Sunday, October 21, 2018

देखिए, अच्छी भी है फ़िल्मी दुनिया!

- हेमंत पाल

   सिनेमा की दुनिया पर अकसर तोहमत लगाई जाती है, कि यहाँ के स्वार्थी होते हैं। कोई किसी का साथ नहीं देता और चढ़ते सूरज का तिलक किया जाता है। कुछ मामलों में ये बात सही भी है! पर, कुछ लोग इससे अलग भी हैं, जो दूसरों का दर्द समझते हैं और मदद का हाथ बढ़ाने से पीछे नहीं रहते! जिंदादिल फिल्मकारों से जुड़े ऐसे कुछ किस्से, जो बताते हैं कि सिनेमा की दुनिया उतनी बुरी भी नहीं, जितनी समझी जाती है। 
     मोहम्मद रफी एक बार गाने की रिकार्डिंग के लिए स्टूडियों की लिफ्ट से ऊपर जा रहे थे। उस रिकॉर्डिंग स्टूडियो का पुराना लिफ्ट मैन रफ़ी साहब को जानता था। उसने मोहम्मद रफी की तरफ शादी का कार्ड बढ़ाते हुए कहा 'मेरी बेटी की शादी है, आप आइएगा।' रफी साहब ने अनमने से कार्ड ले लिया, उसकी तरफ देखा भी नहीं। लिफ्ट मैन ने भी इसे कमजोर लोगों की नियति मान लिया और चुप हो गया। करीब घंटेभर बाद मोहम्मद रफी रिकार्डिंग करके लौटे! वापसी में उसी लिफ्ट मैन से पूछा 'शादी किस दिन है, ये कहते हुए एक लिफाफा उसके हाथ में दिया।' रफी के इस बदले व्यवहार को वो समझ नहीं पाया! थोड़ी देर बाद फिल्म के निर्देशक ने कहा कि रफी साहब से गुस्सा मत होना! उस समय वे रिकार्डिंग के लिए जा रहे थे, इसलिए उनका ध्यान केवल गाने पर था। लेकिन, जब गाने की रिकार्डिंग हो गई तो मुझसे कहा कि मेरी फीस में अपना पैसा भी मिलाइए नीचे लिफ्ट मैन की बेटी की शादी है। 
   जाने-माने गायक मुकेश के घर के पास एक प्रेस की दुकान थी। वह प्रेस वाला अकसर अपने साथियों से कहता था कि मुकेशजी उससे आते-जाते बात करते हैं, मेरी उनसे दोस्ती है। जब उस प्रेस वाले की लड़की की शादी तय हुई, तो लोगों ने कहा कि मुकेशजी को क्यों नहीं बुलाते, वो तो तुम्हारे दोस्त हैं! उसने झिझकते हुए शादी का निमंत्रण मुकेशजी को दे दिया। उसने सोचा नहीं था कि वास्तव में मुकेशजी उसकी बेटी की शादी में आएंगे। शादी के दिन मुकेशजी जब वे सांजिदों के साथ मंडप में पहुंचे, तो वह घबरा गया। उसे लगा कि उसने मुकेशजी को गाने के लिए थोडी बुलाया था। वह मुकेशजी के पास गया और कहने लगा 'आपको तो बस आने के लिए कहा था, बेटी की शादी है आपके गाने का ख़र्चा कैसे दे पाऊंगा। ऊपर से तबला, बाँसुरी और सारंगी अलग।' मुकेशजी ने कहा कि तुम्हारी बेटी क्या मेरी बेटी नहीं। तुमसे पैसा कौन मांग रहा है। मैं तो बारातियों को गाना सुनाने आया हूँ। मुकेशजी ने उस शादी में देर रात तक गीत गाए। देर रात जब वे घर लौटे तो बेटे नितिन से कहा कि वहाँ गाने में इतना सुकून मिला, जितना अाजतक रिकॉर्डिंग में भी नहीं मिला! मुकेशजी ने वहाँ सिर्फ गाने ही नहीं गाए, उस बेटी को तोहफे में अच्छे-खासे पैसे भी देकर आए थे। 
  मुकेशजी अकसर सर्दियों की रात दिल्ली में कार से सड़क पर निकलते और फुटपाथ पर सोते भिखारियों को कंबल ओढ़ा देते थे। एक बार एक भिखारी ने उन्हें ऐसा करते पहचान लिया, लेकिन कहा कुछ नहीं। बस, उनका एक गीत 'दुनिया मैं तेरे तीर का या तक़दीर का मारा हूँ' गाने लगा। मुकेशजी ने कहा ये गीत तुमने कहाँ सुना? भिखारी ने कहा हमारी किस्मत में ये कहाँ कि मुकेशजी हमें ये गीत सुनाएं या हम उनके प्रोग्राम में जाएं। इस पर मुकेशजी ने कहा कि यहीं रहना मैं लौटकर आता हूँ। मुकेश वापस आए तो उस भिखारी के लिए अपने शो के चार टिकट लाएं, साथ में तीन सौ रुपए दिए और कहा 'परसों मुकेशजी का कार्यक्रम है वहाँ आ जाना।' भिखारी ने पांव छू लिए और कहा 'मैं आपको पहचान गया था, पर हिम्मत नहीं थी, इसलिए आपका गीत गा दिया।' 
 मीना कुमारी बहुत अच्छी शायरा थी, लेकिन कभी मंचों पर नहीं गाती थी। एक बार किसी ने कहा कि सैनिको के लिए कवि सम्मेलन है, आप कभी मंच पर नहीं आतीं, पर हो सके तो सैनिकों के लिए आइए! मामला सैनिकों का था तो मीनाजी वहाँ गईं भी और कविताएं भी पढ़ी! उन्होंने कविता के लिए पैसा लेना तो दूर, अपनी तरफ से सैनिक कल्याण कोष में अच्छी खासी रकम दे आईं।
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