Wednesday, December 11, 2019

पुलिस और अपराधियों के बीच लाचार जनता की बेबसी!

   देश के 10 लाख से अधिक आबादी वाले 35 शहरों में से 18 ऐसे शहर हैं, जिनके आपराधिक आँकड़े दिल्ली को पीछे छोड़ चुके हैं। इनमें इंदौर का भी नाम है। जब रिपोर्ट दर्ज करने के कारण इतना बढ़ा हुआ आंकडा मिल रहा है, तो बिना शिकायत वाले अपराधों का आंकड़ा क्या होगा, ये सोचा जा सकता है। पर, सवाल है कि क्या मामले सिर्फ छोटे शहरों में ही दर्ज हो रहे हैं? बढ़ती जनसंख्या का दबाव छोटे शहरो के संसाधनों पर भारी पड़ रहा है। अपर्याप्त पुलिस बल और पुराने जमाने के बने कानून इस समस्या को ज्यादा गंभीर बना रहे हैं। बढ़ती राजनीतिक स्पर्धा के चलते लोगों का ध्यान सामाजिक समस्याओं पर न होकर राजनेताओं को अपने पक्ष में करने के लिए सिर्फ भीड़ जुटाने के लिए किए जाने वाले सम्मेलनों पर लगा हुआ है। प्रजातंत्र पर आज पूरी तरह भीड़तंत्र हावी हो चुका है।
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हेमंत पाल

   इन दिनों प्रदेश में बढ़ते अपराधों के साथ इंदौर भी इस मुद्दे पर खासी चर्चा में है। यहाँ अपराधों की नई फसल लहलहा रही है। मिनी मुंबई कहा जाने वाला यह शांतिप्रिय शहर कुछ सालों से अपराधियों, संगठित अपराधों, जमीन से जुड़े विवादों और धार्मिक वैमनस्यता के चलते लगातार खबरों में हैं। आज इस शहर में रीयल एस्टेट कारोबार में बेतहाशा वृद्धि हुई! कुकुरमुत्तों की तरह उग आईं शराब की दुकानें, खुलेआम नशीली दवाईयों का मिलना, आसानी से उपलब्ध अवैध हथियार और वर्षों से चला आ रहा भ्रष्टाचार, रंगदारी, अवैध वसूली और लचर कानून व्यवस्था की वजह से बढ़ रहे अपराधों ने शहर को अपराधों के मामले में देश के शीर्ष 10 शहरों में लाकर खड़ा कर दिया है। शहर के जिम्मेदार नागरिकों के लिए यहाँ के अपराधी किसी आतंकवादियों और नक्सलियों से कम नहीं हैं। लूट-खसौट, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग कैसे अपराध पनप रहे हैं। पकड़े जाने के बावजूद इन अपराधियों को सजा नहीं हो पा रही! ऐसे अपराधियों के हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं। ऐसे में सरकार की भूमिका कहीं नजर नहीं आ रही! सरकार को और जनता को तय कर लेना चाहिए कि जघन्य अपराधियों को फास्ट ट्रायल के जरिए जितनी जल्दी हो सके सख्त सजा मिलना चाहिए। पुलिस की सख्ती मीडिया में तो दिखती है, परोक्ष में नजर नहीं आती! जब भी पुलिस की सख्ती पर उंगली उठाई जाती है, तो पुलिस प्रशासन ट्रैफिक की सख्ती दिखाने लगता है! कभी हेलमेट तो कभी रांग साइड  मुहिम छेड़ दी जाती है! जबकि, जरुरत रात्रि गश्त, आदतन अपराधियों पर नियंत्रण और सड़क पर जनता की सुरक्षा।   
   भाजपा लगातार कानून व्यवस्था के मामले में प्रदेश सरकार को घेर रही है। विधानसभा में भी नरोत्तम मिश्रा ने इस मसले को उठाया था। उन्होंने कहा था कि प्रदेश में अपहरण उद्योग पनप रहा है। ऐसा लग रहा है कि प्रदेश में अपहरण  का कारोबार शुरू हो गया। अनुपूरक बजट पर चर्चा करते समय प्रदेश में बढ़ते अपराध पर कई सदस्यों ने सवाल उठाए थे। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने भी आंकड़ों के साथ कहा था कि 11 नवंबर से 22 जनवरी के बीच प्रदेश में 12325 अपराध हुए, इसमें 332 हत्या, 213 लूट, 6310 महिलाओं पर अत्याचार, 3 डकैती  और 5467 चोरी के मामले थे। महिला अत्याचार के सबसे ज्यादा 445 मामले भोपाल जिले में दर्ज हुए। आरिफ मसूद के एक सवाल के जवाब में यह सामने आया कि 1 जनवरी 2018 से 31 दिसंबर 2018 के बीच भोपाल जिले में महिलाओं के साथ 664 अपराध गंभीर अपराध हुए, इनमें 152 बलात्कार, 185 छेड़छाड़, 327 अपहरण के थे।
  आए दिन होने वाली सड़क लूट से व्यापारियों का इस शहर से मानो विश्वास ही उठ गया है। पिछले दिनों कई व्यापारियों को लुटेरों ने रास्ते में ही लूट लिया। सड़क पर सुरक्षित चलना भी मुश्किल हो रहा है। कौन कब हमला कर दे, मोबाइल या गले की चेन छीन ले या शराब के लिए पैसे मांग ले कहा नहीं जा सकता। जघन्य अपराधों के बढ़ते ग्राफ के कारण इंदौर शहर देश की आपराधिक राजधानी बनता जा रहा है। आंकड़ों के औसत के हिसाब से इंदौर में हुए अपराधों की संख्‍या दिल्ली की तुलना में तीन गुना बताई जा रही है। देखने में आ रहा है कि महानगरों की तुलना में टियर-2 शहरों में अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि अपराधियों में पुलिस का खौफ नहीं रहा! जमानत में छूटे अपराधी फिर अपने काम पर लग जाते हैं और पुलिस को पता भी नहीं चलता।
  शहर में आपराधिक घटनाओं में अचानक हो रही बढ़ोतरी की वजह से पुलिस के सिस्टम पर सवाल खड़े होने लगे हैं। एडीजी का मुख्यालय भी यहीं है। मॉनिटरिंग के लिए तीन एसपी के साथ एसएसपी सिस्टम लागू है। एएसपी और सीएसपी स्तर के अफसरों की भी पर्याप्त संख्या है। बावजूद इसके रात गहराते ही मैदान में नजर आने के बजाए पुलिस थानों में लौट जाती है। करीब 40 किलोमीटर लम्बा बायपास अपराध का नया अड्डा बनता जा रहा है। अँधेरा होते ही यहाँ अपराधी सक्रिय हो जाते हैं, पर पुलिस बेखबर! शहर की कानून व्यवस्था के लचर होने का जीवंत सबूत ये है कि यहाँ बाल सुधार गृह की भोजनशाला की खिड़की तोड़कर 8 विचाराधीन बाल अपचारी भाग गए। ये प्रदेश के अलग अलग हिस्सों के रहने वाले थे और गंभीर वारदातों में लिप्त रहे थे। इन तमाम लोगों के मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं। पिछले कुछ ही महीनों में 13 बाल अपचारियों के फरार होने से हड़कंप मच गया है! कुछ महीनों में इस तरह की 2 बड़ी घटनाएं सुधार गृह की सुरक्षा और वहां के जिम्मेदारों की चौकसी पर सवाल खड़े करती है। बाल सुधार गृह के अधीक्षक के मुताबिक भवन जर्जर है इसलिए इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। 
     प्रदेश में बढ़ते अपराधों का सबसे बड़ा कारण छोटे शहरों के संसाधनों पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव है। राजनीतिक संरक्षण, पुलिसकर्मियों की अपराधियों से सांठगांठ, अपर्याप्त पुलिस बल और कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगवाने वाले पुराने कानून इस मसले को और गंभीर बना रहे हैं। इस बात से इंकार नहीं कि राजनीति संरक्षण प्रदेश में अपराधों के बढ़ने का एक बड़ा कारण है! नेताओं के आस-पास समर्पित कार्यकर्ताओं के बजाए अपराधिक गतिविधियों में संलग्न गुंडों की भीड़ बढ़ती जा रही है! राजनीति से भयभीत होकर पुलिस भी उनपर हाथ डालने से डरती है! यही कारण है कि अपराधों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है! ऐसे में सरकार का ये दावा कहाँ गया कि मध्यप्रदेश 'शांति का टापू' है?
    अपराधों के मामले में प्रदेश का सबसे आधुनिक शहर इंदौर लगातार असुरक्षित होता जा रहा है! अमन पसंद और चैन की जिंदगी जीने वालों का ये शहर कुछ सालों से हत्या, लूटपाट,अवैध हथियारों और ड्रग्स के कारोबार, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग और भू-माफिया के विवादों के कारण लगातार चर्चित है! जमीन की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि और रियल इस्टेट कारोबार बढ़ने के कारण अवैध वसूली करने वाले गुंडे राजनीतिक संरक्षण में पनप रहे हैं! इस कारण इंदौर को अपराधों के मामले में देश के शीर्ष 10 शहरों में लाकर खड़ा कर दिया है। अकसर होने वाली लूटपाट से कारोबारियों का इंदौर पर से भरोसा उठने भी लगा! अपराधों के बढ़ते आंकड़ों के कारण इंदौर एक तरह से आपराधिक राजधानी बनता जा रहा है। महिलाओं से होने वाली लूटपाट आम बात हो गई! एक काला सच ये भी है कि शरीफ लोग तो अपनी बात कहने थाने जाने से ही घबराते हैं! सरकार थानों का माहौल ऐसा नहीं बना सकी कि आम शहरी निश्चिंत होकर शिकायत लिखवाने थाने जा सके! जब तक थानों का खौफ नहीं घटेगा, अपराध कैसे कम होंगे?
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