Friday, January 12, 2018

कांग्रेस के लिए हालात बेहतर, लेकिन पार्टी अभी तैयार नहीं!

   कांग्रेस इन दिनों उत्साहित है। उसे अहसास हो गया है कि प्रदेश की भाजपा सरकार की जमीन दरक रही है! बढ़ती अफसरशाही और उम्मीदों पर खरा न उतरने से जनता उससे नाराज है। नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं जैसे छोटे चुनाव में भी भाजपा पिछड़ रही है! हाल ही में भाजपा दो विधानसभा उपचुनाव भी हारी है। गुजरात के चुनाव नतीजे भी भाजपा की उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे। मीडिया में ख़बरें भी है कि लोग अब बदलाव चाहते हैं! लेकिन, सामने कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा! लोग कांग्रेस की तरफ आस लगाए हैं, पर कांग्रेस ऐसा कुछ नहीं कर रही, जो लोगों की उम्मीद बँधाए! लोग कांग्रेस को भाजपा के विकल्प के रूप में देख तो रहे हैं, पर कांग्रेस खुद विकल्प बनने को तैयार दिखाई नहीं दे रही! लंबे अरसे से प्रदेश में कांग्रेस सुप्त अवस्था में है! अब जबकि, हालात कांग्रेस की तरफ झुकते दिखाई दे रहे हैं, खुद कांग्रेस अपनी खोल में समाती जा रही है।  

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- हेमंत पाल

   कांग्रेस हाईकमान की लाख कोशिशों के बाद भी कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी ख़त्म नहीं हो रही! ये जानते हुए भी कि जब तक लोगों को कांग्रेस एक नहीं दिखाई देगी, किसी बेहतर नतीजे की उम्मीद नहीं की जा सकती! कांग्रेस के नेताओं के पास जब कोई काम नहीं होता, तो वे गुटबाजी का खेल खेलने लगते हैं। लेकिन, फिलहाल पार्टी को खुलकर सामने आना चाहिए, तो वो फिर उसी राह पर है। 'मिशन 2018' के लिए पार्टी किसी भी मोर्चे पर गंभीर दिखाई नहीं दे रही! अभी तक यही तय नहीं है कि पार्टी किस चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ने का मन बना भी रही है या नहीं! कुछ दिनों पहले हलचल सुनाई दी थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को शिवराजसिंह चौहान के मुकाबले में सामने रखकर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी, पर पार्टी के नए प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया ने इस संभावना को नकार दिया! उन्होंने कहा कि पार्टी किसी को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाएगी! लेकिन, ये कांग्रेस का अतिआत्मविश्वास ही आत्मघाती ही साबित होगा!
   कांग्रेस की गुटबाजी का संदेश जनता के बीच तो दो दशकों से पहुंच रहा है। राहुल गाँधी के हाथ में पार्टी की कमान आने के बाद लगा कि कुछ बदलाव आएगा, लेकिन अब वो उम्मीद भी धूमिल हो गई! ये भी तय हो गया कि गुटबाजी का दौर अभी ख़त्म नहीं हुआ है। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर प्रदेश में लम्बे समय से माहौल गरमाया जा रहा है। उनके नाम उछलने के पीछे निश्चित रूप से हाईकमान की सहमति भी होगी। इन नेताओं की सक्रियता के बीच ऐसे नजारे भी दिखे, जो संकेत दे रहे थे कि पार्टी अगले विधानसभा चुनाव को लेकर कमर कस चुकी है, पर जिस तरह से समय निकल रहा है, हालात ठीक दिखाई नहीं दे रहे! भाजपा सत्ता में रहते हुए भी 'मिशन 2018' के लिए कमर कस चुकी है, पर कांग्रेस अभी भी चुप है! अभी भी कांग्रेस के गुटों में बंटने का जो संदेश लोगों के बीच जा रहा है, वह अच्छा नहीं है। इन्हीं हालातों की वजह से जनता बार-बार कांग्रेस को नकारती आ रही है। यदि इस बार भी कांग्रेस नहीं संभली, तो उसे फिर उसी मोड़ पर खड़े होने को मजबूर होना पड़ेगा, जहाँ वो 2003 में थी! 
   अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस 'मिशन-2018' के लिए किसी नए चेहरे को आगे बढ़ा सकती है। इस लिस्ट में ज्योतिरादित्य सिंधिया को सबसे ऊपर देखा जा रहा था। उनमें वो स्पार्क भी है, जिसकी आज कांग्रेस को जरुरत है! लेकिन, उनके आने से कई कांग्रेसियों का भविष्य अंधकार में चला जाएगा, इसलिए उन्हें बार-बार पीछे किया जा रहा है। प्रदेश के युवा विधायकों व कुछ चुनिंदा युवा पदाधिकारियों के साथ राहुल गांधी ने इस बारे में मंत्रणा भी की! पर, लगता नहीं कि इससे कुछ होगा! अभी भी प्रदेश की राजनीति बहुत कुछ ज्योतिरादित्य के इर्द-गिर्द ही घूमती है। कभी उनका विरोध उनको ख़बरों में बनाए रखता है, कभी उनके समर्थक उनकी हवा बनाने में सफल हो जाते हैं। यदि उन्हें आगे किया जाता है, तो निश्चित ही अच्छे नतीजों की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन, पार्टी अभी भी किस सोच में है, समझ नहीं आ रहा! पिछले करीब 8 महीने से ज्योतिरादित्य का नाम चल रहा है, पर फैसले जैसी कोई घड़ी अभी तक सामने नहीं आई!   
  मध्यप्रदेश में भाजपा लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीतकर में है। 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा को मतदाताओं ने दो तिहाई से ज्यादा बहुमत देकर सत्ता में बैठाया था। उसके बाद कुछ समय के लिए बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने! उसके बाद से शिवराजसिंह चौहान प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में काबिज हैं। भाजपा ने तीनों विधानसभा चुनाव अपने बलबूते पर कम और कांग्रेस के नाकारापन के कारण ही जीते! अब भाजपा सरकार भी लोगों की उम्मीदें उस सक्षमता से पूरी नहीं कर पा रही है, जितनी कि आस थी! ऐसे में कांग्रेस भी भाग्य भरोसे छींका टूटने का रास्ता देख रही है! कांग्रेस खुद कोई मेहनत नहीं कर रही, बल्कि भाजपा के कमजोर होने का ही रास्ता देख रही है। आज कांग्रेस के पास न तो कोई कार्यक्रम है न भविष्य को लेकर कोई योजना! राजनीति के नाम पर सरकार और मुख्यमंत्री के विरोध और प्रदर्शन से ज्यादा कुछ नहीं किया जा रहा! पूरी पार्टी प्रवक्ताओं की बयानबाजी तक ही सीमित है। चुनाव के मुहाने पर आकर भी यदि अब कांग्रेस नहीं संभली, तो उसे एक और हार के लिए तैयार हो जाना चाहिए! इसलिए कि चुनाव के 8 महीने पहले भी कांग्रेस चिर-निंद्रा में ही है, जैसी पिछले 14 साल से है। 
  कांग्रेस ने 2014 में अरुण यादव को कांग्रेस की कमान सौंपी थी! क्योंकि, तब हार से आहत होकर कोई भी इस जिम्मेदारी को सँभालने को तैयार नहीं था! पिछले विधानसभा चुनाव के बाद तो कांग्रेस को किसी बड़े करिश्में की उम्मीद भी नहीं थी। मोदी-लहर ने पूरे देश में कांग्रेस को जबरदस्त पटकनी दी थी! लोकसभा चुनाव में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही बड़ी मुश्किल से अपनी सीट बचा पाए थे। अरुण यादव को भी खंडवा सीट से हार का मुँह देखना पड़ा था। सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस इस गुटबाजी से कभी मुक्त होगा? क्या सभी नेता मिलकर 'मिशन-2018' को लेकर निर्गुट राजनीति का एक उदाहरण पेश करने का मन नहीं बना पा रहे? 'मिशन-2018' से पहले मुख्यमंत्री पद का चेहरा और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर चल रही जोर-आजमाइश कुछ ऐसे ही सवाल खड़े कर रही है। 
  सच ये भी है कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास कोई अलादीन का चिराग नहीं है कि उनके आने से कोई चमत्कार होगा? इतनी हारों के बाद भी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के कंधों पर यह भार नहीं है कि सभी साथ बैठकर प्रदेश में कांग्रेस की दुर्दशा पर विचार करें। साथ ही जनता के बीच गुटबाजी में बंटी कांग्रेस के मिथक को मिटाकर मजबूत कांग्रेस का भरोसा दिलाएं। लगता नहीं कि इन नेताओं ने कभी प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा पर गंभीरता से विचार किया होगा? ये जानने की कोशिश भी नहीं की होगी कि कांग्रेस की ब्लॉक, जिला इकाईयां गुटबाजी में बंटी कांग्रेस का संदेश क्यों दे रही हैं। मैदानी स्तर पर ये इकाईयां भाजपा संगठन के सामने कहां खड़ी हैं? 
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