Friday, February 2, 2018

कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व बनाम दिग्विजय की नर्मदा परिक्रमा!


- हेमंत पाल 

  इसी साल के अंत में मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार कई ऐसे प्रयोग होंगे, जिनसे राजनीतिक पार्टियां बचती आई हैं। उन्हीं में से एक है प्रदेश में कांग्रेस के सॉफ्ट-हिंदुत्व का पदार्पण! अभी तक देश और प्रदेश में कांग्रेस की पहचान धर्म निरपेक्ष पार्टी की रही है। इसे राजनीतिक मज़बूरी कहीं या रणनीति लेकिन, कांग्रेस को इससे नुकसान ही हुआ! इसका फ़ायदा भाजपा ने उठाया और अपनी हिंदूवादी पहचान को पुख्ता बनाकर कांग्रेस को हर मोर्चे पर पीछे धकेल दिया। गुजरात विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता का एक कारण राहुल गाँधी का मंदिरों में माथा टेकना भी माना जा रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस अपने सॉफ्ट-हिंदुत्व को जारी रखेगी! देखा जाए तो दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा भी यही संकेत देती है। सोशल मीडिया पर भी दिग्विजय सिंह मंदिरों वाले प्रसंग को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है। आशय यही कि अल्पसंख्यकों के पैरोकार को भी कि यदि मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी करना है तो देवी-देवताओं को पूजना पड़ेगा! उधर, कांग्रेस की इस रणनीति को भांपकर संघ ने भी चुनाव की बिसात पर नए सिरे से गोट जमाना शुरू कर दिया है। 
0000000      

   गुजरात चुनाव के नतीजों के बाद मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सक्रियता बढ़ती दिखाई दे रही है। उन्हें सबसे बड़ा खतरा कांग्रेस की बदली विचारधारा से भी होने का अंदेशा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत भी प्रदेश में लगातार बैठकें करके प्रदेश की राजनीतिक तासीर भांप रहे हैं। संघ का फोकस भले ही दलित एवं आदिवासियों को भाजपा के झंडे तले लाना हो, पर असल चिंता कांग्रेस के सॉफ्ट-हिंदुत्व को लेकर भी है। संघ और भाजपा की इस रणनीति को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सॉफ्ट-हिंदुत्व के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के मंदिरों पर माथा टेकने से भाजपा को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ा! संघ और भाजपा दोनों ही इस बात पर एकमत नजर आ रहे हैं कि राहुल गाँधी से उनका अगला मुकाबला मध्यप्रदेश में इसी अंदाज में होगा। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा के चुनाव मध्यप्रदेश के साथ ही होंगे। यदि मध्यप्रदेश में गुजरात जैसा प्रयोग किया गया, जिसकी पूरी संभावना है तो भाजपा को ज्यादा सावधान रहना होगा। दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा से भी इस धारणा को मजबूती मिली है कि अब कांग्रेस के लिए हिंदुत्व अस्पृश्य विषय नहीं रहा!
   शिवराज सरकार की चिंता का एक बड़ा कारण अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग का भाजपा से मोहभंग होना है। हाल ही में आदिवासी इलाकों में हुए नगर निकाय चुनाव में भाजपा को नुकसान हुआ है। यदि कांग्रेस ने इसमें सॉफ्ट-हिंदुत्व का तड़का लगा दिया तो नुकसान बड़ा हो सकता है। क्योंकि, प्रदेश में इन वर्गों के लिए 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। इसीलिए प्रदेश में राहुल गांधी के सॉफ्ट-हिन्दुत्व से मुकाबले के लिए संघ और भाजपा दो मोर्चों पर एक साथ काम कर रही है। सामाजिक समरसता के जरिए जहां पार्टी कमजोर वर्ग को लुभाने की कोशिश कर रही हैं, वहीं धार्मिक आयोजनों के जरिए हिंदुत्व का रंग लोगों पर चढ़ाया जा रहा है। प्रदेश में एकात्म यात्रा निकाली गए और उज्जैन में शैव-महोत्सव आयोजित किया गया। अब भाजपा हर तीज-त्यौहार को उत्सव की तरह मनाने की तैयारी कर रही है। इस बार संक्रांति पर 'तिल-गुड़' फंडा इसी कड़ी का हिस्सा है। जबकि, ये परम्परा महाराष्ट्र में मकर संक्रांति पर महिलाओं में प्रचलित है।
  दिग्विजय सिंह ने नर्मदा परिक्रमा अपने शंकराचार्य गुरू के आशीर्वाद से की है। इस परिक्रमा का सीधा सा मतलब है कि वे उस हिंदुत्व की तरफ झुक रहे हैं, जिससे अभी तक कांग्रेस बचती आई है। उन्होंने इस परिक्रमा को पूरी तरह धार्मिक और आध्यात्मिक कहा भी है। दिग्विजय सिंह कितनी भी सैक्यूलर पॉलिटिक्स करें, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर वे बेहद धार्मिक और आस्थावान हैं। कहने वालों का तो ये भी इशारा है कि कांग्रेस जिस सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ रही है, ये यात्रा उसी संदर्भ में हैं। आमतौर पर उन्हें मुस्लिम हितों के रक्षक और मुस्लिम नेता माने जाने वाले नेता माना जाता है। नर्मदा परिक्रमा के दौरान रास्ते के हर मंदिर में माथा टेकना ये सब कांग्रेस की बदलती भविष्य की रणनीति का ही संकेत है। गुजरात में राहुल गाँधी का मंदिरों में जाना और दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा के अलावा भी कई घटनाएं हैं जो कांग्रेस की आत्मा में हिंदुत्व के प्रवेश का संकेत देती हैं। चित्रकूट उपचुनाव में कांग्रेस की जीत से उत्साहित कांग्रेसियों ने 'जय श्रीराम' के नारे लगाए थे। इस उपचुनाव में कांग्रेस के  नीलांशु चतुर्वेदी ने भाजपा उम्मीदवार को हराया था। इस जीत से उत्साहित कांग्रेस कार्यकर्ता जीत की घोषणा होते ही प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर इकट्ठा हुआ और अपनी तासीर से हटकर जय जय सियाराम के नारे लगाते हुए नजर आए थे। 
 गुजरात में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में मिली सफलता का श्रेय राहुल गाँधी की मंदिर परिक्रमा को दिया रहा है। क्योंकि, अभी तक कांग्रेस का रवैया धर्मनिरपेक्षता का झंडा लेकर चलने का रहा है, जिसका भाजपा ने फ़ायदा उठाया! लेकिन, गुजरात में कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व से जो नतीजा सामने आया, उससे कांग्रेस का भी उत्साह बढ़ा है। माना जा रहा है अब कांग्रेस बदल रही है या फिर ये उसकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है? मोदी के उभार के बाद से कांग्रेस हिंदुत्व के मुद्दे पर रक्षात्मक खेल खेलने लगी थी! इससे उसका नुकसान ही ज्यादा हुआ। जबकि, कांग्रेस को हमेशा ही हिंदुओं की पार्टी माना गया है। 1984 के सिख दंगों के बाद उभरे हिंदुत्व का सारा फायदा कांग्रेस ने ही उठाया था। राजीव गांधी और उसके बाद नरसिंहराव ने राम जन्ममूमि को लेकर जो फैसले किए वो भी पार्टी का सॉफ्ट-हिंदुत्व ही था, किंतु पार्टी ने इस पर धर्म निरपेक्षता का मुलम्मा चढ़ाकर अपनी हिंदूवादी छवि को बचाने का ही प्रयास किया था। पर, मोदी फैक्टर और भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व ने कांग्रेस को झुकने पर मजबूर कर दिया! इसे शायद समय रहते अब राहुल ने समझा है और नतीजा सामने है।
  राहुल गाँधी ने पहले उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश, फिर गुजरात विधानसभा चुनाव में मंदिर जाने को एक चौंकाने वाली घटना माना गया। सिर्फ यहीं नहीं, संसद में तीन तलाक बिल पर कांग्रेस के बदले रुख से भी यही सब जाहिर हुआ! पार्टी ने 30 साल पुराने शाहबानो मामले में अपनाए नजरिये को छोड़कर इस बिल को बिना किसी विरोध के पास हो जाने दिया। कुछ विशेषज्ञों की राय है कि अपने इन कदमों के जरिए कांग्रेस ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की तरफ झुक रही है। लेकिन, कांग्रेस के 132 साल पुराने इतिहास को समझने वाले जानते हैं कि कांग्रेस के लिए एक साथ धार्मिक और सेक्युलर होना सामान्य बात रही है। आने वाले चुनाव में यदि कांग्रेस दिल खोलकर इस रास्ते पर चल पड़ती है, तो इसे पलटी मारना नहीं, बल्कि अपनी मूल धारा में लौट आना ही माना जाएगा।
  कांग्रेस ने उत्तराखंड में चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत के लिए भी ऋषिकेश को चुना था। उस समय भी कहा गया था कि कांग्रेस एक बार फिर सॉफ्ट हिंदुत्व की लाइन पर लौटने लगी है। कांग्रेस के भीतर लंबे समय से इस बात पर गहन मंथन भी चल रहा है। पिछले कुछ सालों से पार्टी नेता इस बात से भी कतराते रहे हैं कि हिंदुओं के धार्मिक कार्यक्रमों और पूजा-पाठ से संबंधित चित्र में वे खुद न दिखें, जबकि पुरानी कांग्रेस की छवि धर्मनिरपेक्ष वाली रही है। लेकिन, अब कहा जा रहा है कि गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस का नया जन्म हुआ है। क्योंकि, यहाँ कांग्रेस ने सॉफ्ट-हिंदुत्व की रणनीति को अपनाया और गुजरात के एक बड़े वोट बैंक को अपने पाले में लाने में कामयाबी हांसिल की! प्रचार के दौरान राहुल गाँधी ने 85 दिन में 27 मंदिरों में सर झुकाया! उनके मंदिर जाने को लेकर भाजपा ने कई बवाल भी खड़े किए! उनके हिंदू होने पर भी सवाल उठाए गए! विवाद इतना बढ़ा की जनेऊ तक पर बात आ गई! लेकिन, राहुल गांधी ने सॉफ्ट-हिंदुत्व की राह को नहीं छोड़ा और लगातार मंदिर दर्शन करते रहे!
 मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गाँधी के सॉफ्ट-हिंदुत्व को दिग्विजय सिंह का भी साथ मिलेगा जो ताजा-ताजा नर्मदा परिक्रमा के बाद भाजपा पर हमलावर की मुद्रा में होंगे। इस परिक्रमा से उनकी मुस्लिम समर्थक वाली पहचान भी काफी हद तक धुल गई है! सोशल मीडिया पर रोजाना दिग्विजय सिंह के जोड़े समेत नर्मदा आरती के चित्रों से लोगों के बीच उनकी नई छवि बनी है, जो निश्चित रूप से हिंदूवादी की न सही पर हिन्दू समर्थक की तो है। ऐसे में भाजपा के लिए नया संकट खड़ा हो जाएगा! क्योंकि, भाजपा के पास कांग्रेस के खिलाफ बोलने के लिए कुछ नहीं बचा! न तो केंद्र में कांग्रेस की सरकार है न प्रदेश में! चुनाव में कांग्रेस के आरोपों के तीर ज्यादा पैने होंगे! इस तरह के माहौल में कांग्रेस का सॉफ्ट-हिंदुत्व कार्ड भाजपा की घेराबंदी कर ले तो आश्चर्य की बात नहीं!     
------------------------------------------------------------

No comments: