- हेमंत पाल
राज्यपाल ऐसा पद है, जिसके प्रदेश में होने या न होने से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि, राज्यपाल का दायित्व और दायरा उसे संवैधानिक मर्यादा लांगने की इजाजत नहीं देता! यदि कभी ऐसा होता है, तो वो सामने नजर भी आने लगता है, जैसा इन दिनों हो रहा है। मध्यप्रदेश में करीब सवा साल से प्रभारी राज्यपाल थे, पर इससे सरकार के किसी काम में शायद ही कोई खलल आया हो! अब, प्रदेश में पिछले दो महीने से पूर्णकालिक राज्यपाल आनंदीबेन पटेल हैं, तो उनकी अति-सक्रियता राजनीतिकों, अफसरों और लोगों की नजर में खटक रही हैं! अभी ये समझ से परे है कि इसका असल मकसद क्या है! पर, जो भी होगा उसके पीछे छुपे राजनीतिक कारणों से इंकार नहीं किया जा सकता! इसलिए कि इससे सत्ता के समीकरणों का घालमेल होने लगता है और सत्ता केंद्र के विकेन्द्रित होने की आशंका नजर आती है। अभी इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा कि आनंदीबेन पटेल किस एजेंडे के तहत सक्रिय हैं! लेकिन, यदि कोई एजेंडा है, तो वो उसके निशाने पर कोई तो होगा!
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राज्यपाल पद के बारे में आम धारणा है कि ये संवैधानिक पद एक शोभायमान कुर्सी है। इस पर बैठा व्यक्ति औपचारिकताओं से बंधा होता है। उसकी सक्रियता का कोई रास्ता राजभवन से बाहर नहीं जाता! उसके कामकाज में साल में एक, दो बार विधानसभा में सत्र को सम्बोधित करना, राष्ट्रीय त्यौहारों पर झंडा फहराना, नई सरकार को शपथ दिलाना और सरकारी दस्तावेजों पर दस्तखत करना भर है। लेकिन, आनंदीबेन पटेल ने अपनी आमद, शपथ के बाद सक्रियता और जिस तरह के तेवर दिखाए हैं उसके कई तरह के राजनीतिक मतलब निकाले जा रहे हैं। कई ऐसे सवाल भी उठ रहे हैं, जिनका इशारा सरकार के कामकाज को घेरे में ले रहा है। वे जिस तरह अफसरों से मिल रही हैं, सरकार के कामकाज पर नजर रख रही हैं ये कहा जाने लगा है कि कहीं नरेंद्र मोदी ने उन्हें सरकार पर नजर रखने के लिए तो नहीं भेजा है। उनके तेवर और भाव-भंगिमाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती! जो हो रहा है वो सामान्य भी नहीं है। इस सबके पीछे किसी बड़े राजनीतिक मंतव्य की अनदेखी नहीं की जा सकती! राजभवन के अधबने ऑडिटोरियम को देखते हुए आनंदीबेन ने जिस तरह से लोक निर्माण विभाग के अफसरों को डाँटा, वो किसी नई कहानी की शुरुआत सी लगती है। राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं कि आनंदीबेन पटेल को विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले मध्यप्रदेश भेजने के पीछे नरेंद्र मोदी की कोई राजनीति मंशा तो नहीं है?
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने पदभार संभालते ही जो सक्रियता दिखाई थी, वो लगातार बढ़ रही है। शपथ लेने के बाद वे राजभवन में नहीं रुकीं! उन्होंने अपनी सक्रियता का नजारा दिखा दिया। वे राजभवन के नजदीक एक आंगनबाड़ी गईं। वहां छोटे बच्चों से मिलीं, उनसे बातें की और मिठाई खिलाई। आंगनबाड़ी के निरीक्षण के साथ उन्होंने सरकारी योजनाओं की जानकारी भी ली। इसके बाद वे नादरा बस स्टैंड के पास स्थित बाल निकेतन ट्रस्ट पहुंची और यहां भी बच्चों के साथ समय बिताया। इससे पहले आनंदीबेन राज्यपाल पद की शपथ लेने के लिए चार्टर्ड बस से झाबुआ से उज्जैन तक पहुंचीं थीं। सामान्यः ऐसा होता नहीं है! राज्यपाल का संवैधानिक पद जिस गरिमा से जुड़ा है, वहाँ ऐसे दिखावे वाले कदम नहीं उठाए जाते! आनंदीबेन जिस तरह से मध्य प्रदेश आई, इस तरह से पहले कोई राज्यपाल नहीं आया। शपथ के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी से उनके मिलने जाने को भी सहज नहीं कहा जा सकता!
सवाल उठता है कि उनकी इस सक्रियता को किस नजरिए से देखा जाए? उनकी ये सक्रियता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए मददगार होगी या उनके लिए मुसीबत बनेगी? कहा ये भी जा रहा है कि मध्यप्रदेश के राज्यपाल के रूप में आनंदीबेन पटेल को बहुत सोच-समझकर किसी ख़ास रणनीति के तहत चुना गया है। ये भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आनंदीबेन को किसी ख़ास मकसद से भोपाल की राह दिखाई है। वे शुरू से ही मोदी की भरोसेमंद साथी रहीं हैं। उनकी निकटता इससे भी जाहिर होती है कि मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने गुजरात के मुख्यमंत्री का आनंदीबेन पटेल को ही सौंपा था। मध्यप्रदेश में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है। समय, हालात और परिस्थितियों को परखा जाए तो मध्यप्रदेश में फिलहाल भाजपा की हालत बहुत सुखद नहीं कही जा सकती! शायद ये भी एक कारण है कि आनंदीबेन पटेल को राज्यपाल बनाकर भेजा गया है।
सरकार के कामकाज को लेकर भी उनका नजरिया सहज नहीं कहा जा सकता! बतौर राज्यपाल जब आनंदी बेन पटेल के सामने पहली फाइल रखी गई, तो उनका सवाल था कि क्या प्रदेश में कम्प्यूटराइज्ड काम नहीं हो रहा है? बताते हैं कि उन्होंने चेतावनी दी कि आज तो मैंने इस फाइल पर दस्तखत कर दिए! आगे से सारे काम कम्प्यूटराइज्ड होना चाहिए! आनंदीबेन पटेल ने अपने अधीन प्रदेश के 48 (22 सरकारी और 26 निजी) विश्वविद्यालयों के कामकाज के बारे में भी जानकारी ली। उन्होंने विश्वविद्यालयों का शैक्षिक कैलेंडर भी अफसरों से माँगा! उन्होंने पूछा कि सत्र कब से शुरू होगा, परीक्षाएं कब शुरू होकर कब खत्म होंगी! नतीजे कब तक आएंगे। शिक्षकों को कितने घंटे पढ़ाने का समय कितने घंटे निर्धारित है! आनंदीबेन खुद शिक्षक रही हैं, इसलिए ऐसे मामलों में उनकी रूचि समझी जा सकती है।
राजभवन के गलियारे तक की खबर रखने वालों का कहना है कि वे कुछ परख रही हैं, कुछ जान रही हैं और कुछ जानने की कोशिश करने में लगी हैं। माजरा जो भी हो, पर अभी तक राजभवन में इतनी हलचल कभी नहीं देखी गई, जो आनंदी बेन पटेल के आने के बाद नजर आने लगी है। राज्यपाल से राजनीतिक मुलाकातियों की संख्या भी बढ़ने लगी है। आनंदीबेन पटेल का मध्यप्रदेश और गुजरात सांसदों की दिल्ली में बैठक बुलाना भी राजनीतिक चर्चा का कारण बना! संभवतः ये पहली बार हुआ कि किसी राज्यपाल ने अपने गृह प्रदेश और अपने पदस्थ वाले प्रदेश के सांसदों को चाय पर बुलाकर बातचीत की हो! आनंदीबेन पटेल ने प्रमुख सचिव और अपर मुख्यसचिव से सौजन्य मुलाकात करने का भी प्लान किया। उनकी मंशा सरकारी योजनाओं की जानकारी और उनके कामकाज का ब्यौरा लेना है। जबकि, सामान्यतः राज्यपाल विभाग प्रमुखों को न बुलाकर मुख्य सचिव या मुख्यमंत्री से ही सरकार के कामकाज की जानकारी लेते हैं। अफसरों से सीधे बात करना राज्यपाल की सामान्य प्रक्रिया नहीं होती!
राज्यपाल आनंदीबेन की सक्रियता के मायने और उनसे उभरता संकेत यह भी हैं कि यदि प्रदेश को लेकर कोई बड़ा फैसला करना पड़े, तो आनंदीबेन की सलाह से काम किया जा सकता है। उनका समाज के सभी वर्गों से मिलना, प्रदेश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मसलों की लगातार जानकारी लेना, भ्रमण-निरीक्षण के बहाने सरकार की निगरानी करना, किसी को भी सहज नहीं लग रहा!
राज्यपाल आनंदीबेन की सक्रियता के मायने और उनसे उभरता संकेत यह भी हैं कि यदि प्रदेश को लेकर कोई बड़ा फैसला करना पड़े, तो आनंदीबेन की सलाह से काम किया जा सकता है। उनका समाज के सभी वर्गों से मिलना, प्रदेश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मसलों की लगातार जानकारी लेना, भ्रमण-निरीक्षण के बहाने सरकार की निगरानी करना, किसी को भी सहज नहीं लग रहा!
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