- हेमंत पाल
राजनीति में कभी ऐसे प्रसंग भी आते हैं, जब जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को वाचालता की सीमा लांघना पड़ती है! ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने किया! वे भारत माता के मुद्दे खूब बोले! कहा कि 'भारत माता की जय न बोलने वालों को इस देश में रहने का अधिकार नहीं है!' महाराष्ट्र विधानसभा में हंगामे के बाद फड़नवीस ने ये भी कहा कि मुख्यमंत्री पद रहे न रहे, पर भारत माता की जय तो बोलना ही पड़ेगा! भारत माता की जय नहीं बोलेंगे, तो क्या पाकिस्तान की जय या चीन की जय कहेंगे? उन्होंने आरएसएस के सरकार्यवाहक भैयाजी जोशी की बात को ही आगे बढ़ाने की कोशिश की! भैयाजी ने कहा था कि वास्तव में ‘वंदे मातरम’ ही राष्ट्रगान है और भगवा झंडे को राष्ट्रीय ध्वज कहना भी गलत नहीं होगा! फड़नवीस का ये वो रूप है जिसमें लोगों ने उनका नया हिंदूवादी चेहरा देखा! वास्तव में ये आधा सच है! बाकी का आधा सच ये है कि 'संघ' के इशारे पर फड़नवीस ने अपनी सहयोगी 'शिवसेना' को मात देने की चाल चली है!
फड़नवीस मूलतः नागपुर के हैं, जहाँ 'संघ' का मुख्यालय है! इसलिए वे 'संघ' के कुछ ज्यादा करीब हैं। तय है कि उनके खून में भी ललामी से ज्यादा भगवापन होगा! वे भाजपा के पढ़े-लिखे और समझदार नेताओं में गिने जाते हैं। फिर उन्होंने हिन्दुत्व भरा बयान क्यों दिया, ये सहज बात नहीं है! वैसी भी नहीं, जैसा समझा जा रहा है! फड़नवीस ने अतिउत्साह में या हिन्दुत्व को ध्यान में रखकर भी ये पत्ता नहीं फैंका! ये सब 'संघ' की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। महाराष्ट्र सरकार के गठबंधन में अपनी ही सहयोगी पार्टी 'शिवसेना' को ठिकाने लगाने के लिए 'संघ' ने एक चाल चली है। क्योंकि, शिवसेना खुलकर हिंदूवाद का समर्थन करती है! उसे खुद को हिंदूवादी कहने या कहलाने में कोई संकोच नहीं! 'संघ' के इशारे पर भाजपा की विचारधारा भी पूरी तरह हिंदूवादी हो गई है! ऐसे में उसकी आँख में 'शिवसेना' खटकने लगी है। 'संघ' भाजपा को शिवसेना से ज्यादा घोर हिंदूवादी साबित करके उसे हाशिये पर लाना चाहती है! तय है कि फड़नवीस का ये बयान उसी रणनीतिक कोशिश का हिस्सा माना जा सकता है!
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना सरकार में साझेदार हैं! फिर भी दोनों पार्टियों के रिश्तों में तनाव बना हुआ है! सरकार के गठन के वक़्त भी शिवसेना ने भाजपा को जमकर छकाया था! फिर शिवसेना जब सत्ता में शामिल भी हुई, तो अपनी शर्तों पर! सरकार में साझेदार होते हुए भी दोनों पार्टियों में तनाव साफ़ नजर आता है। कुछ दिन पहले हुए नगर निकाय चुनाव के कारण भी दोनों पार्टियों में दूरियाँ बढ़ी! दोनों के उम्मीदवार आमने-सामने आ गए, जिसका फ़ायदा कांग्रेस को मिला! इन सारी घटनाओं से स्पष्ट हो गया कि भाजपा और शिवसेना में ये दिखावे की दोस्ती है, जो ज्यादा दिन नहीं चलेगी! लेकिन, भाजपा के सामने सबसे बड़ा खतरा है शिवसेना का अति हिंदूवाद रवैया! 'संघ' भले ही हिन्दुओं की सबसे बड़ी पैरोकार बने, पर शिवसेना का मुकाबला नहीं कर सकती! इसी खामी को पूरा करने के लिए ही 'संघ' ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को मोर्चे पर लगाया है! शंका इसलिए भी होती है, क्योंकि ये बात भाजपा का एक ही मुख्यमंत्री क्यों बोल रहा है? अन्य राज्यों में जहाँ भाजपा की सरकार है, वहाँ के मुख्यमंत्री खामोश हैं? मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान या राजस्थान की वसुंधरा राजे क्यों नहीं बोली? क्या इससे नहीं लगता कि फड़नवीस ने 'भारत माता बम' सिर्फ शिवसेना को निशाना बनाकर फैंका है?
ये सिर्फ भाजपा में ही नहीं हो रहा! शिवसेना ने भी भाजपा से किनारा करने के लिए कमर कस ली है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी जो इशारा किया, उससे लगने लगा कि दोनों के रिश्ते टूटने की हद तक खींचे हुए हैं। फड़नवीस के बयान के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पिछले विधानसभा चुनाव में हारे शिवसेना उम्मीदवारों की बैठक की! उसमें उद्धव ने साफ़ कहा है कि भाजपा पूरी तरह शिवसेना को खत्म करने की कोशिश में है! इस बैठक में शिवसेना का पूरा निशाना भाजपा थी! बैठक में उद्धव ने भाजपा की आलोचना की और स्पष्ट किया कि अगले चुनाव में शिवसेना अपने दम पर चुनाव लड़ेगी! उन्होंने कार्यकर्ताओं से अभी से काम पर लग जाने की अपील की! उद्धव ने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस के भारत माता वाले बयान का तो जिक्र नहीं किया! पर, अब शिवसेना को भी ये समझ आ गया है कि इस तरह का बयान उन्हें हाशिए पर ला सकता है। जिस अति हिन्दुत्व के दम पर शिवसेना की पहचान बनी थी, उसे अब तक भाजपा चुनौती नहीं दे सकी थी!
ये पहली बार हुआ कि भाजपा के किसी मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यक वोटरों की परवाह न करते हुए इस तरह की बयानबाजी की! इस बयान से निश्चित रूप से भाजपा को दो तरह के फायदे हो सकते हैं! एक तो उन्हें शिवसेना के हाथ से दरकते हिन्दू वोटरों का साथ मिलेगा! दूसरा, शिवसेना को तोड़ने मदद मिलेगी! यही कारण है कि महाराष्ट्र में भाजपा के मुख्यमंत्री को शिवसेना की भाषा बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा! ये भी नहीं कहा जा सकता कि फड़नवीस का ये बयान स्वतः स्फूर्त हो! संभव है कि इस तरह के बयान से पहले कोई रणनीति बनाई गई हो, ताकि विपक्ष हमलों के साथ-साथ शिवसेना के रुख को समझा जा सके!
भाजपा ने काफी लम्बे समय से शिवसेना को उसके दायरे में लाने की तैयारियां शुरू कर दी थी! पिछले साल भी भाजपा ने कहा था कि वो शिवसेना के बयानों को नजरअंदाज करेगी! पार्टी की रणनीति है कि गठबंधन चलाने के लिए फिलहाल यही सबसे सही नीति होगी! भाजपा ने तय कर लिया था कि शिवसेना की और से होने वाले किसी भी हमले और बयानबाजी को नजरअंदाज किया जाएगा! शिवसेना के मुताबिक भाजपा के मंत्री शिवसेना नेताओं को अपमानित करने का काम करते रहते हैं। अहम फैसलों में शिवसेना की राय तक लेने की जरूरत नहीं समझी जाती! करीब 6 महीने से दोनों पार्टियों के बीच युद्ध विराम के हालात थे! लेकिन, ये तूफ़ान से पहले की ही शांति कही जा सकती है, बाद की नहीं! असली और नकली हिंदूवादियों की जंग तो अब होगी! मोर्चे खुल चुके हैं, बयानवीर आमने-सामने आ गए! देखना है कि इस जंग का अंतिम निष्कर्ष क्या निकलता है?
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