Tuesday, December 31, 2019

सरकार चलाने और मुँह चलाने के पीछे छुपे फर्क को समझिए!

- हेमंत पाल

    राजनीति की अपनी एक मर्यादा और संस्कार होते हैं! विपक्षी नेताओं पर भी शाब्दिक हमलों के समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वे किसी की भावनाओं को आहत न करें! ये भी जरुरी होता है कि व्यक्तिगत हमला न किया जाए! लेकिन, मध्यप्रदेश के कुछ भाजपा नेता अपनी राजनीतिक पहचान खोने के भय से मर्यादा की वो सीमा रेखा लांघ रहे हैं! उन्हें अपनी ही पार्टी के दूसरे नेताओं से भी खतरा है, कि कहीं वे किसी मुद्दे पर बयान देने उनसे आगे न निकल जाए! ऐसे में सबसे आगे हैं, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान! जब से वे कुर्सी से उतरे हैं, बयानों  जरिए खुद को जिंदा रखने की कोशिश में लगे हैं! मुद्दा बोलने का हो या न हो, वे कोई न कोई बखेड़ा जरूर खड़ा कर देते हैं! वे सिर्फ विपक्ष पर ही हमला नहीं कर रहे, अपनी पार्टी के बड़े नेताओं के स्तुतिगान में भी इतना खो जाते हैं कि उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता पर भी शक होने लगता है! शायद इसीलिए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है 'सरकार चलाने और मुँह चलाने में फर्क होता है!' 
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   विधानसभा में पिछले दिनों किसानों को गेहूं की फसल पर बोनस देने की विपक्ष की मांग को लेकर जबर्दस्त हंगामा हुआ! विपक्ष की बोनस की घोषणा करने की मांग बार दोहराए जाने पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि सरकार चलाने और मुंह चलाने में अंतर होता है, सरकार मुंह चलाने से नहीं चलती! किसानों की मदद सदन से बाहर भी कीजिए। सिर्फ मुंह चलाने से सरकार नहीं चलती! इस बयान पर नेता प्रतिपक्ष ने कहा था कि मुख्यमंत्री का ये बयान अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है! सदन के नेता ने यह मर्माहत करने वाली बात कही, उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा कि मुंह चलाने वाली बात मैंने किसी को टारगेट करने के लिए नहीं कही, आप टारगेट बनना चाह रहे हैं, तो मैं कुछ नहीं कर सकता! ये महज सदन में घटी घटना नहीं, सच्चाई भी है कि मध्यप्रदेश में विपक्ष के नेता बहुत ज्यादा शाब्दिक जुगाली में लगे हैं! उनमें भी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अव्वल हैं, जो बयानबाजी का कोई मौका नहीं छोड़ते! रोज कोई  शिगूफा छोड़ना उनकी आदत सी हो गई है! 
   विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा के नेता बिफर से गए हैं! बीते सालभर में ऐसे कई प्रसंग आए, जब ये नेता बिना बात के बोले और बेवजह माहौल बनाने की कोशिश की! इनमें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव तो ज्यादा बोले ही, उनसे आगे निकले शिवराजसिंह चौहान! वे बोलने का ऐसा कोई मौका नहीं चूकते, जहाँ उन्हें माइलेज मिले! फिर चाहे वो मामला प्रासंगिक हो या नहीं! शिवराज सिंह सिर्फ मुख्यमंत्री कमलनाथ को ही निशाने पर नहीं रखते, हर कांग्रेसी नेता प्रति उनका रवैया एक जैसा ही दिखाई देता है! क्योंकि, उनका लक्ष्य मीडिया होता है! बयानबाजी में वे हमेशा भाजपा के उन नेताओं से आगे रहने की कोशिश में रहते हैं, जो किसी पद पर हैं और जिनके बोलने का कोई वजन होता है! फ़िलहाल शिवराज सिंह प्रदेश में ऐसे किसी पद पर नहीं हैं कि उनके बयानों को गंभीरता से लिया जाए! लेकिन, फिर भी वे बोलते रहने की अपनी आदत से मजबूर हैं! कुछ दिन पहले उन्होंने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह पर बिना नाम लिए निशाना साधा था कि ऐसे व्यक्ति जो 10 साल मुख्यमंत्री रहे, मैं उसका नाम नहीं लूंगा वरना मुझे नहाना पड़ेगा! उन्होंने नाम नहीं लिया, पर समझ आ रहा था कि वे किसके बारे में ये बात कह रहे हैं! 
     पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 पर कांग्रेस को घेरते हुए एक विवादस्पद बयान में ये भी कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू 'क्रिमिनल' थे। भारतीय सेना जब कश्मीर से पाकिस्तानी कबाइलियों का पीछा कर रही थी, तो जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी। कश्मीर के एक-तिहाई हिस्से पर पाक का कब्जा है। अगर, कुछ और दिनों के लिए युद्धविराम नहीं होता, तो पूरा कश्मीर हमारा होता। शिवराज ने ये भी कहा कि नेहरू का दूसरा अपराध 'अनुच्छेद-370' है। उन्होंने कहा कि एक देश में दो निशान, दो विधान, दो प्रधान, यह एक देश के साथ अन्याय नहीं बल्कि उसके खिलाफ अपराध है। दरअसल, नेताओं से ऐसी गलतियां तब होती  है,जब वे खुद की जानकारी के बजाए, किसी और बातों पर भरोसा करके बयान देते हैं! पं नेहरू से जुड़ा ये ऐतिहासिक तथ्य शिवराजसिंह ने कहा लिया, ये तो नहीं कहा जा सकता! लेकिन, ऐसी बातें जब सार्वजनिक रूप से कही जाए तो उसकी तथ्यात्मक पुष्टि जरुरी है! 
     सागर में एक प्रदर्शन के दौरान शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ बोलते हुए कहा था कि वे इंदिरा गांधी से नहीं डरे, तो कमलनाथ किस खेत की मूली हैं। देखा जाए तो राजनीति में कोई किसी नेता से नहीं डरता, जो विरोध है, वो भी मुद्दों के आधार पर वैचारिक होता है, न कि व्यक्तिगत द्वेष होता है! लेकिन, शिवराज सिंह के बयानों की भाषा से लगता है कि वे 'बिलो द बेल्ट' वार करने को ही अपना लक्ष्य बनाकर चलते हैं। यही कारण है कि अब ये कहा जाने लगा है कि शिवराज सिंह अमर्यादित भाषा बोलते हैं, क्योंकि उनकी पार्टी में कोई उन्हें अपना नेता मानने को तैयार नहीं है! इस वजह से वे इस तरह की भाषा का उपयोग कर रहे हैं। शिवराज सिंह का छिंदवाड़ा में वहां के कलेक्टर के खिलाफ दिए बयान की भी काफी आलोचना हुई थी! उन्होंने हेलिकॉप्टर उतारने की अनुमति न दिए जाने पर छिंदवाड़ा के कलेक्टर को 'पिट्ठू' कहा था। वे छिंदवाड़ा जिले के चौरई कस्बे में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करने गए थे, जहां से उनके हेलिकॉप्टर को प्रशासन के निर्देश पर पांच बजे से पहले रवाना कर दिया गया। इस पर उन्होंने प्रशासन पर मुख्यमंत्री के दवाब में काम करने का आरोप लगाते हुए धमकी दी थी, 'ए पिट्ठू कलेक्टर सुन ले रे, हमारे भी दिन आएंगे, तब तेरा क्या होगा। जो नेता एक दशक से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहा हो, उससे ऐसी चलताऊ भाषा की उम्मीद नहीं की जाती! लेकिन, शिवराज सिंह को लगता है कि वे जब तक कांग्रेस पर ऐसी भाषा में हमले नहीं करेंगे, उनकी बात में दम नहीं आएगा!  
   शिवराज सिंह विपक्ष के खिलाफ सिर्फ हमलावर की भूमिका ही नहीं निभा रहे, वे अपनी पार्टी के बड़े नेताओं की स्तुति करने में भी फर्शी सलाम करने का मौका नहीं चूकते! देश में इन दिनों 'नागरिकता संशोधन कानून' को लेकर बहस छिड़ी है। हजारों लोग कई दिनों से सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी बीच शिवराज सिंह ने कानून से प्रताड़ित लोगों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान तक कह डाला! उन्होंने कहा है कि नरेंद्र मोदी ऐसे लोगों के लिए भगवान बनकर आए हैं। मोदी के प्रति शिवराज सिंह की ये भाषा भी राजनीतिक पैंतरा है। क्योंकि, इससे पहले उनके भगवान लालकृष्ण आडवाणी हुआ करते थे और को मोदी का प्रतिद्वंदी समझा जाता था! 2013 में प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री उम्मीदवारी के खिलाफ खड़े वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज को धन्यवाद किया था। लेकिन, भाजपा के प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित नरेंद्र मोदी का नाम सबसे आखिर में लिया। ये भी भूलने वाली बात नहीं है कि जब पिछले लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी का नाम उम्मीदवारी की तीन सूची में नहीं आया तो शिवराज सिंह ने उन्हें भोपाल आकर चुनाव लड़ने का निमंत्रण दे डाला था। अब वही नरेंद्र मोदी को वे भगवान कहकर संबोधित कर रहे हैं। ये सब देखते हुए स्पष्ट है कि शिवराज सिंह जो करते हैं, उसके पीछे उनकी तयशुदा रणनीति होती है! यदि वे कांग्रेस नेताओं पर अमर्यादित भाषा में हमले कर रहे हैं, तो ये पार्टी के दिल्ली दरबार को प्रभावित करने की ही कोशिश का हिस्सा है!
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