- हेमंत पाल
इन दिनों तमाम टीवी चैनलों और राजनीतिक रैलियों में 'चोर' शब्द की धूम है। हर राजनीतिक पार्टी प्रतिद्वंदी को ज्यादा बड़ा चोर साबित करने पर तुली है। राजनीति में तो ये फार्मूला ज्यादा सफल नहीं रहा! लेकिन, फिल्मों के लिए 'चोर' फार्मूला हमेशा से हिट रहा है। फिल्मों का इतिहास टटोलकर देखा जाए, तो 'चोर' शीर्षक से बनी अधिकांश फिल्में या गाने हिट हुए हैं। बाॅलीवुड की पहली हिट फिल्म कहलाने का श्रेय 1943 में प्रदर्शित अशोक कुमार की फिल्म 'किस्मत' को जाता है, जिसने कोलकाता के एक सिनेमा हाॅल में लगातार साढ़े तीन साल चलने का रिकार्ड बनाया था। 1975 में मुंबई के मराठा मंदिर में प्रदर्शित 'शोले' का भी लगातार पांच साल से ज्यादा चलने का रिकॉर्ड 32 साल तक कायम रहा। 'किस्मत' में अशोक कुमार ने चोर का चरित्र निभाया था, वहीं शोले के दोनों नायक धर्मेन्द्र और अमिताभ चोर बने थे।
हिन्दी फिल्मों में 'चोर' का चरित्र ब्लेक-शेड वाला न होकर ग्रे-शेड वाला होता है, जो नायिका से लेकर दर्शकों का दिल जीतकर बाॅक्स ऑफिस को लूटने में कामयाब होता है। कई फिल्में ऐसी भी बनी, जिनमें क्लाइमेक्स से पहले तक तो नायक को चोर दिखाया जाता है, लेकिन अंतिम रील आते-आते वो पुलिस वाला बन जाता है। 'ज्वैल थीफ' इस तरह की सबसे ज्यादा मनोरंजक फिल्म थी, जिसमें दर्शक आखिरी तक देव आनंद को चोर ही समझते हैं, लेकिन क्लाइमेक्स में अशोक कुमार को चोर के रूप में देखकर सब चौंक जाते है।
अशोक कुमार ने आरंभिक दिनों कई अपराधिक फिल्मों में चोर की भूमिका निभाई। उसके बाद देव आनंद लगभग हर दूसरी फिल्मों में चोर ही नहीं महिला दर्शकों के चितचोर भी बनें। राजकपूर ने 'आवारा' में चोर की भूमिका निभाकर दुनियाभर में वाहवाही लूटी, तो उनके भाई शम्मी कपूर भी ज्यादातर फिल्मों में चोर बने। सबसे छोटे भाई शशि कपूर तो इससे एक कदम आगे निकले। वह एनसी सिप्पी की एक फिल्म में न केवल चोर बने, बल्कि चोर बनकर उन्होंने 'चोर मचाए शोर' में खूब शोर मचाया और बाॅक्स आफिस पर पैसा भी बटोरा!
हिन्दी फिल्मों के कई निर्माता-निर्देशकों को 'चोर' विषयों पर फिल्में बनाने या निर्देशित करने में महारथ हांसिल थी। गुरूदत्त गंभीर फिल्मकार बनने से पहले 'चोर' विषय पर सीआईडी, 12'ओ क्लाॅक जैसी सफल फिल्म बना चुके थे। विजय आनंद, शक्ति सामंत, राज खोसला जैसे फिल्मकारों ने हिन्दी फिल्मों में चोरों का जमकर महिमा मंडन किया। ऐसे ही निर्देशकों की बदौलत हिन्दी फिल्मों के चोरों पर दर्शकों का खूब प्यार उमड़ा है। हिन्दी फिल्मों में शायद ही कोई अभिनेता हो, जो कभी चोर न बना हो। मनोज कुमार जैसा कलाकार भी 'बेईमान' में चोर का चरित्र निभा चुके हैं। अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, देव आनंद, शत्रुघ्न सिंहा, राजेश खन्ना और धर्मेन्द्र जैसे पुराने नायकों ने कई फिल्मों में चोर बनकर दर्शकों को लुभाया। अब शाहरूख, सलमान और आमिर भी इस दौड में पीछे नहीं हैं। 'धूम' सीरिज की सारी फिल्मों का कथानक चोरों के इर्द गिर्द ही घूमता रहा।
'चोर' शीर्षक से बनी फिल्मों में ज्वैल थीफ, चोरी मेरा काम, चोर-चोर, दो चोर, तू चोर में सिपाही, हम सब चोर हैं, अलीबाबा चालीस चोर, चोर मचाए शोर, बम्बई का चोर, चोर और चांद, थीफ आफ बगदाद, बैंक चोर, नामी चोर, महाचोर, चोर बाजार प्रमुख है। कुछ ऐसी फिल्में भी हैं, जिनमें नायक तो शरीफ होता है लेकिन नायिकाएं चोर होती हैं। जीनत अमान, मुमताज, हेमा मालिनी और श्री देवी ऐसी भूमिकाओें में खूब फबती रही है। नीतू सिंह की एक फिल्म का शीर्षक ही 'चोरनी' था।
हिन्दी फिल्मों के 'चोर' केवल शीर्षक तक ही सीमित नहीं रहे। ऐसे कई हिन्दी गीत हैं जिन्हें 'चोर' शब्द के प्रयोग ने हिट बनाया है। ऐसे गीतों में चुरा के दिल मेरा, चुरा लिया है तुमने जो दिल तो, मैं एक चोर मेरी रानी, शोर मच गया शोर, आया बिरज का बांका चोर, मेरी गली में आया चोर, इस दुनिया में सब चोर चोर, जब अंधेरा होता है आधी रात को एक चोर निकलता है। मैं एक चोर मेरी रानी गीत को भी लोगों ने खूब सुना और गुनगुनाया है। सलीम जावेद ने तो अपनी फिल्म 'दीवार' में अमिताभ के हाथ पर 'मेरा बाप चोर है' लिखकर हिन्दी सिनेमा में चोर को न केवल अमर कर दिया, बल्कि बाॅलीवुड को चोर विषय पर हिट फिल्म बनाने का एक फार्मूला भी बता दिया है।
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