जो आला अफसरों, राजनीतिकों और कारोबारियों के बीच पनपते हैं। अकेले लोकायुक्त ही प्रदेश के करीब 40 आईएएस अफसरों के खिलाफ जांच कर रहा है। ईओडब्ल्यू के पास भी करीब दर्जन अफसरों की जांच की फाइलें हैं। प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों में तो किसी का भय ही नहीं बचा! जिस तरह पटवारी जैसे छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े अफसरों तक में पैसा लूटने की होड़ मची है, हालात बेहद गंभीर हैं! 
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- उज्जैन लोकायुक्त पुलिस ने नीमच कलेक्टर कार्यालय में पदस्थ एक क्लर्क के ठिकानों पर छापे की कार्रवाई की! आय से अधिक संपत्ति होने की शिकायत पर यह कार्रवाई की गई! उस क्लर्क के घर से नकदी, सोने-चांदी के जेवरात के अलावा जमीन में निवेश के दस्तावेज भी मिले! छापे के दौरान बिस्तर के नीचे छुपाकर रखे हुए सात लाख रुपए भी बरामद किए गए! 
- भोपाल लोकायुक्त पुलिस ने होशंगाबाद के एक स्कूल प्रिंसिपल को 10 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया। लोकायुक्त के अनुसार इस संकुल प्रिंसिपल ने हॉस्टल अधीक्षिका पर रिश्वत देने के लिए दबाव बनाया था!
- खरगोन जिले में लोकायुक्त पुलिस ने ऋण पुस्तिका बनाने के बदले पांच हजार रुपए की रिश्वत ले रहे पटवारी को रंगे हाथ पकड़ा है। ये पटवारी ऋण पुस्तिका के बदले आठ हजार रुपए रिश्वत मांग रहा था।  
- लोकायुक्त की विशेष पुलिस ने धार जिले के कानवन में राजस्व निरीक्षक और एक पटवारी को किसान से 10 हजार रूपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा! पुस्तैनी जमीन के सीमांकन करने के मामले में राजस्व निरीक्षक एवं प्रभारी ने 10 हजार रूपए रिश्वत मांगी थी।
- जबलपुर लोकायुक्त ने गाड़ासरई के पटवारी 1500 रुपये की रिश्वत लेते पकड़ा! जमीन का पट्टा बनाने के नाम पर पटवारी ने ये रिश्वत मांगी थी। गाड़ासरई के एक ग्रामीण की पुश्तैनी जमीन का बंटवारा हुआ था। जिसकी जमीन का पट्टा बनना था। लोकायुक्त की टीम ने पटवारी को रिश्वत लेते गिरफ्तार किया!
- मनरेगा स्कीम में गड़बड़ी को लेकर एक दर्जन कलेक्टरों पर ऊँगली उठी है। लेकिन, जांच रिपोर्ट इनके खिलाफ होने के बावजूद इन्हें अच्छी पोस्टिंग मिल रही है। हाइकोर्ट ने एक दागी कलेक्टर के मामले में फौरन कार्रवाई के निर्देश सरकार को दिए।
- टीकमगढ़ के तत्कालीन कलेक्टर को मनरेगा में कथित भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित किया गया! भिंड  तत्कालीन कलेक्टर पर भी ऐसे आरोप थे, लेकिन उसे बचा लिया गया और बाद में बहाल कर दिया गया।
- लोकायुक्त प्रदेश के लगभग 36 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच कर रहा है। ईओडब्ल्यू प्रदेश के करीब 25 आइएएस अधिकारियों की जांच की फाइलें हैं।
   ये तो वो चंद ख़बरें हैं, जो अखबारों की सुर्खियां बनी! जिम्मेदार लोगों ने भी इन्हें देखा और भुला दिया! जनता ने भी इन्हें देखा और इसलिए भुला दिया कि जब हर जगह यही सब चल रहा है तो क्यों विरोध करके अपने काम अटकाए जाएं? 'भारतीय मुद्रा के आचमन' का नजारा यह है कि अरबपति अफसरों और करोड़पति क्लर्को, बाबुओं और पटवारियों में एक-दूसरे को पछाडऩे की गुपचुप होड़ सी चल रही है। लोकायुक्त संगठन ने प्रदेशभर में 300 से ज्यादा रिश्वतखोर अधिकारी-कर्मचारियों को पकड़ा है! करीब सौ के यहाँ तो छापे मारकर करीब सवा सौ करोड़़ की संपत्ति भी जब्त की! प्रदेश का हर व्यक्ति जानता है कि प्रदेश गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। अफसरों से लगाकर पटवारी तक भ्रष्ट आचरण की परिधि में है। हाल ही में उज्जैन नगर निगम के एक चपरासी के घर से मिली करोड़ों की संपत्ति और मंदसौर के एक सब-इंजीनियर के घर से पकडे गए करोड़ों रुपए सरकार के इतिहास और भविष्य का बयान कर रहे हैं!
  सरकारी पैसों की अफरातफरी और काम के एवज में रिश्वत लेने चलन तो सरकारी व्यवस्था में बरसों से है। लेकिन, कहा जा रहा है कि 1998 के बाद से ये चलन बहुत तेजी से आगे बढ़ा! सरकारी योजनाओं की कमजोरियों का पहले लाभ उठाकर हर स्तर पर कमीशनखोरी का धंधा तेजी से जारी है। अनुमान यहाँ तक है कि भ्रष्टाचार की अब तक वसूली गई रकम को यदि सरकार इन अधिकारी, कर्मचारियों से बाहर निकाल ले, तो मध्यप्रदेश को अपने विकास कार्यों के लिए आने वाले बीस सालों तक किसी टैक्स की जरूरत नही रहेगी!
   अब बात करते हैं, व्यवस्था के सबसे छोटे पुर्जे 'पटवारी' से जुडी रिश्वतखोरी की कथाओं की! बात शुरू करते हैं उस कहावत से, जो छोटे-बड़े सरकारी कर्मचारियों के बारे में कही जाती है। कहावत ये है कि भयंकर अकाल में भी पांच चीजें बकरी, ऊंट, साहूकार, सरकार और पटवारी बरकरार रहते हैं! बल्कि, ये चीजें बेहतर ढंग से पनपती हैं। सरकारी अमले के वरिष्ठता क्रम में पटवारी भले ही सबसे छोटा पद हो, मगर वो सरकारी मशीनरी का सबसे महत्वपूर्ण पुर्जा होता हैं। उसके बिना राजस्व से जुड़ा कोई मामला आगे नहीं बढ़ सकता! महत्वपूर्ण राजस्व दस्तावेज के संरक्षक पटवारियों को भी पता है कि वे व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग हैं! ऐसे में मालदार बनने के लालच में कई पटवारियों और एकॉउंटेंटों की जमात ने रिश्वतखोरी की राह पकड़ ली! पिछले कुछ सालों में सबसे ज्यादा धरपकड़ पटवारियों की ही हो रही है! ऐसे पटवारियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। सरकारी योजनाओं से लगाकर राजस्व संबंधी कई कामों में पटवारी प्रशासन और सरकार की महत्वपूर्ण इकाई हैं। शहर हो या गांव दोनों ही जमीन के नक्शे पटवारी के पास रहते हैं। वे इसका बेजा फायदा उठाते हैं। जमीन का मालिकाना हक तो पटवारी चुटकियों में बदल देता है।
  दरअसल, पटवारी ऐसा अदना सा पर सर्वशक्तिमान अधिकारी है, जिसका विरोध करना ग्रामीणों के भविष्य के लिए खतरा बन सकता है! क्योंकि, जमीन से लेकर उनकी जिंदगी के हर हिस्से को सरकार के साथ वही तय करता है। इसलिए इस शक्ति के दुरुपयोग से प्रशासन में संस्थागत भ्रष्टाचार प्रवेश कर गया! पटवारी के माध्यम से पूरा सरकारी ढांचा गलत काम करवाता है, इसलिए जरूरी है एक नया ढांचा खड़ा किया जाए, जहां इस शक्ति को विकेंद्रीकृत कर लोगों को दूसरे विकल्प दिए जाएं ताकि वे पारदर्शिता के आधार पर अपना काम करा सकें! लेकिन, पटवारियों का मानना है कि पटवारियों पर लगे इस तरह के आरोप राजनीतिक साजिश हैं। 'पटवारी छोटा कर्मचारी जरूर है, लेकिन वह कलेक्टर के बराबर सारे काम करता है।
  हमारे यहाँ इस 'पटवार-प्रणाली' की नींव शेरशाह सूरी ने रखी थी! शेरशाह, सूर साम्राज्य का संस्थापक था। इतिहासकारों का कहना है कि अपने समय में अत्यंत दूरदर्शी और विशिष्ट सूझबूझ का आदमी था। इसकी विशेषता इसलिए अधिक उल्लेखनीय है कि वह एक साधारण जागीदार का उपेक्षित बालक था। उसने अपनी वीरता, अदम्य साहस और परिश्रम के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर क़ब्ज़ा किया था। बाद में अकबर के जमाने में टोडरमल ने इस व्यवस्था में सुधार किया और फिर ब्रिटिश राज में इसे नया रूप दिया गया! आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर भारत और पाकिस्तान तक में 'पटवारी' शब्द ही चलन में है। जबकि, गुजरात-महाराष्ट्र में 1918 तक इन्हें 'कुलकर्णी' कहा जाता था। बाद में इन्हें 'तलाटी' कहा जाने लगा! पंजाब में 'पटवारी' को 'पिंड दी मां' (गांव की मां) भी कहने का प्रचलन है। राजस्थान में पहले पटवारियों को 'हाकिम साबहु' कहा जाता था। तमिलनाडु में पटवारी को 'कर्णम' या अधिकारी कहा जाता है। गरीब किसानों के लिए 'पटवारी' ही सबसे बड़ा साहब होता है।
  बदलाव के इस युग में अब 'पटवारी' व्यवस्था को भी ठीक करने का काम शुरू हो गया है। केंद्र सरकार ने 2005 में 'पटवारी इन्फॉर्मेशन सिस्टम' (पीएटीआइएस) नामक सॉफ्टवेयर विकसित किया है। इससे जमीन का कंप्यूटरीकृत रिकॉर्ड रखा जा सकेगा। मध्यप्रदेश में भी जमीन के रिकॉर्ड का कंप्यूटरीकरण जारी है। जल्द ही ये सारे रिकॉर्ड पटवारी के लेपटॉप पर उपलब्ध होंगे।
  एक ख़ास बात ये भी है कि पटवारियों के बारे में कोई केंद्रीयकृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है! राजस्थान में 10,685 पटवारी पद हैं, तो मध्य प्रदेश में 11,622, छत्तीसगढ़ में 3,500 पद हैं। उत्तर प्रदेश में तो पटवारी के पद तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी चरणसिंह के जमाने में ही समाप्त कर दिए गए थे। अब उन्हें लेखपाल कहा जाता है, जिनकी संख्या 27,333 है। उत्तराखंड में इन्हें राजस्व-पुलिस कहा जाता है और राज्य के 65 फीसदी हिस्से में अपराध नियंत्रण, राजस्व संबंधी कार्यों के साथ ही वन संपदा की हकदारी का काम पटवारी ही संभालते हैं। लेकिन, यह कड़वा सच भी है कि पटवार व्यवस्था में भ्रष्टाचार की जड़ें जम चुकी हैं. इसलिए देश से भ्रष्टाचार का खात्मा करने के लिए इसकी जड़ पर चोट करना जरूरी है, क्योंकि गांवों में आज भी आम आदमी पटवारी की अहमियत को देख भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर बोलने के बजाए ले-देकर अपना काम कराने को मजबूर है। जब व्यवस्था की पहली से लगाकर आखिरी सीढ़ी तक हरे-हरे नोटों के लिए अपना मुँह खोलकर बैठी हो, तो कैसे उम्मीद की जाए कि कोई इन भूखे मुँहों को बंद करने का साहस कर सकेगा?
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