Sunday, April 17, 2016

फ़िल्मी विरोध या राजनीति चमकाने की चाह!

- हेमंत पाल 


  शाहरुख खान ने पिछले साल 2 नवंबर को अपने 50वें बर्थडे पर एक चैनल से कहा था कि देश में इन्टाॅलरेंस (असहिष्णुता) बढ़ रहा है। अगर मुझे कहा जाता है, तो प्रतीक स्वरूप मैं भी अवाॅर्ड लौटा सकता हूँ। देश में तेजी से कट्टरता बढ़ी है। 'दिलवाले' की रिलीज होने से पहले शाहरुख ने अपने बयान पर माफी भी मांग ली! लेकिन, तब तक उनके खिलाफ माहौल बन चुका था! 'दिलवाले' का हिंदूवादी संगठनों ने विरोध किया था! संयोग से फिल्म उम्मीद के मुताबिक बिजनेस नहीं कर सकी, तो विरोध करने वालों ने इसे अपनी सफलता समझ लिया! अब इन्हीं हिंदूवादियों ने शाहरुख़ की दो नई फिल्मों 'फैंस' और 'रईस' के खिलाफ भी कमर कस ली! 'दिलवाले' के साथ ही परदे पर उतरी ‘बाजीराव मस्तानी’ का भी विरोध किया गया! कारण बताया गया कि इस फिल्म में संजय लीला भंसाली ने ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की है। 'दिलवाले' तो कमजोर पड़ी, पर 'बाजीराव मस्तानी' सफल रही! 

   ये पहली बार नहीं हुआ, जब किसी अभिनेता को इस तरह निशाने पर लिया गया हो! पहले भी कई अभिनेता अलग-अलग कारणों से अपने चाहने वालों के गुस्से का शिकार बने हैं! लेकिन, हमेशा ही विरोध का कारण पूरी तरह राजनीति से प्रेरित रहा! 1993 में जब संजय दत्त पर मुंबई बमकांड का आरोप लगा तो लोगों का गुस्सा देशभर में रिलीज उनकी फिल्म 'खलनायक' के पोस्टरों पर उतरा! अंततः फिल्म को थिएटर से उतार दिया गया! ऐसे ही आमिर खान ने जब नर्मदा बांध की ऊंचाई बढ़ाने और गुजरात दंगों वाले अपने बयानों को वापस लेने से मना किया, तो उनकी फिल्म 'फ़ना' का विरोध हुआ था! गुजरात के आमिर का विरोध तो 'लगान' की शूटिंग के वक़्त भी हुआ था, जब वन विभाग ने नियमों का हवाला देकर चिंकारा को फिल्माने से मना कर दिया था! इस अभिनेता को तो उनकी फिल्म 'पीके' की वजह से भी कटघरे में खड़ा किया गया! कहा गया कि उन्होंने फिल्म में हिन्दू धर्म को ढोंग बताने की कोशिश की है। इसलिए कि फिल्म  कथानक में एक ढोंगी बाबा का पर्दाफाश किया गया था! इसी तरह का विरोध अक्षय कुमार और परेश रावल की फिल्म 'ओह माय गॉड' के समय भी हुआ था, जिसमें परेश रावल में भूकम्प में गिरी अपनी दुकान का मुआवजा भगवान से मांगते हुए, अदालत का दरवाजा खटखटाया था! अब ये बात अलग है कि परेश आज भाजपा के सांसद हैं!     

  जयपुर साहित्य सम्मेलन के दौरान निर्माता, निर्देशक करण जौहर को भी उनके एक बयान की वजह से नाराजी झेलना पड़ी थी! उन्होंने इस सम्मेलन में कहा था कि देश में अपने मन की बात कहना और अपने निजी जीवन के रहस्य के विषय में बात करना बहुत कठिन है। देश में ‘अभिव्यक्ति स्वतंत्रता’ और ‘लोकतंत्र’ ये दो विषय बडे उपहास अर्थात मजाक बन गए हैं।’ दरअसल, उनकी इस बात को शाहरुख़ के असहिष्णुता वाले बयान से जोड़कर समझा गया! लेकिन, करण जौहर के खिलाफ हवा नहीं बन सकी! देखा जाए तो इन कलाकारों के विरोध के मुद्दों का सवाल है तो उनका कोई मापदंड नहीं है। यहाँ तक कि विरोध करने वाले कार्यकर्ता भी नहीं जानते कि वे जिस फिल्म के पोस्टर फाड़ने जा रहे हैं, उसका कारण क्या है? ये उकसाने वाली प्रवृत्ति का ही नतीजा होता है, कि लोग फ़िल्मी कलाकारों के खिलाफ हाथ पत्थर उठाने में देर नहीं करते! पिछले दिनों बिहार में नौवीं कक्षा की एक किताब में 'बिहार के सिनेमा संसार' अध्याय में  भोजपुरी हीरो मनोज तिवारी की जीवनी पर उंगली उठाई गई! कहा गया कि  मनोज तिवारी की लोकप्रियता द्विअर्थी गीतों को लेकर अधिक है। इसलिए मनोज तिवारी के जीवन से छात्रों को क्या प्रेरणा मिलेगी? इस किताब में मनोज वाजपेयी, शेखर सुमन, शत्रुघ्न सिन्हा व निर्देशक प्रकाश झा के बारे में भी जानकारी दी गई है। वास्तव में विरोध का कारण मनोज तिवारी का भाजपा सांसद होना था।  

 कई बार नेता अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के कारण कलाकारों खिलाफ मैदान में उतरते हैं। शिवसेना ने तो पाकिस्तानी कलाकारों और गायकों के खिलाफ ही आवाज बुलंद कर दी! उन्होंने पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान और माहिरा खान को भी निशाना बनाने की कोशिश की है। पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक गुलाम अली के मुंबई में होने वाले कार्यक्रम को रुकवाकर शिवसेना ने अपने इरादे भी प्रकट कर दिए! शिवसेना के इस कदम का विरोध भी किया गया, पर इन आवाजों में दम नहीं था! हाल ही में एक फिल्म 'अलीगढ़' भी सरफिरे विरोधियों शिकार होने बची है! अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर की जिंदगी पर आधारित फ़िल्म 'अलीगढ़' के खिलाफ विरोध करने का प्रयास किया गया था। उस प्रोफेसर को समलैंगिकता के आधार पर यूनिवर्सिटी से सस्पेंड कर दिया गया था! कुछ समय बाद घर पर उनकी लाश पाई गई थी! प्रोफ़ेसर किरदार निभाने वाले अभिनेता मनोज बाजपेयी ने फिल्म की रिलीज से पहले अपील भी की थी कि कोई भी कार्रवाई फिल्म देखने के बाद की जाए तो बेहतर होगा! क्योंकि, वहां के छात्रों और लोगों को इस फिल्म पर गर्व होगा! वही हुआ भी! मुद्दा यही है कि फिल्म, फिल्मकार और अभिनेताओं के विरोध का कोई ठोस आधार नहीं होता! इस बहाने अपनी राजनीति को चमकाने वाले जरूर कुछ दिन ख़बरों में जिन्दा हो जाते हैं।  

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