मध्यप्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा, इसे लेकर पार्टी के अंदर घमासान जारी है। सतह पर शांति नजर आ रही है, पर नीचे जमकर राजनीति चल रही! एक तरफ वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह को दोबारा अध्यक्ष बनाए जाने की कोशिश है, दूसरी तरफ शिवराजसिंह चौहान अपने गुट के किसी नेता को अध्यक्ष बनाए जाने की जुगत में लगे हैं! वे खुद इस दौड़ में नहीं हैं, पर राजनीति की शतरंज की बिसात पर मोहरे वे ही चल रहे हैं। ऐसी स्थिति में आम सहमति बनने में मुश्किल नजर आ रही है! इस चुनाव में संघ की भी भूमिका नजर आ रही है! संघ की कोशिश है कि किसी ऐसे नेता को प्रदेश की कमान सौंपी जाए, जो उनसे जुड़ा हो! भाजपा में इस बार का प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव पिछले चुनाव से अलग है। क्योंकि, पार्टी सत्ता में नहीं है! लेकिन, हालात जो भी बनें, अंतिम फैसला पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मर्जी के बिना संभव नहीं है! ऐसी स्थिति में शिवराज सिंह का पत्ता सबसे कमजोर है! इस बात के भी पूरे आसार हैं कि अध्यक्ष की कुर्सी उसे मिलेगी जिसे शिवराज अध्यक्ष बनने देना नहीं चाहेंगे!
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- हेमंत पाल
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को नए प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की हलचल पूरे शबाब पर है। सतह से ऊपर सन्नाटा है, पर सतह के नीचे एक-दूसरे की टांग खिंचाई चल रही है। ऐसे हालात में पार्टी को मुश्किल दौर से गुजरना पड़ सकता है! डेढ़ दशक बाद प्रदेश में ऐसा मौका आया, जब पार्टी सत्ता में नहीं है और गुटबाजी का नेतृत्व करने वाले नेता अपने चहेते को अध्यक्ष बनाने की जुगत लगा रहे हैं! भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव दिसंबर माह के अंत में प्रस्तावित है, इसलिए प्रदेश के अध्यक्ष का चुनाव इससे पहले होना जरूरी समझा जा रहा है। भाजपा में इस बार अध्यक्ष पद के लिए वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह के अलावा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह, विश्वास सारंग और सांसद विष्णुदत्त शर्मा बड़े दावेदार हैं। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल की सक्रियता भी नजर आ रही है। पार्टी के मुताबिक प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष वही होगा, जिसे पार्टी नेतृत्व के अलावा आरएसएस का समर्थन मिलेगा। भाजपा चाहती है कि प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व किसी युवा और साफ-सुथरी छवि के व्यक्ति को सौंपा जाए, जिसके पास सशक्त जनाधार हो!
मध्यप्रदेश के अध्यक्ष के लिए रायशुमारी का फैसला और उसकी बागडोर राम माधव जैसे नेता को दी गई हैं। बतौर पर्यवेक्षक केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और अश्विनी चौबे को नियुक्त किया है। इससे लगता है कि इस पद को लेकर पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी गंभीरता से मंथन कर रहा है। संघ भी नहीं चाहता कि वो इस बार अध्यक्ष पद को अपने हाथ से जाने दे! इसका सीधा आशय है कि किसी एक नाम पर आम सहमति न बन पाने की स्थिति में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संघ समर्थित किसी नेता को सौंपी जाने के आसार हैं। अरविंद भदौरिया, विष्णुदत्त शर्मा और अजयप्रताप सिंह को संघ ने ही आगे बढ़ाया है! बताते हैं कि विष्णुदत्त शर्मा के नाम को लेकर काफी कुछ सहमति बन भी चुकी है, लेकिन अभी कुछ कहा नहीं जा सकता कि अंतिम स्थिति क्या होगी!
रायशुमारी के पीछे मुख्य मकसद मौजूदा अध्यक्ष राकेश सिंह को एक बार फिर मौका दिए जाने, संघ समर्थित किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपने, राकेश सिंह के विरोधियों को किनारे करने और ऐसे लोगों को चुनाव की दौड़ से अलग रखना हैं, जो इस काबिल नहीं हैं! लेकिन, सहमति के आसार बहुत कम नजर आ रहे हैं। चुनाव में शिवराज सिंह की भूमिका को लेकर दूसरे गुट के कई नेताओं को आपत्ति है। क्योंकि, वे खुद के तो चुनाव से अलग होने की घोषणा कर चुके हैं, पर अपने गुट के भूपेंद्र सिंह और रामपाल सिंह के लिए जमकर लॉबिंग कर रहे हैं। उनका एक ही मकसद है कि किसी भी स्थिति में राकेश सिंह को दोबारा मौका नहीं दिया जाना चाहिए! लेकिन, शिवराज सिंह की बात को पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व गंभीरता से लेगा, इसमें शक है! शिवराज सिंह ने शुरू से ही राकेश सिंह को आने निशाने पर रखा है, कि वे कहीं दोबारा अध्यक्ष न बन जाएं! इसलिए उन्होंने अपने तरकश के हर तीर का इस्तेमाल किया। जब उनकी चाल कमजोर पड़ने लगी, तो उन्होंने कृष्णमुरारी मोघे तक पर दांव खेलने की कोशिश की! उन्हें पता था कि ये बुझा हुआ तीर है, फिर भी उन्होंने पांसा फैंका! इसका नतीजा ये हुआ कि मोघे का नाम सामने आते ही सुमित्रा महाजन ने दिल्ली की तरफ कूच किया और पार्टी को अपना पक्ष बताया! इसके बाद स्थिति ये बनी कि खुद शिवराज सिंह भी राकेश सिंह के घर पहुँच गए! उधर, प्रभात झा ने भी ऐसा ही एक बुझे तीर उषा ठाकुर का नाम आगे बढ़ाकर किया था, पर इस नाम को किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया!
राकेश सिंह दूसरी पारी के लिए आश्वस्त हैं, लेकिन शिवराज सिंह के साथ भिड़ंत के कारण उनका दावा कमजोर लगता है। उनके विरोधी गुट का कहना है कि राकेश सिंह की अपने कार्यकाल में कोई खास उपलब्धि नहीं रही। उनके कार्यकाल में ही भारतीय जनता पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ी है। जहाँ तक लोकसभा चुनाव में 29 में से 28 सीट जीतने की बात है, तो इसे मोदी लहर माना गया! पार्टी में सबसे बड़ी चुनौती नेताओं की आपसी गुटबाजी को माना गया था, जिसे दूर करने में राकेश सिंह सफल नहीं हुए! उन पर ये भी आरोप लगा है कि उन्होंने खुद का भी एक गुट खड़ा कर लिया। उनके और शिवराज सिंह के बीच चल रही गुटबाजी भी साफ दिखाई दे रही है। एक मुद्दा ये भी है कि क्या सामाजिक समीकरणों की इन चुनाव में अनदेखी की जाएगी? अभी अध्यक्ष पद पर राकेश सिंह हैं, जो ठाकुर हैं तो क्या फिर किसी उच्च जाति के नेता को मौका दिया जाएगा? यदि ब्राह्मण, ठाकुर या वणिक जाति के नेता को अध्यक्ष बनने का मौका दिया गया तो ओबीसी या आदिवासियों में अच्छा संदेश नहीं जाएगा! लेकिन, अभी जो नाम सामने आए हैं, उनमें न तो कोई आदिवासी है और किसी ओबीसी का नाम किसी गुट ने आगे बढ़ाया है!
खजुराहो लोकसभा सीट से सांसद और संघ के खाते से विष्णुदत्त शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में दमदार नाम बताया जा रहा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता होने के नाते संघ में विष्णुदत्त शर्मा की अच्छी पकड़ है। वे संगठन के आदमी है और उन्होंने पूरे प्रदेश में काम किया है! उनके समर्थकों की संख्या भी अच्छी खासी है। लेकिन, भाजपा के कुछ नेता विष्णुदत्त शर्मा को अध्यक्ष पद तक पहुँचने देना नहीं चाहते! इसके कई कारण हैं! सबसे बड़ा तो ये कि वे प्रदेश में बड़े नेता बनकर उभरेंगे, जो अभी नहीं हैं! इसके अलावा वे स्वभाव से गुस्सैल हैं और कभी भी, कहीं भी वे अपना संयम खो देते हैं! ऐसी स्थिति में उनकी ये आदत पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है। इसके अलावा नरोत्तम मिश्रा का नाम भी शुरू में लिया जा रहा था, लेकिन वे अब पीछे हट गए! इसके पीछे उनकी अपनी रणनीति समझी जा रही है। शिवराज गुट से भूपेंद्र सिंह और रामपाल सिंह के नाम भी हैं। विश्वास सारंग को भी शिवराज समर्थकों में गिना जाता है। जबकि, राज्यसभा सांसद प्रभात झा और सांसद वीरेंद्र खटीक के नाम भी चर्चा में हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी इस पद के लिए स्वाभाविक दावेदार समझा जाता रहा है। लेकिन, अभी उनके पास पश्चिम बंगाल की बड़ी जिम्मेदारी है, इसलिए पार्टी उनका लक्ष्य बदलना नहीं चाहेगी!
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