मुंगावली / कोलारस उपचुनाव
- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश की दो विधानसभा सीटों मुंगावली और कोलारस के नतीजे आ गए। ये नतीजे चौंकाने वाले कतई नहीं हैं। इन दोनों सीटों पर भाजपा की हार का अंदेशा हर किसी को था। यहाँ तक कि भाजपा के बड़े नेता भी 'ऑफ द रिकॉर्ड' कहते थे कि इन दोनों सीटों पर जीतना मुश्किल है। पार्टी और सरकार की सारी ताकत और प्रलोभन भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस इलाके को भेद नहीं सके। कांग्रेस ने ये दोनों सीटें जीतकर भाजपा को करारा झटका दिया है। यदि यहाँ से भाजपा जीतती तो आश्चर्य जरूर होता। क्योंकि, 2013 में मोदी की तेज आँधी में भी कोलारस और मुंगावली में कांग्रेस अपराजेय रही थी। साल के आखिर में राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ मध्यप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में इस हार से भाजपा के साथ-साथ शिवराज खेमे में भारी बेचैनी है। माना जाता है कि उपचुनावों में सत्ताधारी पार्टी का पलड़ा हावी रहता है। मगर, मध्यप्रदेश में हुए उपचुनाव के नतीजों ने इस बात को गलत साबित कर दिया।
ये भाजपा की हार है, लेकिन इस जीत का श्रेय कांग्रेस के बजाए ज्योतिरादित्य सिंधिया की दिया जाना बेहतर होगा। इस जीत से कांग्रेस में सिंधिया का कद भी बढ़ गया। प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव की तासीर भांपने के लिहाज से ये नतीजे अहम् हैं। साथ ही ये नतीजे शिवराज-सरकार को बड़ा सबक देने वाले हैं। दोनों उपचुनाव कांग्रेस और शिवराज सरकार दोनों के लिए नाक का सवाल थे। यही कारण है कि इस जीत से कांग्रेस बहुत उत्साहित है और भाजपा उतनी ही निराश। हार के बाद भाजपा खेमे में मातमी माहौल है। ये महज दो विधानसभा सीटें नहीं थीं, बल्कि इसे कांग्रेस से छीनने के लिए भाजपा ने पूरा जोर लगा दिया था। पार्टी और सरकार ने वोटर्स को भरमाने के लिए प्रलोभनों का पहाड़ खड़ा दिया था। लेकिन, हुआ वही जो जनता चाहती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गाँव-गाँव की ख़ाक छानी, रोड-शो किए, पर नतीजा शून्य रहा। जबकि, कांग्रेस ने पूरा दारोमदार ज्योतिरादित्य सिंधिया पर छोड़ दिया था। भाजपा की कोशिश एक सीट जीतकर मुकाबला बराबरी पर लाने का भी था, लेकिन सिंधिया की रणनीति ने भाजपा को कहीं का नहीं छोड़ा! अब माना जा सकता है कि शिवराज के मुकाबले कांग्रेस का चेहरा बनने का फैसला जल्दी हो सकता है।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से मध्यप्रदेश में भाजपा के लिए यह चौथा झटका है। मध्य प्रदेश में भाजपा की हार की 24 नवंबर 2015 से शुरू हुई थी। प्रदेश में भाजपा को उपचुनाव में अपनी झाबुआ लोकसभा सीट गंवानी पड़ी थी। यह सीट भाजपा सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन पर खाली हुई थी। पार्टी ने उनकी बेटी निर्मला भूरिया पर दांव लगाया था। झाबुआ-रतलाम की इस सीट पर हुई हार चौंकाने वाली थी, क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार और साथ ही सहानुभूति की लहर भी भाजपा उम्मीदवार के लिए जीत नहीं लिख सकी। इससे पहले अटेर और चित्रकूट में कांग्रेस ने अपनी जीत का परचम लहराया था। अब लाख टके का सवाल ये है कि इन नतीजों का प्रदेश की भाजपा राजनीति पर क्या असर होगा? लेकिन, जो भी होगा वो भाजपा की भविष्य की राजनीति के लिए बेहद अहम् है। आखिर, पब्लिक से कुछ छुपा नहीं रह सकता!
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