Tuesday, January 2, 2018

भाजपा के लिए यक्ष प्रश्न है '75 पार चुनाव से बाहर' फार्मूला!

- हेमंत पाल

  भारतीय जनता पार्टी के बारे में अकसर कहा जाता है कि ये केडरबेस पार्टी हैं, जहाँ सबकुछ निर्धारित नियम-कायदे के मुताबिक होता है। जब पार्टी विपक्ष में थी, बरसों तक यह होता भी रहा! लेकिन, सत्ता की चमक ने पार्टी को भटका और उलझा सा दिया है। 75 साल पार वाले नेताओं को राजनीतिक वानप्रस्थ आश्रम भेजने का फार्मूला ऐसा ही मुद्दा है, जो आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के गले की फाँस बनेगा। एक तरफ तो 75 पार के दो नेताओं बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को मंत्रिमंडल से निकाला गया। जबकि, इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने स्पष्ट कह दिया पार्टी ने ऐसा कोई फैसला नहीं किया है कि 75 पार के नेताओं को चुनाव लड़ने से वंचित रखा जाए! ये ऐसी विरोधाभासी बातें हैं, जो पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से सामने आई! ऐसी स्थिति में अंतिम फैसला क्या होगा, ये असमंजस पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है। क्योंकि, अब उन भाजपा नेताओं की पहचान होने लगी है, जो अपनी उम्र की प्लैटिनम जुबली मनाने के नजदीक हैं। जहाँ से ये जीतते आए हैं, वहाँ विकल्प भी तलाशा जाने लगा है। जबकि, बाबूलाल गौर ने ख़म ठोंककर उसी सीट से फिर चुनाव लड़ने का दावा भी किया था, जहाँ से वे 9 बार जीते हैं। 
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  मध्यप्रदेश में अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन चुनाव में भाजपा के 75 पार उम्र वाले नेताओं को टिकट मिलेंगे या नहीं, ये सवाल अभी भी सवाल ही है! पार्टी ने भी अभी तक इस सवाल का जवाब दबाकर ही रखा है कि इस मामले में क्या नीति अपनाई जाएगी! क्योंकि, पिछले कुछ महीने पहले जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भोपाल आए थे, तब उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि 75 पार के नेताओं को पार्टी टिकट नहीं देगी, ऐसी कोई नीति नहीं बनाई गई! उनके इस बयान के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और उम्रदराज होने के नाते शिवराज मंत्रिमंडल से विदा हुए बाबूलाल गौर की बांछे खिल गई थी। भोपाल की गोविंदपुरा विधानसभा सीट से कई बार चुनाव जीतने वाले गौर की उस पीड़ा को अमित शाह ने दूर कर दिया, जो उनके अनुभव के आगे उम्र की सीमा के चलते छोटा हो गया था। अमित शाह की घोषणा के बाद करीब दो दर्जन नेताओं के फिर सक्रिय होने की उम्मीद जागी है। पार्टी की रणनीति यह है कि 'मिशन-2018' में पार्टी को अनुभवी नेताओं का सहयोग मिले, साथ ही भितरघात का खतरा भी कम हो! लेकिन, जो उलझन खड़ी हो गई है, उसका निराकरण नहीं हो पा रहा! हालांकि, संविधान और क़ानून उम्र के आधार पर ऐसी किसी पाबंदी की बात नहीं करता!
  पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बयान के बाद से बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को हटाने के फैसले पर सवाल उठाने लगे थे! अब, जबकि विधानसभा चुनाव को एक साल भी नहीं बचा, पार्टी को अपना नजरिया स्पष्ट करना पड़ेगा कि वास्तव में 75 पार के नेता चुनाव में उतरेंगे या नहीं! यदि शाह के बयान को नीतिगत निर्णय समझा जाए तो 75 साल से ऊपर के लोगों के चुनाव न लड़ाने की कोई योजना नहीं है। उधर, विवादस्पद बयानबाजी के विख्यात प्रदेश के पार्टी के अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने कहा था कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी की उम्र को लेकर बनाई गई गाइड लाइन को सख्ती से लागू किया जाएगा। जिनकी उम्र 75 साल पूरी हो चुकी है, उन्हें टिकट नहीं मिल पाएगा। यदि वास्तव में ऐसा हुआ तो मौजूदा कई बड़े नेताओं को राजनीतिक वानप्रस्थ की और गमन करना पड़ेगा। लेकिन, पार्टी की कथित रीति-नीति पर ऊँगली उठाने वाले भाजपा के कुछ नेता दबी जुबान से कहते कि पार्टी में अब कोई नैतिकता नहीं बची! अब नियम-कायदे इसलिए गढ़े जाते हैं कि किसे साइड लाइन करना है और किसे लाइन में आगे लाना है।
   प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने कहा था कि इस मुद्दे पर संगठन स्तर पर भले ही कोई गाइड लाइन न हो! लेकिन, मध्यप्रदेश में 75 पार उम्र के नेताओं को मंत्री नही बनाया जाएगा और टिकट भी खास परिस्थितियों में ही दिए जाएंगे। अमित शाह ने चुनाव लड़ने के लिए 75 साल की उम्र का फार्मूला नहीं होने के बयान से प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा नेताओं को सियासत में जैसे संजीवनी मिल गई थी। सियासत के इन उम्रदराज महारथियों को एक बार फिर टिकट ओर मंत्री पद मिलने से उम्मीदें भी बढ़ गई थी। बाबूलाल गौर ओर सरताज सिंह जैसे नेताओं के बयान भी आ गए कि हम चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। अब ये नहीं कहा जा सकता कि टिकट के फार्मूले में राष्ट्रीय अध्यक्ष की बात का वजन होगा या बड़बोले प्रदेश अध्यक्ष का? क्योंकि, प्रदेश भाजपा में लगभग एक दर्जन नेता ऐसे है जो 75 साल की उम्र के आसपास होने के बावजूद राजनीति में सक्रिय रहना चाहते हैं। इनमें आधा दर्जन विधायक और करीब इतने ही सांसद है। इसके अलावा निगम मंडलो के अध्यक्ष भी 75 साल उम्र के करीब है। ये सभी भाजपा नेता अमित शाह के बयान के बाद मान चुके थे, कि अब संगठन उनके टिकट के दावे को नकारेगा नहीं। लेकिन, अभी भी दावे से कहा नहीं जा सकता कि पार्टी का अंतिम फैसला क्या होगा!
    अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में यदि वास्तव में '75 पार चुनाव से बाहर' वाला फार्मूला लागू होता है तो बाबूलाल गौर (88 साल), सरताज सिंह (77 साल), रंजीतसिंह गुणवान (73 साल), रमाकांत तिवारी (76 साल), कुसुम मेहदले (72 पार), जयंत मलैया (70 पार), नागेंद्र सिंह (77 साल), सुमित्रा महाजन (74 साल), लक्ष्मीनारायण यादव (73 साल), मेघराज जैन (74 साल), सत्यनारायण जटिया (71 साल) और कैलाश जोशी (88 साल) को भी चुनाव से बाहर होना पड़ेगा। इस उहापोह के बावजूद मंत्रिमंडल से बाहर किए गए बाबूलाल गौर टिकट के लिए दावेदारी करने में पीछे नहीं हैं। उन्होंने यह भी दावा किया है कि व्यापमं घोटाले के कथित आरोपी लक्ष्मीकांत शर्मा और सेक्स कांड के आरोपी राघवजी भी भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ेंगे।
  यदि भाजपा ने ये फार्मूला लागू करके इन नेताओं को राजनीतिक वानप्रस्थ दे भी दिया, तो इस बात की क्या गारंटी है कि ये नेता अपनी मुखरता को काबू में रखकर ख़ामोशी से घर बैठ जाएंगे? बाबूलाल गौर और सरताज सिंह तो कई बार अपनी मुखरता का अहसास करा भी चुके हैं। बाकी के नेता अभी बोले नहीं हैं, पर वे खामोश रहेंगे, ये कहा नहीं जा सकता! ये भी हो सकता है कि वे खुलकर सामने आ जाएं और चुनाव में भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दें! ये भी संभव है कि खामोश रहकर सेबोटेज करें! संभावना तो इस बात की भी है कि भाजपा की प्रतिद्वंदी पार्टी इस सर-फुटव्वल का अपने तरीके से फ़ायदा लेने की कोशिश करे! निष्कर्ष यही है कि '75 पार चुनाव से बाहर' वाला फार्मूला फिलहाल भाजपा के गले की फाँस बन गया है! इसे नंदकुमार सिंह चौहान जैसे बयानबाजों ने और उलझा दिया! भाजपा संगठन अपने फैसले से पलटता है, तो भी उसकी किरकिरी होना तो तय है! तब ये माना जाएगा कि पार्टी ने 75 पार वाले नेताओं के दबाव के आगे पार्टी को झुकना पड़ा!       
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