हेमंत पाल
परदे की दुनिया बड़ी बेदर्द है! यहाँ पटकथा में भले ही नायक और नायिका के मिलन के साथ सुखद अंत होता हो! पर, असली बॉलीवुड ऐसा नहीं है! परदे पर हँसते और मुस्कुराते चेहरों के पीछे कितना दर्द छुपा होता है, ये डायरेक्टर के 'कट' बोलते ही नजर आने लगता है! यही कारण है कि इस दुनिया में परदे से आउट होते ही ज्यादातर कलाकार गुमनामी के अँधेरे में खो जाते हैं! परदे की दुनिया की ये सच्चाई बरसों से महसूस की जा रही है, और की जाती रहेगी! इसी कड़ी में पिछले दिनों चर्चित टीवी सीरियल 'बालिका वधु' की अभिनेत्री प्रत्युषा बनर्जी ने ख़ुदकुशी कर ली! इसके पीछे प्रेम संबंध की असफलता में कारण तलाशा जा रहा है। जबकि, ये हादसा भी महत्वाकांक्षा उपजी हताशा का नतीजा है। ग्लैमर की इस दुनिया में अभिनेत्रियों के लिए अभिनय के अवसर न मिलना निराशा का सबसे बड़ा कारण होता है! फिर यदि एक बार सफलता का शिखर छूने का मौका मिल जाए तो फिर वास्तविकता की जमीन पर खड़े होना, आसान नहीं होता! यही डिप्रेशन बॉलीवुड का सबसे बड़ा संकट भी है।
प्रत्युषा बनर्जी ने 'बालिका वधु' की सीढ़ियों से लोकप्रियता का शिखर छुआ था! उसकी महत्वाकांक्षा चरम पर थीं! जब वे दर्शकों की आँख का तारा थी, अचानक वे इस सीरियल से अलग हो गईं! इसलिए कि उसे एक बड़े डायरेक्टर ने फिल्म का ऑफर दिया था! प्रत्युषा भी कुछ दिन ख़बरों में रही, फिर कहीं खो गई! ये फिल्म नहीं बनी! फिर छुटपुट रियलिटी शो में काम मिला, पर धीरे-धीरे लोगों ने पहचानना छोड़ दिया! यानी उसे हताशा, निराशा और विरक्ति ने घेर लिया! यही वो वक़्त होता है, जब कलाकार को अपना भविष्य अंधकार में नजर आने लगता है! ऐसे में साथी का मुँह मोड़ना प्रत्युषा को अंदर तक तोड़ गया होगा! लेकिन, ख़ुदकुशी की मूल वजह ब्रेकअप ही होगा, ये दावे से नहीं कहा जा सकता!
इससे पहले 'निःशब्द' जैसी बड़ी फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ करियर शुरू करने वाली अभिनेत्री जिया खान ने फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली थी! तब भी कहा गया नाकाम प्रेम संबंध के कारण उसका दिल टूट गया था! सूरज पंचोली को इसका दोषी माना गया! मामला अदालत में है और अभी वास्तविक कारण सामने नहीं आया है! लेकिन, ये भी सच है कि जिया के पास 'निःशब्द' के बाद कोई फिल्म नहीं थी! हाल ही में 'बीए पास' की अभिनेत्री शिखा जोशी ने भी आत्महत्या कर ली है। शिखा जोशी ने अपनी व्यथा किसी के सामने व्यक्त करते हुए कहा भी था कि उनके पास कोई काम नहीं है! 90 के दशक की मशहूर अभिनेत्री दिव्या भारती को आज भी लोग भूले नहीं हैं। उसने छोटी उम्र में अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया था! यही समझौता एक दिन उनकी मौत का ही कारण बन गया! 19 साल की उम्र में ही दिव्या भारती मौत के साए में सो गईं।
सपनों की नगरी मुंबई में अभिनय में सफल हो पाना आसान नहीं है! छोटे-छोटे रोल पाने के लिए बड़े-बड़े समझौते करने पड़ते है! इसकी कल्पना नहीं की जा सकती! लेकिन, लगातार काम मिल पाएगा और पहचान बन पाएगी, ये सबकी किस्मत में नहीं होता! यदि फिल्मों में काम मिला है तो रिलीज तक रोल बचेगा भी, इस बात की कोई गारंटी नहीं! सीरियलों के मामले में भी यही है! उसके अपने अलग दबाव हैं। फिल्म और टीवी के परदे पर हँसते मुस्कुराते चेहरों के दर्द को पढ़ पाना बहुत मुश्किल हैं! उनके दर्द कुछ ज्यादा ही हैं, जो अपना शहर या क़स्बा छोड़कर इस माया नगरी में अपनी किस्मत के सितारे ढूंढने आते हैं! काम न मिलने का तनाव, स्ट्रगल, मुंबई में रहने का संकट, अकेलापन, आर्थिक परेशानी और ऐसे में समझौते का दबाव! ये सब जीवन में कुछ कर दिखाने और आसमान छू लेने के सपने चकनाचूर कर देते हैं।
कुलजीत रंधावा, सिल्क स्मिता, दिव्या भारती, मॉडल नफीसा जोसफ और विवेका बाबजी, जिया खान के बाद अब प्रत्युषा बैनर्जी ने भी जीवन से हारकर वही रास्ता अपनाया। इन सभी की कहानी में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है! क्योंकि, महत्वाकांक्षा की मौत को कंधे पर उठाना बेहद त्रासद सच है! यहीं से हताशा जन्म लेती है, जो जीवन के प्रति मोह को सबसे पहले ख़त्म करती है। मौत शाश्वत है, ये सत्य है। पंरतु अपनी इच्छा से अपना जीवन का त्याग करना ग़लत है! क्योंकि, ऐसा करते वक़्त लोग अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह फेर रहे होते हैं। किसी एक शख़्स के ऐसा करने से उसके साथ जुड़े लोग भी टूट जाते हैं। इसीलिए अगर हत्या अपराध है तो आत्महत्या उससे भी बड़ा अपराध है!
-----------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment