- हेमंत पाल
फिल्मों में आज संगीत की अपनी पकड़ है। फिल्म चले न चले संगीत बेचकर भी निर्माता मोटी कमाई कर लेते हैं अब वो जमाना भी गया जब गायकों में लता मंगेशकर, किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी की मोनोपॉली चलती थी! अब हर फिल्म के साथ एक नया गायक जन्म लेता है। लेकिन, एक दौर ऐसा भी था जब फिल्मों में लाइव गीतगाये जाते थे। लोग भले ही बोलती फिल्मों की शुरुआत आलम आरा (1931) को मानते हों, पर इसी फिल्म ने हिंदी सिनेमा को उसका पहला फिल्मी गीत भी दिया! इसफिल्म में सात गाने थे और पहले गीत के बोल थे 'दे दे खुदा के नाम पे जिसे वजीर मोहम्मद खान ने गाया था। इस गीत को हिंदुस्तानी सिनेमा के इतिहास में का पहलाफिल्म गीत कहा जाता है। लेकिन, कोई नहीं जानता कि इस गीत को लिखा किसने था!
इस फिल्म का संगीत फिरोजशाह मिस्त्री ने दिया था। फिल्म में इस गीत को फकीर की भूमिका निभाने और गाने वाले वजीर मोहम्मद खान पर फिल्माया गया था। तब 29 साल के इस एक्टर ने बूढ़े फकीर की भूमिका निभाई थी और गीत को लाइव रिकॉर्ड किया गया था। किन्तु, आज ये गीत देखा नहीं जा सकता, क्योंकि 'आलम आरा' फिल्मका कोई प्रिंट ही उपलब्ध नहीं है! पर, वजीर मोहम्मद खान को यही किरदार निभाते और यही गीत गाते हुए बाद में दो बार बनी इसी फिल्म में देखा जा सकता हैं। आजकई पुरानी फिल्मों के गानों को नए तरीके से संगीतबद्ध करके फिल्माया जाता है! देखा जाए तो ये परंपरा तो बरसों पुरानी है!
'आलम आरा' से को लेकर एक दिलचस्प तथ्य यह भी रहा है कि इसे बाद में दो बार फिर बनाया गया! एक बार 1956 में और दूसरी बार 1973 में! दोनों ही बार इसमें नएकलाकार, निर्देशक व संगीतकार थे। लेकिन, फकीर का किरदार वजीर मोहम्मद ने ही निभाया! दूसरी बार बनी 'आलम आरा' में पहली वाली के बनने के 25 साल बादबानी थी। तीसरी बार जब 'आलम आरा' बनी तो वजीर मोहम्मद 70 के थे। बाद में बनी दोनों 'आलम आरा' फिल्मों में भी वजीर मोहम्मद पहली फिल्म की ही तरह फकीरके किरदार में नायिका के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। वे भीख मांगते वक़्त वही गीत गुनगुनाते हैं, जो पहली वाली 'आलम आरा' में उन्होंने गया था।
उस समय भारतीय फिल्मों में पार्श्व गायन शुरु नहीं हुआ था, इसलिए इस गीत को हारमोनियम और तबले के संगीत की संगत के साथ सजीव रिकॉर्ड किया गया था। यहसिर्फ एक सवाक फिल्म नहीं थी, बल्कि यह बोलने और गाने वाली फिल्म थी जिसमें बोलना कम और गाना अधिक था। इस फिल्म में कई गीत थे और इसने फिल्मों में गानेके द्वारा कहानी को कहे जाने या बढा़ए जाने की परम्परा का सूत्रपात किया था। फिल्म के निर्देशक अर्देशिर ईरानी ने साउंड रिकॉर्डिंग का काम भी खुद ही संभाला था।फिल्म का छायांकन सिंगल कैमरे से किया गया था, जो ध्वनि को सीधे फिल्म पर दर्ज करते थे।
उस समय साउंडप्रूफ स्टूडियो उपलब्ध नहीं थे, इसलिए दिन के शोर-शराबे से बचने के लिए इसकी ज्यादातर शूटिंग रात में की गई थी। शूटिंग के समय एक्टर्स के पासमाइक्रोफ़ोन छुपाकर रखा जाता था। 'आलम आरा' एक राजकुमार और बंजारन लड़की की प्रेम कथा थी। जिसे जोसफ डेविड ने लिखा था जो पारसी नाटक पर आधारितथी। जोसफ डेविड ने बाद में ईरानी की फिल्म कंपनी में लेखक का काम किया था। फिल्म की कहानी कुमारपुर नगर के शाही परिवार पर आधारित थी। अर्देशिर ने यह फिल्म अंग्रेज़ी फिल्म 'शो बोट' को देखकर बनाई थी।
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