Wednesday, April 17, 2019

मालवा-निमाड़ : भाजपा और कांग्रेस दोनों को सेबोटेज का खतरा!

- हेमंत पाल  
  
श्चिम मध्यप्रदेश की मालवा-निमाड़ इलाके की 8 लोकसभा सीटों के लिए दोनों पार्टियों के अधिकांश उम्मीदवार घोषित हो गए! लेकिन, पर कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए जीत गले में फँसी हड्डी की तरह हैं! उम्मीदवारों को देखकर किसी भी सीट से कोई भी पार्टी जीत का दावा नहीं कर सकती! असमंजस और असंतोष इतना गहरा है कि कहा नहीं जा सकता कि बाजी कौन मारेगा! दोनों ही पार्टियों में ज्यादातर उम्मीदवारों को लेकर नाराजी है! ऐसी स्थिति में सेबोटेज का खतरा दोनों तरफ नजर आ रहा है। 
   इंदौर लोकसभा सीट से लम्बे इंतजार के बाद कांग्रेस ने पंकज संघवी को उम्मीदवार घोषित कर दिया। आश्चर्य है कि इस बात का कि इस नाम की घोषणा में इतनी देर क्यों की गई? पंकज संघवी अभी तक कोई बड़ा चुनाव नहीं जीते हैं। वे इतने लोकप्रियभी नहीं हैं कि आसानी से लोकसभा चुनाव जीत सकें! पार्षद का एक चुनाव जीतने के अलावा उनके राजनीतिक इतिहास में कोई जीत दर्ज नहीं है! पंकज संघवी ने 1983 में पहली बार इंदौर नगर निगम के पार्षद का चुनाव लड़ा और जीता था। उनका परिवार के धार्मिक, सामाजिक और व्यवसायिक, शैक्षणिक कार्यों से जुड़ा है इसी के चलते कांग्रेस ने 1998 में उन्हें इंदौर की लोकसभा सीट का टिकट दिया! संघवी ये चुनाव भाजपा की सुमित्रा महाजन से 49,852 वोटों से चुनाव हार गए थे। 2009 में कांग्रेस ने फिर उन पर भरोसा जताया और महापौर का चुनाव लड़वाया! इस चुनाव में भी वे भाजपा के उम्मीदवार कृष्णमुरारी मोघे से 4 हजार वोटों से हारे थे। 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्हें इंदौर के क्षेत्र क्रमांक-5 से उम्मीदवार बनाया गया! इस चुनाव में भी वे भाजपा के महेंद्र हार्डिया से साढ़े 12 हज़ार वोटों से हारे थे! संघवी के बारे में चर्चित है कि वे चुनाव आने पर ही सक्रिय होते हैं और फिर राजनीतिक परिदृश्य से लोप हो जाते हैं। शहर में कांग्रेस की गुटीय राजनीति को देखते हुए, वे कोई चमत्कार कर सकेंगे, इसमें संशय है! 
    धार की आदिवासी लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार दिनेश गिरेवाल के नाम की घोषणा के साथ ही विरोध शुरू हो गया! कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि ये टिकट गुटीय राजनीति के चलते दिया गया है! दिनेश गिरेवाल की संसदीय क्षेत्र में कोई राजनीतिक पहचान नहीं है। वे सिर्फ जिला पंचायत के सदस्य रहे हैं, इसके अलावा उन्होंने कोई बड़ा चुनाव नहीं लड़ा और न जीता! इस सीट से तीन बार के सांसद गजेंद्रसिंह राजूखेड़ी का नाम तय माना जा रहा था, लेकिन उनकी जगह नए और अंजान व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया गया! जिले में कई जगह दिनेश गिरेवाल के पुतले जलाए जा रहे हैं और उनके क्षेत्र में न घुसने के पोस्टर लगे हैं! ये स्थिति कांग्रेस में ही नहीं, भाजपा में भी है। घोषित भाजपा उम्मीदवार छतरसिंह दरबार के खिलाफ भी कई नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है। कुछ नेता तो टिकट बदले जाने के लिए दिल्ली और भोपाल भी कूच कर गए! दोनों पार्टियों में जिस तरह का माहौल है, ये कहना मुश्किल है कि किसका पलड़ा भारी होगा!
    खरगोन सीट से कांग्रेस उम्मीदवार डॉ गोविंद मुजाल्दा का विरोध तो उनके नाम घोषित होने के साथ ही होने लगा है! इसके पीछे भी उनके अराजनीतिक होने को बताया जा रहा है। पार्टी के स्थानीय नेता तो खुलकर उनके खिलाफ खड़े हो गए! झाबुआ-रतलाम सीट से भाजपा उम्मीदवार जीएस डामोर का भी अंदरूनी विरोध हो रहा है! उन्हें पार्टी ने नियम तोड़कर टिकट दिया है। भाजपा ने तय किया था कि किसी विधायक को टिकट नहीं दिया जाएगा! लेकिन, डामोर को उम्मीदवार बनाने में इस नियम को किनारे किया गया! उन्हें बाहरी व्यक्ति भी बताया गया! क्योंकि, वे धार जिले के रहवासी हैं। इसे भाजपा की कमजोरी माना जाना चाहिए कि इतने सालों बाद भी झाबुआ, आलीराजपुर और रतलाम क्षेत्र में कोई अच्छा आदिवासी नेतृत्व खड़ा नहीं किया जा सका! 
   देवास-शाजापुर सीट से भी भाजपा ने महेंद्रसिंह सोलंकी को टिकट दिया जो नौकरी छोड़कर आए हैं! इसका स्थानीय स्तर पर विरोध हो रहा है। टिकट के दावेदारों के समर्थकों का कहना है कि पार्टी का ये फैसला मंजूर नहीं है! मंदसौर में भाजपा के मौजूदा सांसद और उम्मीदवार सुधीर गुप्ता का विरोध जगजाहिर था! लेकिन, पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट में ही उन्हें टिकट दिया! जबकि कांग्रेस ने भी एक बार फिर मीनाक्षी नटराजन पर दांव लगाया है, जो पिछली बार हार गई थी! यहाँ दोनों ही पार्टियों में अपने-अपने उम्मीदवार का विरोध है, लेकिन पार्टी के फैसले के सामने सब मजबूर भी हैं। भाजपा ने उज्जैन लोकसभा सीट से विधानसभा चुनाव हारे नेता अनिल फिरोजिया को खड़ा किया है! स्वाभाविक है कि पार्टी में अन्य दावेदारों में असंतोष तो नजर आएगा ही! आप सारा दारोमदार इस बात पर है कि जिस पार्टी में ज्यादा सेबोटेज होगा, उसका उम्मीदवार हारेगा!  
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