- हेमंत पाल
भाजपा को यदि मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करना है, तो उसे आरएसएस की सर्वे रिपोर्ट को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, जैसा कि उसने विधानसभा चुनाव के समय किया था! ऐसा किया गया तो उसे लोकसभा चुनावों में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। आरएसएस ने अपनी रिपोर्ट के आधार पर भाजपा नेतृत्व को सलाह दी है कि मौजूदा 26 सांसदों में से 16 सांसदों के टिकट काटकर स्थिति को संभाला जा सकता है! जबकि, वास्तव में तो 20 सांसद ऐसे हैं, जिनसे उनके इलाके की जनता खुश नहीं है। पिछली बार तो कई सांसद भाजपा के वोट बैंक और नरेंद्र मोदी फैक्टर के कारण चुनाव जीत गए थे, लेकिन इस बार स्थितियां उतनी अनुकूल नजर नहीं आ रही! मालवा-निमाड़, चंबल, मध्यभारत, बुंदेलखंड, विंध्य और ग्वालियर इलाके में से कहीं भी भाजपा दमदार नजर नहीं आ रही! जबकि, उसे एंटीइनकम्बेंसी के साथ प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने का भी नुकसान उठाना पड़ेगा!
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भारतीय जनता पार्टी ने 2014 लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की 29 में से 27 सीटें जीतकर कांग्रेस को लगभग ख़त्म कर दिया था! बाद में झाबुआ-रतलाम सीट के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने जीतकर जो संकेत दिया था, अब उसी की परीक्षा है! बाद में हुए कई विधानसभा उपचुनाव भी कांग्रेस ने जीते और इस बार का विधानसभा चुनाव भी! मुद्दे की बात यह कि विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की हार का एक बड़ा कारण केंद्र सरकार के फैसले ही रहे हैं! अब, जबकि लोकसभा के लिए जंग का बिगुल बज गया, भाजपा को अपनी सेना के सेनापति चुनने में पसीना आ रहा है। पिछले चुनाव की आसमान फाड़ जीत ही आज पार्टी के लिए गले की हड्डी बन गई! 26 में 16 (या इससे ज्यादा) टिकट काटना पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है! अभी तक घोषित 17 टिकटों में से भाजपा ने 7 के टिकट तो काट दिए! पर बाकी बची ९ सीटों पर क्या हालात बनते हैं, ये देखना होगा!
प्रदेश की क्षेत्रवार लोकसभा सीटों को देखा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा चुनौती का सामना चंबल, ग्वालियर क्षेत्र, महाकौशल और मालवा-निमाड़ में करना पड़ सकता है! चंबल की चार सीटों में से भाजपा के पास 3 और कांग्रेस के पास सिर्फ गुना की सीट है। इस अंचल में भिंड, मुरैना, ग्वालियर और गुना सीट आती है। इन तीनों इलाकों में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का प्रदर्शन भाजपा से बेहतर रहा है। चंबल और ग्वालियर में तो भाजपा को कांग्रेस के अलावा जाति संगठनों से भी मुकाबला करना पड़ेगा। भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव में भी 15-20 सीटों पर पार्टी के बागियों ने समस्या खड़ी कर दी थी! यही कारण रहा कि भाजपा को सरकार बनाने से हाथ धोना पड़ गया।
मालवा-निमाड की 8 सीटों इंदौर, देवास-शाजापुर, उज्जैन, मंदसौर, झाबुआ-रतलाम, खरगौन, खंडवा और धार हैं। पिछले चुनाव में भाजपा को सभी पर जीत मिली थी! लेकिन, झाबुआ-रतलाम से जीते दिलीपसिंह भूरिया के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए और कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया चुनाव जीत गए थे। राजनीतिक हालात देखकर लगता है कि झाबुआ-रतलाम में तो अभी भी कांग्रेस के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं है। खंडवा, खरगौन, धार और मंदसौर में भी भाजपा की हालत ठीक नजर नहीं आ रही। खंडवा और मंदसौर में भाजपा ने सबसे पहले उम्मीदवार घोषित तो कर दिए, पर यहाँ उसे सेबोटेज का खतरा ज्यादा है! पार्टी को इन सीटों पर नई रणनीति बनाकर मैदान संभालना पड़ेगा! इंदौर जैसी प्रतिष्ठा वाली सीट पर अभी भी असमंजस बरक़रार है। पार्टी को सुमित्रा महाजन के अलावा कोई उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा और उनके नाम पर कोई सहमति नहीं बन रही!
भोपाल और उससे लगी पांच लोकसभा सीटों भोपाल, विदिशा, राजगढ, बैतूल और होशंगाबाद पर नजर डालें तो भाजपा को इन सभी सीटों पर अपनी ही पार्टी के असंतुष्टों को मनाना पड़ेगा। ऐसे में बड़ी चुनौती सही उम्मीदवार को मैदान में उतारना होगा। इन सभी सीटों पर अभी भाजपा का कब्जा है। विदिशा सीट से सुषमा स्वराज चुनाव जीती थी, इस बार वे चुनाव लड़ने से मना कर चुकी हैं। बैतूल की सांसद ज्योति धुर्वे फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में विवाद में उलझी है। भोपाल से कांग्रेस ने दिग्विजय की उम्मीदवारी घोषित करके भाजपा को कुछ ज्यादा ही उलझा दिया है! ऐसे में मौजूदा सांसद आलोक संजर का टिकट बदला जाना करीब-करीब तय है! राजगढ़ में कांग्रेस को पहले से ही ताकतवर माना जा रहा है!
फिलहाल बुंदेलखंड में भाजपा के कब्जे वाली चारों सीटों पर उसे कांग्रेस से कड़े मुकाबले के लिए तैयार होना पड़ेगा! क्योंकि, इस अंचल में विधानसभा चुनाव में भाजपा के पसीने छूट चुके हैं। पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया तक को हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़कर रामकृष्ण कुसमरिया ने दमोह, पथरिया के अलावा एक अन्य सीट पर भाजपा को जीतने से रोक दिया था। कुसमरिया अब कांग्रेस में हैं और लोकसभा चुनाव में वे भाजपा के लिए परेशानी का कारण भी बनेंगे। बुंदेलखंड की चार सीट सागर, दमोह, टीकमगढ़ और खजुराहो आती हैं। टीकमगढ़ से केंद्रीय राज्यमंत्री वीरेन्द्र कुमार सांसद हैं। दमोह सीट से प्रह्लाद पटेल के खिलाफ पार्टी के कई नेता खड़े हो चुके हैं। यहाँ तक कि विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव ने भी इस सीट से अपनी दावेदारी पेश की, पर पार्टी ने परिवारवाद पर उन्हें मना कर दिया। विधानसभा चुनाव में दमोह लोकसभा क्षेत्र की सीटों पर भाजपा की बढ़त घटी है! लेकिन, पार्टी ने फिर प्रह्लाद पटेल को टिकट देकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली! लेकिन, सागर में कांग्रेस कमजोर नजर आ रही है।
पिछले चुनाव में महाकौशल इलाके में भाजपा को 4 में से 3 सीटें मिली थी! छिंदवाड़ा सीट से कांग्रेस के कमलनाथ जीते थे। कांग्रेस ने इस बार उनकी जगह उनके बेटे नकुलनाथ को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने यदि स्थितियों को भांपकर इस इलाके में फैसले नहीं किए तो उसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है! इसलिए कि महाकौशल की सबसे प्रमुख सीट जबलपुर बचाना ही भाजपा के लिए मुश्किल लग रहा है। यहाँ से तीन बार से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह चुनाव जीत हैं! लेकिन, इस बार माहौल उनके पक्ष में नहीं है। जबलपुर के युवा नेता, पूर्व भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष धीरज पटैरिया ने पार्टी से बगावत करके विधानसभा चुनाव लड़ा था। वे लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस इलाके की बालाघाट सीट से सांसद बोधसिंह भगत की जगह इस बार ढालसिंह बिसेन को मौका दिया गया है। जबकि, विरोध के बावजूद मंडला सीट से मौजूदा सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते को पार्टी ने सातवीं बार लोकसभा का टिकट दिया है।
उत्तरप्रदेश की सीमा से लगने वाले विंध्य की सभी 4 लोकसभा सीटों (सतना, रीवा, सीधी और शहडोल) पर भाजपा का कब्जा है। लेकिन, इन सांसदों के खिलाफ जनता और पार्टी में जिस तरह का असंतोष है, उससे नहीं लगता है कि भाजपा की राह यहां आसान रहेगी। सबसे ज्यादा असंतोष सतना से लगातार तीन बार जीते गणेश सिंह को लेकर है, लेकिन पार्टी ने उन्हीं पर चौथी बार भरोसा जताया है! सीधी से फिर रीति पाठक और रीवा से जनार्दन मिश्रा को टिकट दिया गया! लेकिन, लग नहीं रहा कि पार्टी के इस फैसले से जनता और पार्टी में ख़ुशी है! भाजपा ने शहडोल के सांसद ज्ञानसिंह का टिकट जरूर बदला और हिमाद्री सिंह को उम्मीदवार बनाया है! विधानसभा चुनाव में विंध्य में भाजपा ने उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन किया था, पर ये स्थितियां लोकसभा चुनाव में भी रहेंगी, ये दावा नहीं किया जा सकता!
हालात देखकर लगता है कि भाजपा को अपनी 26 सीटें बचाने के लिए पूरा जोर लगाना पड़ेगा। प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद ये चुनौती और ज्यादा मुश्किल हो गई है! इस कारण कई सीटों पर चुनाव जीतने के लिए भाजपा को मुश्किल हो सकती है। चुनाव का माहौल गरम होते-होते जिस तरह से स्थितियां बदल रही है, कहा नहीं जा सकता कि ऊंट किस तरफ करवट लेगा और इसका फ़ायदा किस पार्टी के पलड़े में जाएगा! भाजपा को सबसे ज्यादा खतरा एंटी इनकम्बैंसी का है। ऐसी कई सीटें हैं, जहां चुनाव जीतने के लिए नई रणनीति नहीं बनाई गई तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है! उसे विधानसभा चुनाव के नतीजों और राजनीतिक समीकरणों समझकर फैसले करने होंगे! क्योंकि, कमलनाथ सरकार बनने के बाद बदले हालात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता!
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