Friday, April 22, 2016

सुहास से बहुत 'आस' है, मेनन के सताए भाजपाईयों को!


  मध्यप्रदेश की भाजपा राजनीति में पिछले कुछ सालों में प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन का जाना और सुहास भगत का आना सम्भवतः सबसे बड़ा उलटफेर कहा जा सकता है। मेनन के कामकाज से असंतुष्ट और उपेक्षित नेताओं ने अब सुहास भगत से उम्मीदें लगा ली है! उन्हें लग रहा है कि मेनन के कार्यकाल में उन्होंने जो उपेक्षा झेली है, नए प्रदेश संगठन मंत्री से वे पूरी हो जाएंगी! सुहास भगत इन उपेक्षित नेताओं की आशाओं पर कितना खरे उतरते हैं, ये तो वक़्त ही बताएगा! दरअसल, अरविंद मेनन को 'संघ' में मध्यप्रदेश में सत्ता और संग़ठन के बीच अम्पायर बनाकर भेजा था, पर वे खुद ही खेलने लगे! बदले हालातों में कुछ दिनों तक प्रदेश में भाजपा की राजनीति में ख़बरों का कढ़ाव उबलता रहेगा ये तय है!
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हेमंत पाल 
 
   भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश संग़ठन मंत्री का पद महत्वपूर्ण माना जाता है! इस पद पर काबिज नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी 'संघ' की तरफ से भाजपा में भेजा जाता है, जो निरपेक्ष भाव से प्रदेश की सरकार और संगठन में समन्वय का काम करता है। इस पद की भूमिका अम्पायर जैसी होती है! ये बेहद जिम्मेदारी वाला काम होता, इसलिए 'संघ' अपने अनुशासित और तपे हुए प्रचारकों को इस काम में लगाता है। जहाँ तक मध्यप्रदेश की बात है तो इस पद पर कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खंडेलवाल, कप्तान सिंह सोलंकी और माखन सिंह जैसे लोग रहे हैं! इनके फैसलों और कामकाज के तरीकों पर कभी किसी ने ऊँगली उठाने का साहस नहीं किया! लेकिन, ये पहली बार हुआ कि किसी संग़ठन मंत्री (यानी अरविंद मेनन) के फैसलों को शंका की नजर से देखा गया! उनकी उपलब्धियों को किनारे करके 'संघ' ने सरकार और संगठन के कुछ फैसलों पर आपत्ति भी उठाई। शिकायत यह रही कि फैसलों के समय 'संघ' को विश्वास में नहीं लिया गया। इसके अलावा जिन फैसलों पर ऊँगली उठाई गई उनमें प्रशासनिक फेरबदल, जिला अध्यक्षों और निगम मंडलों में नियुक्तियों समेत कुछ मामले थे। सीधी सी बात ये है कि 'संघ' ने जिसे जिसे अम्पायर बनाकर भेजा गया था, वो खुद ही खेल में शामिल हो गया!  
भाजपा में इससे पहले भी संग़ठन मंत्री बदले गए, पर ये कभी बड़ा राजनीतिक मुद्दा नहीं बना! पहली बार देखा गया कि किसी संग़ठन मंत्री को बदले जाने पर ख़बरों का बाजार इतना गर्म रहा और इसे राजनीतिक बदलाव की तरह देखा गया! बात यहीं तक सीमित नहीं रही! आडंबर और दिखावे से दूर रहने वाले 'संघ' ने भी सुहास भगत की लॉंचिंग में कोई कसर नहीं छोड़ी! 'संघ' के बड़े पदाधिकारियों की मौजूदगी में पद ग्रहण समारोह हुआ! राष्ट्रीय संग़ठन महामंत्री रामलाल, प्रदेश संगठन प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे और सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, विक्रम वर्मा समेत कई बड़े नेता इस मौके पर मौजूद थे! ये संकेत इस बात को समझने के लिए काफी है कि अरविंद मेनन को हटाए जाने को 'संघ' भी संदेश की तरह प्रचारित करना चाहता है! 'संघ' इस दंभ को भी चूर करना चाहता है कि कोई अपने आपको 'संघ' से ऊपर न समझे! पद से हटाए जाने के बाद अब मेनन को सभी संभागों में सुहास भगत के साथ दौरे करना होंगे! देखने में यह सामान्य प्रक्रिया है, पर 'संघ' उन्हें ये अहसास भी कराना चाहता कि ताकत सिर्फ पद की होती है, व्यक्ति हमेशा ही गौण होता है!
  फिलहाल भाजपा में सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि 'संघ' का अरविंद मेनन पर से अचानक विश्वास क्यों उठा और सुहास भगत में ऐसी क्या खूबी नजर आई? दरअसल, प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अभी देर है! लेकिन, 'संघ' को मिली जानकारी के मुताबिक पार्टी के अंदर जबरदस्त असंतोष पनप रहा है। साथ ही लोगों का भी भरोसा टूट रहा है! यानी खतरा दोनों तरफ से है! फिर भी अभी देर नहीं हुई! बिगड़े हालात संभाले जा सकते हैं, शायद यही सोचकर ये फैसला किया गया! 'संघ' के मध्यभारत प्रांत प्रचारक सुहास भगत उन सारी आशाओं पर खरे उतरते हैं, जिनकी पार्टी को जरुरत है। मेनन को यदि चुनाव मैनेजमेंट का जादूगर माना गया तो सुहास को भी बेहतरीन संगठक कहा जाता है। राम मंदिर आंदोलन के दौरान 'संघ' से जुड़ने के बाद वे पूर्णकालिक प्रचारक बन गए! कहा जाता है कि वे लक्ष्य के प्रति बेहद गंभीर हैं। जो करना चाहते है, उसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करते हैं। वे पढ़ने की आदत वाले साधारण व्यक्ति हैं! अपनी योग्यता, मेहनत और लक्ष्य के प्रति समर्पण के दम पर ही वे ऊंचाई तक पहुंचे हैं। सुहास भगत की खासियत है कि वे जमीन से जुड़े हैं। उनके कार्यकाल में मध्य भारत इलाके में संघ की शाखाओं का तेजी से विस्तार हुआ! भगत की मेहनत से 'संघ' के अनुषांगिक संगठनों ने भी काफी उन्नति की! ग्रामीण इलाकों में संघ की विचारधारा फलीफूली, कॉलेज छात्रों के लिए 'संघ शिक्षा वर्ग' चला तथा कुटुम्ब प्रबंधन जैसे काम हुए। सुहास प्रदेशभर के संघ कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क और सहज संवाद उनकी परिचित शैली है।
अमूमन जल्दी फैसले लेने वाले 'संघ' ने अरविंद मेनन मामले में देरी जरूर की! लेकिन, जब फैसले की घडी आई तो उनके कामकाज को लेकर 'संघ' पदाधिकारियों के तेवर काफी तीखे रहे! जिला अध्यक्ष पदों और निगम-मंडलों में की गई नियुक्तियों में कुछ नामों को लेकर 'संघ' ने कड़ा एतराज भी उठाया! एतराज दो तरह से था! एक, इन नियुक्तियों के लिए उसे विश्वास में नहीं लिया गया! दूसरा, ऐसे कई लोग पद पाने से वंचित रहे, जिनका पार्टी में जमीनी योगदान नहीं है। इन सभी पदों पर 'अपना आदमीवाद' हावी रहा! 'संघ' ने प्रशासनिक ढीलेपन पर भी अपनी नाराजी बताई! रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव और नगर निकाय चुनाव में भाजपा को मिली नाकामी पर भी सवाल उठाए गए! इन नाकामियों को सरकार की कार्य शैली के नजरिए से देखा गया और कहा गया कि इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा उपजी है। मंत्रियों की कार्य शैली पर टिप्पणी करते हुए कहा गया कि उन्हें कार्यकर्ताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए!
  नए संग़ठन मंत्री सुहास भगत को जिम्मेदारी सौंपने के बाद अब चर्चाएं गर्म है कि संगठन में कैसा, कहाँ और क्या बदलाव होना है! यदि सभी ख़बरों को जोड़ लिया जाए तो ऐसा लग रहा है जैसे सत्ता और संग़ठन में बहुत कुछ बदल जाएगा! जबकि, वास्तव में ऐसा कुछ होना नहीं है! लेकिन, माना जा रहा है कि भारतीय जनता युवा मोर्चा की प्रदेश इकाई में ऊपर से जिला स्तर तक असर आएगा! महिला मोर्चा में भी व्यापक फेरबदल होना तय है। प्रदेश की नई कार्यकारिणी का गठन भी अहम मुद्दा है। ये तय है कि नई कार्यकारिणी में तीन चौथाई नए चेहरे शामिल किए जाएंगे! दो प्रदेश उपाध्यक्ष और एक महामंत्री हटाए जा सकते हैं। दो नए चेहरे प्रदेश महामंत्री पद पर आएंगे। इसके अलावा प्रदेश मंत्री भी बदले जाएंगे। संकेतों को समझा जाए तो आधा दर्जन जिलों के अध्यक्षों को भी बदला जा सकता है। वे जिला अध्यक्ष भी हटाए जा सकते हैं, जो शिकायतों के कारण संगठन मंत्री पद से हटाए गए थे और बाद में जुगाड़ से जिलों के अध्यक्ष बन गए थे। पिछले दिनों सामने आई कुछ शिकायतों के बाद एक बड़ा बदलाव ये हो सकता है कि ऐसे संगठन मंत्रियों को हटाया जाएगा जो विवाहित हैं! अब संभागीय संगठन मंत्रियों की कमान भी 'संघ' प्रचारकों के जिम्मे दे जा सकती है। विवाहितों को इस महत्वपूर्ण पद से दूर रखा जा सकता है! क्योंकि, इस कारण पार्टी का अनुशासन गड़बड़ा रहा है! जिलों में संगठन मंत्री रखने का प्रयोग फेल हो जाने के बाद संभव है संभागों में पूर्णकालिक संगठन मंत्री रखे जाएंगें! 
  मेनन के बाद अब शायद मध्यप्रदेश भाजपा के संग़ठन और सत्ता में पसरी बेचैनी दूर होगी! क्योंकि, चाल, चरित्र और चेहरे से शुचिता का दावा करने वाली मर्यादित पार्टी पर इवेंट मैनेजमेंट, राजनीतिक तोड़फोड़ और साजिशों वाली राजनीति हावी होने लगी थी! अनुशासित 'संघ' ने जिन चेहरों को तराशा था, उनमें खुद के स्वयंभू होने का दंभ हो चला था। अरविंद मेनन को पद से जिस तरह हटाया गया, वो 'संघ' के कड़े फैसलों की शुरुआत का पहला कदम माना जा रहा है। बदलाव की बयार इस बिदाई से शुरू हो चुकी है। बाद में क्या होता ये तो भविष्य बताएगा, फिलहाल तो भाजपा के नए संगठन मंत्री सुहास भगत उम्मीदों के उत्तुंग शिखर पर विराजित हैं। उनके फैसले ही प्रदेश भाजपा की भावी दिशा और दशा तय करेंगे! 
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