Tuesday, April 2, 2019

समय और हम : पीछे देखते हुए आगे मत चलिए!


- हेमंत पाल
  समय एक ऐसा चक्र है जो न किसी के लिए रुकता है और न किसी के लिए वापस आता है। कहा जाता है कि समय बड़ा अजीब होता है। इसके साथ चलो तो किस्मत बदल देता है और न चलो तो किस्मत को ही बदल देता है। दुनिया में केवल समय ही है, जो हर इंसान को सीमित मात्रा में मिला है। बाकी सब चीज़े असीमित हो सकती है। समय को जिंदगी के समान माना गया है, कहते है अगर आप समय को बर्बाद कर रहे है तो ज़िंदगी को बर्बाद कर रहे है, अगर आप समय का अच्छा प्रयोग कर रहे है तो अपनी जिंदगी को अच्छा बना रहे है। समय पर काम शुरू करने वाला आदमी ही समय पर काम ख़त्म कर सकता है। कहते हैं कि दो प्रकार के व्यक्ति ही जीवन में असफल होते हैं, एक वे जो सोचते हैं कि पर समय पर काम को शुरू नहीं करते और दूसरे वे जो कार्य रूप में परिणित तो कर देते हैं, पर सोचते कभी नहीं। कहने का मतलब बिना सोचे समझे किया गया कार्य भी असफल होने का कारण हो सकता है। कहते हैं कि समय और समझ दोनों एक साथ खुशकिस्मत लोगों को ही मिलते है! क्योंकि, अकसर समय पर समझ नहीं आती और समझ आने पर समय निकल जाता है। 
  किसी संत ने अपने शिष्यों से पूछा 'जिंदगी में सबसे ज्यादा जरूरी चीज़ क्या है, जिसे हमें न तो कभी खोना चाहिए न उसका गलत प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि, उसे एक बार खोने के बाद भगवान भी हमें वापस नहीं दिला सकता।' सभी शिष्यों ने अलग-अलग जवाब देते हुए पैसा, प्यार, माँ-बाप, परिवार, धैर्य, साहस, ताक़त, ज्ञान, भक्ति, गुरु, भगवान् और साँसों को सबसे जरूरी बताया! लेकिन, उनके सबसे प्रिय शिष्य ने समय को सबसे ज्यादा जरूरी बताते हुए कहा कि साँसों के अलावा सभी चीज़ों को हम खोने के बाद भी प्राप्त कर सकते है। केवल समय ही ज़िंदगी की ऐसी महत्वपूर्ण चीज़ है जिसे हमें कभी खोना नहीं चाहिए! क्योंकि, इसे खोने के बाद कोई भी हमें वापस नहीं दिला सकता।
   हम सभी जानते हैं कि सामान्य रूप से समय के तीन हिस्से होते हैं बीता हुआ अर्थात अतीत, समक्ष अर्थात वर्तमान तथा आने वाला अर्थात भविष्य। हमारे अंदर प्रायः पीछे देखते हुए आगे चलने की आदत होती है। कोई व्यक्ति अगर पीछे देखते हुए आगे चलता है, तो उसकी गति क्या होगी? निश्चित ही वह समय की रफ्तार से पिछड़ जाएगा और एक अभावपूर्ण व तनावग्रस्त जीवन जीने को विवश होगा। ऐसा व्यक्ति कितनी दूर जाएगा और कब इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। यह ईश्वर की इच्छा के भी विरूद्ध है। ईश्वर चाहता है कि आगे चलते समय हम सदैव आगे देखें और इसीलिए उसने हमारी आँखें हमारे चेहरे पर आगे लगाई हैं, पीछे गर्दन पर नहीं। यदि हम प्रकृति के विरुद्ध कोई कार्य करते हैं तो उसका दंड तो हमें भुगतना ही पड़ेगा। 
समय रुकता नहीं 
   समय को सच्चाई का पिता होने की भी संज्ञा दी गई है। एक अंग्रेजी कहावत के अनुसार 'मुझे ये लगता है कि समय सभी चीजों को परिपक्व कर देता है; समय के साथ सभी चीजें उजागर हो जाती हैं। इसलिए समय को सच्चाई का पिता माना गया है।' समय कुछ भी बदल सकता है, पर किसी के लिए कभी रुकता नहीं है। कहते है कि आदमी अच्छा या बुरा नहीं होता! बल्कि, उसका समय अच्छा और बुरा होता है। जब समय अच्छा चल रहा होता है, तो सब काम अपने आप अच्छे हो जाते है, लेकिन खराब समय शुरू होने के बाद बनते काम भी बिगड़ने लगते हैं। समय को एक अच्छा अध्यापक भी माना गया है, ये हमें हमेशा सिखाता रहता है। स्कूल में हमें सिखाने के बाद परीक्षा देनी पड़ती है। लेकिन, समय हमारी पहले परीक्षा लेता है और फिर सिखाता है।
  समय को भगवान की बनाई इस सृष्टि में सबसे बलवान माना गया है। जब समय बदलता है, तो इंसान को राजा से रंक और रंक से राजा बनने में देर नहीं लगती! इसके कहर से राजा-महाराजा तक घबराते हैं। हर कोई चाहता है कि समय हमेशा उनके साथ रहे।वास्तव में समय एक अच्छा चिकित्सक भी है! ये बड़े से बड़े घाव को भरने में सक्षम है। कहते हैं कि जिंदगी चार दिन की है, दो दिन आपके हक में और दो दिन आपके खिलाफ। जिस दिन हक में हो, गुरूर मत करना और जिस दिन खिलाफ हो थोड़ा सा सब्र जरूर करना। क्योंकि, समय बड़े से बड़ा घाव तक भर सकता है। 
  हमें समय का सदुपयोग करना बहुत जरूरी है। एक मिनट हमारे जीवन को नहीं बदल सकता, लेकिन एक मिनट में लिया गया निर्णय हमारे जीवन को बदल भी सकता है। समय की अहमियत भी हर किसी के लिए अलग-अलग होती है l इस दुनिया में कोई भी व्यस्त नहीं होता, बस सबके काम की प्राथमिकताएं अलग-अलग होती है। इसको इस तरह से समझ सकते है कि भगवान ने तो सबको एक दिन में जीने के लिए 24 घंटे ही दिए हैं। लेकिन, काम हर कोई अपनी प्राथिमकता के कारण अलग-अलग करता हैl सुख और दुःख दोनों समय की देन है, लेकिन कहते है कि जिस दिन आप समय के स्वभाव को समझेंगे, सुख में भी खुशियाँ मनाएंगे और दुःख में भी मुस्करायेंगे, क्योंकि आपको मालूम है "ये दिन भी नहीं रहेंगे" तो इस तरह से आप व्यर्थ की चिंता में समय बर्बाद न करके सुख और दुःख दोनों में मन को स्थिर रख कर मन की शांति प्राप्त कर सकते है। क्योंकि, बुरी से बुरी स्थिति में भी कुछ सकारात्मक जरूर होता है, यहाँ तक कि एक बंद पडी हुई घड़ी दिन-रात में दो बार सही समय प्रदर्शित करती है।
'समय' का राज 
  एनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक इंसान ने बहुत-सी बातों का ज्ञान हांसिल किया है। लेकिन, समय को समझ पाना उसके लिए शुरू से ही एक राज़ रहा है। समय को समझना और समझाना बहुत ही मुश्‍किल है। हम समय के बारे में अकसर कहते हैं कि समय बीतता है, गुज़रता है, पलक झपकते ही उड़ जाता है। यह भी कहते हैं कि हम 'समय की धारा' में आगे निकलते जा रहे हैं। हालाँकि, हम समय के बारे में इतना सब कुछ कहते हैं, लेकिन फिर भी हममें से किसी को ठीक-ठीक यह नहीं मालूम कि हम कह क्या रहे हैं।
 असल में समय को समझना तो लोगों को मुश्‍किल लगता है, उस पर जब हमेशा तक ज़िंदा रहने की बात की जाती है तो वे और भी उलझन में पड़ जाते हैं। क्योंकि, वे यही देखते आए हैं कि समय गुज़रने का मतलब है पैदा होना, बड़ा होना, बूढ़ा होना और मर जाना। इसलिए उन्होंने हमेशा से समय बीतने को आयु का ढलना माना है। अगर ऐसे में कोई उन्हें समय को दूसरे तरीके से समझाने की कोशिश करे, तो उन्हें यह बात उल्टी और नियम के खिलाफ लगेगी। और वे शायद पूछें कि दुनिया का हर प्राणी समय के अधीन है, तो फिर सिर्फ इंसान ही क्यों समय के अधीन न हो? 
टाइम मैनेजमेंट 
  आज का काल 'समय प्रबंधन' का है, अर्थात ‘टाइम मैनेजमेंट’ का। आज हर स्थान पर, हर स्तर पर टाइम मैनेजमेंट का ही शोर सुनाई पड़ता है। 'टाइम मैनेजमेंट' के जरिए समय को मुट्ठी में बांधने का मंत्र सिखाया जा रहा हो। लेकिन, क्या हम समय को मुट्ठी में बांध सकते हैं? क्या हम समय को नियंत्रित कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं! समय की गति शाश्वत है। यह न तो कम होती है और न अधिक। यद्यपि ब्रम्हांड में कुछ शून्य खण्ड ऐसे भी हैं, जहां वैज्ञानिकों के अनुसार समय की गति परिवर्तित है। लेकिन, वह हमारी दुनिया नहीं है। हम जिस दुनिया में रहते हैं , वहीं का समय हमें प्रभावित करता है। हमारी दुनिया का सच यह है कि हमारे पास समय की गति को नियंत्रित करने की कोई शक्ति नहीं है। हम सामान्य मानव है और प्राकृतिक नियमों से बंधे हैं। हमारे पास मात्र स्वयं को नियंत्रण करने की शक्ति होती है यदि हमारे अंदर अच्छे-बुरे, सही-गलत व  उचित-अनुचित की समझ आ जाए। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि ‘समय-प्रबंधन’ कुछ नहीं होता! इसे समय के अनुसार स्वयं का प्रबंधन कहना व समझना ज्यादा उचित है। 
  हमारे पास हमारे कार्यों की सूची होनी चाहिए और हमें यह प्रबंधन कला आनी चाहिए कि निश्चित समयावधि में यदि हमें अमुक मात्रा के कार्य करने हैं तो उन्हें कैसे करना चाहिए। ये प्रबंधन कला हमारी सोच का स्पष्ट होना मात्र है। हम चाहें तो एक कार्य प्रारंभ कर उसके प्रक्रिया काल तक प्रतीक्षा कर उसे पूर्ण करने का विकल्प चुन सकते हैं या एक-एक करके अनेक कार्य प्रारंभ करके उनकी पूर्णता प्रक्रिया की अलग-अलग अवधियों के पश्चात एक -एक करके उन्हें पूरा कर अनेक परिणाम हांसिल कर सकते हैं। एक कार्य प्रारंभ कर उसके पूर्ण होने की प्रतीक्षा में शिथिल व क्रियाहीन नहीं बैठा जाता। उस समय का लाभ लेकर दूसरे कार्य को प्रारंभ कर देना एक विकल्प है। जो पहला विकल्प चुनते हैं, वे समय को नष्ट करते हैं तथा समय प्रबंधन से चूक जाते हैं। जबकि, दूसरा विकल्प चुनने वाले समय प्रबंधन का लाभ उठाते हैं। 
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