Monday, January 29, 2018

भाजपा से कुछ कहते हैं, नगर निकाय चुनाव के ये नतीजे!

    मध्य प्रदेश में भाजपा का जनाधार दलित और आदिवासियों के बीच घटा है! अभी तक ये सिर्फ कहा ही जा रहा था, पर हाल में आदिवासी इलाकों में हुए नगर निकाय चुनाव में भाजपा जिस तरह पिछड़ी है, ये साबित भी हो गया! इस बात को संघ ज्यादा बेहतर ढंग से समझ रहा है। यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से संघ की इस मामले में सक्रियता बढ़ी है। संघ का पूरा फोकस दलित एवं आदिवासियों पर है। संघ का मानना भी है कि जब तक दलित और आदिवासियों को पार्टी से नहीं जोड़ा जाता, भाजपा के जनाधार को मजबूत करना मुश्किल है। आदिवासियों और दलितों में आज भी कांग्रेस की जड़ें अंदर तक है। प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होना हैं, जिसमें आदिवासी और दलित वोटर्स को नजरअंदाज करना भाजपा को महंगा पड़ेगा। इस नजरिए से निकाय चुनाव के ये नतीजे भाजपा से कुछ कहते हैं, बशर्ते भाजपा इस मूक संदेश को समझे!
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हेमंत पाल

  राजनीति के मामले में भाजपा का जवाब नहीं! अपनी हार में भी जीत खोज लेना और फिर उसी का जश्न मनाकर झूम लेना, कोई भाजपा से सीखे! फिलहाल निकाय चुनाव में भाजपा पिछड़कर भी संतुष्टि का भाव दिखा रही है। कभी वो कांग्रेस से बराबरी पर आने पर ख़ुशी व्यक्त करती है कभी 43%-43% वोट की बराबरी करके! इन चुनाव में वोटों का प्रतिशत कुछ भी हो, पर इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि भाजपा इन चुनावों में पिछड़ी है। तीन विधानसभा चुनाव जीतकर भाजपा मध्यप्रदेश में राज कर रही है। लेकिन, इस बार पार्टी की हालत कुछ पतली है। क्योंकि, पहले कुछ विधानसभा उपचुनाव में पार्टी को हार का मुँह देखना पड़ा, अब नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा को मायूसी ही हाथ लगी! सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस दोनों को 9-9 स्थानों पर जीत मिली! जबकि, अनूपपुर की जैतहरी नगर परिषद निर्दलीय और भाजपा की बागी उम्मीदवार के खाते में गई। भाजपा और कांग्रेस मुकाबला भले बराबरी पर छूटा हो, पर हार तो भाजपा की ही हुई! इसलिए कि भाजपा जिस 'कांग्रेस मुक्त भारत' का सपना देख रही थी, वही कांग्रेस उसे चुनौती देती नजर आ रही है।
   सामान्यतः बड़े चुनाव से जनता का नजरिया ज्यादा बेहतर ढंग से समझ में नहीं आता! छोटे चुनाव ही जनता की नब्ज का सही संकेत देते हैं! भाजपा ने इस हार को दिखावे के लिए हल्के में लिया हो, पर वास्तव में इन नतीजों की गंभीरता से पार्टी वाकिफ है। इसलिए कि निकाय चुनाव के ये नतीजे प्रदेश के वोटर्स का मूड बताते हैं! प्रदेश का राजनीतिक भविष्य भांपने के लिए भी ये चुनाव नतीजे बहुत कुछ कहते हैं! ये बात इसलिए कि भाजपा ने इन चुनावों में मुख्यमंत्री समेत प्रदेश के पार्टी पदाधिकारियों को भी मोर्चे पर लगाया था। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि नतीजे इतना उलट जाएंगे! भाजपा अपने कमजोर प्रदर्शन के लिए कई कारण गिना रही है। जबकि, कांग्रेस का निष्कर्ष है कि ये भाजपा सरकार की असफलता पर जनता का फैसला है! 
  नगर निकाय चुनाव के ये नतीजे मरती हुई कांग्रेस को संजीवनी मिलने जैसे हैं। लेकिन, भाजपा सरकार खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी जैसा माहौल दिखाई देने के बावजूद कांग्रेस में गुटबाजी कम नहीं हो रही! राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बन जाने के बाद भी अभी तक ये साफ़ नहीं हो रहा कि चुनाव की कमान किसके हाथ में रहेगी? अरुण यादव ही प्रदेश में पार्टी के खेवनहार बने रहेंगे या उनकी जगह कोई नया चेहरा आएगा! इस बात पर भी मतभेद हो सकते हैं कि ये भाजपा की हार है या कांग्रेस की जीत? इसलिए बेहतर हो कि कांग्रेस नगर निकाय चुनाव में मिली जीत को अपनी जीत की तरह न देखे, बल्कि ये भाजपा की हार है। प्रदेश में भाजपा के गिरते ग्राफ को कांग्रेस इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में कितना भुना पाएगी, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा! लेकिन, कांग्रेस यदि वास्तव में विधानसभा चुनाव में कोई चुनौती बनना चाहती है तो उसे सत्ता का विकल्प बनकर वोटर्स के सामने आना पड़ेगा!
  विधानसभा चुनाव से पहले कोलारस और मुंगावली में होने वाले दो विधानसभा उपचुनाव को भाजपा की राजनीतिक नब्ज टटोलने वाला संकेत समझा जा रहा है। ये दोनों स्थान कांग्रेस विधायक महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा और रामसिंह यादव के निधन से खाली हुई हैं। ये दोनों सीटें कांग्रेस ने 2013 में मोदी की प्रचंड लहर में जीतीं थी! प्रदेश में भाजपा के लहलहाते समंदर में कांग्रेस के जो चंद टापू बचे थे, ये दोनों सीटें उनमें से थीं। अब जबकि, हर तरह की आँधी और लहर ठंडी पड़ चुकी है, यहाँ कांग्रेस की स्थिति बेहतर मानी-जानी चाहिए। ये इलाका ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाला है, इसलिए ये सीटें जीतना उनकी भी साख का सवाल है। यही कारण है कि वे इस उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले से इन दोनों इलाकों में सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। भाजपा कोलारस और मुंगावली में अपनी स्थिति को समझ रही है, यही कारण है कि उसके जीत के दावों में दम दिखाई नहीं दे रहा!       
  हाल ही में प्रदेश में 19 स्थानों पर नगर निकाय चुनाव हुए। भाजपा ने सेंधवा, पीथमपुर, नगर पालिका परिषद और ओंकारेश्वर, पलसूद, पानसेमल, कुक्षी, डही और धामनोद नगर परिषद सीट पर कब्जा किया। वहीं कांग्रेस ने धार, राघौगढ़ व नगर पालिका परिषद और अंजड़, खेतिया, धरमपुरी, राजगढ़, सरदारपुर नगर परिषद पर जीत दर्ज की। अनूपपुर की जैतहरी नगर परिषद सीट पर निर्दलीय नवरत्नी शुक्ला विजयी हुए। नगर निकाय चुनाव में सबसे दिलचस्प नतीजे धार जिले के रहे, जहाँ 9 में से 5 पर कांग्रेस के नगर अध्यक्ष जीते और 4 पर भाजपा के! यहाँ चार भाजपा शासित विधानसभा सीटों के मुख्यालयों पर ही भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ा! धार से नीना वर्मा, धरमपुरी से कालूसिंह ठाकुर, मनावर से रंजना बघेल और सरदारपुर से वेलसिंह भूरिया भाजपा विधायक है। कुक्षी में कांग्रेस के विधायक हनी बघेल के होते हुए जरूर भाजपा का अध्यक्ष पद उम्मीदवार विजयी रहा! वो भी इसलिए कि यहाँ से मनावर विधायक रंजना बघेल ने अपने पति मुकाम सिंह को खड़ा किया था और मनावर छोड़कर सारा जोर यहीं लगाया!
  धार सहित मनावर, राजगढ़, सरदारपुर, धरमपुरी सभी में कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी। वहीं भाजपा ने पीथमपुर सहित डही, कुक्षी, धामनोद में सत्ता पर कब्जा किया। धार में भाजपा की लुटिया तो एक बागी उम्मीदवार अशोक जैन ने ही डुबो दी! ये बगावत ऐसी भी नहीं थी, जिसे रोका नहीं जा सकता था, लेकिन इसके लिए पर्याप्त प्रयास नहीं हुए! जबकि, स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि इस बगावत से भाजपा को बड़ा नुकसान होगा! भाजपा के लिए चिंता की बात इसलिए भी है कि इन निकाय चुनाव में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी, फिर भी नतीजे उम्मीद  मुताबिक नहीं रहे! इन चुनावों में कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने प्रचार नहीं किया, जबकि मुख्यमंत्री ने अधिकांश चुनाव क्षेत्रों में रोड शो तक किए, पर वे भी वोटर्स को लुभा नहीं सके! सरदारपुर में अपनी ही ड्यूटी में लगे एक जवान को धकेलकर उन्होंने नया विवाद जरूर खड़ा कर लिया। 
   इन चुनाव को छोटा या स्थानीय बताकर भाजपा हार की अनदेखी नहीं कर सकती! चुनाव छोटे जरूर थे, मगर इससे संकेत मिलता है कि प्रदेश में भाजपा की जमीनी हकीकत बदल रही है। पार्टी की पकड़ में अब वो कसावट नहीं रही, जिसके दावे किए जाते हैं। इन नतीजों से अगले विधानसभा चुनाव को भांपना तो अभी जल्दबाजी होगी! मगर ये सरकार में बैठे नुमाइंदों को झकझोरने के लिए काफी है कि अब संभलने का वक़्त है! घोषणाओं से लोगों को ज्यादा दिन तक भरमाया नहीं जा सकता! लोग अब जमीन पर उन घोषणाओं की हकीकत देखना चाहते हैं! दरअसल, ये चुनाव भाजपा की पकड़ ढीला हो ने का इशारा तो हैं ही, सरकार को सजग होने की भी सलाह है। लेकिन, इन चुनाव से कांग्रेस का उत्साह जरूर दोगुना हुआ है।
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